Thursday, November 30, 2017

नेत्र कष्ट नाश हेतु मंत्र

नेत्र कष्ट नाश हेतु  मंत्र 


मन्त्र :-    ओइम् नमो सलस समुद्र सोल समुद्र में पंखणी क झरै,
              अमकड़ीया की आंख संचरै।
              मेरी गुरुभक्ति की शक्ति, फुरोमन्त्र, ईश्वरो वाचा।

प्रयोग :-   थोड़ी सी राख एवं डाली वाले नमक के सात टुकड़े अपनी मुट्ठी मैं लें। उपर्युक्त मन्त्र बारह बार पढ़ते हुए, रोगी की आंखों से स्पर्श कराकर आग में डाल दें। इससे दुखती आँख की पीड़ा शान्त हो जाती है।

मन्त्र :-    शान्ति कुन्थु अरहो अरिट्ठेनेमि जिनंद पास होईं।
              समरं ताणं निच्चं चक्खु रोग पणासई।

प्रयोग :-   इस मन्त्र की एक माला अर्थात 108 जप कर आंख के रोगी को भभूत से झाड़े तो किसी भी प्रकार का नेत्र कष्ट हो, दूर हो जाता है।

मन्त्र :-    ओइम् नमो वन में व्याई वानरी जहां-जहां हनुमान,
               अंखियां पीर कषवारो गेहिया थने लाई पारिउ जाय भस्मन्तन, फुरोमन्त्र ईश्वरोवाचा।

प्रयोग :-   इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए, रोगी को सात बार झाड़ने से आंखों की पीड़ा तथा अन्य कष्ट दूर हो जाते हैं।

मन्त्र :-    ओइम् नमः सूर्याय एक चक्र रथारूढ़ाय, सप्तांशु वाहनाय, चक्रहस्ताय ओइम् क्रां क्रीं क्रूं क्रै क्रौं क्रां कलशहस्ताय आदित्याय नमः।

प्रयोग :-   किसी शुभ मुहूर्त में इस मन्त्र की एक सौ आठ माला जपकर सिद्ध कर लेना चाहिए। बाद में जब भी आवश्यकता पड़े, नीम की टहनी से 21 बार इसे पढ़ते हुए, रोगी को झाड़ना चाहिए। इसके प्रभाव से अनेक प्रकार के नेत्र सम्बंधित रोग नष्ट हो जाते हैं।

मन्त्र :-    ओइम् नमो श्री राम की धनु ही, लक्ष्मण का वाण। 
              आंख दर्द करे तो लक्ष्मण कुमार की आन।

प्रयोग :-   इस मन्त्र को पढ़ते हुए, 21 बार नीम की टहनी से रोगी को झाड़ना चाहिए। लगातार तीन दिनों तक ऐसा करने से आंख के रोग दूर हो जाते हैं।

मन्त्र :-    ओइम् झलमल जहर भरी तलाई,
               अस्ताचल पर्वत से आयी,
               जहां बैठा हनुमन्ता जायी, फूटै न पाकै,
               न करै पीड़ा, जाती हनुमन्त हरै पीड़ा,
               मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरोमन्त्र ईश्वरोवाचा,
               सत्यनाम आदेश गुरु कौ।

प्रयोग :-   इस मन्त्र को पढ़ते हुए, नीम की टहनी से 11 बार झाड़ने पर आंखों की पीड़ा मिट जाती है।

नेत्रों का दर्द

 नेत्रों का दर्द

॥ मंत्र ॥

ॐ नमो आदेश गुरु का। 
समुन्द्र।  समुन्द्र में खाई।
इस आदमी (रोगी का नाम ) की आँख आई।
पाकै, फूटे न पीड़ा करे।
गुरु गोरखनाथ जी की आज्ञा करे।
मेरी भक्ति। गुरु की शक्ति। फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा।

विधि : शुक्रवार को रात २१ माला जप कर मंत्र को सिद्ध कर लो। फिर जब आवश्यकता हो तब ७ डाली नमक की लेकर उसे अभिमंत्रित करें फिर आँखे को छुआएं , इस प्रकार से नमक की डली से झाड़ा लगाएं

आँखों की सूजन से संबंधित मंत्र

आँखों की सूजन से संबंधित मंत्र


यह प्रयोग रविवार या मंगलवार को किया जाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को खुद अभ्यास करना पड़ता है

एक तेज चाकू को दाहिने हाथ में लिया जाना चाहिए और यहां दिए गए मंत्र का जप करते समय, चाकू के साथ जमीन पर मंत्र पड़ते हुए एक पंक्ति खींचें  इस तरह कुल मिलाकर 12 पंक्तियाँ खींचें और मंत्र बोलें

मंत्र 
ॐ हजार ज्वाला उज्जैहार ठः ठः 

रविवार या मंगलवार को पूरे प्रयोग को दोहराया जा सकता है, जब तक कि कोई सकारात्मक परिणाम न हो।

नेत्र दर्द निवारण मंत्र

नेत्र  दर्द  निवारण  मंत्र


दो भल्लातक बीज लें 31 बार मंत्र से अभिमंत्रित करें, फिर हल्के से इन बीजों को नेत्र से छूएं और फिर उन बीजों को रोगी के पीछे फेंक दें |

मंत्र
काला बैल काला बैल |  
काला बैल की चार आंख |
दो लाल दो काली |
लाल जा काली आ मेरी आन |
मेरे गुरु की आन |
इश्वर गौरा गोरखनाथ महादेव की दुहाई |


(हिंदी में  भिलावा,  संस्कृत में अग्निमुख)
भिलावा को संस्कृत में भल्लातक कहते हैं और वैज्ञानिक भाषा में Semicarpus anacardium । इसका पेड़ 30 फुट तक ऊँचा देखा गया है  ।इस पेड़ में हरे और पीले दो तरह के फूल खिलते हैं जिसमे से एक नर फूल होता है और दूसरा मादा।

आंखों से संबंधित दर्द और समस्याओं के लिए हनुमान मंत्र

आंखों से संबंधित दर्द और समस्याओं  के लिए हनुमान मंत्र

यह मंत्र आंखों में दर्द से मुक्ति देता है। धुप बत्ती को जलाएं और धुप की  विभूति को मंत्र पढ़ते समय हल्के ढंग से बंद पलकों पर रोगी के लगाएं | आंखों से संबंधित सभी प्रकार के दर्द और समस्याओं को दूर करना।

कृपया ध्यान रखें कि यह आपके मौजूदा उपचार के लिए एक प्रतिस्थापन नहीं है, लेकिन केवल सूचना के उद्देश्य के लिए ही लिखा गया है।

मंत्र
ॐ नमो झलमल जहर भरी तलाई
जहाँ बैठा हनुमन्त, आई पालेत न करेगा
पीड़ा यती हनुमन्त राखे हीडा ||

महाकाली नेत्र मंत्र

महाकाली नेत्र मंत्र

महाकाली मंत्र  सब प्रकार के नेत्र संबंधित समस्याओं के लिए
मंत्र कंठस्थ कर लें,  साधक व प्रयोगकर्ता दोनों को पूर्ण आस्था व विश्वास होना चाहिए
तीन बार करें, रोगी की आँख पर एक श्वास में मंत्र पढ़कर फुक मारें

मंत्र
जय काली कलकत्ते वाली | जय हनुमान चालीसा मेरे गुरु की दुहाई | इसी वक्त आँख का रोग चला
जाव | मेरी आन मेरे गुरु की आन ईश्वर गौरा पार्वती महादेव की दुहाई ||


Wednesday, November 29, 2017

Ekadashi Parana

Ekadashi Parana


Parana means breaking the fast. Ekadashi Parana is done after sunrise on next day of Ekadashi fast. It is necessary to do Parana within Dwadashi Tithi unless Dwadashi is over before sunrise. Not doing Parana within Dwadashi is similar to an offence.

Parana should not be done during Hari Vasara. One should wait for Hari Vasara to get over before breaking the fast. Hari Vasara is first one fourth duration of Dwadashi Tithi. The most preferred time to break the fast is Pratahkal. One should avoid breaking the fast during Madhyahna. If due to some reasons one is not able to break the fast during Pratahkal then one should do it after Madhyahna.

At times Ekadashi fasting is suggested on two consecutive days. It is advised that Smartha with family should observe fasting on first day only. The alternate Ekadashi fasting, which is the second one, is suggested for Sanyasis, widows and for those who want Moksha. When alternate Ekadashi fasting is suggested for Smartha it coincides with Vaishnava Ekadashi fasting day.

Ekadashi fasting on both days is suggested for staunch devotees who seek for love and affection of Lord Vishnu.

Thursday, November 16, 2017

भगवान भैरव के 8 रूप

भगवान भैरव के 8 रूप


ये है भगवान भैरव के 8 रूप, जानिए किसकी पूजा से मिलता है कौन सा फल
भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप मान जाता है, इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है। भगवान भैरव को कई रूपों में पूजा जाता है। भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।
कैसे हैं भैरव के ये 8 रूप-
1. क्रोध भैरव (Krodh Bhairav)
क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं। उनकी तीन आंखें हैं और सभी आखों में। भगवान भैरव के इस रूप का वाहन गरुड़ हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते हैं। क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
2. कपाल भैरव (Kapal Bhairav)
इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है और इस रूप में भगवान की सवारी हाथी है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा-अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती हैं। अटके हुए काम पूरे होते हैं और सभी कामों में सफलता मिलती है। कपाल भैरव अपने एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार, तीसरे में शस्त्र और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए हैं।
3. असितांग भैरव (Asitanga Bhairav)
असितांग भैरव का रूप काला है। उन्होने गले में सफेद कपालो की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हुए हैं। तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती हैं।
4. चंण्ड भैरव (Chanda Bhairav)
इस रूप में भगवान का रंग सफेद है और वे मोर की सवारी किए हुए हैं। भगवान की तीन आंखें हैं और एक हाथ में तलवार और दूसरे में एक पात्र, तीसरे हाथ में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए हैं। चंद भैरव की पूजा करने से दुश्मनों पर विजय मिलती है और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है।
5. रुरू भैरव (.RURU Bhairav) kal bhairav
रुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाडी, एक पात्र और तलवार पकड़े हुए हैं। यह भगवान का नग्न रूप है और इस रूप में भगवान की सवारी बैल है। रु रु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। उनके तीन हाथों में शस्त्र और एक हाथ में पात्र पकड़े हुए हैं। रु रु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
6. संहार भैरव (Samhara Bhairava)
संहार भैरव का रूप बहुत ही अनोखा है। संहार भैरव नग्न रूप में हैं, उनका शरीर लाल रंग का है और उनके सिर पर कपाल स्थापित है, वह भी लाल रंग का है। इनकी 3 आंखें हैं और उनका वाहन कुत्ता है। संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और उनके शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।

7. उन्मत्त भैरव (Unmatta Bhairav)
उन्मत्त भैरव भगवान के शांत स्वभाव का प्रतीक है। उन्मत्त भैरव की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के मन की सारी नकारात्मकता और सारी बुराइयां खत्म हो जाती है। भैरव के इस रूप का स्वरूप भी शांत और सुखद है। उन्मत्त भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला है और उनका वाहन घोड़ा है।
8. भीषण भैरव (Bhishana Bhairava)
भीषण भैरव की पूजा-करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है। भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे में तलवार और चौंथे में एक पात्र पकड़े हुए हैं। भीषण भैरव का वाहन शेर है .
इनके तीन विशेष रूप भी हैं जो सभी जानते हैं ॥ इनके नाम हैं ★ काल भैरव. बटुक भैरव ★ गुरू भैरव

गुरु गूंगे गुरू बावरे गुरू के रहिये दास

"गुरु गूंगे गुरू बावरे गुरू के रहिये दास "


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

Contact 9953255600 

एक बार की बात है नारद जी विष्णु भगवानजी से मिलने गए !
भगवान ने उनका बहुत सम्मान किया ! जब नारद जी वापिस गए तो विष्णुजी ने कहा हे लक्ष्मी जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे ! उस स्थान को गाय के गोबर से लीप दो !
जब विष्णुजी यह बात कह रहे थे तब नारदजी बाहर ही खड़े थे ! उन्होंने सब सुन लिया और वापिस आ गए और विष्णु भगवान जी से पुछा हे भगवान जब मै आया तो आपने मेरा खूब सम्मान किया पर जब मै जा रहा था तो आपने लक्ष्मी जी से यह क्यों कहा कि जिस स्थान पर नारद बैठा था उस स्थान को गोबर से लीप दो !
भगवान ने कहा हे नारद मैंने आपका सम्मान इसलिए किया क्योंकि आप देव ऋषि है और मैंने देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं है ! आप निगुरे है ! जिस स्थान पर कोई निगुरा बैठ जाता है वो स्थान गन्दा हो जाता है !
यह सुनकर नारद जी ने कहा हे भगवान आपकी बात सत्य है पर मै गुरु किसे बनाऊ ! नारायण! बोले हे नारद धरती पर चले जाओ जो व्यक्ति सबसे पहले मिले उसे अपना गुरु मानलो !
नारद जी ने प्रणाम किया और चले गए ! जब नारद जी धरती पर आये तो उन्हें सबसे पहले एक मछली पकड़ने वाला एक मछुवारा मिला ! नारद जी वापिस नारायण के पास चले गए और कहा महाराज वो मछुवारा तो कुछ भी नहीं जानता मै उसे गुरु कैसे मान सकता हूँ ?
यह सुनकर भगवान ने कहा नारद जी अपना प्रण पूरा करो ! नारद जी वापिस आये और उस मछुवारे से कहा मेरे गुरु बन जाओ ! पहले तो मछुवारा नहीं माना बाद में बहुत मनाने से मान गया !
मछुवारे को राजी करने के बाद नारद जी वापीस भगवान के पास गए और कहा हे भगवान! मेरे गुरूजी को तो कुछ भी नहीं आता वे मुझे क्या सिखायेगे ! यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा हे नारद गुरु निंदा करते हो जाओ मै आपको श्राप देता हूँ कि आपको ८४ लाख योनियों में घूमना पड़ेगा !
यह सुनकर नारद जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा हे भगवान! इस श्राप से बचने का उपाय भी बता दीजिये !भगवान नारायण ने कहा इसका उपाय जाकर अपने गुरुदेव से पूछो ! नारद जी ने सारी बात जाकर गुरुदेव को बताई ! गुरूजी ने कहा ऐसा करना भगवान से कहना ८४ लाख योनियों की तस्वीरे धरती पर बना दे फिर उस पर लेट कर गोल घूम लेना और विष्णु जी से कहना ८४ लाख योनियों में घूम आया मुझे माफ़ करदो आगे से गुरु निंदा नहीं करूँगा !
नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर ऐसा ही किया उनसे कहा ८४ लाख योनिया धरती पर बना दो और फिर उन पर लेट कर घूम लिए और कहा नारायण मुझे माफ़ कर दीजिये आगे से कभी गुरु निंदा नहीं करूँगा ! यह सुनकर विष्णु जी ने कहा देखा जिस गुरु की निंदा कर रहे थे उसी ने मेरे श्राप से बचा लिया !
नारदजी गुरु की महिमा अपरम्पार है !
गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास,
गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस !
गुरु चाहे गूंगा हो चाहे गुरु बाबरा हो (पागल हो) गुरु के हमेशा दास रहना चाहिए ! गुरु यदि नरक को भेजे तब भी शिष्य को यह इच्छा रखनी चाहिए कि मुझे स्वर्ग प्राप्त होगा ,अर्थात इसमें मेरा कल्याण ही होगा! यदि शिष्य को गुरु पर पूर्ण विश्वास हो तो उसका बुरा "स्वयं गुरु" भी नहीं कर सकते !
एक प्रसंग है कि एक पंडीत ने धन्ने भगत को एक साधारण पत्थर देकर कहा इसे भोग लगाया करो एक दिन भगवान कृष्ण दर्शन देगे ! उस धन्ने भक्त के विश्वास से एक दिन उस पत्थर से भगवान प्रकट हो गए ! फिर गुरु पर तो वचन विश्वास रखने वाले का उद्धार निश्चित है।

गुरु

गुरु


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"गुरु" कोई "व्यक्ति" नहीं, कोई "शरीर" नहीं, "गुरु" एक "तत्व" है , एक "शक्ति है" । "गुरु" यदि "शरीर" होता, तो इस छोटी सी "दुनिया" में, एक ही "गुरु" "पर्याप्त" होता । "गुरु" एक "भाव" है, "गुरु" "श्रद्धा" है । "गुरु" "समर्पण" है । आपका "गुरु: आपके "व्यक्तित्व" का "परिचय" है । "कब" "कौन", "कैसे" आपके लिये "गुरु" "साबित" हो, यह आप की "दृष्टि "एवं "मनोभाव "पर निर्भर करता है । "गुरु" "प्रार्थना" से मिलता है । "गुरु" "समर्पण" से मिलता है, "गुरु" "दृष्टा" "भाव" से मिलता है, "गुरु" "किस्मत: से मिलता है । और.......... "गुरु" "किस्मत" वालों को "मिलता" है ।

श्री नरसिंह कवच

 श्री नरसिंह कवच🔱


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ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा ! ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते ! ॐ नमः कालाय काल द्रष्टाय कराल वदनाय च !! ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !! ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय ! ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रु ह्रु ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा ! ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा ! ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा !! ॐ आं ह्रीं क्षौ क्रौं ह्रुं फट्, ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा !! ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा !! ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा !! ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्थन्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः !!
ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट् ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान अमुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय !! ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा !! ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् !! रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम् !! ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने !! ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम् !! नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम् !! इति नृसिंह कवच !! ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच सम्पूर्णम !!

विधि -

नृसिंह कवच और महाकली कवच, हनुमत कवच, का मंगलवार, गुरुवार, शनिवार से पाठ शुरु करें, जो भी कार्य हो उसका संकल्प कर नित्य एक – २ पाठ करें जब आपका मनवांछित कार्य पूर्ण हो जावे तब नरसिंह भैरव के लिए सवासेर का रोट और माता के लिए सवासेर की कडाही करें !!

भगवान शिव के उन्नीस अवतारों की कथायें

भगवान शिव के उन्नीस अवतारों की कथायें


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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1- वीरभद्र अवतार

भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।

2- पिप्पलाद अवतार

मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।

3- नंदी अवतार

भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका
अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।

4- भैरव अवतार

शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।

5- अश्वत्थामा

महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप मेें अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

6- शरभावतार 

भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार- हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।

7- गृहपति अवतार

भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है- नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की। एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मïा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

8- ऋषि दुर्वासा

भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।

9- हनुमान

भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देख कर लीलावश शिव जी ने कामातुर हो कर अपना वीर्यपात कर दिया सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमान जी उत्पन्न हुए।

10- वृषभ अवतार:

भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबरा कर ब्रह्मा जी ऋषिमुनियों को ले कर शिव जी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।

11- यतिनाथ अवतार

भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े। धर्म ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दम्पत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा। इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया। प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।

12- कृष्णदर्शन अवतार 

भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे। 
तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।

13- अवधूत अवतार

भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकर जी के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा। इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।

14- भिक्षुवर्य अवतार

भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला। उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए। समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घडिय़ाल ने अपना आहार बना लिया। तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा। इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची। तब शिव जी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है। यह सब कह कर भिक्षुक रूपधारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया। शिव के आदेश अनुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया। बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।

15- सुरेश्वर अवतार

भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा। इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊँ नम: शिवाय का जप करने लगा। शिव जी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगा। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु को अपने में दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया। उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।

16- किरात अवतार

किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल-कपट से पाण्डवों का राज्य हड़प लिया व पाण्डवों को वनवास पर जाना पड़ा। वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर( सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा। अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया। शिव कीमाया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।

17- सुनटनर्तक अवतार

पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। 
जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।

18- ब्रह्मचारी अवतार

दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया। यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।

19- यक्ष अवतार 

यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया। इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं। देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिव जी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए। तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शंकर भगवान हैं। सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।

श्री महाकाली सहस्त्राक्षरी

 श्री महाकाली सहस्त्राक्षरी


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।। ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

यहाँ हम आपको ऊपर दिए गए मंत्र का महत्व और अर्थ दे रहें हैं
माँ कालिका का स्वरूप जितना भयावह है उससे कही ज्यादा मनोरम और भक्तों के लिए आनंददायी है। काली माताजी को शक्ति और बल की देवी माना जाता है। अपने जीवन से भय, संकट, इच्छा अनुसार फल पाने के लिए काली माता को प्रसन्न करना चाहिए। आमतौर पर मां काली की पूजा सन्यासी तथा तांत्रिक किया करते हैं। माना जाता है कि मां काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष देती है। आद्यशक्ति होने के नाते वह अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण करती है। तांत्रिक तथा ज्योतिषियों के अनुसार मां काली के कुछ मंत्र ऐसे हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने संकट दूर करने के लिए प्रयोग कर सकता है।
यही एक मंत्र येसा है जिससे कोइ भी कार्य सम्भव है। हमने इस मंत्र के बहुत सारे अनुभव देखें हैं और आस्था के साथ बोल सकतें हैं "इस मंत्र से अनुभव होता है"।
इस मंत्र के कई प्रयोग है जिन्हे लिखना सम्भव तो नही है परंतु कुछ प्रयोग आपके लिए यहाँ दें रहें हैं।

प्रयोग 1-जब स्वास्थ खराब हो तब मंत्र का 108 बार पाठ करके शुद्ध जल पर तिन बार फुंक मारकर जल को रोगी को पिला दे तो कुछ देर मे रिसल्ट देखने मिलेगा।

प्रयोग 2-कोई इच्छा हो मन मे जो पुर्ण नही हो रही हो तो शनिवार के रात्री मे महाकाली जी के चित्र के सामने चमेली के तेल का दीप जलाएं और मंत्र का 3 माला जाप कालि हकिक माला से 7 दिनो तक करे तो अवश्य इच्छा पुर्ण होगी।

प्रयोग 3-हर समय हमें रक्षा कवच की आवश्यकता होती है, जिससे हम बुरे शक्तियों से बच सके तो इसके लिये "ताम्बे के पेटी (ताबीज) मे 7 काले तिल के साथ दो पपिते के बीज भरकर,ताबीज को देखते हुए मंत्र का 108 बार जाप करके धारण करले तो सभी बुरे शक्तियों से रक्षा होता है "।

प्रयोग 4-अगर आप किसी से सच्छा शुद्ध प्रेम करते हो और उसको वश मे करना चाहते हो तो "जिसे वश मे करना हो उसके फोटो को देखते हुए मंत्र का रोज शुक्रवार को रात्री मे 3 माला जाप स्फटिक माला से 11 दिनो तक करे और बारहवें दिन काले किशमिश का 11 माला आहुति हवन मे दिजिये तो 7 दिनो मे इच्छित व्यक्ति वश होता है "।

मंत्र-

।। ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

 मंत्र का महत्व और अर्थ 

1)ॐ जयन्ती — जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयन्ती‘—सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी ।।
2) ॐ मङ्गला –मङ्गं जननमरणादिरूपं समर्पणं
भक्तानां लाति गृह्णाति नाशयति या सा मङ्गला मोक्षप्रदा —जो अपने भक्तों के जन्म -मरण आदि संसार बन्धनको दूर करती है उन मोक्ष दायिनी मंगलमयी देवीका नाम ‘मङ्गला’ है ।।
3) ॐ काली — कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम् इति ‘काली’ — जो प्रलयकालमे सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है ; वह ‘काली ‘ है ।।
4) ॐ भद्रकाली — भद्रं मङ्गलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्यो दातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा -जो अपने भक्तों को देनेके लिए ही भद् , सुख किंवा मंगल स्वीकार करती है , वह ‘भद्रकाली’ है ।।
5) ॐ कपालिनी –धारयति हस्ते कपाल मुण्डभूषिता च
या सा कपालिनी — हातमे कपाल तथा गलेमे मुण्डमाला धारण करने वाली ।।
6) ॐ दुर्गा –दुःखेन अष्टाङ्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा ‘दुर्गा’ –जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासनारूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है , वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती है ।।
7) ॐ क्षमा –क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराधान् जननीत्वेनातिशयकरूणामयस्वभावादिति ‘क्षमा’ — सम्पूर्ण जगत् की जननी होनेसे अत्यन करूणामय स्वभाव होनेके कारण जो भक्तों अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती है , उनका नाम ‘क्षमा’ है ।।
ॐ शिवा — सबका कल्याण अर्थात शिव
करनेवाली जगदम्बाको ‘शिवा ‘ कहते है ।।
9) ॐ धात्री –सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेके कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है ।।
10) ॐ स्वाहा –स्वाहारूपसे यज्ञभाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वाहा ‘ कहते है ।।
11) ॐस्वधा — स्वधारूपसे श्राद्ध और तर्पणको स्वीकार करके पितरोंका पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वधा ‘ कहते है ।।

इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हे मेरा नमस्कार हो । देवि चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो ।सम्पूर्ण
प्राणियोंकी पीडा हरनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।सबमे व्याप्त रहने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार हो ।।

मंत्र जाप के बाद काली सहस्त्राक्षरी का कम से कम एक पाठ करने से मंत्र से अनुकूल रिसल्ट अवश्य ही शिघ्र प्राप्त होंगे।

 श्री काली सहस्त्राक्षरी  

ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।

इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है,इसमे कोई संदेह नही है।

Wednesday, November 15, 2017

तिलक

तिलक


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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तिलक चार प्रकार के होते हैं-
1- कुमकुम
2- केशर
3- चंदन
4- भस्म


कुमकुम = हल्दी चुना मिलकर बना होता है जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए उसे केल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्व्व्लित करता है ,
केशर == जिसका मस्तिष्क ठंडा/ शीतल होता है उसको केसर का तिलक प्रज्ज्वलित करता है ,
चंदन ==दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए मानसिक शान्ति भी देता है ,
भस्म == वैराग्य की अग्रसर करते हुए मस्तष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है।

पूजा पाठ का वैज्ञानिक आधार क्या है ?

 पूजा पाठ का वैज्ञानिक आधार क्या है ?



दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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क्यों करे हम पूजा पाठ ?
इस संसार के सभी बुद्धि जीवी लोगो में मतभेद है कि क्या पूजा पाठ से कोई लाभ होता है या नहीं। पूजा पाठ करने से भगवान मिले या न मिले पर इसका वैज्ञानिक लाभ हमारे शरीर को अवश्य ही मिलता है। विज्ञानं में यूरेनियम और रेडियम नाम के दो पदार्थ होते है दोनों इस पृथ्वी पर बिखरे पड़े है जब वैज्ञानिक लोग यूरेनियम को एकत्रित करके संधान करता है और परमाणु बम का रूप देता है तो वो यूरेनियम रूपी बिखरी हुई ऊर्जा एकत्रित करके बहुत शक्तिशाली हो जाती है तथा लाखो आदमियों की हत्या कर सकती है। इसी प्रकार बिखरे हुए रेडियम को एकत्रित कर दिया दिया जाए तो वो भी उजाला या प्रकाश देना शुरू कर देता है। हमारा ब्रह्मांड ऊर्जा का भंडार है और हमारा शरीर भी ब्रह्मांडीय ऊर्जा से संचालित है। इस शरीर को और उन्नत व महान बनाने के लिए हमें इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा की अधिकता की आवश्यकता होती है। जब हम विज्ञानं के माध्यम से बहुत सारी किरणो को एकत्रित करते है तो वो किरणे एकत्रित होकर एक ही जगह पर ऊर्जा का भंडार पैदा कर देती है जैसे सूर्य की किरणो को एकत्रित किया जाए तो वो किरणे आग पैदा करती है। इसी प्रकार पूजा करते बक्त जब हम अपनी बुद्धि और मन को एकाग्र करते है तो वहा पर ऊर्जा का भंडार पैदा होता है तब बुद्धि और हमारा चित उस ऊर्जा के भंडार को उदान प्राण के माध्यम से संचित करके हमारे शरीर को भेज देता है तथा हम जब पूजा करके उठते है तो हमारे शरीर को आनद की अनुभूति होती है तथा शरीर को ताजगी महसूस होती है। वो अतिरिक्त ऊर्जा हमें पूजा पाठ और ध्यान करने से प्राप्त होती है। इसलिय खूब पूजा करो, जप करो, तप करो और ध्यान करो और नवरात्रो का व्रत करो तो आपके शरीर को ऊर्जा तो मिलेगी साथ में भगवान को जानने का अवसर भी मिलेगा।

मन्त्र क्या है ?


मन्त्रो एक शब्दों का ऐसा समूह है जिनके उचारण और श्रवण मात्र से हमारे शरीर की चिकित्सा होती है जिससे हमारे शरीर में व्याप्त नाना भांति के रोगों और शोकों का शमन होता है। और शरीर में एक आलोकिक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।

गाय का ज्योतिषीय महत्व

गाय का ज्योतिषीय महत्व


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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1. नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है।
2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की सेवा और निर्धन ब्राम्हण को गोदान मंगल के प्रभाव को क्षीण करता है।
3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है।
4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का वरदान भी देती हैं।5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है। गाय से संबंधित धार्मिक वृत व उपवासः- 1. गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आदि के सुखों को देने वाला है।2. गोवत्सद्वादशी व्रतः- इस व्रत से समस्त मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और गोलोक की प्राप्ति होती है।5. गोपाअष्टमीः- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति होती है।

श्री हनुमान् वडवानल स्तोत्रं अचूक रामबाण प्रयोग

श्री हनुमान् वडवानल स्तोत्रं अचूक रामबाण प्रयोग


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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दुनिया चले ना श्री राम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना…

भगवान हनुमान को रुद्र के ग्यारहवा अवतार माना गया हैं। यही वजह है कि अनोखी शिव लीलाओं की तरह ही

हनुमानजी से जुड़े सारे पौराणिक प्रसंग

उनकी शक्तियो को उजागर करते हैं। 

एक बार हुनमान जी को भी श्री राम ने पंक्ति में बैठने का आदेश दिया। हनुमान

जी बैठ तो गए पंरतु आदत ऐसी थी की राम के खाने के उपरांत ही सभी लोग भोजन खाते थे। आज श्री राम के आदेश से पहले खाना पड़ रहा था।माता जानकी भोजन का ढेर परोसती जा रही थी पर हनुमान का पेट ही नहीं भर रहा था। सीता जी कुछ समय तक तो उन्हें भोजन

परोसती रही फिर समझ गई इस तरह से तो हनुमान जी का पेट नहीं भरेगा। उन्होंने तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और भोजन के साथ हनुमान जी को परोस दिया। तुलसी पत्र खाते ही हनुमान जी को संतुष्टी मिली और वह भोजन खा कर उठ खड़े हुए। भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर हनुमान को आशीर्वाद दिया कि आप की राम भक्ति युगों तक याद की जाएगी और आप संकट मोचन कहलाएंगे।


श्री हनुमान् वडवानल स्तोत्रं अचूक रामबाण प्रयोग

 यह वडवानल स्तोत्र सभी रोगों के निवारण में, शत्रुनाश, दूसरों के द्वारा किये गये पीड़ा कारक कृत्या अभिचार के निवारण, राज-बंधन विमोचन आदि कई प्रयोगों में काम आता है ।

विधिः- 
सरसों के तेल का दीपक जलाकर १०८ पाठ नित्य ४१ दिन तक करने पर सभी बाधाओं का शमन होकर अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।

विनियोगः
ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं, मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे सकल- राज- कुल- संमोहनार्थे, मम समस्त- रोग- प्रशमनार्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त- पाप-क्षयार्थं श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ।

ध्यानः
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं । वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ।।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते

श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम सकल- दिङ्मण्डल-यशोवितान- धवलीकृत- जगत-त्रितय वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार- ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्व- पाप-ग्रह- वारण- सर्व- ज्वरोच्चाटन डाकिनी- शाकिनी- विध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर,

त्र्याहिक-ज्वर चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर, माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा । ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय

नागपाशानन्त- वासुकि- तक्षक कर्कोटकालियान् यक्ष-कुल-जगत रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ।

ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा- हनुमते राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्वशत्रून्नासय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।

।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।

बटन का शकुन

बटन का शकुन


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कभी-कभी कमीज़, कोट या अन्य कोई कपड़े का बटन गलत लग जाए तो अपशकुन होता है, जिसके अनुसार सीधे काम भी उल्टे पड़ जाएंगे। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कपड़े को उतारकर सही बटन लगाने के बाद पहनें। यदि रास्ते चलते आपको कोई बटन पड़ा मिल जाए तो यह आपको किसी नए मित्र से मिलवाएगा।

चाबियों का शकुन

चाबियों का शकुन


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चाबियों का गुच्छा गृहिणी की संपूर्णता का प्रतीक है। यदि गृहिणी के पास चाबियों का कोई ऐसा गुच्छा है, जिस पर बार-बार साफ करने के बाद भी जंग चढ़ जाए तो यह एक अच्छा शकुन है। इसके फलस्वरूप घर का कोई रिश्तेदार अपनी जायदाद में से आपको कुछ देना चाहता है या आपके नाम से कुछ धन छोड़कर जाना चाहता है। चाबियों को बच्चे के तकिए के नीचे रखना भी अच्छा होता है, इससे बुरे स्वप्नों एवंबुंरी आत्माओं से बच्चे का बचाव होता है।

रुई का शकुन

रुई का शकुन


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रूई का कोई टुकड़ा किसी व्यक्ति के कपड़ों पर चिपका मिले तो यह शुभ शकुन है। यह किसी शुभ समाचार आने का संकेत है या किसी प्रिय व्यक्ति के आने का संकेत है। कहा जाता है कि रूई का यह टुकड़ा व्यक्ति को किसी एक अक्षर के रूप में नजर आता है व यह अक्षर उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जहां से उस व्यक्ति के लिए शुभ संदेश या पत्र आ रहा है।

काले वस्त्र का शकुन

काले वस्त्र का शकुन

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काले वस्त्र बहुत अशुभ माने जाते हैं। किसी व्यक्ति के घर से बाहर जाते समय यदि कोई आदमी काले वस्त्र पहने हुए दिखाई दे तो अपशकुन माना जाता है, जिसके बुरे प्रभाव से जाने वाले व्यक्ति की दुर्घटना हो सकती है। अतः ऐसे व्यक्ति को अपना जाना कुछ मिनट के लिए स्थगित कर देना चाहिए।

हेयरपिन का शकुन

हेयरपिन का शकुन

हेयरपिन एक बहुत ही मामूली सी चीज है, परंतु इसका प्रभाव बड़ा आश्चर्यजनक होता है। यदि किसी व्यक्ति को राह में कोई हेयरपिन पड़ा मिल जाये तो समझो कि उसे कोई नया मित्र मिलने वाला है। वहीं यदि हेयर पिन खो जाये तो व्यक्ति के नए दुश्मन पैदा होने वाले हैं। हेयरपिन को घर में कहीं लटका दिया जाए तो यह अच्छे भाग्य का प्रतीक है।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )