Sunday, December 31, 2017

महाकाली कि नित्याएं / कलाएं

महाकाली कि नित्याएं / कलाएं


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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विज्ञ जनों को यदि मेरे इस लेख में कोई गलतियां मिलती हैं तो कृपापूर्वक मुझे दिशानिर्देश दें — आप सबके सुझावों का स्वागत है :-

१. काली :-
प्रथम नित्य का नाम भी काली ही है और मंत्र है :-

ॐ ह्रीं काली काली महाकाली कौमारी मह्यं देहि स्वाहा 

२. कपालिनी :-
माता काली कि द्वितीय नित्य का नाम कपालिनी है और मन्त्र है :-

ॐ ह्रीं क्रीं कपालिनी – महा – कपाला – प्रिये – मानसे कपाला सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा 

३. कुल्ला :-
माता काली कि तृतीय नित्या का नाल कुल्ला है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं कुल्लायै नमः

४. कुरुकुल्ला :-
माता कि चतुर्थ नित्या का नाम कुरुकुल्ला है और मंत्र है :-

क्रीं ॐ कुरुकुल्ले क्रीं ह्रीं मम सर्वजन वश्यमानय क्रीं कुरुकुल्ले ह्रीं स्वाहा

५. विरोधिनी :-
माता कि पंचम नित्या का नाम विरोधिनी है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं ह्रीं क्लीं हुं विरोधिनी शत्रुन उच्चाटय विरोधय विरोधय शत्रु क्षयकरी हुं फट

६. विप्रचित्ता :-
माता कि छटवीं नित्या का नाम विप्रचित्ता है और मंत्र है :-

ॐ श्रीं क्लीं चामुण्डे विप्रचित्ते दुष्ट-घातिनी शत्रुन नाशय एतद-दिन-वधि प्रिये सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा

७. उग्रा :-
माता कि सप्तम नित्या का नाम उग्रा है और मंत्र है :-

ॐ स्त्रीं हुं ह्रीं फट

८. उग्रप्रभा :-
माँ कि अष्टम नित्या का नाम उग्रप्रभा है और मंत्र है :-

ॐ हुं उग्रप्रभे देवि काली महादेवी स्वरूपं दर्शय हुं फट स्वाहा

९. दीप्ता :-
माता कि नवमी नित्या का नाम दीप्ता है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं हुं दीप्तायै सर्व मंत्र फ़लदायै हुं फट स्वाहा

१०. नीला :-
माता कि दसवीं नित्या का नाम नीला है और मंत्र है :-

हुं हुं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हसबलमारी नीलपताके हम फट

११. घना :-
माता कि ग्यारहवीं नित्या के रूप में माता घना को जाना जाता है और मंत्र है :-

ॐ क्लीं ॐ घनालायै घनालायै ह्रीं हुं फट

१२. बलाका :-
माता कि बारहवीं नित्या का नाम बलाका है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं हुं ह्रीं बलाका काली अति अद्भुते पराक्रमे अभीष्ठ सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा

१३. मात्रा :-
माता कि त्रयोदश नित्या का नाम मात्रा है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं ह्लीं हुं ऐं दस महामात्रे सिद्धिम में देहि सत्वरम हुं फट स्वाहा

१४. मुद्रा :-
माता कि चतुर्दश नित्या का नाम मुद्रा है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं ह्लीं हुं प्रीं फ्रें मुद्राम्बा मुद्रा सिद्धिम में देहि भो जगन्मुद्रास्वरूपिणी हुं फट स्वाहा

१५. मिता :-
माता की पंचादशम नित्या का नाम मिता है और मंत्र है :-

ॐ क्रीं हुं ह्रीं ऐं मिते परामिते ॐ क्रीं हुं ह्लीं ऐं सोहं हुं फट स्वाहा

साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन – पवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले !

एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा !
इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे !
गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है ! पंचगव्य से माला को स्नान करना है – स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे !

यह अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन क्या है ? तो नोट कर ले – 

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!

यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !

माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले –

ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!

अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे –

ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!

अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले –

ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:

अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे –

ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!

अब साधक माला की प्राण – प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे –

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!

अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है !

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा ! ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!

अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे !
इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है !

नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे –

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !

जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !

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( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )