श्री दुर्गासप्तशती चण्डी अनुष्ठान की अति गुप्त पूर्ण विधि भाग 13
"काम्य - दुर्गा - सप्तशति - चंडीपाठ" हेतु प्रयोग क्रम१).महाविद्या क्रम :- सर्वकामना हेतु.
【प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र.】
२).महातंत्री क्रम:- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
३).चंडी तंत्र क्रम :- शत्रुनाश हेतु.
【उत्तर, मध्यम, प्रथम चरित्र.】
४).महाचंडी क्रम :- शत्रुनाश,लक्ष्मी प्राप्ति.
【उत्तर, प्रथम, मध्यम चरित्र.】
५).सप्तशती क्रम :- ज्ञान और लक्ष्मी प्राप्ति.
【मध्यम, प्रथम , उत्तर चरित्र.】
६).मृतसंजीवनी क्रम :- आरोग्य लाभ हेतु.
【मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र.】
७).रूपदीपिका क्रम :- विजय व आरोग्य लाभ हेतु (रूपम देही जयं देही से संपुटित).
【प्रथम, उत्तर, मध्यम चरित्र.】
८).निकुम्भला :- रक्षा व विजय हेतु.(शूलेन पाही नो से संपुटित).
【मध्यम, प्रथम, उत्तर चरित्र.】
९).योगिनी क्रम :- बालोपद्रव शांन्ती हेतु.
(प्रत्येक चरित्र से पहले योगिनियों का पाठ एवम् प्रत्येक मंत्र " शं.षं." से पुटित.)
【योगिनी क्रम के लिए कोई विशेष चरित्र क्रम का उल्लेख मुझे नहीं मिला पर मेरे मत अनुसार मृतसंजीवनी क्रम लेना लाभप्रद होगा यानी मध्यम, उत्तर, प्रथम चरित्र क्रम.】
१०).अक्षरसः विलोम क्रम :- सर्व कामना सिद्धी हेतु.
【त्रयोदश अध्याय से प्रथम अध्याय तक विलोम पाठ.】
विशेष बातें :-
"गढ़वाल क्षेत्र एवम् अन्य संप्रदायों" में प्रत्येक पाठ, प्रत्येक चरित्र या प्रत्येक अध्याय से पहले "भैरव नामावली पाठ" का भी विधान है.
सप्तशती को बाहर के मन्त्रों से संपुटित करने के विषय में विद्वानों में शंका है, किन्तु "योगिनी क्रम" से यह स्पष्ट होता है कि अन्य मंत्रों का संपुट भी लगा सकते हैं.
दुर्गा सप्तशती में दशमहाविद्याओं के मंत्र, गायत्री मंत्र, मृत्युंजय मंत्र, श्रीमद् भागवत के मंत्र व अन्य मंत्रों का संपुट भी लगाया जा सकता है.("दुर्गार्चनसृतिः,अनुष्ठान प्रकाशः" में भी इस हेतु लिखा है.)
रावण भी "निकुम्भला" का उपासक था और शूलेन पाही नो का संपुट लगाता था.
कुछ विद्वानों के अनुभव से माध्यम,प्रथम,उत्तर चरित्र क्रम के पाठ से अधिक सफलता मिलती है,क्योंकि इससे पाठ का "उत्कीलन" भी हो जाता है.
दुर्गा साधना तंत्र नामक एक पुस्तक में प्रथम अध्याय में १४६, द्वितीय में १४० श्लोक है ।
नमस्तस्ये का पूरा एक ही मन्त्र है ।
कहीं महिष उवाच, मंत्री उवाच,शुम्भ उवाच, निशुम्भ उवाच भी है.
दक्षिण में ९४० मन्त्रों की दुर्गासप्तशती भी कहीं कहीं है,
नेपाल से प्राप्त संपूर्ण दुर्गा सप्तशती में भी पाठ व् श्लोक संख्या में कहीं कहीं भेद है.
कई ग्रंथों में "अस्त्र मंत्र" या "अंग मंत्र" जैसे चतुर्थ अध्याय में "शूलेन पाहिनो देवी आदि ४ कवच मंत्र है" इन मंत्रों को "मौन रूप" में पढ़कर नवार्ण मंत्र से हवन करें.
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