शमशान साधना SHAMSHAN SADHNA
जहा मन्त्र तीव्र गति से सिद्ध होते है.मन्त्र का गुंजायमान वातावरण में कुतूहल उतपन्न करता है..वह शिवालय श्मशान ही है.स्थिर चित् शांत वातावरण .मनुष्य की अहसास जीवन के अंतिम समय का अपने आप प्रकृत में अंतरात्मा को लय कर देती है..
मन्त्र का एक जप का उस वातावरण में अनन्त फल हो जाता है..
नाना प्रकार की रोमांचक कल्पनाओ से भर देने वाला अगर कोई स्थान है ,तो वह शमशान है , यहाँ मनुष्य का अंतिम संस्कार उसके सामाजिक विधान द्वारा होता है! ! शमशान की शक्ति का अपना महत्व है ! तंत्र में मन की एकाग्रता और इस एकाग्रता से उत्पन्न ऊर्जा का बड़ा महत्व है ! इसको ही तंत्र का मूल आधार सफलता का सोपान माना गया है !
साधक ऐसे वातावरण में भी अपना चित्त स्थिर करके चिंतन - मनन कर सकता है ! या अपने लक्ष्य का ध्यान रख सकता है , वह अवश्य ही अपने चित्त को निश्चित रूप से अपने वश में रखने वाला साधक बन सकता है ! मन की ऐसी चित्त वृति से अवश्य ही जबर्दस्त ऊर्जा का उत्पादन होता है और यही ऊर्जा जब अपना चमत्कारी प्रभाव दिखलाती है तब तंत्र साधना अलौकिक रूप से हमें चकित करती है ! साधक में इसी शक्ति का विकास करने के लिए शम नियम बनाया गया है !
कुछ तांत्रिक क्रियाये शमशान में ही करने का नियम इसी आधार पर बना है कि साधक में मन की एकाग्रता जाग्रत हो और उससे उत्पन्न ऊर्जा के द्वारा कार्य संपन्न हो सके !
शमशान साधना एक प्रकार से आत्मिक शक्ति को बलवान बनाने के लिए की गई है ! शमशान के पसरे सन्नाटे में बैठकर क्या क्या कल्पनाएँ भावनाएं मन में उठती है, इनका वर्णन नहीं किया जा सकता है ! केवल अनुभव ही किया जा सकता है ! शमशान साधना साधक को नयी प्रेरणा देती है ! शमशान में चिंतन करने वाला साधक वीतरागी होता जाता है ! सुख - दुख उसके लिए एक समान होता जाता है ! जीवन की नश्वरता का हमेशा ज्ञान रहता है ! एक प्रकार से यदि मैं कहु की उसे बड़ा आत्मिक बल मिलता है ! इसी कारण शमशान साधना का अपना स्थान है ! जितनी भी तमोगुणी प्रधान साधनाएँ है उनकी सिद्धि महाशमशान में ही निहित है ! यह जान ले की तीर्थस्थानो के शमशानों को ही ( महाशमशान ) कहते है ! और जो तीर्थस्थानों को स्पर्श नहीं करते उन्हें शमशान की श्रेणी में रखा गया है ! महा शमशान की अपनी कई विशेषताए होती है ! आरम्भ में साधक को शमशान फिर अभ्यास होने पर महाशमशान की साधना में प्रवेश करना चाहिए !महाशमशान की अपनी कई विशेषता है
पहली विशेषता यह है की तमोगुणी राज्य से उसका सीधा संपर्क होता है इस लिए ही जब साधक महाशमान में तमोगुणी साधना करता है तो उसे शीघ्र सफलता मिलती है !
दूसरी विशेषता यह है गुह्य योनि की शक्ति सम्पन्न तमोगुणी आत्माए वहाँ हमेशा विचरण करती है !
तीसरी विशेषता यह है की महाश्मशान में पीपल का जो वृक्ष होता है वह बहुत महत्व रखता है उसकी छाया में बैठने से मन को शान्ति और सभी रोगो का शमन होता है उसकी जड़ पर तिल का नित्य दीप जलाने से निश्चित शनि ग्रह का प्रकोप शांत हो जाता है !
उत्तर का शमशान श्रेष्ठ माना गया है , जिसमें प्रवेश का मार्ग दक्षिण दिशा में हो !तंत्र शास्त्र में दक्षिण दिशा का अपना महत्व है !
दक्षिण कि ओर पैर कर लेटने , बैठने या सोने से व्यक्ति के शरीर का रक्त संचार गड़बड़ा जाता है ! शमशान कि दिशा कि ओर पैर कर शव को शमशान में लाया जाता है !
इस कारण साधक के लिए शमशान का मार्ग दक्षिण दिशा के दाहिने कोने से करना आवश्यक है ! मार्ग अगर न हो तो स्वयं साधक प्रयास करे कि प्रवेश इसी दिशा से करे तो सर्वोत्तम है ! प्रवेश के समय साधक को साहस से काम लेना चाहिए ! और यह आवश्यक है कि शमशान जाने से पूर्व
साधक किसी ऐसे मन्त्र को अवश्य सिद्ध कर ले जो उसको अदृश्य बाधा- मसान बाधा - हिंसक जीव -जन्तो - पक्षी आदि से उसकी रक्षा करे और उस मंत्र को पड़ कर जहा उसको आसन लगाना हो वहाँ जल की पतली रेखा खीच दे तब निश्चिंत हो कर बैठे ! शमशान भूमि के पूर्व दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से ज्ञान वृद्धि का विकास होता है , पश्चिम दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से पारिवारिक सुख शांति और उत्तर दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से संतान प्राप्ति और ऋण व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है तथा दक्षिण दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से रोग -शोक आदि का निवारण होता है ! इस प्रकार शमशान में नियमित रूप से जाने पर और जलती हुई चिताओ पर ध्यान लगाने से , अन्त में मन सबल हो जाता है ! साधक के चेहरे पर एक अपूर्व तेज़ और मन में गहरे आत्मविश्वास की सृष्टि होती है और वह किसी भी साधना को शमशान में करने हेतु योग्य बनता है !
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