Wednesday, March 6, 2019

शत्रु शमन के लिए

शत्रु शमन के लिए

साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा।

ससुराल में सुखी रहने के लिए

ससुराल में सुखी रहने के लिए

कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।

महिलाएं किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों तो

महिलाएं किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों तो

घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें।

सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।

पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता कोदूर करने हेतु

पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता कोदूर करने हेतु

रात को सोते समय पत्नी पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति पत्नी के तकिये में कपूर की २ टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर उस कमरे जला दें।

पति को वश में करने के लिए

पति को वश में करने के लिए

यह प्रयोग शुक्ल में पक्ष करना चाहिए ! एक पान का पत्ता लें ! उस पर चंदन और केसर का पाऊडर मिला कर रखें ! फिर दुर्गा माता जी की फोटो के सामने बैठ कर दुर्गा स्तुति में से चँडी स्त्रोत का पाठ 43 दिन तक करें ! पाठ करने के बाद चंदन और केसर जो पान के पत्ते पर रखा था, का तिलक अपने माथे पर लगायें ! और फिर तिलक लगा कर पति के सामने जांय ! यदि पति वहां पर न हों तो उनकी फोटो के सामने जांय ! पान का पता रोज़ नया लें जो कि साबुत हो कहीं से कटा फटा न हो ! रोज़ प्रयोग किए गए पान के पत्ते को अलग किसी स्थान पर रखें ! 43 दिन के बाद उन पान के पत्तों को जल प्रवाह कर दें ! शीघ्र समस्या का समाधान होगा !

शनिवार की रात्रि में ७ लौंग लेकर उस पर २१ बार जिस व्यक्ति को वश में करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार ७ बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है।

अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है, प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा।

शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजन स्थल पर आएं। एक थाली में केसर से स्वस्तिक बनाकर गंगाजल से धुला हुआ मोती शंख स्थापित करें और गंध, अक्षत पुष्पादि से इसका पूजन करें। पूजन के समय गोघृत का दीपक जलाएं और निम्नलिखित मंत्र का 1 माला जप स्फटिक की माला पर करें। श्रद्धा-विश्वास पूर्वक 1 महीने जप करने से किसी भी व्यक्ति विशेष का मोहन-वशीकरण एवं आकर्षण होता है। जिस व्यक्ति का नाम, ध्यान करते हुए जप किया जाए वह व्यक्ति साधक का हर प्रकार से मंगल करता है। यह प्रयोग निश्चय ही कारगर सिद्ध होता है।

मंत्र : 
ऊँ क्रीं वांछितं मे वशमानय स्वाहा।''

जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गये हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हों, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है।

गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में १२ बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति की बुद्धि का सुधार होगा और वह आपकी बात मानने लगेंगे। कुछ दिन बाद इन बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर बाहर फेंक दें। मासिक धर्म के समय करने से अधिक कारगर सिद्ध होगा।

वैवाहिक सुख के लिए

वैवाहिक सुख के लिए

कन्या का विवाह हो जाने के बाद उसके घर से विदा होते समय एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी सी हल्दी और एक पीला सिक्का डालकर उसके आगे फेंक दें, उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।

घर की कलह को समाप्त करने का उपाय

 घर की कलह को समाप्त करने का उपाय

रोजाना सुबह जागकर अपने स्वर को देखना चाहिये,नाक के बायें स्वर से जागने पर फ़ौरन बिस्तर छोड कर अपने काम में लग जाना चाहिये,अगर नाक से दाहिना स्वर चल रहा है तो दाहिनी तरफ़ बगल के नीचे तकिया लगाकर दुबारा से सो जाना चाहिये,कुछ समय में बायां स्वर चलने लगेगा,सही तरीके से चलने पर बिस्तर छोड देना चाहिये।

कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो

कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो 

यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !

प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी |

मानसिक परेशानी दूर करने के लिए

मानसिक परेशानी दूर करने के लिए

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !

व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए

 व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए

व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा। हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा।

व्यापार, विवाह यह टोटका करें

व्यापार, विवाह यह टोटका करें

व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।

रोग से छुट कारा पाने के लिए

रोग से छुट कारा पाने के लिए

यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर की पुड़िया और ५० ग्राम तिल का तेल डाल कर कीकर (देसी बबूल) की जड़ में डालें या किसी भी रविवार को दोपहर १२ बजे भैरव स्थल पर चढ़ा दें।

 बदन दर्द हो, तो मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में सिक्का चढ़ाकर उसमें लगी सिंदूर का तिलक करें।
 पानी पीते समय यदि गिलास में पानी बच जाए, तो उसे अनादर के साथ फेंकें नहीं, गिलास में ही रहने दें। फेंकने से मानसिक अशांति होगी क्योंकि पानी चंद्रमा का कारक है।

परिवार में शांति बनाए रखने के लिए

परिवार में शांति बनाए रखने के लिए

 बुधवार को मिट्टी के बने एक शेर को उसके गले में लाल चुन्नी बांधकर और लाल टीका लगाकर माता के मंदिर में रखें और माता को अपने परिवार की सभी समस्याएं बताकर उनसे शांति बनाए रखने की विनती करें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, परिवार में शांति कायम होगी।

नजर बाधा दूर करने के लिए

नजर बाधा दूर करने के लिए

 मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर तीखी गंध न आए तो नजर दोष समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।

शादी विवाह में विघ्न न पडने देने के लिये टोटका

शादी विवाह में विघ्न न पडने देने के लिये टोटका

शादी वाले दिन से एक दिन पहले एक ईंट के ऊपर कोयले से "बाधायें" लिखकर ईंट को उल्टा करके किसी सुरक्षित स्थान पर रख दीजिये,और शादी के बाद उस ईंट को उठाकर किसी पानी वाले स्थान पर डाल कर ऊपर से कुछ खाने का सामान डाल दीजिये,शादी विवाह के समय में बाधायें नहीं आयेंगी।

  

संतान होने और नही होने की पहिचान करना

संतान होने और नही होने की पहिचान करना

पुरुष और स्त्री के दाहिने हाथ मे साफ़ मिट्टी रख कर उसके अन्दर थोडा दही और पिसी शुद्ध हल्दी रखनी चाहिये,यह काम रात को सोने से पहले करना चाहिये,सुबह अगर दोनो के हाथ में हल्दी का रंग लाल हो गया है तो संतान आने का समय है,स्त्री के हाथ में लाल है और पुरुष के हाथ में पीली है तो स्त्री के अन्दर कामवासना अधिक है,पुरुष के हाथ में लाल हो गयी है और स्त्री के हाथ में नही तो स्त्री रति सम्बन्धी कारणों से ठंडी है,और संतान पैदा करने में असमर्थ है,कुछ समय के लिये रति क्रिया को बंद कर देना चाहिये।

दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका

दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका

अधिकतर पारिवारिक कारणों से दिमाग बहुत ही उत्तेजना में आजाता है,परिवार की किसी समस्या से या लेन देन से,अथवा किसी रिस्ते नाते को लेकर दिमाग एक दम उद्वेलित होने लगता है,ऐसा लगने लगता है कि दिमाग फ़ट पडेगा,इसका एक अनुभूत टोटका है कि जैसे ही टेंसन हो एक लोटे में या जग में पानी लेकर उसके अन्दर चार लालमिर्च के बीज डालकर अपने ऊपर सात बार उबारा (उसारा) करने के बाद घर के बाहर सडक पर फ़ेंक दीजिये,फ़ौरन आराम मिल जायेगा  

अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए

अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए

यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-

बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यह

प्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।

सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण

सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण

सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।

किसी रोग से ग्रसित होने पर मुक्ति मिल जाएगी

किसी रोग से ग्रसित होने पर मुक्ति मिल जाएगी

सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें ! अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें ! सेहत ठीक रहेगी !

एक रुपये का सिक्का रात को सिरहाने में रख कर सोएं और सुबह उठकर उसे श्मशान के आसपास फेंक दें, रोग से मुक्ति मिल जाएगी।  

नोकरी/जॉब के लिए परेशान तो करें यह उपाय

नोकरी/जॉब के लिए परेशान तो करें यह उपाय 

वर्तमान समय में बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या है। नौकरी न होने के कारण न तो समाज में मान-सम्मान मिलता है और न ही घर-परिवार में। यदि आप भी बेरोजगार हैं और बहुत प्रयत्न करने पर भी रोजगार नहीं मिल रहा है तो निराश होने की कोई जरुरत नहीं है। कुछ साधारण तांत्रिक उपाय कर आप रोजगार पा सकते हैं।

- शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में जाकर सवा किलो मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाएं। घी का दीपक जलाएं और मंदिर में ही बैठकर लाल चंदन की या मूंगा की माला से 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें-

कवन सो काज कठिन जग माही।
जो नहीं होय तात तुम पाहिं।।

इसके बाद 40 दिनों तक रोज अपने घर के मंदिर में इस मंत्र का जप 108 बार करें। 40 दिनों के अंदर ही आपको रोजगार मिलेगा।

- शनैश्चरी अमावस्या के दिन एक कागजी नींबू लें और शाम के समय उसके चार टुकड़े करके किसी चौराहे पर चारों दिशाओं में फेंक दें। इसके प्रभाव से भी जल्दी ने बेरोजगारी की समस्या दूर हो जाएगी।

- मंगलवार से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सुबह के समय नंगे पैर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उन्हें लाल गुलाब के फूल चढ़ाएं। ऐसा करने से भी शीघ्र ही रोजगार मिलता है।

- इंटरव्यू में जाने से पहले लाल चंदन की माला से नीचे लिखे मंत्र का 11 बार जप करें-

ऊँ वक्रतुण्डाय हुं

जप से पूर्व भगवान गणेश की पूजा करें और गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते हुए दूध से अभिषेक करें।

इस टोटके से आने लगेगा आपके घर में पैसा

इस टोटके से आने लगेगा आपके घर में पैसा

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके घर में पैसों का आगमन बिल्कुल कम होता है। उस घर के सदस्य कमाते तो बहुत हैं लेकिन घर में पैसा नहीं आ पाता। दूसरे कामों में ही खर्च हो जाता है। अगर ऐसा हो तो नीचे लिखा टोटका करने से घर में पैसों का आगमन होने लगेगा और सुख-शांति भी बनी रहेगी।

टोटका
शुक्ल पक्ष के बुधवार की शाम को किसी केले के पौधे के समीप जाएं। उस पर जल चढ़ाएं। हल्दी से तिलक करें और गुरु बृहस्पति का ध्यान कर पौधे से अगले दिन (गुरुवार को) थोड़ी सी जड़ ले जाने की आज्ञा मांगें। दूसरे दिन सूर्य निकलने पर स्नान कर केले के पेड़ की पूजा करें और लकड़ी के एक टुकड़े से पौधे की जड़ खोदकर निकल लें और घर ले आएं। इस जड़ को गंगाजल से धोकर केसर के जल में डाल दें।

घी का दीपक जलाकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र की एक माला का जप करें और उस जड़ को जल से निकालकर पीले कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें। इसके बाद प्रति गुरुवार को उस जड़ को केसर घुले गंगाजल में स्नान कराकर पुन: उस पीले कपड़े में बांध कर इस मंत्र का जप करें और पुन: तिजोरी में रखें। जब भी यह टोटका करें जरुरतमंदों को दान दें व बच्चों को मिठाई अवश्य खिलाएं। इस तरह आपके घर में धन का आगमन होने लगेगा।

ये उपाय बचाते हें टोने-टोटकों के अशुभ प्रभाव से

ये उपाय बचाते हें टोने-टोटकों के अशुभ प्रभाव से

क्या आपको लगता है कि किसी ने आपके घर पर टोना-टोटका किया है जिसके कारण आपके परिवार पर इसका अशुभ प्रभाव पड़ रहा है तो घबराईए बिल्कुल मत क्योंकि यहां हम आपको बता रहे हैं टोने-टोटको से बचने के साधारण व अचूक उपाय। इन उपायों को करने से आपके घर व परिवार पर किसी टोने-टोटके का प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह उपाय इस प्रकार हैं-

उपाय
- अपने घर के मुख्य दरवाजे पर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें और सुबह उठकर उन्हें प्रणाम करें। इसके बाद अपने द्वार, देहली व सीढ़ी आदि पर पानी का छिड़काव करें। ऐसा करने से टोने-टोटके का प्रभाव नहीं पड़ता।

- नीम, बबूल या आम में से किसी पेड़ की टहनी पत्तियों सहित मुख्य दरवाजे पर लटकाएं।

- शनिवार के दिन सात हरी मिर्च के बीच एक नींबू काले धागे में पिरोकर मुख्य द्वार पर लटकाएं। इससे भी बुरी नजर नहीं लगेगी।

- सप्ताह के किसी एक दिन घर की साफ-सफाई करने के बाद एक बाल्टी पानी में थोड़ी शक्कर और दूध डालकर कुश से उसका छिड़काव पूरे घर में करें। आखिर में शेष पानी को दरवाजे के दोनों और थोड़ा-थोड़ा डाल दें।

- अमावस के दिन एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं। इससे आपके पितर प्रसन्न होंगे और आपके घर व परिवार को टोने-टोटको के अशुभ प्रभाव से बचाएंगे।

जानिए क्या अंतर है 'टोने' व 'टोटके' में ?

जानिए क्या अंतर है 'टोने' व 'टोटके' में ?

टोने-टोटके, यह शब्द हम कई बार सुनते हैं। सुनने में यह शब्द थोड़े अजीब जरुर लगते हैं लेकिन यह तंत्र शास्त्र के एक सिक्के के दो पहलू हैं बस इनकी क्रियाओं में थोड़ा अंतर है। साधारण भाषा में कहें तो दैनिक जीवन में किए जाने वाले छोटे-छोटे उपाय टोटका कहलाते हंै जबकि टोने विशेषत: समय पडऩे पर ही प्रयोग में लाए जाते हैं। वह किसी विशेष कार्य सिद्धि के लिए किए जाते हैं। जानते हैं इनके बीच क्या अंतर है-

टोटका

जब हम किसी यात्रा पर जा रहे हो और अचानक कोई छींक दे तो हम थोड़ी देर रुक जाते हैं। ऐसे ही जब बिल्ली रास्ता काट जाती है तो हम थोड़ी देर रुक कर चलते हैं  या रास्ता बदल लेते हैं। यात्रा पर किसी विशेष कार्य पर जाने से पहले पानी पीना या दही का सेवन करना, यह सब टोटका कहलाता है। टोटके साधारण प्रभावशाली होते हैं व इनके निराकरण भी साधारण ही होते हैं।

टोना

विशेष कार्य सिद्धि के लिए हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र या किसी अन्य मंत्र का जप विधि-विधान से जप करना टोना कहलाता है। किसी यंत्र अथवा वस्तु को अभिमंत्रित करके अपने पास रखना भी टोना का ही एक रूप है। टोना टोटके का ही जटिल रूप है जो किसी विशेष कार्य की सफलता के लिए पूरे विधि-विधान से किया जाता है। टोना के लिए समय, मुहूर्त, स्थान आदि सब कुछ नियत होता है।

जब टोटके करें तो इन बातों का भी ध्यान रखें

तंत्र शास्त्र में कई प्रकार के टोटके किए जाते हैं। सभी का उद्देश्य अलग-अलग होता है। उद्देश्य के अनुसार ही उन टोटकों को करने के लिए शुभ तिथि व महीना निश्चित है। यदि इस दौरान वह टोटके किए जाए तो कई गुना अधिक फल देते हैं। नीचे टोटकों से संबंधित कुछ साधारण दिशा-निर्देश दिए गए हैं। टोटके करते समय इनका ध्यान रखें-

दिशा-निर्देश

- सम्मोहन सिद्धि, देव कृपा प्राप्ति अथवा अन्य शुभ एवं सात्विक कार्यों की सिद्धि के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके टोटके किए जाते हैं।

- मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ होता है।

- उत्तर दिशा की ओर मुख करके उन टोटकों को किया जाता है जिनका उद्देश्य रोगों की चिकित्सा, मानसिक शांति एवं आरोग्य प्राप्ति होता है।

- रोग मुक्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए मंगलवार एवं श्रावण मास उत्तम समय है।

- मां सरस्वती की प्रसन्नता व शिक्षा में सफलता के लिए बुधवार एवं गुरुवार तथा माघ, फाल्गुन और चैत्र मास में टोटका करना चाहिए।

- संतान और वैभव पाने के लिए गुरुवार तथा आश्विन, कार्तिक एवं मार्गशीर्ष मास में टोटकों का प्रयोग करना चाहिए।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हें

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हें

हर इंसान अपने दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना चाहता है। लेकिन दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं होता क्योंकि जब समय बुरा होता है तो साया भी साथ छोड़ देता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल जाए तो नीचे लिखे उपाय करें। यह उपाय आपके दुर्भाग्य कौ सौभाग्य में बदल देंगे।

उपाय

1- बरगद(बड़) के पत्ते को गुरु पुष्य या रवि पुष्य योग में लाकर उस पर हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।

2- घर के मुख्य द्वार के ऊपर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा अथवा चित्र इस प्रकार लगाएं कि उनका मुख घर के अंदर की ओर रहे। उस पर सुबह दूर्वा अवश्य अर्पित करें।

3- धन संबंधी कार्य सोमवार एवं बुधवार को करें।

4- नए कार्य, व्यवसाय, नौकरी, रोजगार आदि शुभ कार्यों के लिए जाते समय घर की कोई महिला एक मुठ्ठी काले उड़द उस व्यक्ति के ऊपर से उतार कर भूमि पर छोड़ दे तो हर कार्य में सफलता मिलेगी।

5- गरीब, असहाय, रोगी व किन्नरों की सहायता दान स्वरूप अवश्य करें। यदि संभव हो तो किन्नरों को दिए पैसे में से एक सिक्का वापस लेकर अपने कैश बॉक्स या लॉकर में रखें। इससे बहुत लाभ होगा।

6- काली हल्दी की एक गांठ शुभ मुहूर्त में प्राप्त कर अपने घर में, व्यवसायी अपने कैश बॉक्स में तथा व्यापारी अपने गल्ले में रखें।

7- रवि पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में बहेड़े की जड़ या एक पत्ता तथा शंखपुष्पी की जड़ लाकर घर में रखें। चांदी की डिब्बी में रखें तो और भी शुभ रहेगा।

अपने पति को खिलाएं खीर, बढ़ेगा प्रेम

अपने पति को खिलाएं खीर, बढ़ेगा प्रेम

अगर आपके दाम्पत्य जीवन में पहले जैसी मधुरता नहीं रही या फिर रोज किसी न किसी बात पर पति-पत्नी के बीच झगड़े होते हों तो समझ लीजिए कि आपके दाम्पत्य जीवन में प्रेम का अभाव हो गया है। इस प्रेम को बढ़ाने के लिए एक छोटा मगर असरदार उपाय इस प्रकार है-

उपाय
शुक्ल पक्ष में पडऩे वाले किसी शुक्रवार के दिन पत्नी अपने हाथों से प्रेम पूर्वक साबूदाने की खीर बनाएं लेकिन उसमें शक्कर के स्थान पर मिश्री डालें। इस खीर को सबसे पहले भगवान को अर्पित करें और इसके बाद पति-पत्नी थोड़ी-थोड़ी एक-दूसरे को खिलाएं। भगवान से सुखमय दाम्पत्य की कामना करें। इस दिन किसी लक्ष्मी मंदिर में जाकर इत्र का दान करें। अपने शयनकक्ष में इत्र कदापि न रखें। कुछ दिनों तक यह प्रयोग करते रहें । कुछ ही दिनों में दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाएगा।

इन उपायों से आएगी जीवन में खुशहाली

इन उपायों से आएगी जीवन में खुशहाली

सभी चाहते हैं कि उसके जीवन में खुशहाली रहे और सुख-शांति बनी रहे पर हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। जीवन में सुख और शांति का बना रहना काफी मुश्किल होता है। ऐसे समय में उसे अपना जीवन नरक लगने लगता है। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो आप नीचे लिखे साधारण उपायों को अपनाकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। यह उपाय इस प्रकार हैं-

- सुबह घर से काम के लिए निकलने से पहले नियमित रूप से गाय को रोटी दें।

- एक पात्र में जल लेकर उसमें कुंकुम डालकर बरगद के वृक्ष पर नियमित रूप से चढ़ाएं।

- सुबह घर से निकलने से पहले घर के सभी सदस्य अपने माथे पर चन्दन तिलक लगाएं।

- मछलियों की आटे की गोली बनाकर खिलाएं।

- चींटियों को खोपरे व शकर का बूरा मिलाकर खिलाएं।

- शुद्ध कस्तूरी को चमकीले पीले कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें।

इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा के साथ करने से जीवन में समृद्धी व खुशहाली आने लगती है।

नरसिंह संपत्ति बाधा नाशक मंत्र

नरसिंह संपत्ति बाधा नाशक मंत्र

संपत्ति बाधा नाशक मंत्र


यदि आपने किसी भी तरह की संपत्ति खरीदी है गाड़ी, फ्लेट, जमीन या कुछ और उसके कारण आया संकट या बाधा परेशान कर रही है तो संपत्ति का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह या विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें, मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है

मंत्र-

ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय

नरसिंह ऋण मोचक मंत्र

नरसिंह ऋण मोचक मंत्र

ऋण मोचक नरसिंह मंत्र

है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें
भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें
पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें
मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें
हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें, रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है

मंत्र-
ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:

यदि आप पूरे विधि विधान से भगवान नरसिंह जी का पूजन नहीं कर सकते तो आपको चलते फिरते मानसिक रूप से लघु मंत्र का जाप करना चाहिए, भगवान नरसिंह को मोर पंख चढाने से कालसर्प दोष दूर होताहै
लघु मंत्र के जाप से भी मनोरथ पूरण होते हैं

नरसिंह शत्रु नाशक मंत्र

नरसिंह शत्रु नाशक मंत्र

शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र

यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें
चौमुखे तीन दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें, रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है

मंत्र

ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः

नरसिंह यश रक्षक मंत्र

नरसिंह यश रक्षक मंत्र

यश रक्षक मंत्र

यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजनम करें
कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात तरह के अनाज दान में दें
हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें, संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है

मंत्र-

ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष

नरसिंह बीज मंत्र

नरसिंह बीज मंत्र

नरसिंह बीज मंत्र

यदि आप पूरे विधि विधान से भगवान नरसिंह जी का पूजन नहीं कर सकते तो आपको चलते फिरते मानसिक रूप से लघु मंत्र का जाप करना चाहिए, भगवान नरसिंह को मोर पंख चढाने से कालसर्प दोष दूर होताहै
लघु मंत्र के जाप से भी मनोरथ पूरण होते हैं

मंत्र-

ॐ नृम नृम नृम नरसिंहाय नमः ।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 12 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 12

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 12 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 12


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


स्त्री पुरुष की असावधानी से खतरे


स्त्री हो या पुरुष रतिकाल में दुनियादारी या घरेलू मामलों पर बातें न करें। यह ऊर्जा चक्रों को खराब करेगा। सन्तान हुई, तो वह राहु के प्रकोप से ग्रसित होगी

रतिक्रीड़ा के बाद लिंग और योनी को ठन्डे पानी से कदापि न धोएं। इसे हवा से भी बचाएं वरना नसें खराब हो जाएगी और नामर्दी या बन्ध्यापन हो सकता है

संतुलित भोजन करें। योग या व्यायाम करके शरीर को संतुलित करें; पर डायटिंग कदापि न करें. यह निश्चित तौर पर नामर्दी और बन्ध्यापन उत्पन्न करता है।

स्त्री-पुरुष की जोड़ी गर्म-सर्द होनी चाहिए। यानी स्त्री गर्म प्रकृति की हो, तो पुरुष को सर्दी प्रधान होना चाहिए। पर ऐसा तो लॉटरी जैसा ही हो सकता है। इस दशा में एक को दूध केला-एलोवीरा-हरी सब्जी-स्नार, संतरा, निम्बू आदि का सेवन करके सर्द या दोनों सर्द हो , तो एक को लहसुन, प्याज, लौंग, दाल चीनी, जिमीकंद , मांस आदि गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए। शीघ्र पतन का एक कारण समान प्रवृत्ति भी होती है

रतिकाल में अपनी श्वांसों की गति पर ध्यान देना चाहिए। हमारी नाक के दोनों छेदों से समान रूप से श्वांस नहीं चलती। एक नासिका ही शक्तिशाली रहती है और घड़ी-घड़ी बायें-दायें होती रहती है। स्त्री की बायीं और पुरुष कि दायीं नासिका चल रही हो, तो रतिक्रीड़ा सफल (सन्तान हेतु) और आनंद दायक होता है

तीन महीने गर्भ हो जाए , तो रति भूलकर भी न करें। ऐसा पशु भी नहीं करते। स्त्री और सन्तान खतरे में पड़ती है| ऋतुकाल में भी रति न करें। गंभीर रोग हो सकते है। इस समय स्त्री को भी इन्फेक्शन से बचना चाहिए

तंत्राचार्यों ने कहा है –‘विकृत भाव में रति का परिणाम सदा अनर्थकारी होता है। इससे महिषासुर उत्पन्न होता है और यह असुर मनुष्य को अधम बना देता है

उन्होंने भय, शोक, चिंता, देवगृह, पीपल के साये में , अनिच्छा से की गयी रति को भी विनाशक कहा है। दिन में की गयी रति मनुष्य को असुर बना देती है। सन्तान भी असुर ही पैदा होता है। असुरों की उत्पत्ति दिन के ही रति से हुई थी.
(वस्तुतः दिन में सूर्य की ऊर्जा अधिक –पृथ्वी की कम होती है। इससे हिंसक भाव उत्पन्न होते है। सारे हिंसक प्राणी सूर्य प्रधान होते है; इसलिए इन्हें सूर्य नहीं चाहिए और ये निशाचर कहलाते है। ये मांसाहारी होते है, हिंसक होते है. दिन की रति से स्त्री-पुरुष में यह ऊर्जा बढती है और संतान के बीज भी उसी समीकरण में उत्पन्न होता है)

भले ही कोई भैरवी साधना या तन्त्र की साधना नहीं कर रहा हो; भले ही वह कोई नास्तिक गृहस्थ हो; ये बातें सब पर लागू है। स्त्री-पुरुष माया और शिव की प्रतिकृति हैं। मन में प्रेम, श्रद्धा, अपनापन उत्पन्न कीजिये। यही रास्ता कल्याण का है। घर, परिवार, सन्तान, गृहस्थी सबका सुख मिलेगा। ऐसा नहीं है; तो कारण ढूंढिए, उस का निदान कीजिये

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 11 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 11

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 11 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 11


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi



भैरवी साधना  में साधक-साधिकाओं के लिए निर्देश



किसी भी नारी कि उपेक्षा या अपमान न करें।
कन्याओं को देवी का रूप समझकर उनकी पूजा करें।
कन्याओं-नारियों की शक्ति पर सहायता एवं रक्षा करें।
पेड़ न काटे, न कटवाएं।

मदिरापान या मांसाहार केवल साधना हेतु है। इसे व्यसन न बनाये।जो मस्तिष्क और विवेक को नष्ट कर दे; उस मदिरापान से भैरव जी कुपित होकर उसका विनाश कर देते है।

दिन में सामान्य पूजा करें। साधना 9 से 1 बजे तक रात्रि में प्रशस्त हैं।
नवमी एवं चतुर्दशी को भैरवी में स्थित देवी की पूजा करें।
इस मार्ग के आलोचकों से मत उलझे। इस संसार में भांति-भांति के प्राणी रहते है। सब की प्रवृत्ति एवं एवं सोच अलग-अलग होती है। न तो किसी को इस मार्ग कि ओर प्रेरित करे, न ही विरोध करे।
यह प्रयास रखे कि भैरवी सदा प्रसन्न रहे।

यदि वह मांसाहारी नहीं है; तो वानस्पतिक गर्म और कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन करें और विजया से निर्मित मद का प्रयोग करें।

आसन, वस्त्र लाल होते हैं। पूजा केवल 
ओर केवल निवस्त्र नग्न होकर ही करें, विशेष पूजा नवमी-चतुर्दशी को होती है। अन्य तिथियों में केवल साधना होती है।

गुरु व्यक्ति विशेष के कुंडली सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शरीर 9 नाड़ी  72 कोण 10 द्वारों का सम्पूर्ण निरिक्षण कर ही दीक्षित करते है और साधना सम्पन्न करवाते है।

साधना के अनेक स्तर है। यहाँ सामान्य स्तर दिया गया है। भैरवी को सामने बैठाकर देवी रुप कल्पना में मंत्र जप करने से मन्त्र सिद्ध होते है।
साधक-साधिका को इस पर जैतून या चमेली के  तिल के तेल से एक दूसरे की मालिश करें ।

इन चक्रों पर नीचे से ऊपर तक होंठ फेरने और चुम्बन लेने से ये शक्तिशाली होते है।
एक-दूसरे के आज्ञाचक्र को चूमने से मनासिक शक्ति प्रबल होती है।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 10 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 10

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 10 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 10


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


भैरवी साधना से पहले

भैरवी की पूजा के बाद उससे सामान्य काल में ‘देवी है’ ऐसा व्यवहार करना चाहिए। उसे भी यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उसमें देवी का वास है और वह देवी रूप हो गयी है।इसलिए प्रत्येक रात्रि साधना से पूर्व चाहे 21 मन्त्र से ही सही उसकी पूजा करनी चाहिए।

प्रथम पूजा के बाद भैरवी को साधक को भी प्रकृति पुरुष देवता मान कर उसकी पूजा करनी चाहिए। स्मरण रखें- यहाँ पूजा विधि नहीं – विश्वास और विश्वास की मानसिक दशा महत्त्वपूर्ण है। इस विश्वास के साथ प्रतिदिन की गयी सामान्य प्रार्थना –स्तुति भी पूजा का स्थान भर देती है।

प्रश्न यह उठता है कि क्या भैरवी में सचमुच देवी शक्ति अवतरित होती है?  तो इसका उत्तर हैं हां – यदि वह खुद ही संशय में न हो। विश्वास है, मानसिक भाव बंधा है; तो वह शक्ति निश्चय ही भैरवी में निवास करती है। साधक भी देवता रूप हो जाता है।

बुद्धि वादियों को यह अजीब सा लगेगा, पर यही सत्य है। मानसिक भाव पर ही सब कुछ है।

हमारे जीवन कि सामान्य प्रक्रिया भी वही है किसी ने चाहा कि वह बिजली से जगत को प्रकाशित कर दे, उसने कर दिया। किसी ने हवा में उड़ना चाहा, उसने मनुष्य को उड़ने का तरीका बता दिया । ऐसे सैकड़ों लोग रहे है, जिन्होंने तत्कालीन असम्भव को सिद्ध करना चाहा और उन्होंने कर दिया।

प्रकृति का एक ही सूत्र है, जो कामना करोगे, जो भाव होगा, सारी क्रियाएं उधर ही होंगी। तुम्हारे आसपास का ऊर्जा जगत तुम्हारी उसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए तुम्हारी ओर प्रवाहित होने लगेगा। इसके अन्तरगत तत्व विज्ञान का शाश्वत सूत्र है। नेगेटिव उत्पन्न करो । वह जैसा होगा, वैसा ही पॉजिटिव उस ओर प्रवाहित होगा। कामना और विश्वास की प्रकृति आवेशों की प्रकृति को संघनित करती है।

इसलिए अविश्वास का कोई कारण नहीं है। यह शाश्वत सूत्र है। सारे ब्रह्माण्ड की सभी इकाइयों पर लागू। प्रकृति में अपवादात्मक नियम नहीं है।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 9 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 9

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 9 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 9


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


भैरवी साधना में ‘लिंग’ और ‘योनि’ की पूजा

भैरवी मार्ग के साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं क्योंकि सृष्टि का प्रथम बीजरूप उत्पत्ति यही है। ‘लिंग’ का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। इन दोनों के मिलने से सृष्टि का आदि परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड का या किसी भी इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है। यह योनि  एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है। इसी से चाँद से शिवसार (बिंदु/अमृत/सावित्री/सती) अंदर  जाता है और हमारा जीवन तत्व यही है ।

भैरवी मार्ग का आधार सूत्र है कि मूलाधार में छिपे ऊर्जा रूप योनी-लिंग का प्रत्यक्ष रूप नर-मादा  में योनि लिंग के रूप में प्रकट होता है। यह पृथ्वी नामक ग्रह के आकर्षण शक्ति का प्रभाव है कि ये उसकी ओर प्रकट होता है। इनकी प्रकृति ही उत्तेजनात्मक है। इनकी पूजा करके इन पर जपा गया मंत्र शीघ्र ही सिद्ध होता है।

भैरवी एवं साधक की अभिषेक क्रिया

प्रथम पूजा की भांति (भैरवी पूजा) इसमें भी पहले पहले स्थान फिर अभिषेक की क्रिया होती है। मिट्टी और पंचगव्य से स्नान , फिर अंगन्यास, फिर अभिषेक । यहाँ क्रिया सम्पूर्ण रूप से नग्न निवस्त्र अवस्था में की जाती है। अभिषेक के समय मूल आद्या मंत्र से सिर पर अभिषेक द्रव्य का प्रेक्षण किया जाता है। यह द्रव्य मदिरा, मांस, मछली, वीर्य और रज को मिलाकर बनाया जाता है।

क्रियाएं एक-एक करके क्रमशः बताई जाएंगी,

भैरवी स्नान – सिर से पाँव एवं पाँव से सिर तक पानी में घोलकर छान कर साफ़ की गयी पीली मिटटी से मलकर स्नान कराना चाहिए।

मंत्र – ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं हूँ हूँ फट स्वाहा।

इसेक बाद गाय का तजा गोबर लल चन्दन और कुमकुम मिलाकर पुनः; फिर गौमूत्र से धोकर; दही, हल्दी , बेसन मिलाकर, फिर दूध में  हल्दी मिलाकर; फिर घी का मर्दन और फिर पानी। मंत्र उपर्युक्त होंगे।प्रणव बीज, दो लज्जा बीज और दो काम बीज, दो अस्त्र बीज के बाद “स्वाहा “

साधक स्नान – उपर्युक्त प्रकार से ही

मन्त्र – ॐ नमः काल भैरव हूँ अस्त्राय फट

षोडा न्यास प्रक्रिया : अंगन्यास
षोडा न्यास तन्त्र प्रकिया का एक ऐसा न्यास है , जो सभी प्रकार की साधनाओं में सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। इस न्यास के ऋषि महेश्वर, छंद, सृष्टि माया , बीज ‘क्लीं’ किलक ‘हूँ’ , शक्ति ह्रीं है।

इसमें सबसे पहला न्यास नरसिंह न्यास, फिर भैरव न्यास, फिर कामकला न्यास, फिर डाकिनी न्यास, फिर शक्ति न्यास, फिर देवी न्यास होता है।

नरसिंह न्यास
इसके ऋषि हयग्रीव, छंद गायत्री , देवता नरसिंह, बीज वर्णमाला के व्यंजन वर्ण , शक्तियाँ सोलह स्वर वर्ण समूह है।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 8 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 8

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Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


महाकाल मार्ग में भैरवी युक्त महाकाली साधना
एक विशेष बात ध्यान में रखना चाहिए कि तन्त्र का चाहे वाममार्ग हो या दक्षिण मार्ग, योग हो या पूजा क्रम – सभी में सर्वप्रथम मूलाधार की इस महाकाली को ही सिद्ध किया जाता है, जो मूलाधार के श्याम  शिवलिंग की  शक्ति है और ये खुनी लाल रंग की अपनी तरंगों का उत्सर्जन करती है। इससे रक्त, रक्त से मांस – मज्जा-हड्डी-बाल और नखों की शक्ति उत्पन्न होती है  इन सबका भक्षण करने वाली भी यही देवी है; इसलिए इन्हें इन पदार्थों से लिप्त और आभूषित रूप में ध्यान लगाया जाता है। यह विकराल शक्ति है। जब यह जागती है, तो मस्तिष्क इसके पैरों के नीचे चला जाता है और खोपड़ी का कोई महत्त्व ही नहीं रहता। इसलिए इन्हें नरमुंडों की माला से सवित रूधिर पीते स्वरुप में ध्यान किया जाताहै। शास्त्रीय कहानी कुछ और है; पर वे रूपक है। रक्तबीज आज भी हमारे अंदर है, संसार – प्रकृति में व्याप्त है।

सामान्यतया काली के नौ भेद माने जाते है। (बहुत से मार्ग में 13, 17, 23, 28 रूपों की स्थिति मानी जाती है; पर यह भिन्न –भिन्न मान्यताओं पर शरीर केअन्य चक्रों की भी गिनती हो जाती है। ऐसे तो अनंत है । इन्हें सीमा में बद्ध नहीं किया जा सकता; पर मुख्य धुरी में इसके मुख्य नौ ही वर्गीकरण माने जाते है – दक्षिण काली, भद्र काली, शमसान काली, काल काली, गुह्य काली, काम कला काली, धन काली, सिद्धि काली, चंडकाली। महाकाल संहिता में इन्ही नों रूपों का वर्गीकरण किया गया है। 

मन्त्र भेद, ध्यान भेद, पूजा भेद , विधि भेद से गुह्य काली ही कामकला काली एवं अन्य रूपों में परिवर्तित हो जाती है। कामकाली सोलह कलाओं की है। इनका मंत्र भी सोलह अक्षरों का होता है । सम्पूर्ण श्री चक्र में व्याप्त देवी सोलह कलाओं की होती है। इन सबकी  मुख्य आधार शक्ति श्री चक्र या भैरवी साधना ही होती है। इसी तरह सभी काली रूपों में काम कला काली ही प्रमुख मानी जाती है । इन्हें के मन्त्र को त्रैलोक्याकर्षण मन्त्र कहा जाता है।

यंत्र का स्वरुप

चार भुजाओं वाले दोहरी लकीरों से युक्त भूपर में अष्टदल कमल बनाकर उसकी कर्णिका में तीन त्रिकोणों की रचना की जाती है।

इसमें तीनों एक के ऊपर एक अद्योगामी होते है। बीच में बिंदु होता है। रत्न की रचना में चावल का आटा, सिन्दूर, कुमकुम , पंच रंगा, का प्रयोग किया जाता है। इसे स्वयं अपने रक्त से भी बनाया जाता है, पर यह यंत्र कागज़ पर बनता है और विशेष कार्यों के लिए होता है । बायें कोण में मायाबीज ‘ह्रीं’ दायें कोण पर क्रोध बीज ‘हूँ’। नीचे प्राश ‘आं’ एवं मध्य में ‘क्लीं’ लिखा जाता है।

पूजा विधि

सर्वप्रथम भूतशुद्धि , फिर न्यास की प्रक्रिया करके इस यंत्र के सामने भैरवी को बैठा कर उसे चक्र का पीठ मानकर पीठ्न्यास करके , स्वयं अपना करांग न्यास किया जाता है। इसके बाद यन्त्रस्थ देवी की पूजा की जाती है। तीन त्रिकोणों में जो दो खाली स्थान के त्रिकोण बनते है; उनमें बाहर बायें दायें , नीचे क्रम में संहारिणी , भीषणा एवं मोहिनी की , अंदर कुरुकुल्ला , कपालिनी, विप्रचिता की पूजा की जाती है।

अंदर के त्रिकोण के अंदर बाएँ कोण पर गौरी, कमला, माहेश्वरी, दाई और चामुंडा , कौमारी, अपराजिता . नीचे वाराही , नारसिंही की पूजा की जाती है।

इन सभी देवियों का रंग सांवला है, इनके एक हाथ में कपाल में मध है। ये हाथों में खड्ग लिए है और मुंडमालाओं से सुसज्जित हैं। ये मद पान करती है तर्जनी ऊपर उठाये नृत्य कर रही है।

विशेष विश्लेष्ण

सबसे पहले मध्य में कामकला काली का आवाहन, पूजा, होती है। इसके बाद त्रिकोणों की अंदर के क्रम से , फिर बाहर के दो रिक्तों में एक-एक करके, फिर कमला दल मध्य , फिर म्क्ला दल के मध्य रिक्त, फिर मकाल दल अग्र भाग, फिर दिकपाल ।

यह सृष्टि क्रम है। संहार क्रम बाहर से भीतर की ओर होता है। भौतिक स्वरुप में सृष्टि क्रम, मोक्ष ज्ञान आदि के लिए संहार क्रम की पूजा की जाती है। प्रत्येक  देवी-देवता की पूजा तीन –तीन बार करने का निर्देश है ।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 7 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 7

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 7 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 7


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi


सरल भैरवी साधना

इन साधानाओ को आपसी सहमती से कोई भी स्त्री-पुरुष कर सकता है; पर दोनों की सहमती आवश्यक है , चाहे वे पति-पत्नी ही क्यों न हो।

भूत शुद्धि – भूत शुद्धि एक न्यास प्रक्रिया है। स्थूल शरीर का अंदर बाहर से शुद्ध करना और शारीरिक ऊर्जा को शुद्ध करना इसका उद्देश्य होता है। साधक –साधिका की अलग-अलग भूत शुद्धि शास्त्रीय निर्देश के अनुसार गुरु ही कर सकता है|

यह सिर से पैर तक शक्तिपात द्वारा पूरी की जाती है। उद्देश्य शरीर एवं मन को शुद्ध करना होता है।
मैं यह क्रिया शक्तिपात द्वारा करता हूँ  
इसका मंत्र ‘हुं अस्त्राय फट’ है। 
इससे पहले शरीर शुद्धि की जाती है; जिसमे शारीरिक विकार, 
यौन समस्याओं या रोग को दूर  कर शारीरिक चेतना बिंदुओं  को जागृत  किया जाता है, जो की गुरु शक्तिपात व अन्य क्रियाओं दुवारा करते हैं ।

संकल्प पूजा –
इसमें साधक –साधिका एक दूसरे को शिव-पार्वती, कृष्ण-राधा, इन्द्रा-इंद्राणी , भैरव-भैरवी में से किसी रूप को संकल्पित करके पूजा करते है। पूजन विधि तांत्रिक होती है; पर घरेलू स्तर पर सरल पूजन विधि भी अपनाई जा सकती है। इसका उद्देश्य मानसिक तौर पर एक-दूसरे को देव रूप में संकल्पित करना होता है।

यौनांग पूजा –
यह पूजा शिवलिंग एवं देवी पीठ की तरह की जाती है। शास्त्रीय स्तर पर पहले कामकला काली, कामाख्या, आदिशक्ति की पूजा योनि पर और भैरव जी की पूजा लिंग पर की जाती है। परन्तु सामान्य साधनाओं के लिए उस देवी –देवता की पूजा की जाती है, जिसे संकल्पित किया है।

सामान्य सरल विधि

किसी मंत्र या देवी-देवता की सिद्धि के लिए किसी एकांत में भैरवी का अंकन सिन्दूर –आटा-रक्त चन्दन से करके उसकी पूजा करने के बाद प्रतिदिन महाकाल रात्रि में एक –दूसरे को गोद में बैठाकर मानसिक एकाग्रता के साथ रूप ध्यान लगाकर मंत्र का जप किया जाता है। प्रारंभ में आधा घंटा , फिर समय बढ़ाया जाता है। धीरज , धैर्य और संयम- ये तिन इसके मूल मंत्र है। शास्त्रीय विधियां तो अनेक प्रकार की जटिल क्रियाओं से युक्त होती है; पर इस प्रकार सरल प्रक्रिया से भी बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि से कोई भी देवी-देवता या मंत्रा अल्प समय में सिद्ध होता है।

विशेष – एक मिथ्या धारणा यह है कि इन साधनाओं में रति क्रीडा के समय स्खलन नहीं किया जाता। यह गलत धारणा है। इस पर संयम करके रतिकाल को लम्बा करना और रोककर प्राप्त ऊर्जा को मंत्र के साथ उर्ध्वगामी बनाना ही इसका मुख्य तत्व है; पर यह एकाएक नहीं हो पाता। अभ्यासित करना होता है और जब तक पूर्ण नियंत्रण न हो, न तो रति वर्जित है , न ही स्खलन ।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 6 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 6

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Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi



पुरुष के भैरवी साधना में शरीर के अंगों में अमृत बिंदु और अमृत न्यास

न्यास मंत्र – ॐ क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं श्रीं (अंग) न्यस्यते नमः

विशेष – यह भैरवी साधना के एक गुप्त मार्ग का न्यास मंत्र है। विभिन्न मार्गों में यह बदलते रहते हैं।

पुरुष अंगों में अमृत – संचरण

शुक्ल पक्ष – 1. अंगुष्ठ   2. पादपृष्ठ     3. टखना   4. घुटना   5. लिंग   6.नाभि   7. हृदय   8.स्तन   9. गला   10. नाक   11. आँख   12. कान  13. भौंव   14. कनपट्टी     15. मस्तष्क (चाँद)

कृष्ण पक्ष – 1. मस्तष्क (चाँद)   2. कनपट्टी   3. भँव   4.कान   5. आँख   6. नाक     7.गला   8.स्तन     9.ह्रदय   10. नाभि   11. लिंग 12. घुटना   13. टखना   14. पादपृष्ठ   15. अंगुष्ठ

 न्यास विधि – स्नानादि से शुद्ध होकर पाँचों उंगली के स्पर्श से दाहिने पैर के अंगूठे से मस्तष्क तक शुक्ल पक्ष में तिनं-तीन मंत्र से न्यास करें। फिर जिस तिथि में (ऊपर तालिका के अनुसार) जिस स्थान में अमृत हो; तिथि के अनुसार उस स्थान पर स्पर्श करते हुए 108 बार मंत्र जप करें। यह पुरुष की प्रकिया है। स्त्री में इसे बायें पैर के अंगूठे से प्रारंभ किया जाता है।

कृष्णपक्ष में यह न्यास इसी प्रकार मस्तक से अंगूठे तक किया जाता है। पुरुष में शुक्ल प्रति पदा से दायें अंगूठे से मस्तक तक समस्त दाया अंग फिर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से मस्तक से बायाँ अंग अंगूठे तक। स्त्री में यह क्रम उल्टा होता है। ऊपर की ओर बायें भाग से चढ़ा और दायें भाग में उतरा जाता है।

 न्यास के समय स्त्री दक्षिण मुखी , पुरुष उत्तर मुखी या स्त्री नैऋत्य मुखी , पुरुष ईशान मुखी होना चाहिए। सम्पूर्ण नग्न होकर करें  हो सके तो खुले आसमान के निचे 
करें

साधना कार्यों में अभिषेक, न्यास, दीक्षा , पूजन विधि गुरु के द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

लाभ – मानसिक शक्ति, शारीरिक ऊर्जा चक्रों की शक्ति , दृष्टि ज्योति, सुनने की शक्ति , प्रेम भाव , सुख शांति की वृद्धि होती है। सम्मोहन की शक्ति जाग्रत होती है।

गुह्य न्यास – यह गुप्त न्यास प्रकिया है। केवल अभिषेकित दीक्षित साधक/साधिका के लिए ही अनुमेय है।

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 5 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 5

SUPREME PRACTICE OF TANTRA BHAIRAVI SADHNA FROM SEX TO SALVATION PART 5 तंत्र की सर्वोच्च साधना भैरवी साधना सम्भोग से समाधि तक भाग 5


Bhairavi Sadhana from Sambhog to Samadhi



समझिये कुण्डलिनी महाशक्ति को 


मल मूत्र छिद्रों के मध्य स्थान पर मूलाधार बताया गया है। उसे चमड़ी की ऊपरी सतह नहीं मान लेना चाहिए वरन् उस स्थान की सीध में ठीक ऊपर प्रायः तीन तीन अंगुल ऊँचाई पर अवस्थित समझना चाहिए। मस्तिष्क में आज्ञाचक्र भी भ्रूमध्य भाग में कहा जाता है पर यह भी ऊपरी सतहपर नहीं तीन अंगुल गहराई पर हैं ब्रह्मरंध्र भी खोपड़ी की ऊपरी सतह पर कहाँ है? वह भी मस्तिष्क के मध्य केन्द्र में है। ठीक इसी प्रकार मूलाधार को भी मल-मूत्र छिद्रों के मध्य वाली सीध पर अन्तः गह्वर में अवस्थित मानना चाहिए। (यहाँ एक बात हजार बार समझ लेनी चाहिए किआध्यात्म शास्त्र में शरीर विज्ञान विशुद्ध रूप से सूक्ष्म शरीर का वर्णन है। स्थूल शरीर में तो उसकी प्रतीक छाया ही देखी जा सकती है। ) कभी किसी शारीरिक अंग को सूक्ष्म शरीर से नहीं जोड़ना चाहिए। मात्र उसे प्रतीक प्रतिनिधि भर मानना चाहिए। शरीर के किसी भी अवयव विशेष में वह दिव्य शक्तियाँ नहीं है जो आध्यात्मिक शरीर विज्ञान में वर्णन की गई है। स्थूल अंगों से उन सूक्ष्म शक्तियों का आभास मात्र पाया जा सकता है।

मूलाधार शब्द के दो खण्ड है। मूल+आधार। मूल अर्थात् जड़-बेस। आधार अर्थात् सहायक-सपोर्ट। जीवन सत्ता का मूल-भूत आधार होने के कारण उस शक्ति संस्थान को मूलाधार कहा जाता है। वहसूक्ष्म जगत में होने के कारण अदृश्य है। अदृश्य का प्रतीक चिह्न प्रत्यक्ष शरीर में भी रहता है। जैसे दिव्या दृष्टि के आज्ञा चक्र को पिट्यूटरी और पिनीयल रूपी दो आँखों में काम करते हुए देख सकतेहैं। ब्रह्मचक्र के स्थान पर हृदय को गतिशील देखा जा सकता है | नाभिचक्र के स्थान पर योनि आकृति का एक गड्ढा तो मौजूद ही है। मूलाधार सत्ता को मेरुदण्ड के रूप में देखा जा सकता है। अपनी चेतनात्मक विशेषताओं के कारण उसे वह पद, एवं गौरव प्राप्त होना हर दृष्टि से उपयुक्तहै। प्राण का उद्गम मूलाधार पर उसका विस्तार, व्यवहार और वितरण तो मेरुदण्ड माध्यम से हीसम्भव होता है।

मूलाधार के कुछ ऊपर और स्वाधिष्ठान से कुछ नीचे वाले भाग में शरीर शास्त्र के अनुसार ‘प्रास्टेटग्लेण्ड’ है। शुक्र संस्थान यही होता है। इसमें उत्पन्न होने वाली तरंगें काम प्रवृत्ति बन कर उभरती हैं इससे जो हारमोन उत्पन्न होते हैं, वे वीर्योत्पादन के लिए उत्तरदायी होते हैं स्त्रियों का गर्भाशय भी यही होता है। सुषुम्ना के निचले भाग में लम्बर और सेक्रल प्लैक्सस नाड़ी गुच्छक है।जननेन्द्रियों की मूत्र त्याग तथा कामोत्तेजन दोनों क्रियाओं पर इन्हीं गुच्छकों का नियन्त्रण रहता है। यहाँ तनिक भी गड़बड़ी उत्पन्न होने पर इनमें से कोई एक अथवा दोनों ही क्रियाएँ अस्त-व्यस्त हो जाती हैं बहुमूत्र, नपुंसकता, अतिकामुकता आदि के कारण प्रायः यही से उत्पन्न होते हैं। गर्भाशय की दीवारों से जुड़े हुए नाड़ी गुच्छक ही गर्भस्थ शिशु को उसके नाभि मार्ग से सभी उपयोगी पदार्थ पहुँचाते रहते हैं इन गुच्छकों को यह पहचान रहती है कि कितनी आयु के भ्रूण को क्या-क्या पोषक तत्त्व चाहिए। गर्भाशय के संवेदनशील नाड़ी गुच्छक उस अनुपात का-मात्रा का-पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं |

अतः शीघ्र और सरल रूप में इन साधानाओ से लाभ उठाने के लिए चक्र में की गयी भैरवी और घट का पूजन पर्याप्त है। यहाँ भी विधि प्रक्रिया का महत्त्व नहीं है।

साधना का काल काल रात्रि (नौ से डेढ़ बजे) तक माना जाता है। समस्त क्रियाएं केवल इसी काल में होती है।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )