जन्म कुंडली मे 12 भावों से रोग विचार
ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियां और नवग्रह अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।जन्मकुण्डली में छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारणों पर प्रकाश डालते हैं। बीमारी पर उपचारार्थ व्यय भी करना होता है, उसका विचार जन्मकुण्डली के द्वादश भाव से किया जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। इन बीमारियों का कुण्डली से अध्ययन करके पूर्वानुमान लगाकर अनुकूल रत्न धारण करने, ग्रहशांति कराने एवं मंत्र आदि का जाप करने से बचा जा सकता है।
जन्म कुंडली मे 12 भावों से रोग विचार
जन्म कुंडली के 12 भावों से रोगों की पहचान की जाती और घटनाओं का आंकलन भी किया जाता है. जन्म कुंडली के पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक शरीर के विभिन्न अंगों को देखा जाता है और जिस अंग में पीड़ा होती है तो उस अंग से संबंधित भाव अथवा भावेश की भूमिका रोग देने में सक्षम रहती है अथवा उस भाव से संबंधित दशा में योग बनते हैं. जन्म कुंडली के किस भाव से कौन से रोग का विचार किया जाता है, उन सभी बातों की चर्चा इस लेख के माध्यम से की जाएगी.
प्रथम भाव – 1st House In
जन्म कुंडली के पहले भाव से सिर दर्द, मानसिक रोग, नजला तथा दिमागी कमजोरी का विचार किया जाता है. इस भाव से व्यक्ति के समस्त स्वास्थ्य का पता लगता है कि वह मानसिक अथवा शारीरिक रुप से स्वस्थ रहेगा अथवा नहीं.
दूसरा भाव – 2nd House
जन्म कुंडली के दूसरे भाव को मारक भाव भी कहा जाता है. इस भाव से नेत्र रोग, कानों के रोग, मुँह के रोग, नासा रोग, दाँतों के रोग, गले की खराबी आदि का विश्लेषण किया जाता है.
तीसरा भाव – 3rd House
जन्म कुंडली के तीसरे भाव से कण्ठ की खराबी, गण्डमाला, श्वास, खाँसी, दमा, फेफड़े के रोग, हाथ में होने वाले विकार जैसे लूलापन आदि देखा जाता है.
चौथा भाव – 4th House
इस भाव से छाती, हृदय एवं पसलियों के रोगों का विचार किया जाता है. मानसिक विकारों अथवा पागलपन आदि का विचार भी इस भाव से किया जाता है.
पांचवाँ भाव – 5th House
इस भाव से मन्दाग्नि, अरुचि, पित्त रोग, जिगर, तिल्ली तथा गुर्दे के रोगों का विचार किया जाता है. इस भाव से नाभि से ऊपपर का पेट देखा जाता है तो पेट से जुड़े रोग भी यहाँ से देखे जाते हैं.
छठा भाव – 6th House
इस भाव से नाभि के नीचे का हिस्सा देखा जाता है तो इस स्थान से जुड़े रोगों को इस भाव से देखा जाएगा. कमर को भी इस भाव से देखा जाता है तो कमर से जुड़े रोग भी यहाँ से देखेगें. इस भाव से किडनी से संबंधित रोग भी देखे जाते है. अपेन्डिक्स, आँतों की बीमारी, हर्निया आदि का विचार किया जाता है.
सातवाँ भाव – 7th House
इस भाव से प्रमेह, मधुमेह, प्रदर, उपदंश, पथरी, (मतान्तर से मधुमेह तथा पथरी को छठे भाव से भी देखा जाता है) गर्भाशय के रोग, बस्ति में होने वाले रोगों का विचार किया जाता है.
आठवाँ भाव – 8th House
जन्म कुंडली के आठवें भाव को गुप्त स्थान भी माना जाता है इसलिए इस भाव से गुप्त रोग अर्थात जनेन्द्रिय से जुड़े रोग हो सकते हैं. वीर्य-विकार, अर्श, भगंदर, उपदंश, संसर्गजन्य रोग, वृषण रोग तथा मूत्रकृच्छ का विचार किया जाता है.
नवम भाव – 9th House
कुंडली के नवम भाव से स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोग देखे जाते हैं. यकृत दोष, रक्त विकार, वायु विकार, कूल्हे का दर्द तथा मज्जा रोगों का विचार किया जाता है.
दशम भाव – 10th House
जन्म कुंडली के दशम भाव से गठिया, कम्पवात, चर्म रोग, घुटने का दर्द तथा अन्य वायु विकारों का आंकलन किया जाता है.
एकादश भाव – 11th House
कुंडली के एकादश भाव से पैर में चोट, पैर की हड्डी टूटना, पिंडलियों में दर्द, शीत विकार तथा रक्त विकार देखे जाते हैं.
बारहवाँ भाव – 12th House
कुंडली के इस भाव से असहिष्णुता अर्थात एलर्जी, कमजोरी, नेत्र विकार, पोलियो, शरीर में रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता की कमी का विचार किया जाता है.
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