Monday, March 23, 2020

हिन्दू नववर्ष चैत्र नवरात्रि 25 मार्च 2020 विक्रम संवंत 2077 HINDU NEW YEAR CHAITR NAVRATRI 25 MARCH 2020 VIKRAM SAMVAT 2077

हिन्दू नववर्ष चैत्र नवरात्रि 25 मार्च 2020 विक्रम संवंत 2077 HINDU NEW YEAR CHAITR NAVRATRI 25 MARCH 2020 VIKRAM SAMVAT 2077

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24 मार्च 2020 को चैत्र अमावस्या है। हिन्दू धर्म में यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण होती है। चैत्र अमावस्या वह तिथि है जो चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है। यह हिन्दू वर्ष की अंतिम तिथि भी कहलाती है। इस तिथि के बाद हिन्दू नववर्ष शुरु हो जाता है।

चैत्र अमावस्या 2020 का शुभ मुहूर्त
सवार्थ सिद्धी योगी- सुबह 6 बजकर 20 मिनट से अगले दिन 4 बजकर 19 मिनट तक।
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 3 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक।

चैत्र अमावस्या का महत्व
हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार अमावस्या तिथि पित्तरों के तर्पण के लिए समर्पित है। इसलिए इस दिन पित्तरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास रखा जाता है। खासकर जो लोग पितृ दोष से पीड़ित हैं उनके लिए अमावस्या व्रत इस दोष के निवारण के लिए महत्वपूर्ण है। वहीं अन्य माह की अमावस्या के समान चैत्र अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना श्रेष्ठ माना गया है। ऐसा करने से पितरों को मुक्ति मिलती है

चैत्र अमावस्या का ज्योतिषीय महत्व
अमावस्या तिथि के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं। जहां सूर्य आग्नेय तत्व को दर्शाता है तो वहीं चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। सूर्य के प्रभाव में आकर चंद्रमा का प्रभाव शून्य हो जाता है। इसलिए मन को एकाग्रचित करने का यह कारगर दिन होता है। इसलिए अमावस्या का दिन आध्यात्मिक चिंतन के लिए श्रेष्ठ होता है। अमावस्या को जन्म लेने वाले की कुंडली में चंद्र दोष होता है। 

चैत्र अमावस्या होता है हिन्दू वर्ष का अंतिम दिन
चैत्र अमावस्या विक्रम संवंत वर्ष का अंतिम दिन होता है। विक्रम संवंत को आम भाषा में हिन्दू कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र अमावस्या तिथि की समाप्ति के बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि आती है जो हिन्दू वर्ष का पहला दिन होता है। कहते हैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। नवरात्र भी हिन्दू नवर्ष की पहली तिथि से प्रारंभ होता है।

चैत्र अमावस्या की पूजा विधि
चैत्र अमावस्या के दिन प्रातः जल्दी उठें।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में किसी पवित्र नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें।
सूर्योदय के समय भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें।
इस दिन कर्मकांड के साथ अपने पितरों का तर्पण करें।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखें।
आज के दिन जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा दें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं।


हिंदू नववर्ष  की प्रमुख बातें
सभी तरह के नववर्ष में सिर्फ भारतीय नव संवत्सर ही है जिसकी गणना ग्रहों, नक्षत्रों, चांद, सूरज आदि की गति का अध्ययन कर 6 ऋतुओं और 12 महीनों का एक साल होता है।
सूर्य-चंद्र और ग्रह-नक्षत्रों  पर आधारित हिंदू महीनों का नाम रखा गया है। जैसे- चित्रा नक्षत्र के आधार पर चैत्र, विशाखा के आधार पर बैसाख, ज्येष्ठा के आधार पर ज्येष्ठ, उत्तराषाढ़ा पर आषाढ़, श्रवण के आधार पर श्रावण आदि।
हिंदू पंचांग की गणना के आधार पर यह हजारों साल पहले बता दिया था कि अमुक दिन, अमुक समय पर सूर्यग्रहण होगा। युगों बाद भी यह गणना सही और सटीक साबित हो रही है।
तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्यग्रहण सदैव अमावस्या को होगा और चंद्रग्रहण पूर्णिमा को ही होगा। इस आधार पर दिन-रात, सप्ताह, पखवाड़ा, महीने, साल और ऋतुओं का निर्धारण हुआ।
वैदिक परंपर में 12 महीनों और 6 ऋतुओं के चक्र यानी पूरे वर्ष की अवधि को संवत्सर नाम दिया गया। 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तिथि माना गया है। ब्रह्मपुराण में उल्लेख है कि चैत्र प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। जिस दिन दुनिया अस्तित्व में आई, उसी दिन प्रतिपदा मानी गई।
विक्रम संवत् भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू किया था।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के जिस दिन (वार) से विक्रमी संवत शुरू होता है, वही इस संवत का राजा होता है। सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है, तो वह संवत का मंत्री होता है। विक्रम संवत समस्त संस्कारों, पर्वों एवं त्योहारों की रीढ़ माना जाता है। समस्त शुभ कार्य इसी पंचांग की तिथि से ही किए जाते हैं।

25 मार्च से नया संवत्सर 2077 आरंभ होने वाला है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नया हिंदू वर्ष शुरू हो जाता है। साथ ही इसी तिथि पर नवरात्रि का पहला दिन होता है। हिंदू परंपरा में नव संवत्सर को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। 


हिंदू नववर्ष
चैत्र नवरात्रि के प्रारंभ होते ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत हो जाती है। इस साल 25 मार्च से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2077 का आगाज हो जाएगा। 
 नव संवत 2077 का नाम- प्रमादी


चैत्र नवरात्रि कब हैं?
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आते हैं. इस बार चैत्र नवरात्र 25 मार्च 2020 से शुरू होकर 2 अप्रैल 2020 को खत्‍म हो रहे हैं. वहीं, राम नवमी 2 अप्रैल 2020 को मनाई जाएगी.

शारदीय नवरात्रि की तिथियां 
25 मार्च 2020: नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्‍थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन. 
26 मार्च 2020: नवरात्रि का दूसरा दिन, द्व‍ितीया, बह्मचारिणी पूजन.
27 मार्च 2020:  नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.
28 मार्च 2020: नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, कुष्‍मांडा पूजन.
29 मार्च 2020: नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्‍कंदमाता पूजन.
30 मार्च 2020: नवरात्रि का छठा दिन, षष्‍ठी, सरस्‍वती पूजन.
31 मार्च 2020: नवरात्रि का सातवां दिन, सप्‍तमी, कात्‍यायनी पूजन.
1 अप्रैल 2020: नवरात्रि का आठवां दिन, अष्‍टमी, कालरात्रि पूजन, कन्‍या पूजन.
2 अप्रैल 2020: नवरात्रि का नौवां दिन, राम नवमी, महागौरी पूजन, कन्‍या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण

घट स्‍थापना की तिथि और शुभ मुहूर्त
घट स्‍थापना की तिथि: 25 मार्च 2020
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 24 मार्च 2020 को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से 
प्रतिपदा तिथि समाप्‍त: 25 मार्च 2020 को शाम 5 बजकर 26 मिनट तक
घट स्‍थापना मुहूर्त: 25 मार्च 2020 को सुबह 6 बजकर 19 मिनट से सुबह 7 बजकर 17 मिनट तक 
कुल अवधि: 58 मिनट 

इस साल चैत्र नवरात्र 2020 बुधवार से शुरू हो रहे हैं। देवीभाग्वत पुराण के अनुसार माना जाता है कि यदि नवरात्रि के व्रत बुधवार से शुरू होते हैं तो मां विष्णों नाव पर सवार होकर अपने भक्तों से मिलने आती हैं।

मां की सवारी नाव होने का मतलब-
मां की सवारी नाव होने का मतलब यह है कि इस साल खूब वर्षा होने वाली है। जिसकी वजह से आम लोगों का जीवन प्रभावित होने के साथ बाढ़ आदि जैसी प्राकृतिक आपदा भी आ सकती है। जिसकी वजह से जन-धन को बड़ा नुकसान हो सकता है।

हाथी पर होगी मां विष्णों की विदाई-
चैत्र नवरात्रि का समापन 2 अप्रैल, वीरवार को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता की विदाई हाथी पर होने वाली है। माता का वाहन हाथी होने का मतलब है कि इस साल बारिश अच्छी होने वाली है। जो कृषि के लिहाज से बेहतर होगा। इसके अलावा नववर्ष के मंत्री चंद्रमा और राजा बुध होने का मतलब है कि आने वाला वर्ष अर्थवयवस्था के लिए बेहतर रहेगा। 

नवरात्रि व्रत के नियम
अगर आप भी नवरात्रि के व्रत रखने के इच्‍छुक हैं तो इन नियमों का पालन करना चाहिए. 
- नवरात्रि के पहले दिन कलश स्‍थापना कर नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्‍प लें.
- पूरी श्रद्धा भक्ति से मां की पूजा करें. 
- दिन के समय आप फल और दूध ले सकते हैं. 
- शाम के समय मां की आरती उतारें. 
- सभी में प्रसाद बांटें और फिर खुद भी ग्रहण करें. 
- फिर भोजन ग्रहण करें. 
- हो सके तो इस दौरान अन्‍न न खाएं, सिर्फ फलाहार ग्रहण करें. 
- अष्‍टमी या नवमी के दिन नौ कन्‍याओं को भोजन कराएं. उन्‍हें उपहार और दक्षिणा दें. 
- अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें.

नवरात्रि की अंखड ज्योति (Chaitra Navratri Akhand Jyoti)
नवरात्रि की अखंड ज्योति का बहुत महत्व होता है. आपने देखा होगा मंदिरों और घरों में नवरात्रि के दौरान दिन रात जलने वाली ज्योति जलाई जाती है. माना जाता है हर पूजा दीपक के बिना अधूरी है और ये ज्योति ज्ञान, प्रकाश, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होती है. 

अखंड ज्‍योति से जुड़े नियम (Akhand Jyoti Rules)
1. दीपक जलाने के लिए बड़े आकार का मिट्टी या पीतल का दीपक लें. 
2. अखंड ज्‍योति का दीपक कभी खाली जमीन पर ना रखें. 
3. इस दीपक को लकड़ी के पटरे या किसी चौकी पर रखें. 
4. दीपक रखने से पहले उसमें रंगे हुए चावल डालें.
5. अखंड ज्‍योति की बाती रक्षा सूत्र से बनाई जाती है. इसके लिए सवा हाथ का रक्षा सूत्र लेकर उसे बाती की तरह बनाएं और फिर दीपक के बीचों-बीच रखें. 
6. अब दीपक में घी डालें. अगर घी ना हो तो सरसों या तिल के तेल का इस्‍तेमाल भी कर सकते हैं. 
7. मान्‍यता अनुसार अगर घी का दीपक जला रहे हैं तो उसे देवी मां के दाईं ओर रखना चाहिए. 
8. दीपक जलाने से पहले गणेश भगवान, मां दुर्गा और भगवान शिव का ध्‍यान करें. 
9. अगर किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए यह अखंड ज्‍योति जला रहे हैं तो पहले हाथ जोड़कर उस कामना को मन में दोहराएं. 
10. ये मंत्र पढ़ें.
"ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।" 
11. अब दीपक के आस-पास कुछ लाल फूल भी रखें.
12. ध्‍यान रहे अखंड ज्‍योति व्रत समाप्‍ति तक बुझनी नहीं चाहिए. इसलिए बीच-बीच में घी या तेल डालते रहें और बाती भी ठीक करते रहें.


नवरात्रि के दिनों में मां के इन 9 रुपों की पूजा की जाती है
पहले दिन देवी शैलपुत्री
दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी
तीसरी चंद्रघंटा 
चौथी कूष्मांडा
पांचवी स्कंध माता
छठी कात्यायिनी
सातवीं कालरात्रि 
आठवीं महागौरी
नौवीं सिद्धिदात्री।

उत्तर- पूर्व  दिशा
उत्तर- पूर्व यानि ईशान कोण को देवी- देवताओं का स्थान माना गया हैं। इसी दिशा में माता की प्रतिमा और घट की स्थापना करना शुभ होता हैं। इस दिशा पर प्रतिमा और घट की स्थापना करने से विशेष लाभ होता है।

कलश स्थापना
कलश को नीचे जमीन पर ना रखें। बल्कि इसकी स्थापना चंदन के पटिए पर करें। यह बहुत ही शुभ माना जाता हैं। साथ ही ध्यान रखें कि पूजा वाली जगह के ऊपर कोई गंदे कपड़े आदि पड़े हुए ना हो। साफ- सफाई का विशेष ध्यान दें।

ध्वजा
 नवरात्र में समय कुछ लोग अपने घर पर लगे ध्वजा को भी बदलते हैं। इस बार ध्वजा बदलते हुए उसकी दिशा को ध्यान में जरूर रखें। घर की छत पर उत्तर पश्चिम कोने पर ही ध्वजा लगाएं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में ध्वजा लगाने का बहुत अधिक महत्व होता है।

माता की प्रतिमा 
जिस जगह पर माता की प्रतिमा को स्थापित किया गया हैं, वहां के आस पास की जगह को थोड़ा खुला रखें और इस जगह पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

अखंड ज्योति 
अगर आपने नवरात्र में अखंड ज्योति जलाने का संकल्प लिया हैं तो इसे गलत दिशा में ना रखें। अखंड ज्योति पूर्व- दक्षिण कोण यानि आग्नेय कोण में ही रखने पर शुभ होता हैं। ध्यान रहें पूजा के समय इसका मुंह पूर्व या फिर उत्तर दिशा में होना चाहिए।

माँ की प्रसन्नता के लिए सर्वश्रेष्ठ राशि स्वामी के अनुसार पुष्प
शास्त्र कहते हैं, ग्रहाः राज्यं प्रयच्छन्ति, ग्रहाः राज्यं हरन्ति च। अर्थात ग्रह अनुकूल हों तो आपको राज्य दे सकते हैं और प्रतिकूल हैं तो आपके राज्य का हरण भी कर सकते हैं। जीवन में चौमुखी विकास के लिए ग्रहों की अनुकूलता परमावश्यक है। जिन माँ पराम्बा दुर्गा जी की तपस्या करके ग्रहों को शक्तियां प्राप्त होती हैं यदि आप भी इस नवरात्रि में उन्हीं माँ पर ग्रहों एवं उनकी राशियों के अनुसार पुष्प से पूजन अर्चन करें तो आपके ऊपर ग्रहों की अनुकूलता और भी बढ़ जायेगी। सभी राशियों के लिए अलग-अलग रंग-पुष्प बताए गए हैं, नवरात्र में माँ दुर्गा की पूजा अपने ग्रहों एवं राशि के अनुसार बताए गए पुष्पों से करके आप अपने सभी मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं। 

माँ दुर्गा की आराधना में सभी राशियों के लिए कमल, गुडहल, गुलाब, एवं कनेर प्रजातियों के सभी पुष्प शुभ माने गए हैं। इन पुष्पों के द्वारा का पूजन करना माँ की प्रसन्नता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सभी 12 राशियों के जातक अपनी-अपनी राशि स्वामी के अनुसार भी माँ का पूजन-अर्चन करके स्वामी ग्रहों की अनुकूलता में वृद्धि कर सकते हैं।

मेष राशि- गुड़हल, गुलाब, लाल कनेर, लाल कमल अथवा किसी भी तरह के लाल पुष्प हों उससे पूजा करके मां भगवती को प्रसन्न कर मंगल जनित दोषों के कुप्रभाव से बचा जा सकता है।

वृषभ राशि- श्वेत कमल, गुडहल, श्वेत कनेर, सदाबहार, बेला, हरसिंगार आदि जितने भी श्वेत प्रजाति के पुष्प हैं उनसे माँ की आराधना कर प्रसन्न किया जा सकता है ऐसा कर पाने से शुक्र की शुभता में वृद्धि होगी।

मिथुन राशि- मां की पूजा पीला कनेर, गुडहल, द्रोणपुष्पी, गेंदा और केवड़ा पुष्प से माँ की आराधना करके अभीष्ट कार्य सिद्ध भी कर सकते हैं और बुध की कृपा भी प्राप्त होगी।

कर्क राशि- श्वेत कमल, श्वेत कनेर, गेंदा, गुडहल, सदाबहार, चमेली रातरानी और अन्य जितने भी प्रकार के श्वेत और गुलाबी पुष्प हैं उन्हीं से माँ की आराधना करके प्रसन्न करके चन्द्र जनित दोषों से मुक्त हुआ जा सकता है।

सिंह राशि- किसी भी तरह के पुष्प से कमल, गुलाब, कनेर, गुड़हल से माँ की पूजा करके कृपा पा सकते हैं, गुड़हल का पुष्प सूर्य और माँ दुर्गा को अति प्रिय है।

कन्या राशि- गुड़हल, गुलाब, गेंदा, हरसिंगार एवं किसी भी तरह के अति सुगंधित पुष्पों से मां दुर्गा की आराधना करके अपने मनोरथ पूर्ण करके बुध के साथ-साथ अन्य ग्रहों की अनुकूलता भी पा सकते हैं।

तुला राशि- श्वेत कमल श्वेत, कनेर, गेंदा, गुड़हल, जूही, हरसिंगार, सदाबहार, केवड़ा,बेला चमेली आधी पुष्पों से माँ भगवती की आराधना करके उनकी अनुकूलता और शुक्र की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

वृश्चिक राशि- किसी भी प्रजाति के लाल पुष्प, पीले पुष्प, एवं गुलाबी पुष्प से पूजा करके मां दुर्गा की कृपा प्राप्त की जा सकती है लाल कमल से पूजा कर पाएं तो घर परिवार में समृद्धि तो बढ़ेगी ही मंगल की कृपा भी प्राप्त होगी।

धनु राशि- कमल पुष्प, कनेर, गुड़हल, गुलाब, गेंदा, केवडा, और कनेर की सभी प्रजातियां के पुष्पों से माँ का पूजन-अर्चन करके माँ का आशीर्वाद एवं बृहस्पति की भी और अधिक शुभता प्राप्त की जा सकती है।

मकर राशि- नीले पुष्प, कमल, गेंदा, गुलाब, गुड़हल आदि से माँ शक्ति की पूजा-आराधना करके माँ की कृपादृष्टि एवं शनिजनित दुष्प्रभावों से बचते हुए ईष्ट कामयाबी हासिल की जा सकती है।

कुंभ राशि- नीले पुष्प, गेंदा, सभी प्रकार के कमल, गुड़हल, बेला, चमेली, रातरानी, आदि से माँ भगवती की आराधना करके उनकी कृपा और शनिग्रह के दोष से मुक्त होते हुए मनोरथ भी पूर्ण किये जा सकते हैं।

मीन राशि- पीले कनेर की सभी प्रजातियां, सभी प्रकार के कमल, गेंदा, गुलाब, गुड़हल की सभी प्रजातियों से पूजा करके माँ की कृपा प्राप्त करते हुए वृहस्पति जन्य दोषों से भी मुक्त हुआ जा सकता है। 

अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास है तो नवरात्रि के दिनों इन उपायों को अपनाकर इस दोष को दूर किया जा सकता है।

घर के मुख्य दरवाजे पर स्वस्तिक का निशान बनाएं 
घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए नवरात्रि के दिनों में घर के मुख्य दरवाजे पर स्वस्तिक का निशान बनाना चाहिए। इसके अलावा श्रीगणेश का चित्र भी लगाएं। इससे कार्य में आने वाली तमाम तरह की बाधाएं दूर होती हैं। घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक का निशान बनाने से घर में सकारात्मकता का वास होता है और सभी रुके हुए कार्य बनने लगते हैं।
आम और अशोक के पत्तों की माला बनाकर मुख्य द्वारा पर बांधें
नवरात्रि के दिनों में आम और अशोक के पत्तों की माला बनाकर मुख्य द्वारा पर बांधने से घर में होने वाली सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। ऐसा करने से घर में सकारत्मकता आएगी और घर का माहौल बढ़ियाा रहेगा।
प्रवेश द्वार पर लक्ष्मीजी के पैर का निशान बनाएं
नवरात्रि में प्रवेश द्वार पर लक्ष्मीजी के पैर का निशान बनाएं ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और घर में सुख-शान्ति और समृद्धि बनी रहती है।
लक्ष्मी मंदिर जाएं
नवरात्रि में किसी एक दिन लक्ष्मी मंदिर जाएं और केसर के साथ पीले चावल को मंदिर में जाकर चढ़ाएं। ऐसा करने से घर में आ रही बाधा दूर हो जाती है और मां लक्ष्मी का आशिर्वाद मिलता है।

मां को प्रसन्न करने के उपाय
शास्त्रों के अनुसार मां को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं जिसके करने से अच्छे फल की प्राप्ति होती है।
घर पर कमल का फूल लाएं
चैत्र नवरात्रि में माता का आशीर्वाद पाने के लिए इन नौ दिनों में किसी एक दिन घर पर कमल का फूल जरूर लाना चाहिए। कमल का फूल माता लक्ष्मी को बहुत प्रिय होता है। अगर कमल का फूल न मिलें तो माता रानी को आप लाल रंग का फूल भी अर्पण कर सकते हैं। मां को लाल फूल भी अतिप्रिय होता है।
सोने या चांदी का सिक्का जरूर लाएं
घर में नवरात्रि के दिनों में सोने या चांदी का सिक्का जरूर लाएं लेकिन ध्यान दे उस सिक्के पर माता लक्ष्मी या गणेश जी का चित्र जरूर बना हो।
तिजोरी में नवरात्रि के दिनों में लाल कपड़े के साथ कौड़ी रखें
धन से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए घर की तिजोरी में नवरात्रि के दिनों में लाल कपड़े के साथ कौड़ी रखना शुभ होता है।
कमल के फूल पर बैठी हुईं माता लक्ष्मी की तस्वीर की पूजा करें
नवरात्रि पर कमल के फूल पर बैठी हुईं माता लक्ष्मी की तस्वीर की पूजा करना बहुत शुभ होता है। ऐसा करने से मां दुर्गा के साथ आपको लक्ष्मीजी की भी कृपा मिलेगी।
माता को गुड़हल का फूल जरूर चढ़ाएं।
माता को लाल रंग बहुत ही प्रिय होता है यह सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मां दुर्गा को लाल गुड़हल का फूल बहुत प्रिय होता है इसलिए नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक गुड़हल का फूल जरूर चढ़ाएं।

पूजा विधि

सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें।
स्नान के बाद साफ और स्वच्छ कपड़े पहने।
घर के मंदिर में साफ-सफाई करें।
मंदिर में साफ-सफाई करने के बाद मंदिर में एक साफ-सुथरी चौकी बिछाएं।
गंगाजल छिड़क कर चौकी को पवित्र करना न भूलें।
चौकी के समक्ष किसी बर्तन में मिट्टी फैलाकर ज्वार के बीज बो दें।
मां दुर्गा की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें और दुर्गा जी का रोली से तिलक करें।
नारियल में भी तिलक लगाएं।
फूलों का हार दुर्गा जी की प्रतिमा को पहनाएं।
कलश स्थापना करने से पहले कलश पर स्वास्तिक अवश्य बना लें। 
कलश में जल, अक्षत, सुपारी, रोली एवं मुद्रा (सिक्का) डालें और फिर एक लाल रंग की चुन्नी से लपेट कर रख दें।

पहली नवरात्रि पर
नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा को गौ घृत से षोडशौपचार पूजा कर गौ धृत अपर्ण करें। इससे आरोग्य लाभ होता है।

दूसरी नवरात्रि पर 
द्वितीया तिथि को शक्कर का भोग उसे दान करें। शक्कर का दान दीर्घायु कारक होता है।

तीसरी नवरात्रि पर
तृतीया तिथि को दूध की प्रधानता होती है। पूजन में दूध का उपयोग कर उसे ब्राह्मण को दान करें। दूध का दान दुखों से मुक्ति का परम साधन होता है।

चौथी नवरात्रि पर
चतुर्थी तिथि को मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। सुयोग्य ब्राह्मण को दान करें। इससे बुद्धि का विकास होता है। निर्णय शक्ति में असाधारण  विकास होता है।

पांचवी नवरात्रि पर
पंचमी तिथि को केले का नैवेद्य चढ़ावें प्रसाद ब्राह्मण को दान करें। इससे बुद्धि का विकास होता है। निर्णय शक्ति में असाधारण विकास होता है।

छठी नवरात्रि पर
षष्ठी तिथि को मधु का विशेष महत्व है। मधु से पूजन कर ब्राह्मण को दान करने से स्वरूप में आकर्षण का उदय होता है और सुंदरता में  वृद्धि होती है।

सातवीं नवरात्रि पर
सप्तमी तिथि को गुड़ का नैवद्य अर्पण ब्राह्मण को करना शोक मुक्ति का कारक है। गुड़ दान से आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।

आठवीं नवरात्रि पर
अष्टमी तिथि को नारियल का भोग लगाना और नारियल का दान करना संताप रक्षक है। किसी भी प्रकार की पीड़ा का शमन होता है। 

नवमीं नवरात्रि पर
नवमी तिथि को धान के लावा से पूजा करना चाहिए। धान के दान करने से लोक परलोक का सुख प्राप्त  होता है। दशम तिथि को काले तिल का  नैवेद्य का अर्पण का दान करने से परलोक का भय नहीं होता है। 

दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल
25 मार्च, बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। इन नौ दिनों में विधि-विधान पूर्वक दुर्गा सप्तशती के पाठ से माता की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ करने में लगभग दो से तीन घंटे का समय लग सकता है। वर्तमान समय में सभी लोग पर काम का दबाव बना रहता है। ऐसे में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ कर पाना बहुत से लोगों के लिए कठिन हो सकता है।
इस स्थिति में दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल प्राप्त करने के लिए एक आसान उपाय का वर्णन दुर्गा सप्तशती में किया गया है। अगर आप भी सिर्फ 5 मिनट में दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्याय, कवच, कीलक, अर्गला, न्यास के पाठ का पुण्य प्राप्त करना चाहते हैं तो आपके लिए यह उपाय काफी उपयोगी हो सकता है।
भगवान शिव ने पार्वती से कहा है कि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह सिर्फ कुंजिकास्तोत्र के पाठ से प्राप्त हो जाता है। कुंजिकास्तोत्र का मंत्र सिद्ध किया हुआ इसलिए इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। जो साधक संकल्प लेकर इसके मंत्रों का जप करते हुए दुर्गा मां की आराधना करते हैं मां उनकी इच्छित मनोकामना पूरी करती हैं। इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कुंजिकास्तोत्र के मंत्रों का जप किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए कुंजिकास्तोत्र के मंत्र की साधना करने पर साधक का खुद ही अहित होता है।


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥
अथ मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।"
॥ इति मंत्रः॥

"नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।

नौ देवियों के बीज मंत्र

शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नम:।

ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

चन्द्रघण्टा: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:।

स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।

कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।

महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।

सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )