Sunday, January 7, 2018

दूर्वा तंत्र

दूर्वा तंत्र 


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दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद, तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्भुकत कुंजी है।

गणेश उपासना में दूर्वा का महत्व

व्युत्पत्ति व अर्थ : दूः+अवम्‌, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। 'दूः' यानी दूरस्थ व 'अवम्‌' यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है। गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम्‌ कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है।
दूर्वा की पत्तियाँ विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए।
पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊँचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें; परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएँ।
जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं।
शमी की पत्तियाँ : शमी में अग्नि का वास है। अपने शस्त्रों को तेजस्वी रखने हेतु पांडवों ने उन्हें शमी के वृक्ष को कोटर में रखा था। जिस लकड़ी के मंथन द्वारा अग्नि उत्पन्न करते हैं, वह मंथा शमी वृक्ष का होता है।
मंदार (सफेद रुई) की पत्तियाँ : रुई व मंदार में अंतर है। रुई के फल रंगीन होते हैं व मंदार के फल सफेद होते हैं। जैसे औषधियों में पारा रसायन है, वैसे मंदार वानस्पत्य रसायन है।

दूर्वा चढ़ाने की सरल विधि

सांसारिक कामनाएँ इस संसार में आए प्रत्येक व्यक्ति को होती हैं। कई कामनाओं का संबंध मूल आवश्यकता से होता है। इसी इच्छापूर्ति की प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करता है। लेकिन भौतिक प्रयत्न से भी फल नहीं मिलने पर आशा ईश्वरीय चमत्कार की ओर जाती है।
जिसकी प्राप्ति तभी संभव होती है जब आपेक्षक सविधि कोई अनुष्ठान करता है। इसमें गणेशजी की साधना शीघ्र फलदायी है। इनके अनेक प्रयोग में उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है।
इसे किसी भी शुभ दिन प्रारंभ करना चाहिए। इसे गणेशजी की प्रतिष्ठित प्रतिमा पर करें। इक्कीस दूर्वा लेकर इन नाम मंत्र द्वारा गणेशजी को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करके एक-एक नाम पर दो-दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने एवं नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं उसकी प्रार्थना गणेशजी से करते रहने पर वह शीघ्र पूर्ण हो जाती है। इसमें इस प्रयोग के अतिरिक्त विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः

गणेशजी की कृपा में ये सहायक हैं

* लाल व सिंदूरी रंग प्रिय है।
* दूर्वा के प्रति विशेष लगाव है।
* चूहा इनका वाहन है।
* बैठे रहना इनकी आदत है।
* लिखने में इनकी विशेषज्ञता है।
* पूर्व दिशा अच्छी लगती है।
* लाल रंग के पुष्प से शीघ्र खुश होते हैं।
* प्रथम स्मरण से कार्य को निर्विघ्न संपन्न करते हैं।
* दक्षिण दिशा की ओर मुँह करना पसंद नहीं है।
* चतुर्थी तिथि इनकी प्रिय तिथि है।
* स्वस्तिक इनका चिन्ह है।
* सिंदूर व शुद्ध घी की मालिश इनको प्रसन्न करती है।
* गृहस्थाश्रम के लिए ये आदर्श देवता हैं।
* कामना को शीघ्र पूर्ण कर देते हैं।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )