Sunday, March 26, 2017

दुर्गा षोडश पूजन DURGA SHODASH PUJAN

दुर्गा षोडश पूजन DURGA SHODASH PUJAN


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

Contact 9953255600

JYOTISH TANTRA MANTRA YANTRA TOTKA VASTU GHOST BHUT PRET JINNAT BAD DREAMS BURE GANDE SAPNE COURT CASE LOVE AFFAIRS, LOVE MARRIAGE, DIVORCEE PROBLEM, VASHIKARAN, PITR DOSH, MANGLIK DOSH, KAL SARP DOSH, CHANDAL DOSH, GRIH KALESH, BUSINESS, VIDESH YATRA, JNMPATRI, KUNDLI, PALMISTRY, HAST REKHA, SOLUTIONS

एकान्त स्थान पर जगह को साफ़ करने के बाद उसे नमक मिले पानी से साफ़ करें,और दुर्गा पूजा के लिये कलश स्थापना कर लें,फ़िर प्राण्गमुख होकर आसन पर बैठ जावें,जल से शिखा का प्रेक्षण

करे,और शिखा को बांध लें। तिलक लगाकर आचमन एवं प्राणायाम करें। हाथ में फ़ूल लेकर अंजलि बांध कर दुर्गाजी का ध्यान करे।

ध्यान का मंत्र इस प्रकार है:-

सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिभुजै:,शंखं चक्रधनु:शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभि: शोभिता।
आमुक्तांगदहारकंकणरणत्कांचीरणन्नूपुरा,दुर्गा दुर्गति हारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥

(ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ऊँ दुर्गायै नम:)

अर्थ:- जो सिंह की पीठ पर विराजमान है,जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है,जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुआओं में शंख चक्र धनुष और बाण धारण करती हैं,तीन नेत्रों से

सुशोभित होती है,जिनके भिन्न भिन्न अंग बांधे हुये बाजूबंद हार कंकण खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुये नूपुरों से विभूषित है,तथा जिनके कानों में रत्न जटित कुण्डल झिलमिलाते रहते

है,वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करने वाली हों। यदि प्रतिष्टित मूर्ति हो तो आवाहन की जगह पुष्पांजलि दें,नहीं तो दुर्गाजी का आवाहन करें।

आवाहन

आगच्छ त्वं महादेवि ! स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं संनिधौ भव॥
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि। आवाहनार्थे पुष्पांजलि समर्पयामि ॥

(दोनो हाथों में फ़ूल लेकर प्रतिमा या आवाहन करने वाले नारियल के ऊपर हाथ का पृष्ठ भाग नीचे रखकर चढायें।

आसन

अनेक रत्न संयुक्तम नाना मणि गणान्वितम। इदम हेममयम दिव्यासनम प्रति गृह्यताम॥
श्री जगदाम्बायै दुर्गा देव्यै नम:। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

(सजा हुआ आसन या प्रतिमा पर फूल चढाकर आसन पर स्थापित होने की प्रार्थना करें)

पाद्य

गंगादि सर्व तीर्थेभ्य आनीतम तोय मुत्तमम। पाद्यार्थम ते प्रदास्यामि ग्रहाण परमेश्वरि॥

(साफ़ बिना टोंटी के लोटे से प्रतिमा या नारियल में देवी के पैरों में जल चढायें).

अर्घ्य

गन्ध पुष्प अक्षतैर्युक्तम अर्घ्यम सम्पादितम मया। ग्रहाण त्वम महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा॥

(पानी में लाल चन्दन घिसकर मिलालें,फ़ूल डाल लें,और चावल मिलाकर देवी के हाथों में लगायें)

आचमन

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितम स्वादु शीतलम। तोयम आचमनीयार्थम ग्रहाण परमेश्वरि॥

(कोरे घडे से निकाला हुआ ठंडा जल,कपूर मिलाकर देवी को प्रार्थना करके उनको आचमन के लिये चढायें)

स्नान

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरम शुभम। तदिदम कल्पितम देवि! स्नार्थम प्रतिगृह्यताम॥

(गंगाजल या पवित्र नदी का जल लेकर प्रतिमा अथवा नारियल को स्नान करवाने का क्रम करें)

स्नानांग-आचमन

स्नानान्ते पुनराचमनीयम जलम समर्पयामि।
(स्नान के बाद आचमन के लिये शुद्ध कपूर मिला जल दें)

दुग्ध स्नान

कामधेनु सम उत्पन्नम सर्व ईशाम जीवनम परम। पावनम यज्ञ हेतुश्च पय: स्नानार्थम अर्पितम॥
(गाय के दूध से स्नान करवायें)

दधि स्नान

पयस अस्तु समुद भूतम मधुर अम्लम शशि प्रभम। दध्यानीतम मया देवि! स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(गाय के दही से स्नान करवायें)

घृतस्नान

नवनीत सम उत्पन्नम सर्व संतोष कारकम। घृतम तुभ्यम प्रदस्य अमि स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(गाय के घी से स्नान करवायें)

मधु स्नान

पुष्प रेणु सम उत्पन्नम सु स्वादु मधुरम मधु। तेज: पुष्टि सम आयुक्तम स्नार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शहद से स्नान करवायें)

शर्करा स्नान

इक्षु सार सम अद्भुताम शर्कराम पुष्टिदाम शुभाम।मल अपहारिकाम दिव्याम स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शक्कर से स्नान करवायें)

पंचामृत स्नान

पयो दधि घृत चैव मधु च शर्करान्वितम। पंचामृतम मय आनीतम स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥

(किसी दूसरे बर्तन में दूध,दही,घी,शहद,शक्कर मिलाकर पंचामृत का निर्माण करें और किसी कांसे या चांदी के पात्र में इसी पंचामृत से स्नान करवायें)

गन्धोदक स्नान

मलयाचल सम्भूतम चन्दन अगरु मिश्रितम। सलिलम देव देवेशि शुद्ध स्नानाय गृह्यताम॥
(सफ़ेद चंदन लकडी वाला घिसकर और अगर को पानी में घिस कर एक बर्तन में मिलाकर स्नान करवायें)

शुद्धोदक स्नान

शुद्धम यत सलिलम दिव्यम गंगाजल समम स्मृतम। समर्पितम मया भक्त्या स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शुद्ध जल से स्नान करवायें,और स्नान करवाने के बाद आचमन के लिये वही कपूर मिला शीतल जल दें)

वस्त्र पहिनाना

पट्ट युगमम मया दत्तम कंचुकेन समन्वितम। परिधेहि कृपाम कृत्वा माता दुर्गति नाशिनि॥

(लाल रंग की कंचुकी पहिनायें,फ़िर लाल रंग की साडी या वेष पहिनायें और ऊपर से चुनरी ओढायें,हाथों में लाल रंग की मौली बांधे,फ़िर आचमन के लिये वही कपूर से युक्त शीतल जल आचमन के लिये दें)

सौभाग्यसूत्र

सौभाग्य सूत्रम वरदे सुवर्ण मणि संयुतम। कण्ठे बघ्नामि देवेशि सौभाग्यम देहि मे सदा॥

(मंगल सूत्र लाल धागे का पीले रंग के मोतियों से युक्त या स्वर्ण से बने मोतियों से युक्त देवी के गले में पहिनायें,माता पुत्र का मानसिक ध्यान करे)

चन्दन

श्रीखण्डम चन्दनम दिव्यम गन्ध आढ्यम सुमनोहरम। विलेपनम सुर श्रेष्ठे चन्दनम प्रति गृह्यताम॥

(लकडी वाला लाल चन्दन शिला पर पानी के साथ घिस कर माता के माथे पर तिलक स्थान पर,दोनो कानों की लौरियों पर दोनो हाथों के बाजुओं पर और दोनो हाथों की हथेलियों पर लगायें)

हरिद्राचूर्ण

हरिद्रा रंचिते देवि ! सुख सौभाग्य दायिनी। तस्मात त्वाम पूज्याम यत्र सुखम शान्तिम प्रयच्छ में॥

(हल्दी को पहले से घिसकर लेप बनाकर सुखा लें,फ़िर उसका चूर्ण पूजा के लिये सावधानी से रख ले,और माता के सभी अंगों पर लगायें,हल्दी को पीस कर या बाजार की हल्दी को पिसी हुयी लाकर कदापि नहीं चढायें)

