Monday, August 12, 2019

श्राद्ध या पिन्डदान

श्राद्ध या पिन्डदान


पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है.

श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिन्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिन्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है दझिण भारतीय पिन्डदान को श्राद्ध कहते है

श्राद्ध के प्रकार

शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं -

1.    नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं.
2.    नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है.
3.    काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है.
4.    वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं.
5.     पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं. ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं.
6.    सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है.
7.    गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठीश्राद्ध कहते हैं.
8.    शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं.
9.    कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं.
10.    दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें दैविक श्राद्ध कहते हैं.
11.    यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ कहते हैं.
12.    पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं.
13.    श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं.

कब किया जाता है श्राद्ध?

श्राद्ध की महत्ता को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना भी आवश्यक है की श्राद्ध कब किया जाता है. इस संबंध में शास्त्रों में श्राद्ध किये जाने के निम्नलिखित अवसर बताये गए हैं -
1.   भाद्रपद कृष्ण पक्ष  के पितृपक्ष के 16 दिन.
2.   वर्ष की 12 अमावास्याएं तथा अधिक मास की अमावस्या.
3.   वर्ष की 12 संक्रांतियां.
4.   वर्ष में 4 युगादी तिथियाँ.
5.   वर्ष में 14 मन्वादी तिथियाँ.
6.   वर्ष में 12 वैध्रति योग
7.   वर्ष में 12 व्यतिपात योग.
8.   पांच अष्टका.
9.   पांच अन्वष्टका
10.   पांच पूर्वेघु.
11.   तीन नक्षत्र: रोहिणी, आर्द्रा, मघा.
12.   एक करण : विष्टि.
13.   दो तिथियाँ : अष्टमी और सप्तमी.
14.   ग्रहण : सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण.
15.   मृत्यु या क्षय तिथि.

क्यों आवश्यक है श्राद्ध?

श्राद्धकर्म क्यों आवश्यक है, इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं -
1.    श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है.
2.    श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है.
3.    महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है.
4.    मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.
5.   अत्रिसंहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है.
6.    यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है.
7.    ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध न करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है.

श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें 
पितृ कार्य कारतीक या चैत्र मास मे भी कीयाजा सकता है

**श्राद्ध के अधिकारी**
    "पितृ पक्ष को भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण माना गया है ,प्रत्येक वर्ष आश्वनि मास के कृष्णपक्ष प्रतिपदा से अमावश्या तक के 15 दिनों को पितृ पक्ष के रुप में मनाया जाता है यह पखवाड़ा सिर्फ पितरो  अर्थात पूर्वजो के पूजन और तर्पण के लिए सुनिश्चित है !सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि पित्र पक्ष में पूर्वजो के स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है!
                       
कौन कौन है श्राद्ध -तर्पण के अधिकारी 
 पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र,व दौहित्र(पुत्री का पुत्र),पत्नी,भाई, भतीजा,पिता,माता,पुत्र वधु,बहिन,भांजा सपिंड,अधिकारी है जिनमे पूर्व पूर्व के न रहने पर क्रमश बाद के लोगो का श्राद करने का अधिकार है !
पिता का श्राद्ध करने का अधिकार मुख्य रूप से पुत्र को ही है पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है पत्नी न होने पर सागा भाई उसके अभाव में सपिंडों को श्राद्ध करने चाहिए !एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है !यदि सभी भाइयों का संयुक्त परिवार हो तो वार्षिक श्राद्ध भी बड़ा पुत्र के द्वारा एक ही जगह सम्पन्न हो सकता है !यदि सभी पुत्र अलग अलग रहते हो तो वह भी अपने अपने घरों में श्राद्ध का कार्य कर सकते है !!
पुत्री का पति यानी दामाद एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं !पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते है !पुत्र प्रपौत्र पौत्र के अभाव में विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है !पत्नी का श्राद्ध व्यक्ति तभी कर सकता है जब कोई पुत्र न हो ,पुत्र पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है !गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी माना गया है !
विष्णु पुराणानुसार पुत्र पौत्र प्रपौत्र भाई भतीजा अथवा अपनी सपिंड संतति में उत्पन्न हुआ पुरुष ही श्रद्धादि क्रिया करने का अधिकारी होता है !यदि इन सबका अभाव हो तो समनोदक की संतति अथवा मातृ पक्ष के सपिंड अथवा समनोदक को इसका अधिकार है !यदि मातृ कुल और पित्र कुल दोनों नष्ट हो जाने पर स्त्री ही इस क्रिया को करे अथवा यदि स्त्री भी न हो तो साथियों में कोई करे या बांधव हीन मृतक के धन से राजा उसके सम्पूर्ण प्रेत कर्म कराये !!तर्पण तथा पिण्ड दान केवल पिता के लिए ही नही वल्कि समस्त पूर्वजो एवं मृत परिजनों के लिए भी किया जाता है !समस्त कुल परिबार तथा ऐसे लोगो को भी जल दिया जाता है जिन्हें इस भूतल पर जल देने बाला कोई नही है !!

     **श्राद्ध के भेद ***

"शास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद है  किंतु यहां पर उन्ही श्राद्धों का उल्लेख है जो अत्यंत आवश्यक है
मत्स्य पुराण के अनुसार 3 प्रकार के श्राद्ध है नित्य,नैमित्तिक,और काम्य
यज्ञ स्मृति मे 5 प्रकार के श्राद्ध है नित्य,नैमित्तिक,काम्य,वृद्धि,और पार्वण !
प्रति दिन किये जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते है इसमें विश्वदेव नही होते तथा असक्तावस्था में केवल जल प्रदान से भी इस श्राद्ध की पूर्ति हो जाती है !
तथा एकोदिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते है !इसमें भी विश्वदेव नही होते !
किसी कामना की पूर्ति के निमित्त किये जाने बाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध कहते है !
वृद्धि कॉल में पुत्र जन्म तथा विवाहादि मांगलिक कार्य में जो श्राद्ध किया जाता है उसे वृद्धि श्राद्ध (नान्दी श्राद्ध)कहते है
पितृ पक्ष आ।अमावश्या अथवा पर्व तिथि आदि पर जो सदैव (विश्वदेव सहित) श्राद्ध किया जाता है उसे पावर्ण श्राद्ध कहते है !
     
विश्वामित्र स्मृति तथा भविष्य पुराण में ,"नित्य,नैमित्तिक, काम्य,वृद्धि,पावर्ण ,सपिण्डन, गोष्ठी ,शुध्यर्थ,कर्माग ,दैविक,यात्रार्थ ,तथा पुष्ट्यार्थ ये 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए है !प्रायः सभी श्राद्धों का अंतर्भाव उपर्युक्त 5 श्राद्धों में ही हो जाता है !!
जिस श्राद्ध में प्रेत पिण्ड का पित्र पिण्डों में सम्मेलन किया जाय उसे सपिण्डन श्राद्ध कहते है !समूह में जो श्राद्ध किया जाता है उसे गोष्ठी कहते है !शुद्धि के निमित्त जिस श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है उसे शुध्यर्थ कहते है!गर्भाधान सीमन्तोन्नयन तथा पुंसवन आदि देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे दैविक श्राद्ध कहते है !तीर्थ के उद्देश्य से देशांतर जाने के समय घृत द्वारा जो श्राद्ध किया जाता है उसे यात्रार्थ श्राद्ध कहते है !शारीरिक अथवा उन्नति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है वह पुष्ट्यार्थ श्राद्ध कहलाता है !
उपर्युक्त सभी प्रकार के श्राद्ध स्रौत और स्मार्त भेद से 32 प्रकार के होते हैं !!

पिण्ड पितृ याग को श्रौत श्राद्ध कहते है और एकोदिष्ट ,पार्वण तथा तीर्थ से लेकर मरण तक के श्राद्ध को स्मार्त श्राद्ध कहते है !
"श्राद्ध के "96"अवसर है !
12 महीनों की 12 अमवश्याएँ
4 युगादि तिथियां युग आरम्भ होने की
मनुओं के आरंभ की 14 मन्वादि तिथियां
12 संक्रांतियां
12 वैधृति योग ,12 व्यतीपात योग 15 महालया श्राद्ध पित्र पक्ष ,5 अष्टका,5 अनवाष्टका तथा 5 पूर्वेधु ,
ये 96 अवसर है !! ॐ पित्राय नमः !!

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