रत्न परामर्ष RATAN PRAMARSH
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रत्न परामर्ष की व्यवस्था शरीर में आकाश से मिलने वाले सातो रंग में से जिसकी कमी शरीर में होती है उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिये हिन्दू वैदिक विधि के अनुसार रत्न धारण कब करना चाहिये या कौनसा रत्न धारण करना चाहिये और किस रत्न को कभी नहीं पहनना चाहिये इसके लिये किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह आवश्यक होती है ।
किसी परिस्थिति में बिना जन्म पत्रिका के रत्न धारण घातक हो सकता है या दशानाथ का रत्न भी कुछ परिस्थितियों में घतक हो सकता है। जहां तक हो सके छठे, आठवें , और बरहवें स्थान के स्वामी का रत्न धारण करने से बचना चाहिये। कुछ अन्य परिस्थितियां और है जो आगे बताई जा रही है ।
1 विवाह हेतु पुखराज या डॉयमंड।
2 व्यवसाय में सफलता हेतु पन्ना।
3 भूमि प्राप्ति या भूमि के कार्य में सफलता हेतु मूंगा।
4 आय वृद्धि हेतु एकादशेश का रत्न।
5 शत्रु विजय हेतु षष्टेश का रत्न।
6 विदेश यात्रा हेतु द्वादशेष का रत्न।
7 दशानाथ या अंतरदशानाथ का रत्न।
8 नाम राशि या चंद्र राशि का रत्न,राहु,केतु ,शनि के रत्न आदि बिना जन्म कुण्डली विश्लेशण के पहनना नुकसान दायक ही नहीं अपितु घातक भी सिद्ध हो सकता है।
कौन सा रत्न किस लिये एवं किस समय धारण करना है यह जानना आवश्यक है परन्तु यह भी जानना अरवश्यक है कि कौनसा रत्न कब धारण नहीं करना चाहिये । क्योकि यह आपत्ती को आमंत्रित कर सकता है.
एवं स्वयं और परिवार के लिये घातक व व्याधियों को निमंत्रण देने वाला हो सकता है । किस लग्न एवं राशि वालो जातको को कौनसा रत्न अनुकूल हो सकता है ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में केंद्र ओर त्रिकोण के अधिपति ग्रहों को शुभ ग्रह माना गया है। जिसमे भी त्रिकोणेश (1,5,9) को केंद्रश (1,4,7,10) की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है.
सूर्य और चंद्रमा के अतिरिक्त सभी ग्रहों को दो राशियों का आधिपत्य प्राप्त है। यदि कोई ग्रह क्रेंद और त्रिकोण के एकसाथ अधिपति है तो हम उस ग्रह का रत्न धारण कर सकते।
जैसे कर्क और सिंह लग्न में मंगल ,या वृष और तुला लग्न में शनि या मकर और कुम्भ लग्न में शुक्र।
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में लग्नेश को किसी भी कुण्डली में सबसे माहत्त्वपूर्ण ग्रह माना गया है। क्यों की लग्नेश केन्द्रेश और त्रिकोणेश दोनों है। अतः लग्नेश सदा शुभ अतः कभी भी लग्नेश का रत्न धारण किया जा सकता है।
3,6,8,12 के स्वामी ग्रहों के रत्न कभी भी धारण नहीं करने चाहिए क्योकि इन भावों के परिणाम हमेशा ही अशुभ होते है ।
अब यदि 2, 3 ,6 ,8, 12 के अधिपति केंद्र या त्रिकोण के भी अधिपति हो तो ?
यदि केंद्र के अधिपति 2 ,3 ,6 ,8 ,12 के अधिपति हों तो भी भी उसका रत्न धारण नहीं करना चाहिए ।
क्यों कि सूत्र है केन्द्राधिपति दोष के कारण शुभ ग्रह अपनी शुभता और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देते है ।लेकिन दूसरी राशि जो कि 2 ,3 ,6 ,8 ,12 भावो में है उनके परिणाम स्थिर रहते है.
यदि त्रिकोण के अधिपति 2 , और 12 भावों के भी स्वामी है तो हम रत्न धारण कर सकते है।
क्योकि 2 ,और 12 भावों के स्वामी ग्रह अपना फल अपनी दूसरी राशि पर स्थगित कर देते हैं और अपनी दूसरी राशि त्रिकोण में स्थित के आधार पर परिणाम देते है।
लेकिन यदि त्रिकोण के स्वामी 3 ,6, 8 भावों के भी अधिपति हों तो किन्ही विशेष परिस्तिथियों में हीें रत्न धारण करना चाहिए।
क्यों की कोई भी ग्रह दो राशियों का स्वामी है तो दोनों के परिणाम एक साथ देता है। रत्न हमेशा शुभ भावों की दशा - अंतरदशा के समय पहनने पर विशेष लाभ देते है !!
विशेष शनि ,राहु ,केतु के रत्न किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पहने जा सकते है।अतः इनके रत्न बिना पूर्ण जनकारी के न पहने।
रत्न हमेशा गहन कुण्डली विश्लेशण के पश्चात् यदि आवश्यकता हो तभी धारण करें। क्यों की रत्नों के प्रभाव शीघ्र और तीव्र होते है। रत्न धारण करने से पूर्व भली भांति अपनी कुण्डली का विश्लेषण किसी अनुभवी और श्रेष्ठ ज्योतिषी से अवश्य कराये।
रत्न का चयन ग्रहों का षडबल, सोलह वर्ग कुंडलियो में ग्रह की स्थिति, रत्न के शुभ और अशुभ प्रभाव क्या और किस क्षेत्र में होंगे ? सभी कुछ गहनता से जांचकर ही रत्न धारण करें।
गलत रत्न का चुनाव आपके ही नहीं आपके परिवार के सदस्यों के लिये भी घातक हो सकता है क्यों कि हमारी जन्म पत्रिका के शुभ - अशुभ प्रभाव हमारे परिवार के सदस्यों पर भी होते हैं।
कुछ आसान, आवश्यक तथा सही समय पर किये गए सही उपाय , कुछ जन्म पत्रिका के अनुसार सकारात्मक ग्रहो का सहयोग और कुछ सही मार्ग का चयन और सही दिशा में किया गया परिश्रम सुखी और खुशियों से भरा जीवन दे सकता है।
और भी बहुत कुछ है आपके लिए आप अपने जीवन में परिवर्तन चाहते हैं रत्न धारण करना चाहते हैं......
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