Wednesday, March 6, 2019

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 7 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 7

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 7 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 7


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


सरल भैरवी साधना

इन साधानाओ को आपसी सहमती से कोई भी स्त्री-पुरुष कर सकता है; पर दोनों की सहमती आवश्यक है , चाहे वे पति-पत्नी ही क्यों न हो।

भूत शुद्धि – भूत शुद्धि एक न्यास प्रक्रिया है। स्थूल शरीर का अंदर बाहर से शुद्ध करना और शारीरिक ऊर्जा को शुद्ध करना इसका उद्देश्य होता है। साधक –साधिका की अलग-अलग भूत शुद्धि शास्त्रीय निर्देश के अनुसार गुरु ही कर सकता है|

यह सिर से पैर तक शक्तिपात द्वारा पूरी की जाती है। उद्देश्य शरीर एवं मन को शुद्ध करना होता है।
मैं यह क्रिया शक्तिपात द्वारा करता हूँ  
इसका मंत्र ‘हुं अस्त्राय फट’ है। 
इससे पहले शरीर शुद्धि की जाती है; जिसमे शारीरिक विकार, 
यौन समस्याओं या रोग को दूर  कर शारीरिक चेतना बिंदुओं  को जागृत  किया जाता है, जो की गुरु शक्तिपात व अन्य क्रियाओं दुवारा करते हैं ।

संकल्प पूजा –
इसमें साधक –साधिका एक दूसरे को शिव-पार्वती, कृष्ण-राधा, इन्द्रा-इंद्राणी , भैरव-भैरवी में से किसी रूप को संकल्पित करके पूजा करते है। पूजन विधि तांत्रिक होती है; पर घरेलू स्तर पर सरल पूजन विधि भी अपनाई जा सकती है। इसका उद्देश्य मानसिक तौर पर एक-दूसरे को देव रूप में संकल्पित करना होता है।

यौनांग पूजा –
यह पूजा शिवलिंग एवं देवी पीठ की तरह की जाती है। शास्त्रीय स्तर पर पहले कामकला काली, कामाख्या, आदिशक्ति की पूजा योनि पर और भैरव जी की पूजा लिंग पर की जाती है। परन्तु सामान्य साधनाओं के लिए उस देवी –देवता की पूजा की जाती है, जिसे संकल्पित किया है।

सामान्य सरल विधि

किसी मंत्र या देवी-देवता की सिद्धि के लिए किसी एकांत में भैरवी का अंकन सिन्दूर –आटा-रक्त चन्दन से करके उसकी पूजा करने के बाद प्रतिदिन महाकाल रात्रि में एक –दूसरे को गोद में बैठाकर मानसिक एकाग्रता के साथ रूप ध्यान लगाकर मंत्र का जप किया जाता है। प्रारंभ में आधा घंटा , फिर समय बढ़ाया जाता है। धीरज , धैर्य और संयम- ये तिन इसके मूल मंत्र है। शास्त्रीय विधियां तो अनेक प्रकार की जटिल क्रियाओं से युक्त होती है; पर इस प्रकार सरल प्रक्रिया से भी बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि से कोई भी देवी-देवता या मंत्रा अल्प समय में सिद्ध होता है।

विशेष – एक मिथ्या धारणा यह है कि इन साधनाओं में रति क्रीडा के समय स्खलन नहीं किया जाता। यह गलत धारणा है। इस पर संयम करके रतिकाल को लम्बा करना और रोककर प्राप्त ऊर्जा को मंत्र के साथ उर्ध्वगामी बनाना ही इसका मुख्य तत्व है; पर यह एकाएक नहीं हो पाता। अभ्यासित करना होता है और जब तक पूर्ण नियंत्रण न हो, न तो रति वर्जित है , न ही स्खलन ।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )