Tuesday, March 14, 2017

GANPATI MAYURESH STOTRAM मयूरेश स्तोत्रम्

मयूरेश स्तोत्रम्। GANPATI MAYURESH STOTRAM

चिंता एवं रोग निवारण हेतु दुर्लभ स्तोत्रम्।

गणपति भगवान सभी विघ्नों का नाश करने वाले एक मात्र सक्षम भगवान हैं सभी कार्यो को सिद्ध करने वाले हैं यदि किसी भी पूजा या अनुष्ठान में इनको चश्मदीद गवाह बना लिया जाये तो पूजन या अनुष्ठान सफल होता है। ऐसे है हमारे शिवगौरी नंदन गणपति महाराज।

यूँ तो गणपति महाराज के अनेको स्तोत्रम् हैं परंतु मयूर स्तोत्रम् का महत्व सर्वोपरि है।यह स्तोत्र अपने आप में चैतन्य और मन्त्र सिद्ध है अतः इसका पाठ ही पूर्ण सफलता प्रदान करने वाला है।

घर में आने वाली बाधाओ, बच्चों के रोग के निवारण, सुख शांति, उन्नति, प्रगति तथा प्रत्येक क्षेत्र में इसका नियमित पाठ सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

इस स्तोत्र का पाठ स्त्री एवं पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं। हमारे जीवन का प्रत्येक दिन गुरु स्तवन और मयूरेश स्तोत्रम् से हो तो जीवन में गणपति महाराज कोई विघ्न नही आने देते।
सर्व प्रथम स्नान कर आसान को स्पर्श करके मस्तक से लगाएं। पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे अपने सामने गणपति यंत्र या मूर्ती स्थापित करें। पूजा शुक्ल पक्ष के बुधवार को प्रारम्भ करें।

“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||”

सर्वप्रथम गुरु जी का पंचोपचार से पूजन करे। उसके बाद गणपति महाराज को प्रणाम करें।

“सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम
प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम |
दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर,
वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम ||
सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्
दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम,
बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड-
भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम .
सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः
धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना:
द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि |
विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते ||”

तत्पश्चात गणपति महाराज के 12 नामो का स्मरण करे।

सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:
लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक:
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते।

इसके बाद गणपति सरकार की षोडशोपचार से पूजा करें।

1। आह्वान।
2। आसान।
3। पाध्य।
4। अर्घ्य।
5।आचमनीय।
6।स्नान।
7। वस्त्र।
8।यज्ञोपवीत।
9।गंध।
10।पुष्प ( दूर्वा)।
11। धुप।
12। दीप।
13। नैवैध।
14। ताम्बूल।
15। प्रदक्षिणा।
16। पुष्पांजलि।

सावधानियां।

1। तुलसी का प्रयोग गणपति पूजन में न करें।
2। गणपति जी को दूर्वादल अति प्रिय है।
3।अर्घ्य में निम्न 8 वस्तुए होती है ध्यान रखें।
A. दही।
B. दूर्वा।
C. कुशाग्र।
D. पुष्प।
E. अक्षत।
F. कुंकुम।
G. पीली सरसों।
H. सुपारी।
इन 8 वस्तुओं को एक पात्र में लेकर गणपति जी को अर्घ्य दिया जाता है।
4। कोई सामग्री न हो तो अक्षत का प्रयोग किया जाता है।
5। घी का दीपक प्रज्वलित करे।

“मयुरेश स्त्रोत”

ब्रह्मोवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
सर्वविघन्हरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि विभ्रतम्।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्॥
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।
सदसद्वयक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।
समाष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्॥
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम्।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्॥
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्॥

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