SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 11 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 11
Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi
भैरवी साधना में साधक-साधिकाओं के लिए निर्देश
कन्याओं को देवी का रूप समझकर उनकी पूजा करें।
कन्याओं-नारियों की शक्ति पर सहायता एवं रक्षा करें।
पेड़ न काटे, न कटवाएं।
मदिरापान या मांसाहार केवल साधना हेतु है। इसे व्यसन न बनाये।जो मस्तिष्क और विवेक को नष्ट कर दे; उस मदिरापान से भैरव जी कुपित होकर उसका विनाश कर देते है।
दिन में सामान्य पूजा करें। साधना 9 से 1 बजे तक रात्रि में प्रशस्त हैं।
नवमी एवं चतुर्दशी को भैरवी में स्थित देवी की पूजा करें।
इस मार्ग के आलोचकों से मत उलझे। इस संसार में भांति-भांति के प्राणी रहते है। सब की प्रवृत्ति एवं एवं सोच अलग-अलग होती है। न तो किसी को इस मार्ग कि ओर प्रेरित करे, न ही विरोध करे।
यह प्रयास रखे कि भैरवी सदा प्रसन्न रहे।
यदि वह मांसाहारी नहीं है; तो वानस्पतिक गर्म और कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन करें और विजया से निर्मित मद का प्रयोग करें।
आसन, वस्त्र लाल होते हैं। पूजा केवल ओर केवल निवस्त्र नग्न होकर ही करें, विशेष पूजा नवमी-चतुर्दशी को होती है। अन्य तिथियों में केवल साधना होती है।
गुरु व्यक्ति विशेष के कुंडली सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शरीर 9 नाड़ी 72 कोण 10 द्वारों का सम्पूर्ण निरिक्षण कर ही दीक्षित करते है और साधना सम्पन्न करवाते है।
साधना के अनेक स्तर है। यहाँ सामान्य स्तर दिया गया है। भैरवी को सामने बैठाकर देवी रुप कल्पना में मंत्र जप करने से मन्त्र सिद्ध होते है।
साधक-साधिका को इस पर जैतून या चमेली के तिल के तेल से एक दूसरे की मालिश करें ।
साधक-साधिका को इस पर जैतून या चमेली के तिल के तेल से एक दूसरे की मालिश करें ।
इन चक्रों पर नीचे से ऊपर तक होंठ फेरने और चुम्बन लेने से ये शक्तिशाली होते है।
एक-दूसरे के आज्ञाचक्र को चूमने से मनासिक शक्ति प्रबल होती है।
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