Wednesday, March 6, 2019

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 12 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 12

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 12 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 12


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


स्त्री पुरुष की असावधानी से खतरे


स्त्री हो या पुरुष रतिकाल में दुनियादारी या घरेलू मामलों पर बातें न करें। यह ऊर्जा चक्रों को खराब करेगा। सन्तान हुई, तो वह राहु के प्रकोप से ग्रसित होगी

रतिक्रीड़ा के बाद लिंग और योनी को ठन्डे पानी से कदापि न धोएं। इसे हवा से भी बचाएं वरना नसें खराब हो जाएगी और नामर्दी या बन्ध्यापन हो सकता है

संतुलित भोजन करें। योग या व्यायाम करके शरीर को संतुलित करें; पर डायटिंग कदापि न करें. यह निश्चित तौर पर नामर्दी और बन्ध्यापन उत्पन्न करता है।

स्त्री-पुरुष की जोड़ी गर्म-सर्द होनी चाहिए। यानी स्त्री गर्म प्रकृति की हो, तो पुरुष को सर्दी प्रधान होना चाहिए। पर ऐसा तो लॉटरी जैसा ही हो सकता है। इस दशा में एक को दूध केला-एलोवीरा-हरी सब्जी-स्नार, संतरा, निम्बू आदि का सेवन करके सर्द या दोनों सर्द हो , तो एक को लहसुन, प्याज, लौंग, दाल चीनी, जिमीकंद , मांस आदि गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए। शीघ्र पतन का एक कारण समान प्रवृत्ति भी होती है

रतिकाल में अपनी श्वांसों की गति पर ध्यान देना चाहिए। हमारी नाक के दोनों छेदों से समान रूप से श्वांस नहीं चलती। एक नासिका ही शक्तिशाली रहती है और घड़ी-घड़ी बायें-दायें होती रहती है। स्त्री की बायीं और पुरुष कि दायीं नासिका चल रही हो, तो रतिक्रीड़ा सफल (सन्तान हेतु) और आनंद दायक होता है

तीन महीने गर्भ हो जाए , तो रति भूलकर भी न करें। ऐसा पशु भी नहीं करते। स्त्री और सन्तान खतरे में पड़ती है| ऋतुकाल में भी रति न करें। गंभीर रोग हो सकते है। इस समय स्त्री को भी इन्फेक्शन से बचना चाहिए

तंत्राचार्यों ने कहा है –‘विकृत भाव में रति का परिणाम सदा अनर्थकारी होता है। इससे महिषासुर उत्पन्न होता है और यह असुर मनुष्य को अधम बना देता है

उन्होंने भय, शोक, चिंता, देवगृह, पीपल के साये में , अनिच्छा से की गयी रति को भी विनाशक कहा है। दिन में की गयी रति मनुष्य को असुर बना देती है। सन्तान भी असुर ही पैदा होता है। असुरों की उत्पत्ति दिन के ही रति से हुई थी.
(वस्तुतः दिन में सूर्य की ऊर्जा अधिक –पृथ्वी की कम होती है। इससे हिंसक भाव उत्पन्न होते है। सारे हिंसक प्राणी सूर्य प्रधान होते है; इसलिए इन्हें सूर्य नहीं चाहिए और ये निशाचर कहलाते है। ये मांसाहारी होते है, हिंसक होते है. दिन की रति से स्त्री-पुरुष में यह ऊर्जा बढती है और संतान के बीज भी उसी समीकरण में उत्पन्न होता है)

भले ही कोई भैरवी साधना या तन्त्र की साधना नहीं कर रहा हो; भले ही वह कोई नास्तिक गृहस्थ हो; ये बातें सब पर लागू है। स्त्री-पुरुष माया और शिव की प्रतिकृति हैं। मन में प्रेम, श्रद्धा, अपनापन उत्पन्न कीजिये। यही रास्ता कल्याण का है। घर, परिवार, सन्तान, गृहस्थी सबका सुख मिलेगा। ऐसा नहीं है; तो कारण ढूंढिए, उस का निदान कीजिये

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )