छींक संबंधी शकुन CHHINK KA SHAKUN
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छींक संबंधी शकुन
छींक से संबंधित कई शकुनों की चर्चा विभिन्न ग्रंथों में की गई है। एक प्रचलित मान्यता है:-
छींकत खाये, छींकत पीयै, छींकत रहियै सोय।
छींकत पर घर कदै न जाये, आछी कदै न होय।
"छींक सकुन' नामक ग्रंथ के अनुसार बैठते, सोते, जीमते, द्रव्य गाड़ते, नये कपड़े पहनते छींक करने को शुभ माना जाता है। ग्राम से प्रस्थान करते समय, बांयी तरफ की छींक शुभ पीठ पीछे की छींक कार्य सिद्धि की द्योतक तथा दाहिनी ओर सामने की छींक को भयकारक और अशुभ कहा गया है। गाँव- घर में प्रवेश करते समय दाहिनी छींक शुभ मानी गई है। स्नान करते, औषधि लेते, बीज बोते, आखेट के लिए जाते, जीमने के पश्चात चलू करते समय तथा वस्र बेचने आदि अवसरों पर बांयी ओर पीठ पीछे की छींक शुभ मानी गई है। पीठ पीछे की दो छींके हमेशा अच्छी मानी जाती है।
"सकुनशास्र' नामक ग्रंथ में विभिन्न दिशाओं में छींक होने के शकुनों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है :-
उत्तर छींक महा बलवंती, इंसाने धन दीयै तुरंती।
पूरब छींक महरण सनेही, अगन छींक जुर आवै देही।
दखिण छींक करै विवहारा, नैरतकुण भरै भंडारा।
पछिम छींक करै वहुहांण, वायव छींक मिलावै आंण।
आकास छींक पाव न धरणा, घर बैठा ही आनंद करणा।
छींक आरज्या घट न रती, इम भाखैं निज गोरख जती।
"छींक विचार' नामक ग्रंथ में प्रत्येक वार के अनुसार आठों दिशाओं की छींक पर विचार किया गया है तथा शुभ- अशुभ परिणामों की चर्चा की गई है।
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