Saturday, December 30, 2017

गीता द्वारा ग्रह बाधा दूर करें

गीता द्वारा ग्रह बाधा दूर करें

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गीता के अठारह अध्यायों में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संकेत दिए हैं, उन्हें ज्योतिष के आधार पर विश्लेषित किया गया है

प्रथम अध्याय :-
शनि संबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए।
द्वितीय अध्याय :-
जब जातक की कुंडली में गुरू की दृष्टि शनि पर हो तो द्वितीय अध्याय का पाठ करना चाहिए।
तृतीय अध्याय :-
10वां भाव शनि, मंगल और गुरू के प्रभाव में होने पर तृतीय अध्याय का पाठ करना चाहिए।
चतुर्थ अध्याय :-
कुंडली का 9वां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर चतुर्थ अध्याय का पाठ करना चाहिए।
पंचम अध्याय :-
पंचम अध्याय भाव 9 तथा 10 के अंतरपरिवर्तन में लाभ देते हैं।
छठा अध्याय :-
इसी प्रकार छठा अध्याय तात्कालिक रूप से आठवां भाव एवं गुरू व शनि का प्रभाव होने और शुक्र का इस भाव से संबंधित होने पर लाभकारी है।
सप्तम अध्याय :-
सप्तम अध्याय का अध्ययन 8वें भाव से पीड़ित और मोक्ष चाहने वालों के लिए उपयोगी है।
आठवां अध्याय :-
आठवां अध्याय कुंडली में कारक ग्रह और 12वें भाव का संबंध होने पर लाभ देता है।
नौंवे अध्याय :-
नौंवे अध्याय का पाठ लग्नेश, दशमेश और मूल स्वभाव राशि का संबंध होने पर करना चाहिए।
दसवां अध्याय :-
गीता का दसवां अध्याय कर्म की प्रधानता को इस भांति बताता है कि हर जातक को इसका अध्ययन करना चाहिए।
ग्यारहवें अध्याय :-
कुंडली में लग्नेश 8 से 12 भाव तक सभी ग्रह होने पर ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
बारहवां अध्याय :-
बारहवां अध्याय भाव 5 व 9 तथा चंद्रमा प्रभावित होने पर उपयोगी है।
तेरहवां अध्याय :-
तेरहवां अध्याय भाव 12 तथा चंद्रमा के प्रभाव से संबंधित उपचार में काम आएगा।
चौदहवां अध्याय :-
आठवें भाव में किसी भी उच्च ग्रह की उपस्थिति में चौदहवां अध्याय लाभ दिलाएगा।
पंद्रहवां अध्याय :-
पंद्रहवां अध्याय लग्न एवं 5वें भाव के संबंध में लाभ देता है।
सोलहवां अध्याय :-
मंगल और सूर्य की खराब स्थिति में सोलहवां अध्याय उपयोगी है।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )