Sunday, December 3, 2017

नाड़ी दोष

नाड़ी दोष

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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भारतीय प्राचीन ग्रन्थो के अनुसार,वेदो के अनुसार नाड़ी दोष का बड़ा महत्व है । नाड़ी दोष मात्र कोई
परम्परा नही है, न हि यह कोई कल्पना है। यह ज्योतिष शास्त्र पर आधारित प्रमाणिक है। वैवाहिक सम्बन्धो को
जोड़ने से पूर्व जन्म कुंडली मिलान किया जाता है।
कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट पर विचार विमर्श किया जाता है ।अष्टकूट के गुणो को 36 गुणो विभाजित किया गया है ।अन्तिम कूट नाड़ी दोष का होता है,जिसके आठ गुण होते है।विवाह के पश्चात
कन्या की गोत्र बदल जाती हे।वर-वधू एक नई जीवन प्रवेश करते है।दोनो का वैवाहिक जीवन महकता रहे
आवाध रहे इसलिए नाड़ी दोष को महत्व दिया जाता है
जिस प्रकार मांगलिक दोष का महत्व है, उसी प्रकार नाड़ी दोष का बड़ा महत्व है नाड़ी दोष का मतलब क्या है शारारिक रिश्तो मे कटुता, असफलता, नपुंसकता संतान को लेकर परेशान इत्यादि ।
भविष्य दर्शन के अनुसार नाड़ी के तीन प्रकार होते है, आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी ।
नाड़ी दोष क्यों लगता है इसे जानने का प्रयास करते है भविष्य दर्शन के अनुसार जब वर वधू का नक्षत्र एक ही नाड़ी के हो तो नाड़ी दोष के अन्तर्गत आ जाते है ।
भविष्य दर्शन के अनुसार नाड़ी दोष का बड़ा महत्व है।जिस प्रकार मांगलिक दोष को महत्व दिया जाता है
उसी प्रकार ना नाड़ी दोष का भी बड़ा महत्व है
नाड़ी दोष होने पर विवाह करना वर्जित माना जाता है अगर आप की कोई मजबूरी हो,आपकी वर-कन्या मे
नाड़ी दोष आ रहा है ,फिर भी आप शादी कर रहे है तो आप स्टीक जानकारी किसी विशेषज्ञ से ले।
इस दोष के परिहार करने का प्रयास करे, ताकि आप लोगो का वैवाहिक जीवन मे किसी प्रकार की समस्या या उथल पुथल ना मचे। नाड़ी दोष वैवाहिक जीवन की असफलता का घातक है इस दोष के लगने से पति-पत्नी के मध्य विचारधारा का आदान-प्रदान नही हो पाता,दोनो के गुणो मेें तालमेल नही बैठ पाता है ।दोनो की भावना टक्कराने लग जाती हे ।दोनो के सपनो मे बिखराव आ जाता हे । नाड़ी दोष के फलस्वरूप शारीर पर कष्टकारी प्रभाव पड़ता है । अगर वर वधू दोनो की मध्य नाड़ी होतो कभी भी शादी रिसता नही जोड़ना चाहिए,अगर जुड़ जाता है तो तलाक या अल्प आयु मे म्रत्यु की संभावना बढ जाती है ।

अगर दोनो की नाड़ी अन्त्य होतो वैवाहिक जीवन मे सुखो की कमी होने लग जाती हे तीनो समान रूप
नाड़ी मे शादी ब्याह करना शास्त्रोक्त अनुसार वर्जित है ।

आचार्य वाराहमिहिर(Acharya Varamihir) के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक सम्बन्ध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलाने(Kundli matching) पर कन्या और वर दोनों की कुण्डली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुण्डली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है।

महर्षि वशिष्ठ(Maharishi vashisht) के अनुसार नाड़ी दोष (Nari Aspersion) होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नज़दीकियां(Closeness in Nakshatra of Var And Kanya) होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है। आयुर्वेद के अन्तर्गत(Comprises of Ayurvedha) आदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियों को वात(Mystique), पित्त (Bile) एवं कफ(Phlegem) की संज्ञा दी गयी है।

नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करता है(Nari also effect human health)। मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं((Naridosh also effect Mind of their Child and Health of their Child)।

इन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है: ( Naridosha will not affect you in this Conditions)

1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र(Birth Nakshatras) एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
2. यदि वर-वधू की एक ही राशि (Bride and Groom have Same Rashi) हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न (Different Birth Nakshatras) हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न(Different Rashi) हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।

नाड़ी दोष का उपचार: (Remedy of Naridosha)

पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा (Pranpratishta)तथा महामृत्युञ्जय (Mrtunjai) जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।

एक छोटा सा प्रयास आपका भविष्य बदल सकता है

विवाह के पश्चात शुरू होने वाले नये जीवन में खुशहाली के लिए कुण्डली मिलान किया जाता है। कुण्डली मिलान के क्रम में अष्टकूट से विचार किया जाता है, इन अष्टकूटों(Ashtkoot) में आठवां और अंतिम कूट है नाड़ी कूट।
भविष्य दर्शन के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है, इन नाड़ियों के नाम हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी। इन नाड़ियों को किस प्रकार विभाजित किया गया है आइये इसे देखें:

1.आदि नाड़ी:
ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है।
2.मध्य नाड़ी:
पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है।
3.अन्त्य नाड़ी:
स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है।

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