नक्षत्र आधारित शकुन NAKSHATR AADHARIT SHAKUN
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नक्षत्र आधारित शकुन
नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर भी कई शकुनों का निर्धारण किया जाता था। इसके आधार पर बरसात के होने का अनुमान लगाया जाता है। जेठ के नये चांद को देखकर लोग अंदाजा लगाते हैं कि हल कब जुतेगा। यदि चांद का आकार हल जैसा खड़ा है, तो जेठ महीने में ही हल जुतने के आसार बनते हैं। यदि चांद का आकार बिल्कुल खड़ा है, तो अकाल का अंदेशा रहता है। यदि चांद तिरछा सोया हुआ दिखे, तो बीमारी होने का अंदेशा रहता है। इसी प्रकार वैशाख से आसोज तक के नक्षत्रों में भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा और मघा नक्षत्रों के संबंध में भी लोगों की अलग- अलग मान्यताएँ हैं।
कहा जाता है कि भरणी नक्षत्र में वर्षा की बूंदें पड़े तो, अकाल का अंदेशा रहता है। ऐसी परिस्थिति में लोग अपनी स्रियों तक को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। जैसा कि निम्नलिखित राजस्थानी कहावत में कहा गया है - बरसै भरणी छोड़े परणी।
रोहिणी नक्षत्र में वर्षा हो तो महँगाई बढ़ती है - रोहण रैली, रुपियां री अधेली।
रोहिणी नक्षत्र के पहले हिस्से में वर्षा हो तो, अकाल की संभावना रहती है और दूसरे हिस्से में बारिश हो, तो बहुत दिनों ते जांजळी (पहली वर्षा होने के काफी दिन तक दूसरी वर्षा न होने का समय) रहती है। यदि तीसरे हिस्से में बारिश हो, तो घास का अभाव रहता है और चौथे हिस्से में बादल बरसें, तो अच्छी वर्षा की उम्मीद रखनी चाहिए।
पैली रोहण जळ हरै, बीजी बोवोतर खायै।
तीजी रोहण तिण खाये, चौथी समदर जायै।।
यदि रोहिणी नक्षत्र में गर्मी अधिक हो तथा मृग नक्षत्र में आंधी जोरदार चले, तो आर्द्रा नक्षत्र के लगते ही बादलों की गरज के साथ वर्षा होने की संभावना बन सकती है।
रोहण तपै, मिरग बाजै तो आदर अणचिंत्या गाजै।
एक दोहे में अकाल के लक्षणों का चित्रण इस प्रकार किया गया है :-
मिरगा बाव न बाजियौ, रोहण तपी न जेठ।
क्यूं बांधौ थे झूंपड़ौ, बैठो बड़ले हेठ।।
आर्द्रा नक्षत्र के प्रारंभ में यदि बारिश के छींटे हो जाएँ, तो शुभ माने जाते हैं और जल्दी ही बरसात होने की आशा बंधती है।
पहलों आदर टपूकड़ौ मासां पखां मेह।
यदि आर्द्रा नक्षत्र में आँधी चलनी शुरु हो जाये, तो अकाल का जोखिम न आने लगता है।
आदर पड़िया बाव, झूंपड़ झौला खाय।
यदि चौदह नक्षत्रों में दो- दो दिन के हिसाब से हवा नहीं चले, तो क्या- क्या होगा, इस विषय में निम्नलिखित छंद कहा गया है :-
दोए मूसा, दोए कातरा, दोए तिड्डी, दोए ताव।
दोयां रा बादी जळ हरै, दोए बिसर, दोए बाव।।
अर्थात् पहले दो दिन हवा न चले, तो चूहे अधिक होंगे, दूसरे दो दिन हवा न चले तो "कातरे' एक कीड़ा, (जो धान को चट कर जाता है) का प्रभाव, तीसरे दो दिन हवा न चले तो टिड्डी आने का अंदेशा, चौथे दिन हवा न चले, तो नजला- बुखार का प्रकोप रहता है, पाँचवें दो दिन हवा न चले, तो वर्षा का अभाव, छठे दो दिन पवन न चले, तो जहरीले जंतुओं की बहुतायत और सातवें दो दिन हवा न चले, तो आँधी चलने का अंदेशा रहेगा।
एक अन्य दोहा इस प्रकार है :-
श्रावण वद एकादसी, तीन नक्षत्रां ताल।
कृतिका करै करवरौ, रोहिण करै सुगाल।।
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