Saturday, March 28, 2020

श्री-बृहत्-महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्

श्री-बृहत्-महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्


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॥शिव उवाच॥

शृणु देवि! प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्र-प्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥1॥

न कवचं नार्गला तु, कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वाऽर्चनम्॥2॥

कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण, दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि! देवानामपि दुर्लभम्॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन, स्वयोनिरिव पार्वति! मारणं मोहनं वश्यं, स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्धयेत्, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्॥4॥

ॐ श्रूं श्रूं श्रूं श्रं फट् ऐं ह्रीं ज्वालोज्ज्वल, प्रज्वल, ह्रीं ह्रीं क्लीं स्रावय स्रावय। 

वशीष्ठ-गौतम-विश्वामित्र-दक्ष-प्रजापति-ब्रह्मा ऋषयः। सर्वैश्वर्य-कारिणी श्री दुर्गा देवता। गायत्र्या शापानुग्रह कुरु कुरु हूं फट्। 

ॐ ह्रीं श्रीं हूं दुर्गायै सर्वैश्वर्य-कारिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
ॐ क्लीं ह्रीं ॐ नमः शिवायै आनन्द-कवच-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
ॐ काल्यै काली ह्रीं फट् स्वाहायै, ऋग्वेद-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव। 
शापं नाशय नाशय, हूं फट्॥ 

श्रीं श्रीं श्रीं जूं सः आदाय स्वाहा॥ ॐ श्लों हुं क्लीं ग्लौं जूं सः ज्वलोज्ज्वल मन्त्र प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा। नमस्ते रुद्र-रूपायै नमस्ते मधु-मर्दिनि। नमस्ते कैटभारि च नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्री च, निशुम्भासुर-घातिनि॥2॥

नमस्ते जाग्रते देवि! जपं सिद्धिं कुरुष्व मे। ॐ ऐंकारी सृष्टि-रूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥3॥
क्लींकारी काम-रूपिण्यै बीजरूपे! नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्ड-घाती च यैङ्कारी वर-दायिनी॥4॥

विच्चे त्व-भयदा नित्यं नमस्ते मन्त्र-रूपिणि॥5॥

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हंसः-सोऽहं अं आं ब्रह्म-ग्रन्थि भेदय भेदय। इं ईं विष्णु-ग्रन्थि भेदय भेदय। उं ऊं रुद्र-ग्रन्थि भेदय भेदय। अं क्रीं, आं क्रीं, इं क्रीं, इं हूं, उं हूं, ऊं ह्रीं, ऋं ह्रीं, ॠं दं, लृं क्षिं, ॡं णें, एं कां, ऐं लिं, ओं कें, औं क्रीं, अं क्रीं, अः क्रीं, अं हूं, आं हूं, इं ह्रीं, ईं ह्रीं, उं स्वां, ऊं हां, यं हूं, रं हूं, लं मं, बं हां, शं कां, षं लं, सं प्रं, हं सीं, ळं दं, क्षं प्रं, यं सीं, रं दं, लं ह्रीं, वं ह्रीं, शं स्वां, षं हां, सं हं लं क्षं॥ 

महा-काल-भैरवी महा-काल-रुपिणी क्रीं अनिरुद्ध-सरस्वति! 
हूं हूं, ब्रह्म-ग्रह-बन्धिनी, विष्णु-ग्रह-बन्धिनी, रुद्र-ग्रह-बन्धिनी, गोचर-ग्रह-बन्धिनी, आदि-व्याधि-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दुष्ट-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दानव-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्वगोत्र-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-ग्रहोपग्रह-बन्धिनी! 
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ क्रीं हूं मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-बुद्धिं दुष्ट-प्रयोगाना् कुर्वन्ति, कारयन्ति, करिष्यन्ति, तान् हन। 
मम मन्त्र-सिद्धिं कुरु कुरु। मम दुष्टं विदारय विदारय। दारिद्रयं हन हन। पापं मथ मथ। आरोग्यं कुरु कुरु। आत्म-तत्त्वं देहि देहि। हंसः सोहम्। 
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥ नव-कोटि-स्वरुपे, आद्ये, आदि-आद्ये अनिरुद्ध-सरस्वति! स्वात्म-चैतन्यं देहि देहि। मम हृदये तिष्ठ तिष्ठ। मम मनोरथं कुरु कुरु स्वाहा॥ 6 

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः! 
वां वीं वागेश्वरी तथा। 
क्रां क्रीं क्रूं कुञ्जिका देवि! 
शां शीं शूं में शुभं कुरू॥ 
हूं हूं हूङ्कार-रूपायै, 
जां जीं जूं भाल-नादिनीं। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! 
भवान्यै ते नमो नमः॥ 7 

ॐ अं कं चं टं तं पं सां विदुरां विदुरां, विमर्दय विमर्दय ह्रीं क्षां क्षीं क्षीं जीवय जीवय, त्रोटय त्रोटय, जम्भय जम्भय, दीपय दीपय, मोचय मोचय, हूं फट्, जां वौषट्, ऐं ह्रीं क्लीं रञ्जय रञ्जय, सञ्जय सञ्जय, गुञ्जय गुञ्जय, बन्धय बन्धय। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! संकुच संकुच, सञ्चल सञ्चल, त्रोटय त्रोटय, म्लीं स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा॥8

म्लां म्लीं म्लूं मूल-वीस्तीर्णा-कुञ्जिकायै नमो नमः॥ सां सीं सप्तशती देव्या मन्त्र-सिद्धिं कुरूश्व मे॥9 ॥

फल श्रुति॥ 
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति॥ विहीना कुञ्जिका-देव्या,यस्तु सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिः ह्यरण्ये रुदतिं यथा॥ ॥इति श्रीरुद्रयामले, गौरीतन्त्रे, काली तन्त्रे शिव-पार्वती संवादे कुञ्जिका-स्तोत्रं॥


विशेषः- 
कोई भी दीक्षा-प्राप्त व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है। निरन्तर सप्तशती का पाठ करनेवाला माँ जगज्जननी का भक्त सप्तशती के आरम्भ तथा अन्त में इसका पाठ अवश्य करे। “कुल्लुका महा-मन्त्र” के सम्बन्ध में संकेत मात्र है की- “क्रीम हूं स्त्रीं ह्रीं फट्” – इन ५ बीजों से जप के पूर्व कर-न्यास व हृदय-न्यास करने चाहिए।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )