Sunday, January 7, 2018

विभिन्न भावों में मंगल का फल:

विभिन्न भावों में मंगल का फल:


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१. मंगल यदि लग्न में हो तो व्यक्ति साहसी, क्रोधी, कटु वाणी, स्वाभिमानी, जिद्दी, माता को कष्ट, दामपत्य जीवन मे क्लेश, मध्यम आयु, अहंकारी, देह में कमजोरी, रक्त विकार, दैनिक दिनचर्या में कुछ परेशानी, हठी स्वभाव का हो सकता है।
२. मंगल यदि दूसरे भाव मे हो तो व्यक्ति के चेहरे में कोई दाग या निशान संभव हो सकता है ऐसा व्यक्ति बोलने में प्रवीण नही होता है, विद्या में कुछ परेशानी, धनार्जन के लिए संघर्ष, नौकरी करने वाला होता है, दूसरा भाव कुटुंब का स्थान होता है अतः कुटुंब के साथ आपसी मतभेद भी संभव तथा दामपत्य जीवन मे परेशानी भी संभव है, ऐसा जातक कुछ बंधन से कार्य भी करता है।
३. मंगल यदि तीसरे भाव मे हो तो व्यक्ति गुणवान, धनवान, सुखी और शूरवीर होता है, ऐसे व्यक्ति का पराक्रम बहुत तेज रहता है जिस कारण उसे जल्दी कोई नही दबा सकता किन्तु भाई-बहन के सुख में कुछ कमी भी ऐसे व्यक्ति को प्राप्त होती है, स्त्री से कुछ कष्ट भी संभव हो सकता है।
४. मंगल यदि चतुर्थ भाव मे हो तो व्यक्ति मातृ हीन (माता से कलह, माता से वियोग, माता को कष्ट, माता से दूर रहना), मित्र हीन (मित्रों से धोखा, मित्र के कारण परेशानी, मित्रों से लंबे समय तक संबंध न रहना), वाहन व भूमि सुख की कुछ संघर्ष उपरान्त प्राप्ति देता है चतुर्थ का मंगल चतुर्थ भाव के फल में कमी लाता है क्योंकि चतुर्थ स्थान घर व सुख का होता है और यदि गृहणी ही न रहे तो घर कैसा चतुर्थ का मंगल घर के सुख में कमी लाता है।
५. मंगल यदि पंचम भाव मे हो तो व्यक्ति को संतान सुख पूर्ण रूप से नही मिल पाता, भाग्य संघर्ष के बाद ही उदय होता है, चुगलखोर होता है, स्त्री पक्ष से असंतोष रहता है, खर्चा बहुत करता है, उच्च शिक्षा प्राप्त करता है, बुद्धि से कार्य का संचालन करता है।
६. मंगल यदि छठे भाव मे हो तो व्यक्ति लक्ष्मीवान, विख्यात, शत्रुओं को जीतने वाला, राजा के समान ऐश्वर्यशाली, कामी, भाग्यशाली, खर्च में कुछ परेशानी, स्त्री पक्ष से असंतोष प्राप्त करता है।
७. मंगल यदि सप्तम भाव मे हो तो व्यक्ति अनुचित कर्म करने वाला, रोग से पीड़ित, स्त्री से मतभेद व असंतोष, पिता से मतभेद होते रहते हैं सप्तम स्थान पत्नी का स्थान है सप्तम में मंगल होने से व्यक्ति प्रवल मांगलिक होता है जिस कारण कभी-कभी व्यक्ति के जीवनसाथी की मृत्यु तक हो जाती है, यदि किसी कन्या की कुंडली मे सप्तम में मंगल हो तो वह स्त्री अत्यधिक कामी होती है क्योंकि स्त्रियों की कामवासना का विचार मंगल से ही किया जाता है।
८. मंगल यदि अष्टम भाव मे हो ति व्यक्ति अल्पायु, धन से असंतुष्ट, मानसिक पीड़ा झेलने वाला, रोगी, जीवन साथी कलह, भाग्यशाली, अच्छे मित्रों से खुद दूरी बनाने वाला, भाई-बहन के पक्ष में कुछ असंतोष प्राप्त करने वाला, पुरुषार्थ शक्ति में कमी प्राप्त करने वाला होता है, इनके शरीर के गुप्त भाग में परेशानी व मासिक धर्म मे गड़बड़ी भी हो सकती है, ऐसा व्यक्ति अधिकतर ऋणी रहता है तथा इनको बाबासीर, भगंदर या अन्य गुदा रोग भी हो सकते हैं।
९. मंगल यदि नवम भाव मे हो तो व्यक्ति लोगों से द्वेष रखने वाला, पिता सुख में कमी, लोगों को पीड़ा पहुंचाने वाला, भाग्यशाली, भाई-बहन को कष्ट व उनसे असंतोष प्राप्त करता है।
१०. मंगल यदि दशम भाव मे तो व्यक्ति कुछ कठोर, दानी, पराक्रमी होता है ऐसे व्यक्ति की बड़े से बड़े लोग भी प्रशंसा करते हैं, राजा के समान होता है ऐसा व्यक्ति, लोगों का नेतृत्व करने की अद्भुद क्षमता होती है इनमे किन्तु पिता से मतभेद या पिता को कष्ट भी संभव हो सकता है, स्त्री पक्ष में प्रभाव की अधिकता व कुछ कटुता प्राप्त होती है इन्हें, कारोबार की शुरुवात में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है इन्हें, माता सुख की कुछ कमी हो सकती है।
११. मंगल यदि ग्याहरवें भाव मे हो तो व्यक्ति धनवान, सुखवान, शूरवीर, सुशील और शोक रहित होता है, स्त्री पक्ष से इन्हें लाभ होता है, संतान पक्ष व विद्या में कुछ कष्ट भी संभव होता है।
१२. मंगल यदि बाहरवें भाव हो तो ऐसा व्यक्ति चुगलखोर, कुछ हद तक कठोर, अधमी होता है इनके नेत्र में कोई विकार भी संभव होता है तथा ऐसा व्यक्ति अधिकतर ऋणी होता है और इन्हें बाबासीर, भगंदर या अन्य गुदा रोग भी हो सकते हैं, रोजगार ने कुछ हानि भी संभव है, भाई-बहन से कुछ असंतुष्ट रहते हैं ऐसे व्यक्ति किन्तु शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है इन्हें और स्त्री व रोजगार के पक्ष में कुछ कमजोरी भी महसूस हो सकती है।

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( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )