वैष्णव तंत्र
वैष्णव तंत्र शुरू से ही गोपनीय रहा है। इसको गोपनीय इसलिए रखा गया क्योंकि इसका प्रभाव प्रबल एवं अचूक है। इसकी कोई काट भी नहीं है। जैसे तांत्रिक शिरोमणि क्रोधभट्टारक यानि दुर्वासा को भी अम्बरीश से परास्त होकर नतमस्तक होना पड़ा था। उनकी तपोशक्ति उनकी कृत्या का भी नाश हो गया था। वे उस समय शक्तिविहीन हो गए थे। तंत्र क्षेत्र में कहा जाता है कि श्री कृष्ण स्वयं नारायण थे और नारायणी तंत्र में पारंगत थे। वे सर्वदा अजेय रहे स्वयं तंत्रों के जनक सदाशिव से भी। वैष्णवों की परम शक्ति श्री हनुमान जी हैं जिनके सामने समस्त और प्रबलतम शक्तियां परास्त हो जाती हैं। देवियों की मूल श्री त्रिपुरसुन्दरी श्री गोलोक धाम की प्रहरी हैं और ललिता सखी के रूप में रास में भी सम्मिलित होती हैं। शर्भेश्वर का निवास श्री कृष्ण की भुजाओं में माना गया है। जब राम रावण युद्ध में रावन ने दस महा बिध्याओं को रणभूमि में मंत्र बल से उतारा तब श्री हनुमान की हांक से सब उनको सदाशिव मान अदृश्य हो गयी थी।भगवान् शिव का त्रिशूल जो कुम्भकर्ण को प्राप्त था उसको युद्ध में श्री हनुमानजी द्वारा तोड़ दिया था और चंद्रहास खडग को श्री राम ने अपने बाणों से काट दिया था। मेघनाद जो निखुम्बला या प्रत्यंगिरा का साधक था उसका भी वध उसी मंदिर के बहार हुआ। माँ दुर्गा श्री कृष्ण मन्त्रों की अधिष्ठात्री और उनकी योगमाया कही जातीं हैं। मेरा तात्पर्य किसी को निम्न दिखाना नहीं है। केवल नारायणी तंत्र का परिचय देना है। जो अन्यतम और गुह्य है। कृपया तत्सम्बन्धित ग्रंथो का अध्यन भी करें। मैंने जैसा महापुरुषों से सुना वैसा बता दिया। ॐ विष्णवे नमः।
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