ज्योतिष में रोग विचार
ज्योतिष में रोग विचार
★ षष्ठ स्थान★ ग्रहों की स्थिति
★ राशियां
★ कारकग्रह
भावों का विश्लेषण :
◆ प्रथम भाव : प्रथम भाव से शारीरिक कष्टों की एवं स्वास्थ्य का विचार होता है।
◆ द्वितीय भाव : द्वितीय भाव आयु का व्ययसूचक हैं।
◆ तृतीय भाव : तृतीय भाव से आयु का विचार होता है।
◆ षष्ठ भाव : स्वास्थ्य , रोग के लिए । षष्ठ भाव का कारक मंगल, बुध ।
◆ सप्तम भाव : सप्तम भाव आयु का व्ययसूचक हैं।
◆ अष्टम भाव : अष्टम भाव का कारक गृह शनि एवं मंगल हैं। इस भाव से आयु एवं मृत्यु के कारक रोग का विचार होता है।
◆ द्वादश भाव : द्वादश भाव रोग शारीरिक शक्ति की हानि के साथ साथ रोगों का उपचार स्थल भी है।
भाव स्वामी की स्थिति से रोग :
षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते है उससे संबद्ध अंग में पीड़ा हो सकती है।
किसी भी भाव का स्वामी ६, ८ या १२वें में स्थित हो तो उस भाव से सम्बंधित अंगों में पीड़ा होती है।
रोगों के कारण :
■ यदि लग्न एवं लग्नेश की स्थिति अशुभ हो।
■ यदि चंद्रमा का क्षीर्ण अथवा निर्बल हो या चन्द्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों ।
■ यदि लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
■ यदि पाप ग्रह का शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हों।
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