Friday, January 19, 2018

घर में इस दिशा में श्री गणेश बैठाकर करें पूजा

घर में इस दिशा में श्री गणेश बैठाकर करें पूजा

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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बुद्धि, ज्ञान और धन जीवन की ऐसी जरूरते हैं, जिनमें से एक के भी अभाव से पैदा रुकावटें जीवन में निराशा और असफलता ही लाती है। इन जरूरतों और विघ्रों से बचने के लिए ही हिन्दू धर्म में भगवान गणेश की पहली पूजा शुभ मानी गई है।

खासतौर पर घर में श्री गणेश की स्थापना सुख-समृद्ध बनाने वाली मानी गई है। वैसे तो किसी भी रूप में गणेश पूजा अशुभ नहीं, किंतु शास्त्रों में बताई दिशा को ध्यान रख भगवान गणेश की प्रतिमा देवालय में रखी जाए तो यह अपार बुद्धि, धन और ज्ञान की कामनाएं सिद्ध करती हैं। जानते हैं कौन-सी है यह दिशा?

शास्त्र लिखते हैं कि -

हेरम्बं तु यदा मध्ये ऐशान्यामच्युतं यजेत्।

आग्रेय्यां पञ्चवक्त्रं तु नैऋत्यां द्युमणि यजेत्।

वायव्यामम्बिकां चैव यजेन्नित्यमतन्द्रित:।।

इस मंत्र द्वारा बताया गया है कि घर की ईशान यानी उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित देवालय में भगवान गणेश की प्रतिमा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर रखें। अगर पंचदेवता बैठाएं तो श्री गणेश को बीच में विराजित करें।

- श्री गणेश से ईशान दिशा यानी उत्तर-पूर्व में श्री विष्णु,

- आग्रेय यानी दक्षिण-पूर्व में शंकर,

- नैऋत्य यानी दक्षिण-पश्चिम में सूर्य और

- वायव्य यानी उत्तर-पश्चिम दिशा में मां दुर्गा बैठाएं।

शास्त्रों में ईशान दिशा स्वर्ग की दिशा और इस दिशा में मुख कर मंत्र ध्यान या जप ज्ञान और ज्ञान से बुद्धि व धन की वृद्धि करने वाला माना गया है।
दुरूपयोग और गोपनीयता की दृष्टि से विधि अधूरी प्रकाशित की गई है

दुर्गा उपासना

दुर्गा उपासना


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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किसी भी जरुरी कार्य पर जाने से पूर्व माँ दुर्गा को नवरात्री के किसी भी दिन पञ्च लाल फूल, नारियल व गुलाबी बर्फी चढ़ाये व भगवन शिव को तीन बैल पत्र चढ़ाये| माँ व भोले शंकर से कार्य हो जाने की प्राथना करे एक फूल पंडितजी से लेकर जेब में रखकर जाये कार्य सिद्ध होगा, कार्य सिद्ध यन्त्र घर के पूजा स्थल में स्थापित कर सकते है व मनोकामना लिखकर यन्त्र के निच्चे रखे तो भी कार्य सिद्ध होगा|
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मनवांछित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मंत्र

मनवांछित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मंत्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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उभन्यासो जातवेश: स्याम ते
स्तोतारो अग्ने सूर्यजश्र्च शर्मणि।
वस्वोराय: पुरुष्चंद्रस्य भूयस:
प्रजावत: स्वपत्यस्य शाग्धिन:।

इस मंत्र ऋचा का नियमित जप करने से मनोवांछित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। ये सभी मंत्र ऋग्वेद के प्रमुख मंत्र हैं। इनका प्रयोग करने से मनुष्य जीवन का कल्याण होता ही है।
दुरूपयोग और गोपनीयता की दृष्टि से विधि अधूरी प्रकाशित की गई है

संतान-प्राप्ति के लिए मंत्र

संतान-प्राप्ति के लिए मंत्र


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अपश्यं त्वमनसा दीध्यानां
स्वायां तनू ऋत्वये नाधमानाम्
उप मामुच्या युवतिर्बभूय:
प्रजायस्व प्रजया पुत्र कामे।

पवित्र होकर व्रत करके उपरोक्त मंत्र का जाप करने से संतान की प्राप्ति होती है।
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Thursday, January 18, 2018

व्याधि नाश के लिए मंत्र

व्याधि नाश के लिए मंत्र 


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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उतदेवा अवहितं देवन्नयथा पुन:।
उतागश्र्चक्रुषं देवादेवाजीवयथा पुन:।।

मंत्र को व्रतपूर्वक जप करने से प्रत्येक रोगों का नाश होता है तथा व्याधियों से छुटकारा मिलता है।
दुरूपयोग और गोपनीयता की दृष्टि से विधि अधूरी प्रकाशित की गई है

Monday, January 15, 2018

काली माता के चमत्कारी मंत्र

काली माता के चमत्कारी मंत्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है। यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।महाकाली भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरुप, अनेक मन्त्र तथा अनेक उपासना विधियां है। यथा-श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, भद्रकाली, महाकाली आदि । दशमहाविद्यान्तर्गत भगवती दक्षिणा काली (दक्षिणकालीका) की उपासना की जाती है।इनकी  उपासना सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच होआता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।

काली के अनेक भेद हैं -

पुरश्चर्यार्णवेः
-१॰ दक्षिणाकाली        २॰ भद्रकाली        ३॰श्मशानकाली       ४॰ कामकलाकाली   
 ५॰ गुह्यकाली          ६॰ कामकलाकाली  ७॰ धनकाली         ८॰सिद्धिकाली 
 ९॰ चण्डीकाली ।


जयद्रथयामलेः-
१॰ डम्बरकाली    २॰ गह्नेश्वरी काली      ३॰एकतारा      ४॰ चण्डशाबरी      ५॰ वज्रवती
६॰ रक्षाकाली      ७॰ इन्दीवरीकाली        ८॰धनदा         ९॰ रमण्या           १०॰ ईशानकाली
 ११॰ मन्त्रमाता ।

सम्मोहने तंत्रेः-
'१॰ स्पर्शकाली    २॰ चिन्तामणि      ३॰ सिद्धकाली     ४॰ विज्ञाराज्ञी    
५॰ कामकला      ६॰ हंसकाली         ७॰ गुह्यकाली ।

तंत्रान्तरेऽपिः-
१॰ चिंतामणि काली      २॰ स्पर्शकाली       ३॰ सन्तति-प्रदा-काली४॰ दक्षिणा काली          ६॰ कामकला काली ७॰ हंसकाली              ८॰ गुह्यकाली ।

दक्षिण कालिका के मन्त्र :-
 भगवती दक्षिण कालिका के अनेक मन्त्र है, जिसमें से कुछ इस प्रकार है।


श्मशान साधना मे काली उपासना
(1) क्रीं,
(2) ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं।
(3) ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
(4) नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा।
(5) नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं।
(6) क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा।
इनमें से किसी  भी मन्त्र का जप किया जा सकता है।

पूजा -विधि :-
 दैनिक कृत्य स्नान-प्राणायम आदि से निवृत होकरस्वच्छ वस्त्र धारण कर, सामान्य पूजा-विधि से काली- यन्त्र का पूजन करें।तत्पश्चात ॠष्यादि- न्यास एंव करागन्यास करके भगवती का इस प्रकार ध्यान करें-
शवारुढां महाभीमां घोरदृंष्ट्रां वरप्रदाम्।हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।
मुक्त केशी ललजिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:। चतुर्बाहूयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥”
इसके उपरान्त मूल-मन्त्र द्वारा व्यापक-न्यास करके यथा विधि मुद्रा-प्रदर्शन पूर्वक पुनः ध्यान करना चाहिए।

पुरश्चरण : –
 कालिका मन्त्र के पुरश्चरण में दो लाख की संख्या में मन्त्र-जप कियाहै। कुछ मन्त्र केवल एक लाख की संख्या में भी जपे जाते है। जप का दशांश होमघृत द्वारा करना चाहिए । होम का दशांश तर्पण, तर्प्ण का दशांश अभिषेक तथाअभिषेक का दशांश ब्राह्मण – भोजन कराने का नियम है।

विधि -
लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लालचन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप) स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।

ध्यान  स्तुति-

खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥

जप मन्त्र-
ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥

श्री महाकाली यन्त्र


श्मशान साधना मे काली उपासना का बङा महत्व है। इसी सन्दर्भ मे महाकालीयन्त्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाट्न आदि कार्यों मेंप्रयुक्त होता है। मध्य मे बिन्दू, पांच उल्ट कोण, तीन वृत कोण, अष्टदल वृतएवं भूरपुर से आवृत महाकाली का यन्त्र तैयार करे।

इस यन्त्र का पूजन करते समय शव पर आरुढ, मुण्ड्माला धारण की हुई, खड्ग, त्रिशूल, खप्पर व एक हाथ मे नर-मुण्ड धारण की हुई, रक्त जिह्वा लपलपाती हुईभयंकर स्वरुप वाली महाकाली का ध्यान किया जाता है। जब अन्य विद्यायें विफलहो जाती है तब इस यन्त्र का सहारा लिया जाता है।चैत्र, आषाढ, आश्विन एवं माघ की अष्टमी इसकी साधना हेतु सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है।

महाकाली

त्रिलोक्य विजयस्थ कवचस्य शिव ऋषि , अनुष्टुप छन्दः, आद्य काली देवता,     
माया बीजं,रमा कीलकम , काम्य सिद्धि विनियोगः || १ ||
ह्रीं आद्य मे शिरः पातु श्रीं काली वदन ममं,      हृदयं क्रीं परा शक्तिः पायात कंठं परात्परा ||२||
नेत्रौ पातु जगद्धात्री करनौ रक्षतु शंकरी,      घ्रान्नम पातु महा माया रसानां सर्व मंगला ||३||
दन्तान रक्षतु कौमारी कपोलो कमलालया,  औष्ठांधारौं शामा रक्षेत चिबुकं चारु हासिनि ||४|
ग्रीवां पायात क्लेशानी ककुत पातु कृपा मयी, द्वौ बाहूबाहुदा रक्षेत करौ कैवल्य दायिनी ||५||
स्कन्धौ कपर्दिनी पातु पृष्ठं त्रिलोक्य तारिनी, पार्श्वे पायादपर्न्ना मे कोटिम मे कम्त्थासना ||६||
नभौ पातु विशालाक्षी प्रजा स्थानं प्रभावती, उरू रक्षतु कल्यांनी पादौ मे पातु पार्वती ||७||
जयदुर्गे-वतु प्राणान सर्वागम सर्व सिद्धिना, रक्षा हीनां तू यत स्थानं वर्जितं कवचेन च ||८||
इति ते कथितं दिव्य त्रिलोक्य विजयाभिधम, कवचम कालिका देव्या आद्यायाह परमादभुतम ||९||
पूजा काले पठेद यस्तु आद्याधिकृत मानसः, सर्वान कामानवाप्नोती तस्याद्या सुप्रसीदती ||१०||
मंत्र सिद्धिर्वा-वेदाषु किकराह शुद्रसिद्धयः, अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी प्राप्नुयाद धनं ||११|
विद्यार्थी लभते विद्याम कामो कामान्वाप्नुयात सह्स्त्रावृति पाठेन वर्मन्नोस्य पुरस्क्रिया ||१२||
पुरुश्चरन्न सम्पन्नम यथोक्त फलदं भवेत्, चंदनागरू कस्तूरी कुम्कुमै रक्त चंदनै ||१३||
भूर्जे विलिख्य गुटिका स्वर्नस्याम धार्येद यदि, शिखायां दक्षिणे बाह़ो कंठे वा साधकः कटी ||१४||
तस्याद्या कालिका वश्या वांछितार्थ प्रयछती, न कुत्रापि भायं तस्य सर्वत्र विजयी कविः ||१५||
अरोगी चिर जीवी स्यात बलवान धारण शाम, सर्वविद्यासु निपुण सर्व शास्त्रार्थ तत्त्व वित् ||१६||
वशे तस्य माहि पाला भोग मोक्षै कर स्थितो, कलि कल्मष युक्तानां निःश्रेयस कर परम ||१७||

।। श्री श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।

ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा
शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी
 वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय
रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा
 ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे
ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी
सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप
विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले
 वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके
 सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी
 मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी
 भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद
 क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके
 ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे
 हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने
उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय
कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं
 कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि
पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ
 निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने
दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा
 शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै
प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः
 ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी
तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे
तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके
 विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय
शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै
नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः
अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति
फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय
आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि
मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।


इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है ।।


सिद्ध मंत्र

प्रणाम मन्त्र

कामाख्ये कामसम्पन्ने कामेश्वरि हरप्रिये ।
कामनां देहि मे नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥

अनुज्ञा मन्त्र
कामदे कामरुपस्थे सुभगे सुरसेविते ।
करोमि दर्शनं देव्याः सर्वकामार्थसिद्धये ॥

यह चलन्ता, हरगौरी अथवा भोगमूर्ति अष्टधातुमयी है । यह प्रस्तर निर्मित पचस्तर विशिष्ट सिंहासनासीन है, मूर्ति इस प्रकार की है कि उत्तर में वृषभवाहन, पंचवक्त्र एवं दशभुज विशिष्ट कामेश्वर महादेव अवस्थित हैं । दक्षिण भाग में षडानना, द्वादशबाहुइ विशिष्टा अष्टादश लोचना सिंहवाहिनी कमलासना देवी मूर्ति है । यह मूर्ति महामाया कामेश्वरी नाम से प्रख्यात है ।

विष्णुब्रह्मशिवैर्देवैर्धृयते या जगन्मयी ।
सितप्रेतो महादेवो ब्रह्मा लोहितपंकजम् ॥
हरिर्हरिस्तु विज्ञेयो वाहनानि महौजसः ।
स्वमूर्त्ता वाहनत्वन्तु तेषां यस्मान्न युज्यते ॥

- कालिका पुराण

वही जगन्मयी कामेश्वरी ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव कर्त्तक घृत हैं, महादेव ही यहाँ सितप्रेत अर्थात् शवरुप हैं, ब्रह्मा ही लोहित पंकज हैं एवं विष्णु सिंह रुप से अवस्थित हैं, इन देवताओं को अपनी – अपनी मूर्ति में वाहन, बनना युक्ति युक्त नहीं है – इसलिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर अन्य रुप धारण कर देवी के वाहन बने हुए हैं ।’

जो साधक वाहन सहित देवी की इस मूर्ति का ध्यान एवं पूजा करते हैं, उनके द्वारा ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर ये तीनों देवता भी पूजित होते हैं ।

वार्षिक उत्सवों तथा विशेष पर्वपार्वण के दिनों में यह चलन्ता मूर्ति भ्रमण कराई जाती है । तीर्थ – यात्री पहले कामेश्वरी देवी एवं कामेश्वर शिव का दर्शन करते हैं । इसके बाद देवी के महामुद्रा का दर्शन करते हैं । देवी की योनिमुद्रा पीठ दश सोपान ( सीढ़ी ) नीचे अन्धकार पूर्ण गुफा में अवस्थित होने के कारण वहाँ सदा दीपक का प्रकाश रहता है ।

कामाख्या देवी का प्रणाम मन्त्र

कामाख्ये वरदे देवि नीलपर्वतवासिनि ।
त्वं देवि जगतां मातर्योनिमुद्रे नमोऽस्तु ते ॥

स्पर्श मन्त्र

मनोभवगुहा मध्ये रक्तपाषाण रुपिणी ।
तस्याः स्पर्शनमात्रेण पुनर्जन्म न विद्यते ॥

चरणामृत – पान मन्त्र

शुकादीनाञ्च यज् ज्ञानं यमादि परिशोधितम् ।
तदेव द्रवरुपेण कामाख्या योनिमण्डले ॥

देवी महामाया से जो जैसी याचना करते है और देवी की प्रसन्नतार्थ जप, होम, पूजा – पाठादि करते हैं, देवी उनके मन की अभीष्ट कामनाओं को उसी रुप में पूर्ण करती हैं । जो भक्तिभाव से देवी की योनिमण्डल का दर्शन, स्पर्शन तथा मुद्रा का जलपान करते हैं वे देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण से मुक्त होते हैं । यथा –

ऋणानि त्रीण्यपाकर्तुं यस्य चित्तं प्रसीदति ।
स गच्छेत् परया भक्त्या कामाख्या योनि सन्निधि ।

- योगिनी तन्त्र

पितृऋण, ऋषिऋण एवं देवऋण चुकाने के लिए जिसका मन प्रसन्न हो वह परम भक्तिभाव के साथ कामाख्या योनिमण्डल के निकट जाए ।

गवां कोटि प्रदानात्तु यत्फलं जायते नृणाम् ।

तत्फलं समवाप्नोति कामाख्या पूजयेन्नरः ॥

- कालिका पुराण

कोटि गोदान करने से मनुष्य को जो फल मिलता है वही फल कामाख्या देवी की पूजा करने से प्राप्त होता है ।

चार वर्ग क्षेत्र विशिष्ट शिलापीठ के ऊपर, जहाँ से निरन्तर पाताल से जल निकलता रहता है, वही कामाख्या का योनिमण्डल है । इस योनिमण्डल का परिमाण एक हाथ लम्बा एवं बारह अंगुल चौड़ा है और सत्तासी धनु परिमित स्थान में रुक्ष रक्त है एवं सपुलत अष्टहस्त तथा पचास हजार पुलकान्वित शिवलिंग युक्त है । यथा –

सप्तशीति धनुर्मानं रुक्षरक्त शिला च या ।
अष्टहस्तं सपुलकं लिंग लक्षार्द्धसंयुतम् ॥
चतुर्हस्त समं क्षेत्रः पश्चिमे योनिमण्डलम् ।
बाहुमात्रमिदञ्चैव प्रस्तारे द्वादशांगुलम् ॥
आपातालं जलं तत्र योनिमध्ये प्रतिस्थितम् ॥

- योगिनी तन्त्र

तृमा अंग होने के कारण इसका आधा भाग सोने के टोप से ढका रहता है और टोप को भी वस्त्र एवं पुष्प माल्यादि से आवृत तथा सुशोभित रखा जाता है । दर्शन, स्पर्शन एवं जप – पूजादि के लिए केवल एक अंश उन्मुक्त रखा जाता है । मातृअंग निपतित होकर यहाँ अवस्थित होने के कारण इस महातीर्थ को शक्तिपीठ स्थान कहा जाता है और यह सभी तीर्थों में प्रधान है । आद्याशक्ति प्रसन्न होने पर जीव को मुक्ति प्रदान करती है । अतः शक्ति साधक देवी को प्रसन्न करने के लिए कामाख्या को सर्वप्रधान शक्तिपीठ तथा तान्त्रिक क्रिया पद्धति का केन्द्र समझकर, यहाँ आकर महामुद्रा का नित्य दर्शन एवं उपासना करना जीवन का महान् कर्त्तव्य मानते हैं । इस पुण्य भारत भूमि के अनेक प्रातः स्मरणीय महापुरुषों ने इस पीठस्थान में आगमन कर तपस्या द्वारा सिद्धि लाभ किया है, इस बात का यथेष्ट प्रमाण है । आज भी उन सिद्धि साधकों के वंशधरों में से लोग यहा आते रहते हैं ।

लक्ष्मी सरस्वती महामाया की दस महाविद्या अर्थात् दस विभूतियों के अन्तर्गत षोडशी, कामाख्या देवी का ही अन्य नाम है, एवं वे ही देवीपीठ में अवस्थित हैं । इसी देवीपीठ से संलग्न पूर्वप्रान्तर में मातंगी ( सरस्वती ) एवं कमला ( लक्ष्मी ) देवी का पीठस्थान है । यहाँ यथाशक्ति पूजा कर प्रणाम करें ।

प्रणाम मन्त्र

सदाचार प्रिये देवि, शुक्ल पुष्पाम्बर प्रिये ।
गोमयादि शुचि प्रीते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः ।
वेदवेदान्तवेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च ॥

स्पर्शन मन्त्र

मध्ये च कुब्जिके देवि प्रान्ते प्रान्ते च भैरवी ।
एकैक स्पर्शनात् देव्याः कोटि जन्माघनाशनम् ॥

इसके बाद महामाया का दर्शन, स्पर्शन, पूजनादि करें । अनन्तर चलन्ता मन्दिर के चारों ओर दीवालों से संलग्न देव – देवियों की मूर्ति का दर्शन करें । मंगलचण्डी, कल्कि अवतार, युधिष्ठिर, श्री रामचन्द्र, बटुक भैरव, नारायण गोपाल, कूचविहार के राजा नर नारायण की प्राचीन मूर्ति, नील – कण्ठ महादेव, नन्दी, भृंगी, कपिल मुनि, मनसा देवी, जरत्कारु मुनि, कूचविहार के दोनों महाराजों का मन्दिर निर्माणादि विषय कीर्तिज्ञापक शिलालिपि आदि तथा पंचरत्न मन्दिर की चामुण्डा देवी का दर्शन करें ।

चामुण्डा का प्रणाम मन्त्र

महिषाघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि ।
आयुरारोग्यमैश्वर्य देहि मे परमेश्वरि ।

इसके अतिरिक्त नाटमन्दिर के भीतर, आहोम राजा राजेश्वरसिंह और गौरीनाथसिंह की शिला और ताम्रलिपियाँ हैं । यात्रियों के तीर्थकृत्य, कर्मकाण्ड विशेषकर कुमारी पूजा, दान, भोज्य उत्सर्ग आदि कर्मानुष्ठान इसी पंचरत्न मन्दिर के भीतर तीर्थ के पुजारी ब्राह्मणगण सम्पादन करवाते हैं ।

कुमारी पूजा

महातीर्थ कामाख्या में महामाया कुमारी रुप में विराजमान हैं । यात्रीगण देवी भाव से कुमारी पूजा कर कृतकृत्य होते हैं । जिस तरह प्रयाग में मुण्डन एवं काशी में दण्डी भोजन करवाने की विधि है, उसी तरह कामाख्या में कुमारी पूजा आवश्यक कर्त्तव्य है । यहाँ कुमारी पूजा करने से सर्व देवदेवियों की पूजा करने का फल प्राप्त होता है । भक्तिभाव एवं कर्त्तव्य बुद्धाय कुमार पूजा करने से अवश्य पुत्र, धन, पृथ्वी, विद्या आदि का लाभ होता है एवं मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है ।

सर्वविद्यास्वरुपा हि कुमारी नात्र संशयः ।
एकाहि पूजिता बाला सर्वं हि पूजितं भवेत् ॥

- योगिनीतन्त्र

कुमारी सर्वविद्या स्वरुपा है, इसमें सन्देह नहीं । एक कुमारी पूजा करने से सम्पूर्ण देव – देवियों की पूजा का फल होता है ।

ध्यानम्

ॐ बालरुपाञ्च त्रैलोक्य सुन्दरीं वरवर्णिनाम् ।
नानालंकार नाम्राङ्गीं भद्रविद्या प्रकाशिनीम् ।
चारुहास्यां महानन्द हदयां चिन्तयेत् शुभाम् ॥

आवाहनम्

ॐ मन्त्राक्षरमयीं देवीं मातृणां रुपधारिणीम् ।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम् ॥

प्रणाम मन्त्र

ॐ जगदवन्दे जगतपूज्ये सर्वशक्ति स्वरुपिणि ।
पूजां गृहाण कौमारी जगन्मातर्नमोऽस्तु ते ॥
देवी मन्दिर का प्रदक्षिणा मन्त्र
यानि यानीह पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ॥
दुरूपयोग और गोपनीयता की दृष्टि से विधि अधूरी प्रकाशित की गई है

Sunday, January 14, 2018

श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम्

श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम्


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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श्रीकृष्ण उवाच


त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥

तेज:स्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥

सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥

सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया।
क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥

श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥

प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥

देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥

योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥

माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया चवैष्णवी।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥

ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे।
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा चनिन्दा त्वमसतां सदा॥

महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥

वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥

विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥

राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥

तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥

दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्।
यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥

इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्।
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्छिँता॥

वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥

कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥

यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥

पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकंलभते नात्र संशय:॥

राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले।
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥

गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते।
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥

महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:।
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

भावार्थ


श्रीकृष्ण बोले - देवि! तुम्हीं सबकी जननी, मूलप्रकृति ईश्वरी हो। तुम्हीं सृष्टिकार्य में आद्याशक्ति हो। तुम अपनी इच्छा से त्रिगुणमयी बनी हुई हो। कार्यवश सगुण रूप धारण करती हो। वास्तव में स्वयं निर्गुणा हो। सत्या, नित्या, सनातनी एवं परब्रह्मस्वरूपा हो, परमा तेज:स्वरूपा हो। भक्त ों पर कृपा करने के लिये दिव्य शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधारा, परात्परा, सर्वबीजस्वरूपा, सर्वपूज्या, निराश्रया, सर्वज्ञा, सर्वतोभद्रा (सब ओर से मङ्गलमयी), सर्वमङ्गलमङ्गला, सर्वबुद्धिस्वरूपा, सर्वशक्ति रूपिणी, सर्वज्ञानप्रदा देवी, सब कुछ जानने वाली और सबको उत्पन्न करने वाली हो। देवताओं के लिये हविष्य दान करने के निमित्त तुम्हीं स्वाहा हो, पितरों के लिये श्राद्ध अर्पण करने के निमित्त तुम स्वयं ही स्वधा हो, सब प्रकार के दानयज्ञ में दक्षिणा हो तथा सम्पूर्ण शक्ति यां तुम्हारा ही स्वरूप हैं। तुम निद्रा, दया और मन को प्रिय लगने वाली तृष्णा हो। क्षुधा, क्षमा, शान्ति, ईश्वरी, कान्ति तथा शाश्वती सृष्टि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्रद्धा, पुष्टि, तन्द्रा, लज्जा, शोभा और दया हो। सत्पुरुषों के यहाँ सम्पत्ति और दुष्टों के घर में विपत्ति भी तुम्हीं हो। तुम्हीं पुण्यवानों के लिये प्रीतिरूप हो, पापियों के लिये कलह का अङ्कुर हो तथा समस्त जीवों की कर्ममयी शक्ति भी सदा तुम्हीं हो। देवताओं को उनका पद प्रदान करने वाली तुम्हीं हो। धाता (ब्रह्मा)-का भी धारण-पोषण करने वाली दयामयी धात्री तुम्हीं हो। सम्पूर्ण देवताओं के हित के लिये तुम्हीं समस्त असुरों का विनाश करती हो। तुम योगनिद्रा हो। योग तुम्हारा स्वरूप है। तुम योगियों को योग प्रदान करने वाली हो। सिद्धों की सिद्धि भी तुम्हीं हो। तुम सिद्धिदायिनी और सिद्धयोगिनी हो। ब्रह्माणी, माहेश्वरी, विष्णुमाया, वैष्णवी तथा भद्रदायिनी भद्रकाली भी तुम्हीं हो। तुम्हीं समस्त लोकों के लिये भय उत्पन्न करती हो। गाँव-गाँव में ग्रामदेवी और घर-घर में गृहदेवी भी तुम्हीं हो। तुम्हीं सत्पुरुषों की कीर्ति और प्रतिष्ठा हो। दुष्टों की होने वाली सदा निन्दा भी तुम्हारा ही स्वरूप है। तुम महायुद्ध में दुष्टसंहाररूपिणी महामारी हो और शिष्ट पुरुषों के लिये माता की भाँति हितकारिणी एवं रक्षारूपिणी हो। ब्रह्मा आदि देवताओं ने सदा तुम्हारी वन्दना, पूजा एवं स्तुति की है। ब्राह्मणों की ब्राह्मणता और तपस्वीजनों की तपस्या भी तुम्हीं हो, विद्वानों की विद्या बुद्धिमानों की बुद्धि, सत्पुरुषों की मेधा और स्मृति तथा प्रतिभाशाली पुरुषों की प्रतिभा भी तुम्हारा ही स्वरूप है। राजाओं का प्रताप और वैश्यों का वाणिज्य भी तुम्हीं हो। विश्वपूजिते! सृष्टिकाल में सृष्टिरूपिणी, पालनकाल में रक्षारूपिणी तथा संहारकाल में विश्व का विनाश करने वाली महामारीरूपिणी भी तुम्हीं हो। तुम्हीं कालरात्रि, महारात्रि तथा मोहिनी, मोहरात्रि हो; तुम मेरी दुर्लङ्घय माया हो, जिसने सम्पूर्ण जगत् को मोहित कर रखा है तथा जिससे मुग्ध हुआ विद्वान पुरुष भी मोक्षमार्ग को नहीं देख पाता।

महिमा


इस प्रकार परमात्मा श्रीकृष्ण द्वारा किये गये दुर्गा के दुर्गम संकटनाशनस्तोत्र का जो पूजाकाल में पाठ करता है, उसे मनोवाञ्िछत सिद्धि प्राप्त होती है। जो नारी वन्ध्या, काकवन्ध्या, मृतवत्सा तथा दुर्भगा है, वह भी एक वर्ष तक इस स्तोत्र का श्रवण करके निश्चय ही उत्तम पुत्र प्राप्त कर लेती है। जो पुरुष अत्यन्त घोर कारागार के भीतर दृढ बन्धन में बँधा हुआ है, वह एक ही मास तक इस स्तोत्र को सुन ले तो अवश्य ही बन्धन से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य राजयक्ष्मा, गलित कोढ, महाभयंकर शूल और महान् ज्वर से ग्रस्त है, वह एक वर्ष तक इस स्तोत्र का श्रवण कर ले तो शीघ्र ही रोग से छुटकारा पा जाता है। पुत्र, प्रजा और पत्‍‌नी के साथ भेद (कलह आदि) होने पर यदि एक मास तक इस स्तोत्र को सुने तो इस संकट से मुक्ति प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है। राजद्वार, श्मशान, विशाल वन तथा रणक्षेत्र में और हिंसक जन्तु के समीप भी इस स्तोत्र के पाठ और श्रवण से मनुष्य संकट से मुक्त हो जाता है। यदि घर में आग लगी हो, मनुष्य दावानल से घिर गया हो अथवा डाकुओं की सेना में फँस गया हो तो इस स्तोत्र के श्रवण मात्र से वह उस संकट से पार हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो महादरिद्र और मूर्ख है, वह भी एक वर्ष तक इस स्तोत्र को पढे तो निस्संदेह विद्वान और धनवान् हो जाता है।

रचनाकार 
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड से उद्धृत इस स्तोत्र का स्तवन भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया था।

नवदुर्गा स्तोत्रम्

नवदुर्गा स्तोत्रम्

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॥देवी शैलपुत्री॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥1॥

मैं अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए देवी शेलपुत्री की पूजा करता हूं, जो उसके सिर पर चंद्रमा सुशोभित है बैल पर सवार हैं, त्रिशूल हैं और वह अदभुत हैं

॥देवी ब्रह्मचारिणी॥

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥2॥

देवी ब्रह्चाकारी, जो माला और कमांडलू को अपने हाथ में रखती हैं मुझ पर कृपा करें

॥देवी चन्द्रघण्टा॥

पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥3॥

हे देवी चंद्रघंटा , जो सिंह पर सवार है, दसों हाथों में विभिन शास्त्रों से शुशोभित शत्रु को भयभीत करने वाली मेरा कल्याण करे ।

॥देवी कूष्माण्डा॥

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥4॥

देवी कुष्मंदा के कमल हाथों में सूरा ( मदिरा )और रक्त से भरे दो कलश है, माँ मेरे लिए अनुकूल हो।

॥देवी स्कन्दमाता॥

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥5॥

स्कंदमाता, जो कार्तिकेय के साथ सिंह पर सवार हैं, वरमुद्रा और हाथों में कमल से शुशोभित माँ मेरे लिए अनुकूल हो।

॥देवी कात्यायनी॥

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना|
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि ॥6॥

देवी कात्यानी , जो दस हाथों में चन्द्रहास तलवार और अन्य शस्त्रों से शुशोभित सिंह पर सवार असुरों का नाश करने वाली माँ मेरा कल्याण करे |

॥देवी कालरात्रि॥

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,
लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा,
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥7॥

गधे पर सवार वह नग्न है, लंबी जीभ, चमकदार शरीर बिजली की तरह पैरों में गहने पहने हुए, श्याम वर्ण की, खुले केशों वाली , बड़ी आँखें और कान और बहुत भयानक दिखते हैं। कलरात्री के इस रूप  से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और दूसरों के द्वारा किये गए सभी दुष्कर्म नष्ट हो जाते हैं ।

॥देवी महागौरी॥

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा ॥8॥

देवी महागौरी जो सफेद बैल पर सवार हैं, शुद्ध सफेद वस्त्र धारण किये हुए  खुशी की दाता हैं, मेरे लिए अनुकूल हो।

॥देवी सिद्धिदात्रि॥

सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥9॥

सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता , राक्षस इत्यादि से पूजित देवी सिद्धिदात्री, उनके हाथों में शंख, चक्र, गधा और कमल से शुशोभित  हैं, सभी सिद्धियों और सभी को विजयश्री सिद्धि  देने वाली माँ  मेरे लिए अनुकूल हों ।

॥इति श्री नवदुर्गा स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

दुर्गा उपासना

दुर्गा उपासना


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किसी भी जरुरी कार्य पर जाने से पूर्व माँ दुर्गा को नवरात्री के किसी भी दिन पञ्च लाल फूल, नारियल व गुलाबी बर्फी चढ़ाये व भगवन शिव को तीन बैल पत्र चढ़ाये| माँ व भोले शंकर से कार्य हो जाने की प्राथना करे एक फूल पंडितजी से लेकर जेब में रखकर जाये कार्य सिद्ध होगा, कार्य सिद्ध यन्त्र घर के पूजा स्थल में स्थापित कर सकते है व मनोकामना लिखकर यन्त्र के निच्चे रखे तो भी कार्य सिद्ध होगा|


हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है

हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है

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क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय
ध्वनि कंठ से निहिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है
और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है
उसके पीछे कुछ कारण है ,
अंग्रेजी भाषा में ये बात देखने में नहीं आती |

क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |

च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर देखिये |

त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल
कर देखिये ।

हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये |
इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है !! ....
जय हिन्द जय हिन्दू

गायत्री मंत्र कब ज़रूरी है

गायत्री मंत्र कब ज़रूरी है


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सुबह उठते वक़्त 8 बारअष्ट कर्मों को जीतने के लिए !!
भोजन के समय 1 बार अमृत समान भोजन प्राप्त होने के लिए !!
बाहर जाते समय 3 बार  समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए !!
मन्दिर में 12 बार
प्रभु के गुणों को याद करने के लिए !!
छींक आए तब गायत्री मंत्र उच्चारण 1 बार अमंगल दूर करने के लिए !!
सोते समय 7 बार सात प्रकार के भय दूर करने के लिए !!

हनुमान जी का विवाह भी हुआ था

हनुमान जी का विवाह भी हुआ था

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो सभी परिचित हैं उन्हें बाल ब्रम्हचारी भी कहा जाता है...
लेकिन .... उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं..
कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर मे चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं.
आन्ध्र प्रदेश के खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में ख़ास है..
ख़ास इसलिए की यहाँ हनुमान जी अपने ब्रम्हचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है. हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आये हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे. और बाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है..

लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है.

इसका सबूत है आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का।
ये मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था।
लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे।

पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे।
कुछ विशेष परिस्थियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन मे बंधना पड़ा।
हनुमान जी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमान, सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे...
सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते।

लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।

कुल ९ तरह की विद्या में से हनुमान जी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बची चार तरह की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे.
हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे।

इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वो धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी को विवाह की सलाह दी.. और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान जी भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए।
लेकिन हनुमान जी के लिए दुल्हन कौन हो और कहा से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे..
ऐसे में सूर्यदेव ने अपने शिष्य हनुमान जी को राह दिखलाई। सूर्य देव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया।

इसके बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई।
इस तरह हनुमान जी भले ही शादी के बंधन में बांध गए हो लेकिन शाररिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं.

पराशर संहिता में तो लिखा गया है की खुद सूर्यदेव ने इस शादी पर यह कहा की - यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ .. , , ,

सूर्य के बारह रूप भाव

सूर्य के बारह रूप भाव

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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सूर्य का रूप पिता के रूप मे माना जाता है,

पहले भाव का सूर्य अपना पिता होता है,

दूसरे भाव का सूर्य जीवन साथी के ताऊ के रूप मे जाना जाता है

तीसरा सूर्य जीवन साथी का पिता माना जाता है

चौथा सूर्य माता का पिता माना जाता है

पंचम सूर्य भाभी का पिता माना जाता है

छठा सूर्य जीवन साथी के मामा मौसी का पिता माना जाता है

सप्तम सूर्य जीवन साथी का पिता माना जाता है

अष्टम सूर्य खुद के ताऊ के रूप मे जाना जाता है

नवा सूर्य खुद के पिता के रूप मे होता है

दसवा सूर्य भाभी के मामा के रूप मे माना जाता है

ग्यारहवा सूर्य पुत्र वधू के पिता के रूप मे जाना जाता है

बारहवा सूर्य खुद की मामी मौसा का पिता का माना जाता है

श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् व मंत्र

श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् व मंत्र

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II
शंकर उवाच रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II

II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II

श्री मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं

श्री मंगल चंडिका मंत्र

"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके ऐं क्रूं फट् स्वाहा "

कामाख्या चालीसा KAMAKHYA CHALISA

कामाख्या चालीसा KAMAKHYA CHALISA

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॥ दोहा ॥

सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि ।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि ॥
===============================

जै जै कामाख्या महारानी । दात्री सब सुख सिद्धि भवानी ॥
कामरुप है वास तुम्हारो । जहँ ते मन नहिं टरत है टारो ॥
ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा । पुरवहु सदा भगत मन आसा ।
ऋद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई । जो जन ध्यान धरै मनलाई ॥
जो देवी का दर्शन चाहे । हदय बीच याही अवगाहे ॥
प्रेम सहित पंडित बुलवावे । शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे ॥
अपने गुरु से आज्ञा लेकर । यात्रा विधान करे निश्चय धर ।
पूजन गौरि गणेश करावे । नान्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे ॥
शुक्र को बाँयें व पाछे कर । गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर ॥
जब सब ग्रह होवें अनुकूला । गुरु पितु मातु आदि सब हूला ॥
नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे । आशीर्वाद जब उनसे पावे ॥
सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई । यात्रा तबहिं करे सुख होई ॥
जो चह सिद्धि करन कछु भाई । मंत्र लेइ देवी कहँ जाई ॥
आदर पूर्वक गुरु बुलावे । मन्त्र लेन हित दिन ठहरावे ॥
शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे । प्रसन्न होई दक्षिणा देवै ॥
ॐ का नमः करे उच्चारण । मातृका न्यास करे सिर धारण ॥
षडङ्ग न्यास करे सो भाई । माँ कामाक्षा धर उर लाई ॥
देवी मन्त्र करे मन सुमिरन । सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन ॥
जिससे होई प्रसन्न भवानी । मन चाहत वर देवे आनी ॥
जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई । दान देय ऋत्विज कहँ जाई ॥
विप्रबंधु भोजन करवावे । विप्र नारि कन्या जिमवावे ॥
दीन अनाथ दरिद्र बुलावे । धन की कृपणता नहीं दिखावे ॥
एहि विधि समझ कृतारथ होवे । गुरु मन्त्र नित जप कर सोवे ॥
देवी चरण का बने पुजारी । एहि ते धरम न है कोई भारी ॥
सकल ऋद्धि - सिद्धि मिल जावे । जो देवी का ध्यान लगावे ॥
तू ही दुर्गा तू ही काली । माँग में सोहे मातु के लाली ॥
वाक् सरस्वती विद्या गौरी । मातु के सोहैं सिर पर मौरी ॥
क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा । तन का रंग है मातु का कृष्णा ।
कामधेनु सुभगा और सुन्दरी । मातु अँगुलिया में है मुंदरी ॥
कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि । कंठमाल माता ने ले धरि ॥
तृषा सती एक वीरा अक्षरा । देह तजी जानु रही नश्वरा ॥
स्वरा महा श्री चण्डी । मातु न जाना जो रहे पाखण्डी ॥
महामारी भारती आर्या । शिवजी की ओ रहीं भार्या ॥
पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा । तेज मातु तन जैसे दिवा ॥
उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा । पुर हिं भगतन की अभिलाषा ॥
रजस्वला जब रुप दिखावे । देवता सकल पर्वतहिं जावें ॥
रुप गौरि धरि करहिं निवासा । जब लग होइ न तेज प्रकाशा ॥
एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई । जउन चहै जन सो होई जाई ॥
जो जन यह चालीसा गावे । सब सुख भोग देवि पद पावे ॥
होहिं प्रसन्न महेश भवानी । कृपा करहु निज - जन असवानी ॥

॥ दोहा ॥

कर्हे गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख खानि ।
जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि ॥

जय माँ कामाख्या

अश्वत्थ (पीपल) का बाँदा

अश्वत्थ (पीपल) का बाँदा 


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आम, पीपल, वट, पाकर,और गूलर ये पवित्र पंचपल्लव श्रेणी में आते हैं;जिनमें पाकड़,पीपल,और वट क्रमशः सृष्टि के मूल ब्रह्मा-बिष्णु-महेश कहे जाते हैं।इन तीनों पौधों को एकत्र(एक ही थल में)लगाने का बड़ा ही शास्त्रीय महत्त्व है- इसे त्रिसंकट कहते हैं।

त्रिसंकट-
वृक्ष स्थापन,पूजन,दर्शन को बड़ा ही धार्मिक कार्य माना गया है।ये वृक्ष आसानी से प्रायः सभी जगह पाये जाते हैं। इनकी विशेषता यह है कि इनका बीज सामान्य वातावरण में उत्पन्न नहीं होते, यानी आप बीज लगाना चाहें तो अंकुरित नहीं होंगे;किन्तु इनके मीठे सुस्वादु फलों को पक्षी भक्षण करते हैं।उनके उदर की उष्मा से बीजों को अंकुरित होने की क्षमता प्राप्त होती है।इस प्रकार पक्षियों के बीटों(मल) से प्राप्त बीज सहज ही उग आते हैं।
वास्तु शास्त्र में पीपल वृक्ष का स्थान भवन के पश्चिम दिशा में होना लाभकारी कहा गया है,यानी वट के ठीक विपरीत। वहाँ अवस्थित होकर भवन-रक्षा का कार्य करता है पीपल का पौधा।

आयुर्वेद एवं तन्त्र ग्रन्थों में इनके सैकड़ों प्रयोग भरे पड़े हैं।यहाँ हमारा प्रसंग पीपल वृक्ष का बाँदा-विवेचन है।यदि सौभाग्य से पीपल का बाँदा प्राप्त हो जाय तो पूर्व निर्दिष्ट विधियों से उसे अश्विनी नक्षत्र में ग्रहण करें और विधिवत स्थापन- पूजनोंपरान्त किसी इच्छुक स्त्री को लोककल्याणार्थ प्रदान करें।उसे गाय के कच्चे दूध के साथ पीस कर,गाय के ही कच्चे दूध के साथ पिला दें- रविपुष्य/गुरुपुष्य योग में तो निश्चित ही वन्ध्या को भी सुन्दर-स्वस्थ संतान की प्राप्ति होगी। ध्यातव्य है कि यह अन्यान्य स्त्री दोषों का भी अमोघ निवारण है।हाँ,यदि पुरुष में भी दोष हो तो उसका निवारण पहले कर लेना चाहिए। तभी स्त्री पर उसकी सफलता प्राप्त होगी। यहाँ एक बात का और भी ध्यान रखना है कि शिव एवं शक्ति मंत्रों के साथ-साथ संतानगोपालमंत्र का भी पुरश्चरण(या कम से कम चौआलिस हजार जप) विधिवत दशांश हवन, तर्पण,मार्जन,एवं पांच वटुक भोजन दक्षिणा सहित होना अति आवश्यक है।

पीपल के अन्य प्रयोग-

१. श्रीकृष्ण ने गीता के विभूतियोग में स्वयं को पीपल कहा है।हम ऊपर कह आये हैं कि पीपल साक्षात् बिष्णु का स्वरुप है।एक पौराणिक प्रसंग के अनुसार शनिवार को शनिदेव का वास पीपल में होता है।यही कारण है कि शनि की प्रसन्नता हेतु शनिवार को पीपल में गूड़ मिश्रित जल प्रदान करने का विधान है। यह कार्य पश्चिमाभिमुख करना चाहिये। सायं काल पीपल-तल में दीप-दान से भी शनि प्रसन्न होते हैं।

२. देव वर्ग से इतर- प्रेत,वैताल,भैरव,यक्षिणी आदि का भी प्रिय वृक्ष पीपल है। ये क्षुद्र योनियाँ पीपल पर प्रायः वास करती हैं। पीपल के जड़ में नित्य जलार्पण से ये प्रेत योनियाँ प्रसन्न होती हैं। हिन्दु रीति के अनुसार दशगात्र तक पीपल के जड़ में यथाविधि जल डालने का विधान है। किसी व्यक्ति को किसी तरह की अन्तरिक्ष वाधा हो तो नित्य, पीपल की पंचोपचार सेवा से अवश्य लाभ होगा। किसी अनाड़ी ओझा-गुनी-तान्त्रिक के पास भटकने से अच्छा है कि श्रद्धा-विश्वास पूर्वक पीपल की पूजा करे। किसी जटिल रोग-बीमारी की स्थिति में (जहाँ डॉक्टरी निदान और उपचार कारगर न हो रहा हो)पीपल के पत्ते पर सायंकाल में दही और साबूत उड़द रख कर पीपल के जड़ के समीप रख दें,और थोड़ा जल देकर प्रार्थना करे- हे प्रभो! आप मेरा संकट दूर करें। सप्ताह भर के इस प्रयोग से अद्भुत लाभ होगा।

३. धर्मशास्त्रों में पीपल का गुणगान भरा पड़ा है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल बहुत महत्त्वपूर्ण है।किसी शुभ मुहूर्त(पंचांग में वृक्षारोपण मुहूर्त देखकर) में पीपल का वृक्ष लगाकर उसकी सेवा करें। जैसे-जैसे वृक्ष बड़ा होगा आपकी यश-कीर्ति,मान-सम्मान,धन-सम्पदा,आरोग्य की वृद्धि होती जायेगी।

४. दरिद्रता निवारण के लिए किसी अनुकूल पीपल वृक्ष-तल में शिवलिंग(आठ अंगुल से अधिक नहीं) स्थापित कर,पंचोपचार पूजनोपरान्त नित्य ग्यारह माला शिव पंचाक्षर मंत्र का जप करें। थोड़े ही दिनों में चमत्कारिक लाभ होगा।

५. हनुमद्दर्शन—सामान्य नियम है कि किसी वृक्ष के नीचे शयन नहीं करना चाहिए, विशेष कर रात्रि में तो बिलकुल ही नहीं;विशेष परिस्थिति में पीपल इसका अपवाद है। किसी पवित्र वातावरण में लगे पीपल वृक्ष के समीप(नीचे) बैठकर अठारह /इक्कीश दिनों तक हनुमान की पूजा,जप, स्तवन,एवं रात्रि शयन आदि करने से प्रत्यक्ष, या कम से कम स्वप्न में तो निश्चित ही दर्शन हो सकता है।

इसके लिए किसी शुभ नक्षत्र-योगादि का विचार करके कठोर ब्रह्मचर्य पालन करते हुए सप्तशती के दूसरे(लक्ष्मी)बीज,आदि प्रणव,अन्त नमः तथा हनुमते रामदूताय- मन्त्र का ग्यारह माला नित्य के हिसाव से जप करने से अभीष्ट सिद्धि अवश्य होती है। अनुष्ठान समाप्ति पर षोडशोपचार पूजन सहित रोट(सिर्फ दूध में सने हुए गुड़ मिश्रित आटे की मोटी रोटी के आकार का शुद्ध धी में तला हुआ पकवान) का नैवेद्य अर्पण करे,तथा कुल जप का दशांश 

ज्ञान गंगा

ज्ञान गंगा


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हमारा ऋग्वेद हमे बांटकर खाने को कहता है...!
हम जो अनाज खेतों मे पैदा करते है, उसका बंटवारा तो देखिए...!

1, जमीन से चार अंगुल भूमि का,
2, गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नि की
4, बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,
5, गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियो का फिर आटा गूथने के बाद
6, चुटकी भर गुथा आटा मछलियो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की ----------और,
8, पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की और फिर हमारी और,
9, आखरी रोटी कुत्ते की,

उच्छिष्ट --गाय के बछड़े के पीने के बाद दुहा गया दुग्ध ,
शिवनिर्माल्य --शिव जी के ऊपर चढ़ी वस्तु -जैसे गंगा जी ,
वमन--मुख से निकली हुई --जैसे मधुमक्खी फूलों का रस चूसकर पुनः उसे मुख से निकाल कर मधु बना देती है अर्थात मधु ,
शव का वस्त्र ---कोशे का वस्त्र --इसे कीड़े के मरने के बाद उसके ऊपरी भाग के रेशे से बनाते हैं |
यह कौशेय वस्त्र चूँकि कीड़े के मरने के बाद बनता है इसलिए उससे सम्बद्ध होने के कारण ही इसे शववस्त्र कहा गया है |
और कौवे की विष्ठा से उत्पन्न --पीपल ---ये ५ वस्तुएं अति पवित्र मानी गयी हैं |


ये हमे सिखाती है हमारी भारतीय संस्कृति और मुझे गर्व है कि मै इस संस्कृति का हिस्सा हूं |

श्री लक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम् : Shri Lakshmi Dwadash Naam Stotram

श्री लक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम् : Shri Lakshmi Dwadash Naam Stotram


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श्रीदेवी प्रथमं नाम द्वितीयं अमृत्तोद्भवा
तृत्तीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थं लोकसुन्दरी 

पञ्चमं विष्णुपत्नी च षष्ठं स्यात् वैष्णवी तथा 
सप्ततं तु वरारोहा अष्टमं हरिवल्लभा 

नवमं शार्गिंणी प्रोक्ता दशमं देवदेविका 
एकादशं तु लक्ष्मीः स्यात् द्वादशं श्रीहरिप्रिया 

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः 
आयुरारोग्यमैश्वर्यं तस्य पुण्यफलप्रदम्

द्विमासं सर्वकार्याणि षण्मासाद्राज्यमेव च
संवत्सरं तु पूजायाः श्रीलक्ष्म्याः पूज्य एव च

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं
दासीभूत समस्त देववनितां लोकैक दीपांकुराम् ।

श्रीमन्मन्दकटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेन्द्र गंगाधरां
त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ।।६।।

। । इति श्रीलक्ष्मीद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् । ।

श्रीदेवी 
अमृत्तोद्भवा 
कमला 
लोकसुन्दरी 
विष्णुपत्नी
वैष्णवी
वरारोहा 
हरिवल्लभा 
शार्गिंणी
देवदेविका 
लक्ष्मीः

श्रीहरिप्रिया 

स्वामी कार्तिककेय द्वारा श्री गणेशस्तोत्रं

स्वामी कार्तिककेय द्वारा श्री गणेशस्तोत्रं


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स्वामी कार्तिककेय द्वारा श्री गणेश का स्तवन
भक्तमनोरथसिद्धीप्रद स्तोत्रं
नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे
असम्प्रज्ञातमूधर्ने ते तयोर्योगमयाय च
वामाङगे भ्रांतिरूपा ते सिद्धीः सर्वप्रदा प्रभो
भ्रांतिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दछिणाङगके
मायासिद्धीस्तथा देवो मायिको बुद्धि संज्ञीतः
तयोयो्रगे गणेशान त्वं स्थितोसि नमोस्तु ते
जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्राहावाचकः तयोयो्रगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नमः चतुविर्धं
जगत्सर्वं ब्राह्मवाचकः हस्ताश्चत्वार एवं ते चतुर्भुज नमोस्तु ते स्वसंवेधं च
यद्ब्रह्म तत्र खेलकरो भवान्
तेन स्वानन्दवासी त्वं स्वानन्दपतये नमः
द्वन्द्वं चरसि भक्तानां तेषां हदिं समास्थितः
चौरवत्तेन तेभूद् वै मुषको वाहनं प्रभो
जगति ब्रह्मणि स्थित्वा भोगान् भुङ्छे स्वयोगतः जगदिभ्ब्ररहाभिस्तेन चेष्टितं ज्ञायते न च
चौरवदोभ्गकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम्
मूषको मूषकारूढ़ो हेरम्बाय नमो नमः
किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशांतिधरं परम
वेदादयो ययुः शांतिमतो देवं नमाम्यहम्
इति स्तोत्रं समाकर्णय गणेशस्तमुवाच ह
वरं वृणु महाभाग दास्यामि दुर्लभं हा्पि
त्वया कृतमिदं स्तोत्रं योगशांतिप्रदं भवेत्
मयि भक्तिकरं स्कंद सर्वसिद्धीप्रदं तथा
यं यमिच्छसि तं तं वै दास्यामि स्तोत्रयनत्रीतः
पठते श्रृण्वते नित्यं कार्तिकेय विशेषतः
।। इति श्री मुद्गलपुराणे भक्तमनोरथसिद्धिप्रदं नाम गणेशस्तोत्रं
सम्पूर्णम् ।।

