ओम् शान्ति ब्रह्माकुमारी का सच
ब्रह्माकुमारी की असलियत
====================='ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा "प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय'" तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर 'ओम् शान्ति' लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप विश्वविद्यालय नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है।
स्थापना
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इस संस्था का संस्थापक लेखराज खूबचंद कृपलानी था। इसने अपने जन्म-स्थान सिन्ध (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन 1938 में कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान पर चढ़ गया। इस दुश्चरित्रता व धूर्तता का बादशाह लेखराज अप्रैल सन् 1950 में कराची से 150 सुंदर नवयुवतियों को साथ लाकर माउण्ट आबू (राजस्थान) की पहाड़ी पर रहने लगा और यहीं अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा।
सिन्ध में लेखराज की चलने वाली ओम मंडली की जगह माउण्ट आबू में *प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है।
संचालन
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लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय लंदन (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एन.जी.ओ. बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के न्युयार्क शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इस संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है।
कार्य व उद्देश्य
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ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। । ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल
प्रचार-प्रसार
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इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें ब्रह्माकुमार कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमारी' कहते हैं ।
ईसाईयत का नया रुप- ब्रह्माकुमारी
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आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एेंथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है।
ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है ।
''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमि पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''
सालों से देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं। ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।
ब्रह्माकुमारी द्वारा हिन्दुत्व को मिटाने का खुला षड्यंत्र
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(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजस्थान से प्रकाशित भारत के त्यौहार' भाग -1, भाग-2 में वर्णित)
शिवरात्रि प्रजापिता ब्रह्मा लेखराज ने कल्प के अंत मे अवतरित होकर तमोगुण, दुःख अशान्ति को हरा था। उसी की याद में शिवरात्रि मनायी जाती है।
होली कलियुग के अन्त में व सतयुग के शुरुआत में परमपिता ब्रह्मा लेखराज द्वारा सुख शान्ति के दिन शुरु किये गये थे। उसी की याद में होली मनाई जाती है। लकड़ी, गोबर के कंड़े जलाने से क्या होगा? देहातों में रोज जलते हैं। बहुत से शिष्ट लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति घृणा पैदा हो गई है। इनके मतानुसार शास्त्रों में झूठी, मनगढन्त कल्पनाएं हैं।
रक्षाबंधन ब्रह्माकुमारी बहनें लेखराज के ज्ञान द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर भाई को राखी बांधती है तथा बहन पवित्रत्रा के संकल्प की रक्षा करती है। रक्षाबंधन वास्तव में नारी के द्वारा नर की रक्षा का प्रतीक है, न कि नर द्वारा नारी की रक्षा का। इनके मतानुसार हिन्दू शास्त्रों में रक्षा बंधन विषयक उलटी, गड़बड़ कल्पनायें जड़कर रखी है।
दीपावली कलयुग के अन्त में परमपिता ब्रह्मा लेखराज ने पूर्व की भांति दुबारा इस धरा पर आकर सर्व आत्माओं की ज्योत जगाने के लिए अवतरित हुए हैं। लोग अपनी ज्योत जलाने की याद में दीपावली मनाते हैं। इनके मतानुसार शास्त्रकारों ने झूठी कल्पनाएं फैला रखी है। इसी कारण लोग मिट्टी का दीप जला कर खेल खेलते हैं।
नवरात्रि लेखराज ने ब्रह्माकुमारियों को ज्ञान देकर दिव्य गुण रुपी शक्ति से सुसज्जित किया है। अन्तर्मुखता, सहनशीलता, आदि दिव्य शक्तियाँ ही इनकी अष्ट भुजायें हैं। इन्हीं शक्तियों के कारण ये आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति बन गई हैं। ब्रह्माकुमारियां दुर्गा आदि शक्ति बनकर भारत के नर-नारियों को जगा रही हैं। इसी के याद में *नवरात्रि* मनाई जाती है। लोगों को ज्ञान देने की याद्गार में कलश स्थापना, जगाये जाने की स्मृति में *जागरण* करते है। लोग इन कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण कन्या-पूजन करते हैं।
दशहरा द्वापर युग (1250 वर्ष पूर्व) में आत्मा-रुपी सीता कंचन-मृग के आकर्षण में पड़कर माया रुपी रावण के चंगुल में फंसती है। उस समय से लेकर अब तक सारी सृष्टि शोक-वाटिका बन जाती है। ऐसे समय में परमात्मा लेखराज आकर ज्ञान के शस्त्र से माया रुपी रावण पर विजय दिलाते हैं तब सतयुगी राज्य की पुनर्स्थापना होती है। 5000 साल पहले भी परमात्मा लेखराज ने ऐसा किया था, अभी भी कर रहे हैं। मनुष्य रुपी राम ने भी इसी दिन दस विकार रुपी रावण पर विजय पायी थी तभी से दशहरा मनाते है। शास्त्रों में वर्णन काल्पनिक है। राम, रावण, बंदरो की सेना इत्यादि सब गप-शप व उपन्यास है।
ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड
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माउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा। अन्ततोगत्वा 18 जनवरी 1969 को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया। लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्यु पर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे 'ज्ञान मुरली' कहा जाता है। ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है। लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है। उसे टैप रिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था। लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं। अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं।
ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को ब्रह्मा बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी जसोदा को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।
ब्रह्माकुमारी के संस्थापक लेखराज के काले कारनामे
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हैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान 15 दिसम्बर 1876 में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में हीरे का व्यापार करता रहा। उसने दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी। हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा। सन् 1932 से इसने खुद के समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा ओम मंडली' नामक संगठन बनाया। सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिये। इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में शिवजी प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं।
मायावी लेखराज की पापलीला
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लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने आश्रम नाम दे दिया, जिससे वहाँ महिलाआें का आना-जाना शुरु हो गया। लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया। महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब सिन्धी समाज भड़क गया। ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा। राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी।
18 जनवरी सन् 1939 मेें 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में ओम मंडली के खिलाफ एक याचिका दायर की। महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है। अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया।
लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही
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सिन्ध में ओम मंडली ने भयंकर पाखण्ड किया। लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा। लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ। उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध भाई बंध मंडली के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया। ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचाया गया। सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था।
सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना
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मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक
कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया। ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया।
लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया। वहाँ ओम निवास नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए। ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से माउण्ट आबू भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया। लेखराज की जवान लड़की 'पुट्टू एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक बोधराज' को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया।माउंट आबू में बहुत बड़े बड़े हॉल बनाये हुये है।जो कोई भी गणमान्य हस्ती आबू में आती है ।उसको अपने केंद्र ले जाते हैं अगर कुछ भी उसने इनकी बड़ाई कर दी तो उसकी वीडियो बना कर रख लेते हैं सभी को दिखा कर प्रभावित करते है।हर व्यवस्था इतने वर्षों में इन्होंने बहुत अच्छी बना दी है।भोले भाले लोग प्रभावित हो जाते हैं।जबकि ये एक बार आर्य समाज से ईमानदारी से शास्त्रार्थ कर ले तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये ।
लेखराज के बाद दूसरा शिव बना वीरेन्द्र देव दीक्षित
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वीरेन्द्र देव दीक्षित ब्रह्माकुमारी संस्था माउण्ट आबू से लेखराज का ज्ञान सीखा और अहमदाबाद में रहकर इस पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने लगा। यहाँ बहुत समय बाद वीरेन्द्र खुद को शंकर सिद्ध करने लगा। इसके लिये वह खुद की मुरली (जिसे वह नगाड़ा कहता था) सुनाने लगा। इसके तमाम अधार्मिक कुकृत्यों के लिये अहमदाबाद की जनता ने इसे खूब पीटा। अहमदाबाद से भाग कर वह पुष्पा माता के पास दिल्ली चला गया। इनके घर एक गरीब चपरासी की 9 साल की लड़की कमला दीक्षित रहती थी। वीरेन्द्र कमला के साथ बलात्कार करता रहा और उसे रोज कहता कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। पुष्पा माता का घर छोड़ दिल्ली में ही प्रेमकान्ता के घर चला गया। यहाँ प्रेमकान्ता का भी बलात्कार करता रहा और इसे भी कहा कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। वीरेन्द्र लोगों को कहता था कि मैं कामीकांता*(कामी देवता) हूँ और मेरे पास 8 पटरानियाँ हैं। सन् 1973 से सन् 1976 तक तथाकथित शिव बनकर इन लड़कियों को *पटरानी* बनाकर सहवास करता रहा।
सन् 1976 में वीरेन्द्र ने एडवांस पार्टी नामक संगठन खड़ा किया तथा 'आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविघालय' चालू किया। सन् 1976 में उत्तर प्रदेश के कम्पिल गाँव (जिला फर्रुखाबाद) में एक आश्रम बनाया। वीरेन्द्र लोगों को कहने लगा कि लेखराज मेरे शरीर में आ गये हैं और मैं कृष्ण की आत्मा हूँ, इसलिए मुझे 16108 गोपियों की जरुरत है। सैकड़ों हजारो लोग इससे जुड़ गए।आश्रम में आती जवान औरतों के साथ बलात्कार करना चालू किया।
लेखराज की तरह वीरेन्द्र ने भी घोर अनैतिकता व पाखण्ड फैलाया, जिसके लिये फर्रुखाबाद की युवा शक्ति, मिसाइल फोर्स, रेड आर्मी आदि की महिला संगठनों ने इन कुकृत्यों के खिलाफ आन्दोलन किया। सन् 1998 में बलात्कार के केस में वीरेन्द्र व उसके साथियों को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसी दौरान आयकर वालों ने इसके आश्रम में छापा मारकर 5 करोड़ रुपये जब्त किये।ये वीरेन्द्र देव दीक्षित के विजय विहार रोहिणी दिल्ली के आश्रम पर दिसम्बर 2017 में छापा मारकर गाँजा अफीम कण्डोम आदि के साथ साथ रोती बिलखती 40 युवतियों को बरामद किया गया था। इनके साथ वह दुराचार करता था। छापे के पहल ही वह रफूचक्कर हो गया और अभी भी पुलिस को उसकी तलाश है।
यू ट्यूब पर आप वीरेन्द्र देव दीक्षित लिख देवें तो 2017 दिसंबर का पूरा कारनामा सामने आ जायेगा।
ब्रह्माकुमारी के पाखण्डी मतों का खण्डन
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(1) ब्रह्माकुमारी मत :----मैं इस कलियुगी सृष्टि रुपी वेश्यालय से निकालकर सतयुगी, पावन सृष्टि रुप शिवालय में ले जाने के लिये आया हूँ । (सा.पा.पेज 170)
खण्डन :---लेखराज अगर इस सृष्टि को नरक व वेश्यालय मानता है तो इस वेश्यालय में रहने वाली सभी ब्रह्माकुमारियां भी साक्षात् वेश्यायें होनी चाहिए। क्या यह सत्य है?
(2) ब्रह्माकुमारी मत ---- रामायण तो एक नॉवेल (उपन्यास) है, जिसमें 101 प्रतिशत मनोमय गप-शप डाल दी गई है। मुरली सं. 65 में लेखराज कहता है कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है। (घोर कलह -युग विनाश, पेज सं.15)
खण्डन :---भूगर्भशास्त्रियों को अयोध्या, श्रीलंका आदि की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से तथा नासा का अन्वेषण समुद्र में श्रीरामसेतु का होना आदि रामायण को प्रमाणित करता है। पूरा हिन्दू इतिहास रामायण के प्रमाण से भरा हुआ है। इसे उपन्यास व गप-शप कहना और सनातन-धर्म पर अनर्गल बातें कहना ही वास्तव में गप्पाष्टक है, कमीनापन है।
(3) ब्रह्माकुमारी मत ::---जप, तप, तीर्थ, दान व शास्त्र अध्ययन इत्यादि से भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड और क्रियायों से किसी की सद्गति नहीं हो सकती। (सतयुग में स्वर्ग कैसे बने? पे. सं. 29)
खण्डन :----यह बातें तथ्यों से परे, नासमझी से पूर्ण हैं। जप से संस्कार शुद्ध होते हैं। तप से मन के दोष मिटते हैं )। जहाँ संत रहते हैं उन तीर्थों में जाने से, उनके सत्संग से विचारों में पवित्रता व ज्ञान मिलता है। दान व परोपकार से पुण्य बढ़ता है। शुभ कर्म का शुभ फल मिलता है। शास्त्र अध्ययन से ज्ञान बढ़ता है, सन्मार्ग दर्शन मिलता है, विवेक, बुद्धि जागृत होती है। कर्मकाण्ड से मानव की प्रवृत्ति धर्म व परोपकार में लगी रहती है और इन सब बातों से जीवों का तथा स्वयं मानव का कल्याण होता है। ईन शुभ कर्मों की निंदा करना लेखराज एवं उसके सर्मथकों की मूर्खता प्रकट करता है। जो वेदों और शास्त्रों का विरोध करता है वह मनुष्य रुप में साक्षात असुर है।
(4) ब्रह्माकुमारी मत :--- श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापरयुग में नहीं हुए, बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग में हुए थे। श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ.सं.140,143)
खण्डन ::---भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता के अध्याय 10 के 31 वें श्लोक में कहा 'पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्' अर्थात् मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने श्रीराम का उदाहरण देकर श्रीराम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है, दृष्टान्त सदैव अपने से पूर्व हुई अथवा वर्तमान बात का ही दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि इस मत का संस्थापक लेखराज पूरा गप्पी, शेखचिल्ली था जिसने पूरी श्रीमदभगवद्गीता भी नहीं पढ़ी थी।
(5) ब्रह्माकुमारी मत ::----गीता ज्ञान परमपिता परमात्मा (लेखराज के मुख से) शिव ने दिया था। (सा.पा.पेज सं.144)
खण्डन ::-- गीता को लेखराज द्वारा उत्पन्न बताना यह किसी तर्क व प्रमाण पर सिद्ध नहीं होता। इतिहास साक्षी है कि 5151 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था।
(6) ब्रह्माकुमारी मत :----आत्मा रूपी ऐक्टर तो वही हैं, कोई नई आत्मायें तो बनती नहीं हैं, तो हर एक आत्मा ने जो इस कल्प में अपना पार्ट बजाया है अगले कल्प में भी वह वैसे ही बजायेगी, क्योंकि सभी आत्माओं का अपना जन्म-जन्मान्तर का पार्ट स्वयं आत्मा में ही भरा हुआ है । जैसे टेप रिकार्डर में अथवा ग्रामोफोन रिकार्डर में कोई नाटक या गीत भरा होता है, वैसे ही इस छोटी-सी ज्योति-बिन्दु रुप आत्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट भरा हुआ है। यह कैसी रहस्य-युक्त बात है। छोटी-सी आत्मा में मिनट-मिनट का अनेक जन्मों का पार्ट भरा होना, यही तो कुदरत है। यह पार्ट हर 5000 वर्ष (एक कल्प) के बाद पुनरावृत्त होता है, क्योंकि हरेक युग की आयु बराबर है अर्थात् 1250 वर्ष है। (सा.पा., पृ.सं. 86)
खण्डन ::--- एक कल्प में एक हजार चतुर्युग होते हैं, इन एक हजार चतुर्युगों में चौदह मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युग होते हैं, प्रत्येक चतुर्युगी में चार युग (कलियुग 4,32,000 वर्ष, द्वापर 8,64,000 वर्ष, त्रेता 12,96,000 वर्ष एवं सतयुग 17,28,000 वर्ष के) होते हैं।
हर पाँच हजार साल में कर्मो की हूबहू पुनरावृत्ति होती है, इसको सिद्ध करने के लिए ब्रह्माकुमारी के पास कोई तर्क या कोई भी शास्त्रीय प्रमाण नहीं है, सिर्फ और सिर्फ इनके पास लेखराज की गप्पाष्टक है जिसे मूर्ख व कुन्द बुद्धि वाले लोग ही सत्य मानते हैं। मानों यदि व्यक्ति की ज्यों की त्यों पुनरावृत्ति हो तो वह कर्म-बंधन व जन्म-मरण से कैसे मुक्त होगा?
(7) ब्रह्माकुमारी मत :---परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है, वह सर्वव्यापक नहीं है।...भला बताइये कि अगर परमात्मा सर्वव्यापक है तो शरीर में से आत्मा निकल जाने पर परमात्मा तो रहता ही है तब उस शरीर में चेतना क्यों नहीं प्रतीत होती? मोहताज व्यक्ति, गधे, कुत्ते आदि में परमात्मा को व्यापक मानना तो परमात्मा की निन्दा करने के तुल्य है। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ. सं. 44, 55, 68)
खण्डन :----ईश्वर सर्वव्यापक है क्योंकि जोे एक देश में रहता है वह सर्वान्तर्यामी, सर्वर्ज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का (होना) असम्भव है।
प्राण-अपान की जो कला है जिसके आश्रय में शरीर होता है। मरते समय शरीर के सब स्थानों को प्राण त्याग जाते हैं और मूर्छा से जड़ता आ जाती है। महाभूत, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण, अविद्या, काम, कर्म के संघातरुप पुर्यष्टक शरीर को त्यागकर निर्वाण हो जाता है। शरीर अखंडित पड़ा रहता है, जिसमें सामान्य रूप से चेतन परमात्मा स्थित रहता है। कुन्द बुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए कि एक बल्ब बुझा देने से पूरा पॉवर हाऊस बंद नहीं हो जाता।
लेखराज व उसके सर्मथकों ने सनातन धर्म की सनातन सत्यता पर आक्षेप करने के पूर्व विधिवत अध्ययन, श्रवण, मनन व निदिध्यासन कर लिया होता तो ऐसी धूर्तता व पाखण्ड भरी बातेें नहीं करते ।
वैदिक संस्कृति विश्व मानव संस्कृति
विश्व की प्राचीनतम आर्य संस्कृति के अवशेष किसी न किसी रूप में मिले हैं। वैदिक काल से विश्व के प्रत्येक कोने में वैदिक आर्यों की पहुँच हुई और समस्त प्रकार का ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता उन्होंने ही विश्व को प्रदान की थी। नवीनतम खोज के अनुसार अमेरिका में रिचमण्ड से 70 किलोमीटर दूर केप्सहिल पर जो अवशेष पुरातत्व अन्वेषकों ने खोजे हैं, वह 17 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के हैं और उस समय विश्व में केवल आर्य संस्कृति ही विकसित थी तथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जर्मनी आदि के विश्वविद्यालय में चरकॉलोजी, इंडोलोजी आदि के नाम से वेदों की गुह्यतम विद्याओं पर अन्वेषण हो रहे हैं। विश्व के कोने-कोने में सनातन संस्कृति के अवशेष, प्रमाण मिले है।
ब्रह्माकुमारों के काले-कारनामे
बलात्कार व जबरन गर्भपात
छतरपुर, जिला भोपाल (म.प्र.) की एक 26 वर्षीय दलित महिला ने ब्रह्माकुमारीयों का अड्डा सिंगरौली और भोपाल में ब्रह्माकुमारों द्वारा बलात्कार करने तथा गर्भ ठहर जाने पर जबरन गर्भपात करा देने का आरोप लगाया। महिला ने बताया 17 साल की उम्र में तलाक होने के बाद 2001 में वह शांति पाने के लिए छतरपुर स्थित ब्रह्माकुमारी अड्डे में आयी जहां से उसे भोपाल भेज दिया गया। एस.पी. को लिखित शिकायती आवेदन में महिला ने कहा कि सिंगरौली और भोपाल के ब्रह्माकुमारीयों के अलग-अलग अड्डो में युवकों द्वारा बलात्कार किया गया।
(देशबन्धु, 15 दिसम्बर 2013)
सेक्स व व्यभिचार का अड्डा बना ब्रह्माकुमारी ध्यान-योग केन्द्र
पुलिस के मुताबिक 'ब्रह्माकुमारी ध्यान योग केन्द्र' ट्राँस यमुना कॉलोनी आगरा, व्यभिचार एवं अय्याशी का अड्डा है, न कि ध्यान केंद्र। केन्द्र पर रहने वाले हरि भाई से सेविका भारती के अवैध संबंध ऐसे थे। पूरा केंद्र ही व्यभिचार का अड्डा बना हुआ था। भारती चाहती थी कि हरिभाई उससे शादी कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इस पर भारती ने हरिभाई की पोल खोलने की धमकी दी। जब भारती को यह पता चला कि हरिभाई उसे सिर्फ मौजमस्ती का साधन समझता है तो वह काफी उत्तेजित हो उठी थी!!
सम्भार
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हिन्दी ब्रह्मकुमारी का सच : आचार्य सोमदेव जी
FEBRUARY 2, 2015 RISHWA ARYA
जिज्ञासा– मैं परोपकारी का लगभग ३० वर्षों से नियमित पाठक हूँ। आपसे मैं आशा करता हूँ कि तथाकथित असामाजिक तत्वों व संगठनों द्वारा आर्यसमाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा पर किए जा रहे हमलों व षड्यन्त्रों का आप जवाब ही नहीं देते, उन्हें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देने में भी सक्षम हैं। ऐसी मेरी मान्यता है। ऐसे ही एक पत्र मेरे (आर्यसमाज सोजत) पते पर दुबारा डाक से प्राप्त हुआ है। इस पत्र की फोटो प्रति मैं आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह पत्र ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ा किसी व्यक्ति का है, मैंने उससे फोन पर बात भी की है तथा उसे कठोर शब्दों में आमने-सामने बैठकर चर्चा के लिए चुनौती दी है। परन्तु फोन पर उसने कोई जवाब नहीं दिया।
आपकी जानकारी हेतु पत्र की फोटो प्रति पत्र के साथ संलग्न है। पत्र लिखने वाले ने नीचे अपना नाम के साथ चलभाष संख्या भी लिखी है। कृपया आपकी सेवा में प्रस्तुत है – धर्माचार्य जानते हैं कि वे भगवान् से कभी नहीं मिले, वे यह भी जानते हैं कि वेदों शास्त्रों द्वारा भगवान् को नहीं जाना जा सकता, फिर यह किस आधार से भगवान् को सर्वव्यापी कहते हैं? कुत्ते बिल्ली में भी भगवान् हैं, ऐसा कहकर, भगवान् की ग्लानि क्यों करते हैं? यदि इन्हें कोई कुत्ता कहे तो कैसा लगेगा? धर्माचार्य यह भी कहते हैं कि सब ईश्वर इच्छा से होता है। जरा सोचे! कि क्या छः माह की बच्ची से बलात्कार, ईश्वर इच्छा से होता है? क्या यही है ईश्वर इच्छा? अरे मूर्खों, निर्लज्जों, राम का काम, रामलीला करना है या रावण लीला? राम की आड़ में रावण लीला करने वाले राक्षसों, सम्भल जाओ, क्योंकि राक्षसों से धरती को मुक्त कराने राम आए हैं।
-अर्जुन, दिल्ली, मो.-०९२१३३२४१३४ – हीरालाल आर्य, मन्त्री आर्यसमाज सोजत नगर, जि. पाली, राज.-३०६१०४
समाधान– वर्तमान में भारत देश के अन्दर हजारों गुरुओं ने मत-सम्प्रदाय चला रखे हैं, जो कि प्रायः वेद विरुद्ध हैं। ईसाई, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, नारायण सम्प्रदाय, रामस्नेही सम्प्रदाय, राधास्वामी, निरंकारी, धन-धन सतगुरु (सच्चा सौदा), हंसा मत, जय गुरुदेव, सत्य साईं बाबा, आनन्द मार्ग, ब्रह्माकुमारी आदि मत ये सब वेद विरोधी हैं। सबके अपने-अपने गुरु हैं, ये सम्प्रदायवादी ईश्वर से अधिक मह व अपने सम्प्रदाय के प्रवर्तक को देते हैं, वेद से अधिक मह व अपने सम्प्रदाय की पुस्तक को देते हैं।
आपने ब्रह्माकुमारी के विषय में जानना चाहा है। ब्रह्माकुमारी मत वाले हमारे प्राचीन इतिहास व शास्त्र के घोर शत्रु हैं। इस मत के मानने वाले १ अरब ९६ करोड़ ८ लाख, ५३ हजार ११५ वर्ष से चली आ रही सृष्टि को मात्र ५ हजार वर्ष में समेट देते हैं। ये लाखों वर्ष पूर्व हुए राम आदि के इतिहास को नहीं मानते हैं। वेद आदि किसी शास्त्र को नहीं मानते, इसके प्रमाण की तो बात ही दूर रह जाती है। वेद में प्रतिपादित सर्वव्यापक परमेश्वर को न मान एक स्थान विशेष पर ईश्वर को मानते हैं। अपने मत के प्रवर्तक लेखराम को ही ब्रह्मा वा परमात्मा कहते हैं।
इनके विषय में स्वामी विद्यानन्द जी ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ भास्कर में विस्तार से लिखा है, उसको हम यहाँ दे रहे हैं।
‘‘ब्रह्माकुमारी मत- दादा लेखराज के नाम से कुख्यात खूबचन्द कृपलानी नामक एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति ने अपनी कामवासनाओं की तृप्ति के लिए सिन्ध में ओम् मण्डली नाम से एक संस्था की स्थापना की थी। सबसे पहले उसने कोलकाता से मायादेवी नामक एक विधवा का अपहरण किया। उसी के माध्यम से उसने अन्य अनेक लड़कियों को अपने जाल में फंसाया। इलाहाबाद के एक साप्ताहिक के द्वारा पोल खुलने पर सन् १९३७ में लाहौर में रफीखां पी.सी.एस. की अदालत में मुकदमा चला। मायादेवी ने अपने बयान में बताया कि ‘‘गुरु जी ने हमसे कहा कि तुम जनता में जाकर कहो कि मैं गोपी हूँ और ये भगवान् कृष्ण हैं। मैं बड़ी पापिनी हूँ। मैंने कितनी कुँवारी लड़कियों को गुमराह किया है। कितनी ही बहनों को उनके पतियों से दूर किया है……’’ (आर्य जगत् जालन्धर २३ जुलाई १९६१)। कलियुगी कृष्ण ने अदालत में क्षमा मांगी और भाग निकला। १३ अगस्त, १९४० में उसने बिहार में डेरा डाल दिया। चेले-चेलियाँ आने लगे। एक दिन एक बूढ़े हरिजन की युवा पत्नी धनिया को लेकर भाग खड़े हुए। फिर मुकदमा चला। धनिया ने अपने बयान में कहा- ‘‘इस गुरु महाराज ने हमें कहा था कि मैं आपका पति हूँ। ब्रह्माजी ने मुझे आपके लिए भेजा है।’’ इसी प्रकार नाना प्रकार के अनैतिक कर्म करते हुए दादा लेखराम हैदराबाद (सिन्ध) में जम गये और देवियों को गोपियाँ बनाकर रासलीलाएँ रचाने लगे। रासलीला की ओर से होने वाले व्यभिचार का पता जब प्रसिद्ध विद्वान्, ओजस्वी वक्ता और समाजसेवी साधु टी.एल. वास्वानी को चला तो वे उसके विरुद्ध मैदान में कूद पड़े। इससे सामान्यतः देशभर में और विशेषतः सिन्ध में तहलका मच गया। ओम् मण्डली के काले कारनामे खुलकर सामने आने लगे। यहाँ पर भी मुकदमा चला। पटना के ‘योगी’ पत्र से ‘सरस्वती’ (भाग ३९, संख्या खण्ड ६१, मई १९३८) का यह विवरण द्रष्टव्य है- ‘‘ओम् मण्डली पर पिकेटिंग शुरू हो गई है। सी.पी.सी. की धारा १०७ के अनुसार सिटी मजिस्ट्रेट की अदालत में पिकेटिंग करवाने वालों के साथ ओम् मण्डली के संस्थापक और चार अन्य सदस्यों पर मुकदमा चल रहा है।’’ दादा लेखराज को कारावास का दण्ड मिला।
भारत विभाजन के बाद से ब्रह्माकुमारी मत का मुख्यालय आबू पर्वत पर है। जनवरी १९६९ में दादा लेखराज की मृत्यु के बाद से दादी के नाम से चर्चित प्रकाशमणि इस सम्प्रदाय की प्रमुख रही हैं। वर्तमान में इस संस्था या सम्प्रदाय की लगभग दो हजार से अधिक शाखाएँ संसार के अनेक देशों में स्थापित हैं। मैट्रिक तक पढ़ी प्रकाशमणि आबू से विश्वभर में फैले अपने धर्म साम्राज्य का संचालन करती रही। समस्त साधक या साधिकाएँ, प्रचारक या प्रचारिकाएँ ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहाती हैं। प्रचारिकाएँ प्रायः कुमारी होती हैं। विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़कर या छोड़ी जाकर इस सम्प्रदाय में साधिकाएँ बन सकती हैं। ये भी ब्रह्माकुमारी ही कहाती हैं। पुरुष, चाहे विवाहित अथवा अविवाहित, ब्रह्मकुमार ही कहाते हैं। ब्रह्माकुमारियों के वस्त्र श्वेत रेशम के होते हैं। …..प्रचारिकाएँ विशेष प्रकार का सुर्मा लगाती हैं, जो इनकी सम्मोहन शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। सात दिन की साधना में ही वे साधकों को ब्रह्म का साक्षात्कार कराने का दावा करती हैं।
अनुभवी लोगों के अनुसार – ‘तप्तांगारसमा नारी घृतकुम्भसमः पुमान्’ अर्थात् स्त्री जलते हुए अंगारे के समान और पुरुष घी के घड़े के समान है। दोनों को पास-पास रखना खतरे से खाली नहीं है।
गीता में लिखा है- यततो ह्यापि कौन्तये पुरुषस्य विपश्चितः। इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।। अर्थात् यत्न करते हुए विद्वान् पुरुष के मन को भी इन्द्रियाँ बलपूर्वक मनमानी की ओर खींच ले जाती हैं।
भर्तृहरि ने कहा है- विश्वामित्र पाराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशनास्तेऽपि स्त्रीमुखपङ्कजे सुललितं दृष्ट्वैव मोहंगता। अन्नं घृतदधिपयोयुतं भुञ्जति ये मानवाः, तेषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद्विन्ध्यस्तरेत्सागरम्।।
अर्थात्- विश्वामित्र, पाराशर आदि महर्षि जो प ाों, वायु और जल का ही सेवन करते थे, वे भी स्त्री के सुन्दर मुखकमल को देखते ही मुग्ध हो गये थे। फिर घी, दुग्ध, दही आदि से युक्त अन्न खाने वाले मनुष्य यदि इन्द्रियों को वश में कर लें तो विन्ध्यपर्वत समुद्र में तैरने लगे। इसलिए भगवान् मनु ने एकान्त कमरे में भाई-बहन के भी सोने का निषेध किया है। वस्तुतः ब्रह्माकुमारों और कुमारियों का समागम मध्यकालीन वाममार्गियों के भैरवी चक्र जैसा ही प्रतीत होता है।
दादा लेखराज तो ब्रह्माकुमारियों के साथ आलिंगन करते, मुख चूमते तथा…..। भक्तों का कहना है कि ब्रह्माकुमारियाँ तो उनकी पुत्रियों के समान हैं और दादा उनके पिता के समान। जैसे बच्चे उचक कर पिता की गोद में जा बैठते हैं, वैसे ही ब्रह्माकुमारियाँ दादा लेखराज की गोद में जा बैठती थीं और वे उन्हें पिता के समान प्यार करते थे।
बिठाकर गोद में हमको बनाकर वत्स सेते हैं, जरा सी बात है। बनाने को हमें सच्चा समर्पण माँग लेते हैं। हमें स्वीकार कर वस्तुतः सम्मान देते हैं। लोकलाज कुल मर्यादा का, डुबा चलें हम कूल किनारा। हमको क्या फिर और चाहिए, अगर पा सकें प्यार तुम्हारा।।
– भगवान् आया है, पृ. ५०, ५१, ६९ इनके धर्मग्रन्थ ‘सच्ची गीता’ पृष्ठ ९६ पर लिखा है- ‘‘बड़ों में भी सबसे बड़ा कौन है, जो सर्वोत्तम ज्ञान का सागर और त्रिकालदर्शी कहा जाता है। मेरे गुण सर्वोत्तम माने जाते हैं। इसलिए मुझे पुरुषो ाम कहते हैं।’’ पुरुषो ाम श द की दो निरुक्तियाँ होती हैं- एक है- ‘पुरुषेषु उ ामः इति पुरुषो ामः।’ जो व्यक्ति परस्त्रियों के साथ रमण करता है, उन्हें अपनी गोद में बैठाता है और उनके….. उसे इन अर्थों में तो पुरुषो ाम नहीं कहा जा सकता।
दूसरी निरुक्ति- ‘पुरुषेषु ऊतस्तेषु उ ाम इति पुरुषो ामः’ के अनुसार दादा लेखराज को पुरुषो ाम मानने में किसी को कोई आप िा नहीं होनी चाहिए।
आश्चर्य की बात है कि अपनी सभाओं और सम्मेलनों में देश-परदेश के राजनेताओं, शासकों, न्यायाधीशों, पत्रकारों, शिक्षा शास्त्रियों तक को आमन्त्रित करने वाली ब्रह्माकुमारी संस्था मूल सिद्धान्तों, दार्शनिक मान्यताओं तथा कार्यकलापों को ये अभ्यागत लोग नहीं जानते। हो सकता है, वे ब्रह्माकुमारियों के….. खिंचे चले आते हों। आज तक निश्चित रूप से यह पता नहीं चल सका कि इस संस्था के करोड़ों रुपये के बजट को पूरा करने के लिए यह अपार राशि कहाँ से आती है। कहा जाता है कि ब्रह्माकुमारियाँ ही अपने घरों को लूट कर लाती हैं। पर उतने से काम बनता समझ में नहीं आता। कुछ स्वकल्पित चित्रों और चार्टों तथा रटी-रटाई श दावली में अपने मन्तव्यों का परिचय देने वाली ब्रह्माकुमारियाँ और ब्रह्मकुमार राजयोग, शिव, ब्रह्मा, कृष्ण, गीता आदि की बातें तो करते हैं, परन्तु सुपठित व्यक्ति जल्दी ही भाँप जाता है कि महर्षि पतञ्जलि द्वारा प्रतिपादित राजयोग तथा व्यासरचित गीता का तो ये क, ख, ग भी नहीं जानते। ये विश्वशान्ति और चरित्र निर्माण के लिए आडम्बरपूर्ण आयोजन करते हैं, शिविर लगाते हैं, कार्यशालाएँ संचालित करते हैं, किन्तु उनमें से किसी का भी कोई प्रतिफल दिखाई नहीं देता।’’
पाठक, ब्रह्माकुमारी के मूल संस्थापक के चरित्र को इस लेख से जान गये होंगे, आज के रामपाल और उस समय के लेखराज में क्या अन्तर है? आर्यसमाज सदा से ही गलत का विरोधी रहा है, आज भी है। ब्रह्माकुमारी वाले अपने मूल सिद्धान्तों के लिए आर्यसमाज से चर्चा वा शास्त्रार्थ करना चाहे, तो आर्यसमाज सदा इसके लिए तैयार है। आपने जो इनका पत्र संकलित कर भेजा है उसी से ज्ञात हो रहा है कि ये वेद-शास्त्र के निन्दक व वेदानुकूल ईश्वर को न मानने वाले हैं। – ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर
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