योनिस्तोत्रम्
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ॐभग-रूपा जगन्माता सृष्टि-स्थिति-लयान्विता ।
दशविद्या – स्वरूपात्मा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।१।।
कोण-त्रय-युता देवि स्तुति-निन्दा-विवर्जिता ।
जगदानन्द-सम्भूता योनिर्मां पातु सर्वदा ।।२।।
कात्र्रिकी – कुन्तलं रूपं योन्युपरि सुशोभितम् ।
भुक्ति-मुक्ति-प्रदा योनि: योनिर्मां पातु सर्वदा ।।३।।
वीर्यरूपा शैलपुत्री मध्यस्थाने विराजिता ।
ब्रह्म-विष्णु-शिव श्रेष्ठा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।४।।
योनिमध्ये महाकाली छिद्ररूपा सुशोभना ।
सुखदा मदनागारा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।५।।
काल्यादि-योगिनी-देवी योनिकोणेषु संस्थिता ।
मनोहरा दुःख लभ्या योनिर्मां पातु सर्वदा ।।६।।
सदा शिवो मेरु-रूपो योनिमध्ये वसेत् सदा ।
वैâवल्यदा काममुक्ता योनिर्मां पातु सर्वदा ।।७।।
सर्व-देव स्तुता योनि सर्व-देव-प्रपूजिता ।
सर्व-प्रसवकत्र्री त्वं योनिर्मां पातु सर्वदा ।।८।।
सर्व-तीर्थ-मयी योनि: सर्व-पाप प्रणाशिनी ।
सर्वगेहे स्थिता योनि: योनिर्मां पातु सर्वदा ।।९।।
मुक्तिदा धनदा देवी सुखदा कीर्तिदा तथा ।
आरोग्यदा वीर-रता पञ्च-तत्व-युता सदा ।।१०।।
योनिस्तोत्रमिदं प्रोत्तंâ य: पठेत् योनि-सन्निधौ ।
शक्तिरूपा महादेवी तस्य गेहे सदा स्थिता ।।११।
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