VASHIKARAN STOTR | अथ देवी वंशनकारी स्तोत्रं ||
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या धूम्रेक्षणचंडमुंडमथिनी या रक्तबीजाशिनी ॥
शक्तिः शुंभनिशुंभदर्पदलिनी या सिद्धलक्ष्मी परा
सा चंडी नवकोटिमूर्तिसहिता मां पातु विश्वेश्वरी ॥
प्रातः स्मरामि तव शंकरि वक्त्रपद्मं कांतालकं मधुरमंदहसं प्रसन्नम्
काश्मीरदर्पमृगनाभिलसल्ललाटं लोकत्रयाभयदचारुविलोचनाढ्यम् ॥१॥
प्रातर्भजामि तव शंकरि हस्तवृंदं माणिक्यहेमवलयादि विभूषणाढ्यम्
घंटात्रिशूलकरवालसुपुस्तखेट पात्रोत्तमांगडमरुल्लसितं मनोज्ञम् ॥२॥
प्रातर्नमामि तव शंकरि पादपद्मं पद्मोद्भवादिसुमनोगण सेव्यमानम्
मंजुक्वणत्कनकनूपुरराजमानं वंदारुवृंदसुखीरुधमार्यहृद्यम् ॥३॥
प्रातः स्तुवे च तव शंकरि दिव्य मूर्ति कादंबकाननगतां करुणारसार्द्राम्
कल्याणधाममनवनीरदनीलभासां पंचास्ययानलसितां परमार्तिहंत्रिम् ॥४॥
प्रातर्वदामि तव शंकरि दिव्यनाम शाकंभरीति ललितेति शतेक्षणेती
दुर्गेति दुर्गममहासुरनाशिनीति श्रीमंगलेति कमलेती महेश्वरीति ॥५॥
यः श्लोकपंचकमिदं पठति प्रभाते शाकंभरीप्रियकरं दुरितौघनाशम्
तस्मै ददाति शिवदा वनशंकरी साविद्यां प्रजां श्रियमुदारमति सुकीर्तिम् ॥६॥
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