दशम कर्म भाव से व्यवसाय का पता लगाएं
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता हैवैदिक ज्योतिष शास्त्र में लग्न से दशम स्थान में बैठे हुए ग्रह के प्रभाव का वर्गीकरण करते हुए सब से अधिक प्रभावी ग्रह के स्वरूप के आधार पर व्यवसाय का निर्णय करने की पद्धति कही गई है। अभिप्राय यह है कि यद्दपि दशम स्थान कर्म स्थान है पर यह केवल धनोपार्जन के कर्मो का परिचायक नहीं है। बल्कि अच्छे-बुरे,
यज्ञीय-अयज्ञीय कर्मो का परिचायक है।
जातक शिरोमणि में कहा है:-
विलग्नं शरीरं मनः शीतरमर्विवस्वानथात्मा त्रयाणांमर्थैक्ये
अर्थात लग्न से जातक का शारीर, चंद्रमा से मन और सूर्य से आत्मा का प्रतिपादन होता है। लग्न स्थान को पूर्ति स्थान भी कहा-अर्थात लग्न स्थान से दशम स्थान मनुष्य के शारीरिक परिश्रम द्वारा सम्पन्न कार्य का बोध कराता है। चंद्रमा से दशम स्थान जातक की मानसिक प्रवृत्ति के अनुसार सम्पन्न कार्य का बोध कराता है और सूर्य से दशम स्थान आत्मा की प्रबलता द्वारा कार्योत्पत्ति का बोधक होता है।
इन्ही सब कारणों से महर्षि गर्ग, वरहमिहिरादि आचार्यों का मत है कि लग्न और चंद्र में जो बली हो उससे दशम भाव द्वारा जातक के कर्म और उसकी मनोवृत्ति का विचार किया जाता है । गर्गाचार्य तो केवल कर्म स्थान में स्थित ग्रह को ही सफलता का परिचायक मानते हैं। उनके अनुसार तो यदि दशम स्थान में कोई ग्रह न हो अथवा उस पर किसी ग्रह की दृष्टि भी न हो तो जातक अभागा होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि लग्न स्थान में कोई ग्रह हो तो जातक अपने कुल में अवश्य ही उन्नतिशील होता है। परन्तु उन्नति की मात्रा ग्रह की अवस्था पर निर्भर करती है। यदि दशमस्थ ग्रह उच्च हो तो जातक अप्रत्याशित उन्नति करता है। यदि दशमस्थ ग्रह नीच हो तो भी जातक अपने कुल की अवस्था अनुसार कुछ उन्नति अवश्य करता है। हाँ यह उन्नति डावांडोल रहती है, यदि दशम स्थान में उच्च और नीच दोनों ही अवस्था के ग्रह बैठे हों तो उन्नति तो अवश्य होती है परंतु कभी-कभी मानहानि, धन हानि, आदि भी अवश्य हो जाती है।
यदि चंद्रमा और लग्न इन दोनों में से किसी से भी दशम स्थान में कोई ग्रह न हो तो फिर सूर्य से दशम स्थान स्थित ग्रह के द्वारा रोजगार का विचार करना होता होगा और यदि सूर्य से दशम स्थान में भी कोई ग्रह न हो तो फिर दशम स्थान के स्वामी के नावांशपति से व्यवशाय का विचार होता है।
अभिप्राय यह है कि
(क) पहले यह देखें कि लग्न और चन्द्रमा में से कौन बली है- जो बली हो उससे दशम स्थान स्थित ग्रह को देखिये
(ख) यदि इन दोनों से दशम स्थान में कोई ग्रह न हो तो सूर्य से दशम स्थान से ग्रह को देखिये
(ग) यदि सूर्य से भी दशम स्थान में कोई ग्रह न हो तो, यह देखना होगा कि लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न इन तीनो में से कौन बली है। जो बली हो उससे दशम स्थान का स्वामी कौन है तथा वह दशमेश किसके नवांश में है। उसी नवमांशेश ग्रह के अनुसार जातक का व्यवशाय होगा।
हमारे अनेक ऋषियों का यह मत है कि उपर्युक्त तीनो स्थानों से ही विचार करना सही होगा । मुख्य जीविका तीनो स्थानों में से अधिक बली भाव से दशम स्थान स्थित ग्रह द्वारा अथवा उसके दशमेश के नवमांशपति के अनुसार होगी; अन्य ग्रहों द्वारा सहायक जीविका का निर्णय करना उचित होगा।
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