अक्षय तृतीया के शकुन AKSHAY TRITIYA KE SHAKUN
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अक्षय तृतीया के शकुन
अक्षय तृतीया (आरवातीज) को वर्ष भर के फलाफल, सुकाल- दुकाल संबंधी शकुन लेने की परंपरा रही है। गाँवों में अक्षय तृतीया के दिन या अमावस्या से तीन दिन तक अनुभवी शकुनी, शकुन विचारते हैं। इसी विशेष दिन ये शकुनी गाँव के मुखिया के सामने अपने शकुनों का निर्णय सुनाते हैं। कई बार शकुनियों में आपसी मतभेद भी होता है।
इस दिन हवा के बहाव तथा मध्याह्म के समय थाली में पानी भर कर सूर्य की परछाई देखकर शकुन ज्ञात किये जाते थे। शकुनों के आधार पर घोषणा की जाती है कि "चौमासे' के किस मास में वर्षा अधिक होगा तथा किसानों को कौन- सा धान बोना लाभप्रद होगा। सूर्य की परछाई के आधार पर बताये गये शकुन कुछ इस प्रकार है --
""आरवात्रीज दिनै मध्यान समयै थाली पांणी सूं भर नै
सूरज मांहै जोइजै जिण दिस सूर्य रातो दिसै तो
तिण दिसै दिस विग्रह, सूरज नीलो, पीलो दीसै तो
धरती मांहे मांदवाड़ करवरो होई। रसकस मुंहगा।।
धवलो दिसै तो धांन घणा होइ, सुकार मेह घणा
परजा सुखी। धुधलौ दीसै तो अन सुगाल, काइंक
वाजै वाइ। राजवीहीयो दीसै तो तीड आवै।
स्याम दीसै तो दुरभख होइ।
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