Tuesday, December 19, 2017

वैदिक तांत्रिक शाबर मंत्र साधना करते समय सावधानियां

वैदिक तांत्रिक शाबर मंत्र साधना करते समय सावधानियां


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मंत्रों की शक्ति असीम है। यदि साधनाकाल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं इस लिए प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे-कराए पर पानी फेर सकता है |
मंत्र जाप का महत्व
प्राचीन धर्म ग्रन्थों में मंत्र जाप के महत्व को बहुत विस्तार पूर्वक बताया गया है.भारतीय संस्कृति में मंत्र जाप की परंपरा पुरातन काल से ही चली आ रही है. प्राचीन वेद ग्रंथों में सहस्त्रों मंत्र प्राप्त होते हैं जो उद्देश्य पूर्ति का उल्लेख करते हैं. मंत्र शक्ति का आधार हमारी आस्था में निहीत है. मंत्र के जाप द्वारा आत्मा, देह और समस्त वातावरण शुद्ध होता है.यह छोटे से मंत्र अपने में असीम शकित का संचारण करने वाले होते हैं. इन मंत्र जापों के द्वारा ही व्यक्ति समस्त कठिनाईयों और परेशानियों से मुक्ति प्राप्त कर लेने में सक्षम हो पाता है. प्रभु के स्मरण में मंत्र अपना प्रभाव इस प्रकार करते हैं कि ईश्वर स्वयं हमारे कष्टों को दूर करने के लिए तत्पर हो जाते हैं.
मंत्र शक्ति प्राण उर्जा को जागृत करने का प्रयास करती है. साधु और योगी जन इन्हीं मंत्रों के उच्चारण द्वारा प्रभु को प्राप्त करने में सक्षम हो पाते हैं. मंत्र गूढ़ अर्थों का स्वरुप होते हैं संतों ने मंत्र शक्ति काअनुभव करते हुए इन्हें रचा जैसे मार्कण्डेय ऋषि जी ने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध किया और विश्वामित्र जी ने गायत्री मंत्र को रचा इसी प्रकार तुलसीदास जी एवं कालिदास जी ने कई मंत्रों की रचना की. जाप के समय माला के द्वारा जाप करने क अभी विचार है, मंत्रों में असीम शक्ति होती है, मंत्र जाप में प्रयोज्य वस्तुओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए आसन, माला, वस्त्र, स्थान, समय और मंत्र जाप संख्या इत्यादि का पालन करना चाहिए. मंत्र साधना यदि विधिवत की गई हो तो इष्ट देवता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है. मंत्र के प्रति पूर्ण आस्था होनी चाहिए,
मंत्रों में शाबर मंत्र, वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र आते हैं. मन, वचन अथवा उपाशु जप द्वारा मंत्रों को किया जाता है. स्पष्ट मंत्रों को उच्चारण करते हुए वाचिक जप कहलाता है, धीमी गति में जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है और मानस जप जिसमें मंत्र का मन ही मन में चिंतन होता है. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए, ग्रहण के समय किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. ग्रहण काल में जप करने से कई सौ गुना अधिक फल मिलता है।
मंत्र जाप करते समय सावधानियां
मंत्र जाप करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है. मंत्र पाठ करते समय मंत्रों का उच्चारण सही तरह से करना आवश्यक होता है तभी हमें इन मंत्रों का पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकता है. मंत्रोच्चारण से मन शांत होता है, मंत्र जपने के लिए मन में दृढ विश्वास जरूर होना चाहिए, तभी मंत्रों के प्रभाव से हम परिचित हो सकते
हैं. वेदों में देवों के पूजन हेतु मंत्र उपासना को बताया गया है. मंत्र जप द्वारा शक्ति, शांति, लंबी आयु, यश प्राप्त होता है.
मंत्र जाप करने से पूर्व साधक को अपन मन एवं तन की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए. मन को एकाग्रचित करते हुए प्रभु का स्मरण करन अचाहिए तथा ॐ का उच्चारण करना चाहिए. जाप करने वाले व्यक्ति को आसन पर बैठकर ही जप साधना करनी चाहिए. आसन ऊन का, रेशम का, सूत, कुशा निर्मित या मृगचर्म का इत्यादि का बना हुआ होना चाहिए. आसन का उपयोग इसलिए आवश्यक माना जाता है क्योंकि उस समय जो शक्ति हमारे भीतर संचालित होती है वह आसन ना होने से पृथवी में समाहित होकर हममें उक्त उर्जा से वंचित कर देती है.
साधक मंत्र का जाप श्रद्धा और भक्तिभाव से करे तो पूर्ण लाभ कि प्राप्ति होती है. जप साधना को सिद्धपीठ, नदी पर्वत, पवित्र जंगल, एकांत स्थल, जल में, मंदिर में या घर पर कहीं भी किया जा सकता है. मंत्र जाप करते समय दीपक को प्रज्जवलित करके उसके समक्ष मंत्र जाप करना शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है.
मंत्र साधना का विधान शिव संकल्प, आस्था व शुचिता, दृढ़इच्छाशक्ति, आसन, माला एकाग्रता, जप, हवन एवं धैर्य से ही पूर्ण हो पाता है.
मंत्र साधना के नियम एवं पालन
मंत्रों की शक्ति असीम है। यदि साधनाकाल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे-कराए पर पानी फेर सकत‍ी है। तथा गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक ने अवश्‍य करना चाहिए। साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएँ जैसे- आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसे- दीक्षा स्थान, समय और जप संख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र और उसकी साधना निष्‍फल हो जाती है। जबकि विधिवत की गई साधना से इष्‍ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।
* जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था हो।
* मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति।
* साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ-साथ साधन का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग-अलग हो।
* उपवास प्रश्रय और दूध-फल आदि का सात्विक भोजन किया जाए तथा श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग आवश्यक है।
* साधना काल में भूमि शयन। * वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वाचन आदि का त्याग करें और कोशिश मौन रहने की करें। निरंतर मंत्र जप अथवा इष्‍ट देवता का स्मरण-चिंतन आवश्‍यक है। मंत्र साधना में प्राय: विघ्न-व्यवधान आ जाते हैं। निर्दोष रूप में कदाचित ही कोई साधक सफल हो पाता है, अन्यथा स्थान दोष, काल दोष, वस्तु दोष और विशेष कर उच्चारण दोष जैसे उपद्रव उत्पन्न होकर साधना को भ्रष्ट हो जाने पर जप तप और पूजा-पाठ निरर्थक हो जाता है। इसके समाधान हेतु आचार्य ने काल, पात्र आदि के संबंध में अनेक प्रकार के सावधानीपरक निर्देश दिए हैं। मंत्रों की जानकारी एवं निर्देश PR 1. यदि शाबर मंत्रों को छोड़ दें तो मुख्यत: दो प्रकार के मंत्र है-
वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र।
जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्‍ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। तत्पश्चात मंत्र का जप और उसके अर्घ्य की भावना करनी चाहिए। ध्यान रहे, अर्घ्य बिना जप निरर्थक रहता है।
2. मंत्र के भेद क्रमश: तनि माने गए हैं।
1. वाचिक जप
2. मानस जप और
3. उपाशु जप।
वाचिक जप- जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है। उपांशु जप- जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।
मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है। जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है। अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए। शां‍‍‍ति एवं पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु और मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए।
3. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता न चले कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।
4. सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण के समय (ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक) किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए। और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। वैसे तो यह सत्य है कि प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है परंतु ग्रहण काल में जप करने से कई सौ गुना अधिक फल मिलता है।
विशेष : नदी में जप हमेशा नाभि तक जल में रहकर ही करना चाहिए।
आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
बकवास और प्रलाप न करें.
किसी पर गुस्सा न करें.
किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
यथासंभव मौन रहें.
जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें. ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
अपनी पूजन सामग्री और देवी देवता के यंत्र चित्र को किसी दुसरे को स्पर्श न करने दें।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )