रोगकारक दशा
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है(1) षष्ठेश की दशा अन्तर्दशा में जातक को किसी न किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट भुगतना होता है।
(2) एकादशेश की दशा-अन्तर्दशा भी प्रायः रोगकारक होती है।
(3) द्वादशेश की महादशा जब द्वितीयेश की अंतर्दशा आती है अथवा द्वितीयेश की महादशा में द्वादशेश की अन्तर्दशा आती है तो ऐसे समय में प्रायः रोग हुआ करता है।
(4) अष्टमेश की महादशा में षष्ठेश अथवा षष्ठेश की महादशा में अष्टमेश की अन्तर्दशा आती है तो उस समय प्रायः रोग कष्ट हुआ करता है।
रोग ठीक होने की दशा
(1) साधारणतया ग्रह दूषित और पीड़ित रहने पर एक सीमा तक रोगी को कष्ट दिया करते हैं।
शनि 1 वर्ष, सूर्य 6 मास, बुध 2 मास, बृहस्पति 1 मास, शुक्र 15 दिन, मंगल 2 दिन और चन्द्रमा 48 सैकिण्ड। उदाहरण के लिए किसी भी कुंडली में शनि रोगकारक बन रहा हो तो शनि से उत्पन्न रोग होगा और लगभग एक वर्ष भोगना होगा। कभी-कभी पूरी दशा भी रोगकारक बन जाती है।
(2) बीमारी पैदा करने वाले ग्रह के शत्रु की दशा में प्रायः रोग को ठीक होते देखा गया है।
(3) यदि पूर्ण मारकेश के समय कोई बीमारी पैदा हुई हो तो उसे विशेष अरिष्टदायक समझना चाहिए।
(4) यदि कोई व्यक्ति बहुत लंबे समय से रोगी चला आ रहा है एवं वर्तमान में मारकेश की दशा-अन्तर्दशा नहीं है तो वह मरणतुल्य बीमारी भोगकर ठीक हो जायेगा।
(5) मारकेश ग्रह यदि वक्री हो गया हो तो वह पूर्ण मारकेश नहीं होता । अतः ऐसी दशा में भी जातक अवश्य मरणतुल्य बीमारी भोगकर ठीक हो जायेगा।
बीमारी के लिए छठे भाव का विशेषतया विचार
जन्म कुंडली में छठा भाव अन्य बातों के अतिरिक्त ‘ रोग ‘ से विशिष्ट सम्बन्ध रखता है। प्रत्येक षष्ठेश चोट अथवा रोग का प्रतिनिधि होता है और जिस पर इस षष्ठेश की स्थिति होती है अथवा जिस भाव पर इसकी दृष्टि होती है। उन दोनों ही भावों को हानि पहुँचती है। यह हानि नगण्य होती है। परन्तु जब शनि, जो रोग का पक्का कारक है, स्वयं षष्ठा-धिपति बन जावे तो फिर शनि का दृष्टि योग कुछ अधिक हानिकारक हो जाता है। यदि छठे स्थान में शनि ही की किसी राशि मकर अथवा कुम्भ में राहु स्थित हो तो कहना क्या। फिर तो षष्ठेश शनि मूर्तिमान् रोग होता है। और निश्चय से उस भाव को हानि पहुँचती है जिसमे शनि स्थित हो अथवा जहाँ पर उसकी दृष्टि पड़ती हो, विशेषतया उस स्थिति में जबकि उस भाव का स्वामी भी निर्बल हो जिस भाव में की शनि स्थित है अथवा उसी संख्या की राशि का स्वामी भी निर्बल हो ।
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