तुलसीदास जी कृत हनुमद्बन्दीमोचन TULSIDAS KRIT HANUMAN BANDI GIH MOCHAN
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बंदीगृह_से_छुटकारा_पाने_का_अद्भुत_प्रयोग
दोहा
वीर बखानौ पवनसुत, जानत सकल जहान।
धन्य-धन्य अंजनितनय, संकट हर हनुमान।।
धन्य-धन्य अंजनितनय, संकट हर हनुमान।।
चौपाई
जय जय जय हनुमान अड़ंगी ।
महावीर विक्रम बजरंगी।।
जय कपीश जय पवनकुमारा ।
जय जगवन्दन शील अगारा।।
जय उद्योत अमल अविकारी ।
अरिमर्दन जय जय गिरिधारी।।
अंजनिउदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय जैकार देवतन कीन्हा।।
महावीर विक्रम बजरंगी।।
जय कपीश जय पवनकुमारा ।
जय जगवन्दन शील अगारा।।
जय उद्योत अमल अविकारी ।
अरिमर्दन जय जय गिरिधारी।।
अंजनिउदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय जैकार देवतन कीन्हा।।
बजी दुन्दुभी गगन गँभीरा ।
सुरमन हर्ष असुरमन पीरा।।
काँपै सिन्धु लंक शंकाले ।
छूटहि बन्दि देवतन जाने।।
ऋषी समूह निकट चलि आए ।
पवनसुत के पद शिर नाये।।
सुरमन हर्ष असुरमन पीरा।।
काँपै सिन्धु लंक शंकाले ।
छूटहि बन्दि देवतन जाने।।
ऋषी समूह निकट चलि आए ।
पवनसुत के पद शिर नाये।।
बार-बार अस्तुति कर नाना ।
निर्मल नाम धरा हनुमाना।।
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना।।
सुनत वचन कपि अति हर्षाने ।
रविरथ ग्रसा लाल फल माने।।
निर्मल नाम धरा हनुमाना।।
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना।।
सुनत वचन कपि अति हर्षाने ।
रविरथ ग्रसा लाल फल माने।।
रथ समेत रवि कीन्ह अहारा ।
शोर भयो तहँ अति भयकारा।।
बिन तमारि सुर मुनि अकुलाने ।
तब कपीश की अस्तुति ठाने।।
सकल लोक वृत्तान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा।।
शोर भयो तहँ अति भयकारा।।
बिन तमारि सुर मुनि अकुलाने ।
तब कपीश की अस्तुति ठाने।।
सकल लोक वृत्तान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा।।
कहेउ बहोरि सुनहु बलशीला ।
रामचन्द्र करिहै बहु लीला।।
तब तुम बलकर करब सहाई ।
अबहि बसौ कानन में जाई।।
अस कहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखन संग पवनकुमारा।।
रामचन्द्र करिहै बहु लीला।।
तब तुम बलकर करब सहाई ।
अबहि बसौ कानन में जाई।।
अस कहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखन संग पवनकुमारा।।
खेलहिं खेल महा तरु तोरहिं ।
केलि करहिं बहु पर्वत फोरहिं।।
जेहि गिरि चरण देत कपि धाई ।
धलसो धस्कि रसातल जाई।।
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखत रहे राम मगु आसा।।
केलि करहिं बहु पर्वत फोरहिं।।
जेहि गिरि चरण देत कपि धाई ।
धलसो धस्कि रसातल जाई।।
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखत रहे राम मगु आसा।।
मिले राम लै पवनकुमारा ।
अति आनन्द समीर दुलारा।।
पुनि मुँदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चलै कपिराई।।
शतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अगाध देवमन हारा।।
अति आनन्द समीर दुलारा।।
पुनि मुँदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चलै कपिराई।।
शतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अगाध देवमन हारा।।
बिन श्रम गोखुर सरिस कपीशा ।
लाँघि गये कपि कहि जगदीशा।।
सीताचरण शीश तिन नावा ।
अजर अमर कर आशिष पावा।।
रहे दनुज उपवन रखवारी ।
इकते एक महाभट भारी।।
लाँघि गये कपि कहि जगदीशा।।
सीताचरण शीश तिन नावा ।
अजर अमर कर आशिष पावा।।
रहे दनुज उपवन रखवारी ।
इकते एक महाभट भारी।।
तिनहिं मारि उपवन करि खीसा ।
दहेउ लंक काँपेउ दशशीसा।।
सिया शोध लै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद शिर नाये।।
मेरु विशाल आनि पलमाहीं ।
बाँधा सिन्धु निमिष इक माहीं।।
दहेउ लंक काँपेउ दशशीसा।।
सिया शोध लै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद शिर नाये।।
मेरु विशाल आनि पलमाहीं ।
बाँधा सिन्धु निमिष इक माहीं।।
भे फणीश शक्तीवश जबहीं ।
राम बिलाप कीन्ह बहु तबहीं।।
भवनसमेत सुषेणहिं लाये ।
पवन सँजीवन को पुनि धाये।।
मगमहँ कालनेमि कहँ मारा ।
सुभट अमित निशिचर संहारा।।
राम बिलाप कीन्ह बहु तबहीं।।
भवनसमेत सुषेणहिं लाये ।
पवन सँजीवन को पुनि धाये।।
मगमहँ कालनेमि कहँ मारा ।
सुभट अमित निशिचर संहारा।।
आनि सँजीवन शैलसमेता ।
धरि दीन्हों जहँ कृपानिकेता।।
फणिपति केर शोक हरि लीन्हा ।
बर्षि सुमन सुर जै जै कीन्हा।।
अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लैगो जहँ पाताल निकेता।।
धरि दीन्हों जहँ कृपानिकेता।।
फणिपति केर शोक हरि लीन्हा ।
बर्षि सुमन सुर जै जै कीन्हा।।
अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लैगो जहँ पाताल निकेता।।
तहाँ रहै देवीसुस्थाना ।
दीन्ह चहै बलि काढि कृपाना।।
पवनतनय तहँ कीन्ह गुहारी ।
कटकसमेत निशाचर मारी।।
रीछ कीशपति जहाँ बहोरी ।
रामलखन कीन्हेसि इक ठौरी।।
दीन्ह चहै बलि काढि कृपाना।।
पवनतनय तहँ कीन्ह गुहारी ।
कटकसमेत निशाचर मारी।।
रीछ कीशपति जहाँ बहोरी ।
रामलखन कीन्हेसि इक ठौरी।।
सब देवन की बन्दि छुड़ाई ।
सो कीरति नारद मुनि गाई।।
अक्षयकुमार दनुज बलवाना ।
ताहि निपात्यो श्री हनुमाना।।
कुम्भकरण रावण कर भाई ।
ताहि मुष्टिका दी कपिराई।।
सो कीरति नारद मुनि गाई।।
अक्षयकुमार दनुज बलवाना ।
ताहि निपात्यो श्री हनुमाना।।
कुम्भकरण रावण कर भाई ।
ताहि मुष्टिका दी कपिराई।।
मेघनाद पर शस्त्रहिं मारा ।
पवनतनय सम को बरिआरा।।
मुरहा तनय नरान्तक जाना ।
पलमहँ ताहि हता हनुमाना।।
जहँ लगि नाम दनुजकरि पावा ।
पवनतनय तेहि मारि खसावा।।
पवनतनय सम को बरिआरा।।
मुरहा तनय नरान्तक जाना ।
पलमहँ ताहि हता हनुमाना।।
जहँ लगि नाम दनुजकरि पावा ।
पवनतनय तेहि मारि खसावा।।
जय मारुतसुत जन अनुकूला ।
नाम कृशानु शोकसमतूला।।
जेहि जीवन कहँ संशय होइ ।
अघसमेत तेहि संकट खोई।।
बन्दी परै सुमिर हनुमाना ।
गदागरू लै चल बलवाना।।
नाम कृशानु शोकसमतूला।।
जेहि जीवन कहँ संशय होइ ।
अघसमेत तेहि संकट खोई।।
बन्दी परै सुमिर हनुमाना ।
गदागरू लै चल बलवाना।।
यम कहँ बाँधि वामपद दीन्हा ।
मृतक जिवाय हालबहु कीन्हा।।
सो भुजबल कहँ कीन्ह कृपाला ।
अछत तुम्हार मोर असहाला।।
आरतहरन नाम हनुमाना ।
शारद सुरपति कीन बखाना।।
मृतक जिवाय हालबहु कीन्हा।।
सो भुजबल कहँ कीन्ह कृपाला ।
अछत तुम्हार मोर असहाला।।
आरतहरन नाम हनुमाना ।
शारद सुरपति कीन बखाना।।
संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान यती को।।
धावहु देखि दीनता मोरी ।
काटहु बन्दि कहौं कर जोरी।।
कपिपति वेग अनुग्रह करहू ।
आतुर आय दासदुख हरहू।।
ध्यान धरै हनुमान यती को।।
धावहु देखि दीनता मोरी ।
काटहु बन्दि कहौं कर जोरी।।
कपिपति वेग अनुग्रह करहू ।
आतुर आय दासदुख हरहू।।
रामशपथ मैं तुमहि खवाई ।
जो न गुहारि लागि शिव जाई।।
बिरद तुम्हार सकल जग जाना ।
भवभंजन सज्जन हनुमाना।।
यह बन्धनकर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता।।
जो न गुहारि लागि शिव जाई।।
बिरद तुम्हार सकल जग जाना ।
भवभंजन सज्जन हनुमाना।।
यह बन्धनकर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता।।
करहु कृपा जय जय जगस्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामी।।
भौमवार करि होमविधाना ।
धूपदीप नैवेद्य सुजाना।।
मंगलदायक की लव लावै ।
सुर नर मुनि तुरतहि फल पावै।।
बार अनेक नमामि नमामी।।
भौमवार करि होमविधाना ।
धूपदीप नैवेद्य सुजाना।।
मंगलदायक की लव लावै ।
सुर नर मुनि तुरतहि फल पावै।।
जयति जयति जय जय जगस्वामी ।
समरथ पुरुष कि अन्तर्यामी।।
अंजनितनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के कृपानिधाना।।
समरथ पुरुष कि अन्तर्यामी।।
अंजनितनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के कृपानिधाना।।
दोहा
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जै कपीश सुग्रीव की, जय अंगद हनुमान।
राम लखण जय जानकी, सदा करहु कल्यान।।
बन्दीमोचन नाम यह भौमवार वरमान।
ध्यान धरै नर पाव ही निश्चय पद निर्वान।
जो यह पाठ पढ़ै नित, तुलसी कहे विचारि।
परे न संकट ताहि तन, साखी हैं त्रिपुरारि।।
राम लखण जय जानकी, सदा करहु कल्यान।।
बन्दीमोचन नाम यह भौमवार वरमान।
ध्यान धरै नर पाव ही निश्चय पद निर्वान।
जो यह पाठ पढ़ै नित, तुलसी कहे विचारि।
परे न संकट ताहि तन, साखी हैं त्रिपुरारि।।
सवैया
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आरत बैन पुकारि कहौ कपिराज सुनौ बिनती इक म्हारी।
अंगद अरु, सुग्रीव महाबल देहु सदा बल शरण तिहारी।।
जामवन्त नलनील पवनसुत द्विविद मयन्द महाभट भारी।
दु:ख हरौ तुलसी जन की प्रभु दश वीरन की बलिहारी।।
अंगद अरु, सुग्रीव महाबल देहु सदा बल शरण तिहारी।।
जामवन्त नलनील पवनसुत द्विविद मयन्द महाभट भारी।
दु:ख हरौ तुलसी जन की प्रभु दश वीरन की बलिहारी।।
इति श्रीगोस्वामी तुलसीदासकृत हनुमद्बन्दीमोचन सम्पूर्ण।।
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