Tuesday, December 26, 2017

शकुन

शकुन


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"सुकमावली' नामक ग्रंथ के अनुसार शकुन

""बालक रो सुसवत, मंगलीक सबद, छत्र चांभरा मोड़, मंस दही, सुखपाल, सरसव, वीणा, जल, कुँवारी कन्या बलद रासी बंधा दोय, गुल, अन, धुंआरहत अगन, दीवो, हाती, घोड़ो सपालणो, नगरनाय का, सदासुहागया, सुहागण अस्री, नालेर, मीयानस्मेत, हतीयार, गाडो से जुतो, पुत्र गोद में लिया अस्री, अस्री भरीये बहेडै, बाछड़ा समेत कामधेन, धोब, हलद, कुंकुम, रोटी तांबा, नांणो, रुपा नाणों, लुहार दाढ़ी वालों, सन्यासी वस्र पहिरिया, श्री ठाकुर री मूरत, भिष्टा सूं पग भरीयोर्ड़ी, उजला फूल बीजा ही मंगलीक वस्तु सांभी मीली भली।

घर से प्रस्थान करते समय होने वाले अशुभ शकुनों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है:- ""फेर घर सुं चालता वेरी सांमो भीले, तुसधांन, आटो, चूनो, कपास, भागा ठीकरा, छांणा, तेल, लौह, खांती, औजार, छुटे केसे नार, नकटो वांमणं, भैंसो, गथराड़ो, पंसारी, नायलो, रोगी, भोपो, आहेड़ी, खटीक, दुखीयोदीन, गहलौ- गूंगो, वमन करतौ, कांणौ, इंधण री भारी, वांझियो, काढियो, वासदे, ठाली, घड़ो, खंड, खल, मुंज, केस, रीतवंती अस्री, छीनाल, विधवा, वडकुंआरी, कोयला, जुआरी, गाँव चालता इतरा चोक नहीं लेणा।

चंद्र स्वर में किये जाने वाले कार्य इस प्रकार है :-

""जात्रा दान- पुण्य करीजै, वीवा कीजै। समाइ कीजै। वसतर पेहरीजै। सोनो रुपौ घडावीजै, पैहरीजै। सरब बसत संग्रह कीजै। गुरदरसण जाहजै। मंत्र- साधना कीजै। धन- संग्रह कीजै। भणीजै भणावीजै, भाइबंध सु मीलीजै, साधुजण रै दरसण जाइजै। रसायण कीया क्रिया। कवी गीत कहीजै। हर मींदर देवरौ कीजै। पहली हल जोतरीजै। अन सारु खाड़ खिणीजै। सूने खेड़ै बसती कीजै। भाइबंध रो मनावणौ कीजै। संसार माहे ऐसा सुभ काम चंद्र रै सुर कीजै।

सूरज के स्वर में इस तरह के कार्य करने शुभ माने जाते हैं :-

""ससत्र लोह लीजै। ससत्र बांधीजै। जुवां रमीजै। चोरी कीजै। वाहण गज घोड़ी लीजै रथ लीजै रथ बैसीजै। भेषज कीजै। भूप घात कीजै। सीनांन कीजै। मैथून भोग कीजै। कुकरम, काम, भूत, वीर, वैताल, साधना, षड्गधार, उदेग, झगड़ो, सूरज सुरकीजै। समद जीहाज नांखीजै, नदी तीरीजै। बावड़ी में पेसीजै सूरज रे सुर ऐता कांम कीजै।

इस प्रकार विहित कार्यों के लिए शुभ समय के साथ स्वरों के शुभाशुभ शकुन का भी महत्व था। स्वरोदय से शकुन ज्ञात करने का तरीका कुछ भी जानकार लोगों तक सीमित था। इसमें बाँया स्वर चंद्र का तथा दांया स्वर सूरज का माना जाता है। ""चरणदास जी को सरोधो'' नामक ग्रंथ में इन स्वरों में किये जाने वाले निर्दिष्ट कार्यों का उल्लेख मिलता है। ""महादेवजी रो सरोदो'' नामक पुस्तक में स्वर के लक्षण, शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के शुभाशुभ स्वराघात, विपरीत, तत्वभेद, गरमभेद आदि पक्षों पर भी विचार किया गया है।

सूर्य व चंद्रग्रहण संबंधी शकुन

सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण के फलाफल के संबंध में व्याप्त धारणाएँ लोक समाज में देखने को मिलती रही हैं। इनका कृषण व व्यापारी वर्ग में विशेष महत्व रहा है। शकुनों का उल्लेख इस प्रकार है :-

""माह रे महने ग्रहण होइ तो धमचक होइ सूर्यग्रहण व्हैतो हिदू नै भूंडौ चंद्रग्रहण व्हैतो मुसलमान नै पीड़ा उपजै। फागण मासे ग्रहण व्हैतो मेह बिरषा घणी करै। चैत्र मासे ग्रहण हुवै समौ दुर्भक्ष पड़े। वैसाख मासे ग्रहण व्हेतो अछोत जात पीड़ा होई। तिल गुड़ कपास, गोऊ घणा नीपजै। जेठ सर्व बसत सुंहगी होई पण चोपदा पीड़ा करै। असाढ़ मासे ग्रहण होई तो षंड मंडले वृषा करै। कंद मूल विनास करै। सांवण- घोड़ा रोग ग्रभ विनास करै अन मुंहगौ करै वायरौ घणौ बाजै काल पड़ै। भादवा- अस्रीया रो ग्रभ विनासै। आसोज- चारु मास घणी वृषा राजा प्रजा सुखी रहे। काती- साख रौ चोथौ भाग हरै, समौ करवरौ होई। मगसर- अन संग्रह कीजै तीजै मासे लाभ तिगुणौ। पोह रै महीनै ग्रहण होइ तो अग्नि रो चालौ करै।

ग्रहण संबंधी मान्यताओं का पता इस लोकोक्ति के माध्यम से होता है

""गुरु दिन ग्रहण जे होय तो दुगणौ लाभ चौमास।
रुपौ तेल कपास घी, संग्रह करजौ तास।।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )