क्यों होता है विवाह में विलंब या विच्छेद
वैवाहिक सुख में क्या है ग्रहों की भूमिका/क्यों होता है विवाह में विलंब या विच्छेद1. यदि कुंडली में शनि व सूर्य पारस्परिक दृष्टि संबंध रखते हों व लग्न या सप्तम भाव प्रभावित हो रहा हो तो विवाह की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।
2. लग्न (प्रथम) भाव में, सप्तम भाव में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक न हो और चंद्रमा कमजोर हो तो विवाह में बाधाएं आती हैं।
3. सप्तम भाव में शनि और गुरु हो तो शादी देर होती है।
4. चंद्र से सप्तम में गुरु हो तो शादी देर से होती है।
5. चंद्र की राशि कर्क से गुरु सप्तम हो तो विवाह में बाधाएं आती हैं।
6. सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो, कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो तो विवाह में देरी होती है।
7. सूर्य, मंगल या बुध लग्न या लग्न के स्वामी पर दृष्टि डालते हों और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो व्यक्ति में आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
8. चौथा भाव या लग्न भाव में मंगल हो और सप्तम भाव में शनि हो तो व्यक्ति की रुचि शादी में नहीं होती है।
9. महिला की कुंडली में सप्तमेश या सप्तम भाव शनि से पीड़ित हो तो विवाह देर से होता है।
10. राहु की दशा में शादी हो या राहु सप्तम भाव को पीड़ित कर रहा हो तो शादी होकर टूट सकती है।
11. शनि सप्तम भाव में स्थित हो, भले ही स्वगृही हो, परंतु सूर्य से या मंगल से सप्तमस्थ होने के कारण विवाह में बाधा आती है।
12. यदि किसी कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल, शनि व शुक्र के साथ युति कर रहा हो तो कन्या का विवाह बड़ी उम्र में होता है।
13. यदि कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल, सूर्य व बुध हो और गुरु द्वादश भाव में हो तो कन्या का विवाह देरी से होता है।
14.कुंडली के सप्तम भाव में बुध और शुक्र दोनों हो तो विवाह की बातें होती रहती हैं, लेकिन विवाह काफी समय के बाद होता है।
कुछ खास बातें :
शनि-
- वैवाहिक जीवन के टूटने में सबसे बड़ी भूमिका शनि निभाता है. अगर शनि का सम्बन्ध विवाह भाव या इसके ग्रह से हो, तो विवाह भंग होता ही है. शनि अगर विवाह भंग करने का कारण हो तो इसके पीछे घर के लोग जिम्मेदार माने जाते हैं.
मंगल-
- वैवाहिक जीवन में विच्छेदन के अलावा अगर मामला हिंसा तक पहुंच गया हो तो इसके पीछे मंगल होता है. मंगल जब वैवाहिक जीवन में समस्या देता है. तो मामला मार-पीट तक पहुंच जाता है. इसमें वैवाहिक सम्बन्ध, विवाह के बाद बहुत ही जल्दी भंग हो जाता है. इसमें मामला कोर्ट कचहरी तक भी तुरंत पहुचता है.
राहु-केतु-
- विवाह के मामलों में शक और वहम जैसी चीजों को पैदा करना राहु-केतु का काम है. अगर राहु-केतु विवाह संबंधों में बाधा देते हैं तो बेवजह शक पैदा होता है. और कभी-कभी जीवनसाथी दूसरे को छोड़कर दूर चला जाता है. इसमें वैवाहिक जीवन रहने के बावजूद, जीवन भर अलगाव झेलना पड़ता है.
सूर्य-
- विवाह के मामलों में सूर्य का दुष्प्रभाव हो तो जीवनसाथी के करियर में बाधाएं आती हैं या कभी-कभी अहंकार के कारण आपसी सम्बन्ध खराब हो जाते हैं. यहां पर बहुत सोच समझकर शांतिपूर्ण तरीके से विवाह भंग होता है. हालांकि शादी के काफी समय बीत जाने के बाद यहां विवाह विच्छेद होता है.
बृहस्पति-
- कुंडली में अगर बृहस्पति अच्छा हो तो विवाह की बाधाओं को समाप्त करता है. अगर सप्तम भाव के स्वामी पर इसकी दृष्टि हो तो विवाह की बाधा को समाप्त करता है. लग्न में बैठा हुआ बृहस्पति सर्वाधिक शक्तिशाली होता है. परन्तु अगर बृहस्पति सप्तम भाव में हो तो कभी-कभी व्यक्ति अविवाहित भी रहता है.
शुक्र-
- बिना शुक्र के वैवाहिक या पारिवारिक सुख मिल ही नहीं सकता. अगर शुक्र कमजोर हो तो वैवाहिक जीवन खराब होता है. अगर शुक्र पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, या शुक्र खराब हो तो विवाह सम्बन्ध टूट जाता है. अगर जरा भी अच्छा हो तो व्यक्ति को जीवन में विवाह का सुख मिल ही जाता है.
इसके अलावा भी कई अन्य परिस्थितियों में विवाह सम्बन्धी परेशानियां सम्भव है, लेकिन वैदिक ज्योतिष से बाहर ऐसा कोई विषय नहीं जिसका उपाय संभव न हो। इसलिए किसी भी परेशानी के हल के लिए सही समय पर ज्योतिषीय परामर्श लाभदायक हो सकता है। अतः सही समय पर विद्वत ज्योतिषाचार्यो से सम्पर्क कर उनके बताए अनुसार उपाय करें
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