कुंकुम

कुंकुमम कामदम दिव्यम कामिनी काम सम्भवम। कुंकुमेन अर्चितम देवी कुंकुमम प्रति गृह्यताम॥
(माता के पैरों में कुंकुम लगायें,दोनो हाथों में लगायें) 

सिन्दूर

सिन्दूरमरुणाभासम जपा कुसुम संनिभम। अर्पितम ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥
(माता के माथे पर सिन्दूर की बिन्दी लगायें,नाक की सीध में बालों के अन्दर सिन्दूर भरें)

काजल

चक्षुर्भ्याम कज्जलम रम्यम सुभगे शान्ति कारकम। कर्पूर्ज्योति समुत्पन्नम गृहाण परमेश्वरि॥

(कपूर को जलाकर उसकी लौ के ऊपर कांसे का बर्तन रखें थोडी सी देर में काले रंग का काजल बर्तन पर आजायेगा,उस काजल को माता की आंखों में नीचे की तरफ़ सावधानी से दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से लगायें)

दूर्वांकुर

तृणकान्त मणि प्रख्य हरित अभि: सुजातिभि:। दूर्वाभिराभिर्भवतीम पूजयामि महेश्वरि॥

(किसी नदी या साफ़ स्थान से हरी और सफ़ेद दूब जिसके अन्दर ऊपर के भाग की तीन पत्तियों के अंकुर हों साफ़ करने के बाद अपने पास रखलें,रोजाना लाना सम्भव नही हो तो पहले लाकर किसी साफ़ सफ़ेद कपडे को गीला करने के बाद उसके अन्दर लपेट कर रख दें,पीली दूब या सूखी दूब कभी नही चढायें,१०८ या कम से कम १८ अंकुर रोजाना जरूर चढायें)

बिल्वपत्र

त्रिदलम त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम। त्रिजन्म पाप संहारम बिल्वपत्रम शिवार्पणम॥

(अर्धनारीश्वर की आभा में देवी का रूप है,शैवमत के अनुसार शिव के बिना शक्ति नही है और शक्ति के बिना शिव नही है,बिल्व पत्र की तीन पत्तियों वाली हरी कोमल शाखायें माता के तीन नेत्रों का प्रति रूप है,ध्यान रखना चाहिये कि यह नौ से अधिक कभी न चढायें,पहली तीन पत्ती की शाखा माता के आंखों के ऊपर लगायें बाद में कान नाक मुंह हाथ नाभि कटि गुहा पैरों लगाना चाहिये)

आभूषण

हार कंकण केयूर मेखला कुण्डलादिभि:। रत्नाढ्यम हीरकोपेतम भूषणम प्रति गृह्यताम॥

(दुर्गापूजा से पहले ही माता के लिये स्वर्ण या रजत से निर्मित हार कंगन बाजूबंद कनकती कुन्डल पाजेब बिछिया जिनके अन्दर विभिन्न रत्न लगे हों बनवाकर रख लेना चाहिये,और पूजा में पहिनाने चाहिये,तथा मूर्ति विसर्जित होने पर उनको किसी कन्या को दान कर देना चाहिये,या मूर्ति के साथ जाने देना चाहिये,भूलकर भी लोभ वश उन्हे अन्य काम के लिये नहीं रखना चाहिये)

पुष्पमाला

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तित:। मय आर्ह्यतानि पुष्पाणि पूजार्थम प्रति गृह्यताम॥


(अपने हाथ से लाल फ़ूलों की माला लाल रंग के धागे में अपने हाथों से पिरोना चाहिये,फ़ूल सौ से अधिक या कम नही हों,एक बार या प्रतिमा के अनुसार दो बार तीन बार माला को घुमाकर दाहिने से पहिनानी चाहिये)

परिमल द्रव्य

अबीरम गुलालम च हरिद्रा आदि समन्वितम। नाना परिमल द्रव्यम गृहाण परमेश्वरि॥

(सफ़ेद रंग की खडिया मिट्टी को पीसकर लाल रंग और सुगन्धित केवडा आदि मिलाकर अबीर तैयार करना चाहिये,हल्दी,चन्दन,छोटी इलायची और तेज पत्ता को पीसकर गुलाल तैयार करना चाहिये,हल्दी का पहले तैयार किया चूर्ण कपूर पीस कर मिलाकर तैयार करना चाहिये,और माता के चारों तरफ़ दाहिने से बायें चढाना चाहिये)

सौभाग्य पेटिका

हरिद्राम कुंकुमम चैव सिन्दूरादि समन्वितम। सौभाग्यपेटिकामेताम गृहाण परमेश्वरि॥

(हल्दी का चूर्ण कुंकुम सिन्दूर हरी चूडियां श्रंगार का अन्य सामान सहित सौभाग्य पेटी (श्रंगारदान) माता को अर्पित करें)

धूप

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तम:। आघ्रेय: सर्वदेवानाम धूपोअयम प्रति गृह्यताम॥

(धूप जो बनी हुई अगर तगर कपूर चन्दन के बुरादे से युक्त माता के सामने धूपें)

दीप

साज्यं च वर्ति संयुक्तम वाहिन्ना योजितम मया। दीपम गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहम॥

(शुद्ध रुई की दोहरी बत्ती बनायें,और आरती वाले पात्र में जिसमे कमसे कम दो अंगुल ऊंचा शुद्ध गाय का घी भरा हो,उसके अन्दर बत्तियों को डुबोकर अगरबत्ती से दीपक को प्रज्वलित करें,दीपक के अन्दर एक चांदी का या सोने का सिक्का डालें और माता को दिखायें,दीपक दिखाकर दीपक को अपने दाहिने रखें और हाथ साफ़ पानी से धो लें)

नैवेद्य

शर्कराखण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च। आहारार्थम भक्ष्य भोज्यम नैवेद्यम प्रति गृह्यताम॥

(शक्कर और दही तथा खीर में घी मिलाकर नैवेद्य माता को आहार के रूप में अर्पित करें,नैवेद्य अर्पित करने के बाद आचमन के लिये कपूर मिला शीतल जल अर्पित करें,उसके बाद सादा पानी हाथ और मुंह धोने के लिये अर्पित करें)

ऋतुफ़ल

इदम फ़लम मया देवि स्थापितम पुरतस्तव। तेन मे सफ़ल अवाप्तिर भवेज जन्मनि जन्मनि॥

(जो भी फ़ल बाजार में आ रहे हों,उन्ही को बिना दाग धब्बे के लेकर आवें,और माता को प्रकार प्रकार के चढावें)

ताम्बूल

पूगीफ़लम महाद्दिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम। एलालवंगसंयुक्तम ताम्बूलम प्रतिगृह्यताम॥

(इलायची लौंग सुपाडी और पान माता को अर्पित करें)

दक्षिणा

दक्षिणाम हेमसहिताम यथा शक्ति समर्पिताम। अनन्तफ़लदामेनाम गृहाण परमेश्वरि॥

(मुद्रा में जो वर्तमान में चल रही हो,सिक्कों के रूप में माता को चढायें,भूलकर भी कागज की मुद्रा नही चढायें,अगर नही मिले तो केवल चावल बिना टूटे चढावें)

आरती

कदली गर्भ सम्भूतम कर्पूरम तु प्रदीपितम। आरार्तिकमहम कुर्वे पश्य माम वरदा भव॥

(चलते हुये दीपक से पीतल के बर्तन में कपूर को जला लें और माता की दाहिने बायें सात बार आरती उतारें,और आरती के बाद पानी को तांबे के लोटे में भरकर सात बार पानी से आरती उतारें)


दुर्गा सप्तशती का मन्त्र पाठ

एक सौ आठ बार दुर्गा सप्तशती का मंत्र जाप करें, मंत्र के शुरु में जो "ऊँ" प्रत्यय लगा है उसे कदापि नही बोलें,मन्त्र को शुरु करने के लिये उच्चारण को साफ़ तरीके से करें, मन्त्र है:-

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै,ऊँ ग्लों हूँ क्लीं जूँ स:, ज्वालय ज्वालय,ज्वल जवल,प्रज्वल प्रज्वल,ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै,ज्वल हँ सँ लँ क्षँ फ़ट स्वाहा।

तदुपरान्त दुर्गा सप्तशती के पाठ जो तीन चरित्रों में है उनको क्रम बार करें,चाहें तो तुरत परिणाम के लिये पाठ के पहले रात्रि सूक्त और इक्कीस बार कुंजिका-स्तोत्र फ़िर एक बार रात्रि सूक्त का पाठ

करें।

No comments:

Post a Comment

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )