वर्षा व अकाल संबंधी शकुन VARSHA V AKAL KA SHAKUN
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वर्षा व अकाल संबंधी शकुन
-- यदि टिटहरी तालाब के बीच में जाकर अण्डे दे, तो वर्षा नहीं होती और यदि तालाब की पाल पर जाकर अण्डे दे, तो उस वर्ष वारिश अवश्य अच्छी होगी।
-- पपैया अगर उत्तर दिशा में बोले, तो २४ घंटों में बारिश हो जाएगी।
-- यदि गाय कान फड़फड़ाये, तो तीसरे दिन बारिश होगी।
-- रात को यदि भेड़ें उठकर उत्तर दिशा की ओर चली जाएँ, तो तीसरे दिन वर्षा की संभावना होती है।
-- माना जाता है कि ऊँटनी को भविष्य का आभास हो जाता है। बरसात नजदीक होने पर वह पाँव पटकने लगती है और बैठती नहीं है।
आगम सूझै सांढणी, तोड़ै थलां अपार।
पग पटकै, बैसे नहीं, जद मेहां अणपार।।
-- यदि चलती ऊँटनी को रात के समय ऊँघ आने लगे, तब भी बरसात का होना माना जाता है।
-- कौआ यदि अपना घोंसला पेड़ के बीच के कोटर में रखे, तो यह माना जाता है कि जब तक उसके बच्चे न उड़ जाए, बारिस नहीं होगी।
-- नीम में यदि अच्छी मंजरी आये, खेजड़ी के फलियां (खोखे) खूब लगें, तो अच्छी बारिश की संभावना होती है।
-- यदि कैर अधिक मात्रा में लगें, तो अकाल सूचक मानी जाती है
-- कुम्हार जब मिट्टी के बर्तन बनाता है और बर्तन बनाते ही वायु की आर्द्रता के कारण बिखरने लगते हैं, तो तीव्र वर्षा की संभावना होती है। यदि बर्तन सुखने लगे, तो बारिश का होने की संभावना कम मानी जाती है।
बिगड़ै बासण चाक पर, माटी अधिक उबार।
आड़ंग आगम समझलै, मेहां कहै कुम्हार।।
-- चिड़िया यदि सूखी रेत में पंख फड़फड़ा कर रेत से नहाने लगे और चीटियाँ यदि अपने अंडों को लेकर जमीन से बाहर निकलने लगे, तो वायुमंडल में आर्द्रता की अधिकता के कारण वर्षा की संभावना रहती है। इसी आर्द्रता के कारण कलश का पानी गर्म रहता है।
कलसै पानी गरम होवै, चिड़िया नहावै धूड़।
ले ईंटा चींटी चढै, तो बिरखा भरपूर।।
-- इसके अलावा भी राजस्थानी साहित्य में बरसात के शकुनों के संबंध में अनेकानेक संकेत मिलते हैं --
जटा बधै बड़ री जद जांणा।
बादल, तीतर पंख बखांणा।
अवस नील रंग व्है असमांणो।
(तौ)घण बरसै घमघम जाणो।
बिरछां चढ कीर कांठ बिराजै।
स्याह सफेत लाल रंग साजै।
बिजनस पवन सूरियौ बाजै।
घड़ी पलक मांय मेही गाजै।
ऊंचाै नाग चढ़ै तर तोड़ै।
दिस पिछमांण बादल दौड़े।
सारस चढ़ असमान सजोड़ै।
तो नदियां भरपूर दोड़ै।
अर्थात् जब वट वृक्ष की जटा बढ़ने लगे, आकाश में बादल का रंग तीतर पंखी व नीला हो जाए, तो बारिश की संभावना होती है। जब गिरगिट अनेक रंगों का दिखने लगे तथा पवन सूरियों (सप्त ॠषि के अस्तस्थान पर चलने वाला वायु) चलने लगे तो क्षण- क्षण में बरसात के बादल गरजते रहते हैं। जब नाग पेड़ पर चढ़ने लगे तथा बादल पश्चिम दिशा की ओर तेजी से बढ़ने लगे तथा सारस पक्षी जोड़े बनाकर आसमान में उड़ने लगे, तब नदियों में जल भर जाता है।
बरसात के पूर्व ही, ऊमस के समय ही शकुनी बरसात संबंधी कई भविष्यवाणियाँ कर देते थे। तपन और ऊमस से कांसे के बरतनों में लगे जंग, जब देखने में आकाश के बादलों का चित्रांकन प्रतीत होता है, तो बरसात आने ही सूचना देता है। वर्षा ॠतु के छह माह पूर्व पौष से चैत्र मास के बीच आने वाले वर्ष में वर्षा कब होगी, इसका गर्भ देखा जाता है। जिस दिन आकाश में धुंध छाया हो, उस दिन "कण्डा' जलाकर उसके धुँए की दिशा के आधार पर हवा का रुख जाना जाता है। जिस दिन बादल व धुंध होती है, उसके ठीक छह माह बाद बारिश का दिन निर्धारित किया जाता है। यदि छह माह के पहले छींटे हो जाएँ, तो उस "गर्भपात' होना माना जाता है। जिस दिशा से धुंध आती है, उसी दिशा की हवा से छह मास बाद बारिश होती है, उसे "आभा गलना' (बादलों का बरसना) कहते हैं।
विभिन्न समय में बादलों की स्थिति देखकर भी लोग वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाते थे। ये अनुमान अनुभव के आधार पर जाँचे- परखे होते थे तथा उतने ही अभीष्ट होते थे।
आसाढ़ सुद नवमी, कै वादल कै वीज।
कोठ खेर खंर्खरकर, राखौ बलद नै बीज।।
चैत्र मास जो वीजल होवै, धुर वैसाखा केसू धोवे।
जेठमास जो जाइ तपंतो, कुण राखे जलहर वरसंतो।
विभिन्न जीव- जंतुओं की गतिविधियों को देखकर भी वर्षा संबंधी तथा अन्य पूर्वानुमान लगाये जाते हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :-
इंडा हीटोड़ी तणा, अणी भूमि दिस होय।
जता मास सुवरसणा, कहे गमेता सोय।।
कीड़ी कणं आसाढ़ में, दर ले जाती न्हाल।
अन दुरभिख यूं जांणिये, तृणि लीयां तिण काल।
कीड़ी दर मां कण लीयां, बाहरि नांषे आंणि।
वरस भलो वरखा घणी, भीला कह्यो वखांणि।।
करै घुसाला घर विचै, चिड़िया आगम जांणि।
च्यार मास नीझर झरै, नहीं मेह की हांणि।
आगम सूझै साढ़ कू, दोड़ी थलां अपार।
पग पटके बैसे नहीं , माधव आवणहार।।
टोले मिल के कांवल्यां, आय थला बेसंत।
दिन चौथे के पाँच में, चरखा करे अनंत।।
रांभे गाय बिन बाछस, गलती मांझल रात।
ओरही उल्कापात यूं, दुरभख मरण विख्यात।।
माना जाता है कि वर्षा ॠतु में शुक्रवार को बादल हो और वे शनिवार तक रहे, तो वे बादल बरसे बिना नहीं रहते। शनिवार के दिन शुरु हुई वर्षा, सात दिन तक निरंतर बरसती रहती है। यदि सुबह में आकाश में काले बादल दिखें, दोपहर को गर्मी बढ़े और रात को स्वच्छ आकाश में तारें न आयें, तो अकाल की संभावना बनी रहती है।
परभाते गेह डंबरा, दोपारा तपंग।
रातूं तारा निरभला, चेलां करौ गछंत।।
हवा की गति को देखकर भी शकुन विचारे जाते हैं। सावन के दिनों में दक्षिण दिशा की हवा ठीक नहीं समझी जाती है। एक मान्यता के अनुसार :-
नाड़ा टांकण, बलद बिकावण।
मत बाजै तूं आधै सावण।।
यदि उत्तर व पश्चिम से हवा चले, तो अच्छी बारिश की संभावना रहती है।
सांवण मास सूरियो बाजे, भादरवै पुरवाई।
आसोजां समदरी बाजे, काती साख सवाई।।
अर्थात् यदि सावन में "सूरिया' पवन भादो में पूर्वा और आसीन में पछुवा पवन चले, तो कार्तिक मास की फसल सवाई होगी। सावन में जब किसान हल जोत रहा हो और उत्तर- पश्चिम हवाएँ चलने लगे, तो तुरंत वर्षा आने का योग बनता है।
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