स्कन्द बोले – गणेश्वर सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक हैं
आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं आपको नमस्कार हैं प्रभो आपके वामंग में भ्रांतिरूपा सिद्धि विराजमान हैं जो सब कुछ देने वाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रांतिधारक रूपवाली बुद्धिदेवी स्थित हैं भ्रांति
अथवा माया सिद्धि हैं और उसे धारण करने वाले गणेश देव मायिक हैं बुद्धि संज्ञा भी उन्हींकी हैं गणेश्वर आप सिद्धि और बुद्धि दोनों योग में स्थित हैं आपको बारम्बार नमस्कार हैं गकार जगत्स्वरूप हैं और णकार ब्रह्म का वाचक हैं उन दोनों के योग में विधमान आप गणेश देवता को बारम्बार नमस्कार हैं जरायुज आदि भेद से चार प्रकार का जो जगत हैं वह सब ब्रह्म हैं
जगत में ब्रह्म ही उसके रूप में भास रहा हैं इस प्रकार चतुविरध जगत ही आपके चार हाथ हैं चतुर्भुज आपको नमस्कार हैं स्वसंवेध जो ब्रह्म हैं उसमें आप खेलते या आनंद लेते हैं इसलिए आप स्वानन्दवासी हैं स्वानन्दपते आप को नमस्कार हैं प्रभो आप भक्तों के ह्दय में रहकर उनके सुख दुख आदि द्वन्द्वों को चोर की भांति चरते या
चुराते हैं इसलिए मूषक (चुरानेवाला )आपका वाहन हैं आप जगत रूप ब्रह्म में स्थित रह कर भोगों को भोगते हैं तथापि अपने योग में विराजते हैं इसलिए ब्रह्मरूप जगत आपकी चेष्टा को नहीं जान पाता आप चौर की
भांति भोग कर्ता हैं इसलिए आपका उत्कृष्ट वाहन मूषक हैं आप मूषक पर आरूढ हैं हेरम्ब आपको बारम्बार नमस्कार हैं गणाधीश आप योगशांतिधारी उत्कृष्ट देवता हैं मै आपकी क्या स्तुति कर सकता हूँ आपकी स्तुति करने में तो वेद आदि भी शांति मौन धारण कर लेते हैं
यह स्तोत्र सुनकर गणेश जी ने स्कंद से कहा महाभाग वर मांगो वह दुर्लभ होने पर भी मैं तुम्हें दूंगा स्कन्द तुम्हारे द्वारा किया गया यह स्तोत्र योगशांतिदाता मुझमें भक्ति उत्पन्न करनेवाला तथा सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाला होगा कार्तिकेय तुम जो जो चाहोगे वह वह वस्तु तुम्हारे स्तोत्र से बंधकर मैं निश्चय ही देता रहूँगा विशेषतः उनको जो प्रतिदिन इसका पाठ और श्रवण करते होगें मै मनोवांछित वस्तु दूँगा इस प्रकार श्रीमुद्गलपुराण में भक्तमनोरथ सिद्धिप्रद गणेशस्तोत्र पूरा हुआ

Saturday, January 13, 2018

चमत्कारी राम कृष्ण मंत्र CHAMTKARI RAM KRISHNA MANTRA

चमत्कारी राम कृष्ण मंत्र CHAMTKARI RAM KRISHNA MANTRA


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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एक अद्भुत श्लोक सीधे पढ़ने पर श्री राम का वंदन करता हैं और उल्टा पढ़ने पर श्री कृष्ण का।
सीधा-

श्री राम स्तुति

*तं भूसुतामुक्तिमुदारहासं वन्दे यतो भव्यभवं दयाश्रीः* ||१||

उल्टा(अंत से आरम्भ की ओर)- 

श्री कृष्ण स्तुति

*श्रीयादवं भव्यभतोयदेवं संहारदामुक्तिमुतासुभूतं* ||२||

दुर्गा-पूजा विधान DURGA PUJA VIDHI

दुर्गा-पूजा विधान DURGA PUJA VIDHI


दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      
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एकान्त स्थान पर जगह को साफ़ करने के बाद उसे नमक मिले पानी से साफ़ करें,और दुर्गा पूजा के लिये कलश स्थापना कर लें,फ़िर प्राण्गमुख होकर आसन पर बैठ जावें,जल से शिखा का प्रेक्षण करे,और शिखा को बांध लें। तिलक लगाकर आचमन एवं प्राणायाम करें। हाथ में फ़ूल लेकर अंजलि बांध कर दुर्गाजी का ध्यान करे।
ध्यान का मंत्र इस प्रकार है:-

सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिभुजै:,शंखं चक्रधनु:शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभि: शोभिता।
आमुक्तांगदहारकंकणरणत्कांचीरणन्नूपुरा,दुर्गा दुर्गति हारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥
(ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ऊँ दुर्गायै नम:)

अर्थ:- जो सिंह की पीठ पर विराजमान है,जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है,जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुआओं में शंख चक्र धनुष और बाण धारण करती हैं,तीन नेत्रों से सुशोभित होती है,जिनके भिन्न भिन्न अंग बांधे हुये बाजूबंद हार कंकण खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुये नूपुरों से विभूषित है,तथा जिनके कानों में रत्न जटित कुण्डल झिलमिलाते रहते है,वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करने वाली हों। यदि प्रतिष्टित मूर्ति हो तो आवाहन की जगह पुष्पांजलि दें,नहीं तो दुर्गाजी का आवाहन करें।

आवाहन
आगच्छ त्वं महादेवि ! स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं संनिधौ भव॥
श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि। आवाहनार्थे पुष्पांजलि समर्पयामि ॥ (दोनो हाथों में फ़ूल लेकर प्रतिमा या आवाहन करने वाले नारियल के ऊपर हाथ का पृष्ठ भाग नीचे रखकर चढायें।

आसन
अनेक रत्न संयुक्तम नाना मणि गणान्वितम। इदम हेममयम दिव्यासनम प्रति गृह्यताम॥
श्री जगदाम्बायै दुर्गा देव्यै नम:। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (सजा हुआ आसन या प्रतिमा पर फूल चढाकर आसन पर स्थापित होने की प्रार्थना करें)

पाद्य
गंगादि सर्व तीर्थेभ्य आनीतम तोय मुत्तमम। पाद्यार्थम ते प्रदास्यामि ग्रहाण परमेश्वरि॥
(साफ़ बिना टोंटी के लोटे से प्रतिमा या नारियल में देवी के पैरों में जल चढायें).

अर्घ्य
गन्ध पुष्प अक्षतैर्युक्तम अर्घ्यम सम्पादितम मया। ग्रहाण त्वम महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा॥
(पानी में लाल चन्दन घिसकर मिलालें,फ़ूल डाल लें,और चावल मिलाकर देवी के हाथों में लगायें)

आचमन
कर्पूरेण सुगन्धेन वासितम स्वादु शीतलम। तोयम आचमनीयार्थम ग्रहाण परमेश्वरि॥
(कोरे घडे से निकाला हुआ ठंडा जल,कपूर मिलाकर देवी को प्रार्थना करके उनको आचमन के लिये चढायें)

स्नान
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरम शुभम। तदिदम कल्पितम देवि! स्नार्थम प्रतिगृह्यताम॥
(गंगाजल या पवित्र नदी का जल लेकर प्रतिमा अथवा नारियल को स्नान करवाने का क्रम करें)

स्नानांग-आचमन
स्नानान्ते पुनराचमनीयम जलम समर्पयामि।
(स्नान के बाद आचमन के लिये शुद्ध कपूर मिला जल दें)

दुग्ध स्नान
कामधेनु सम उत्पन्नम सर्व ईशाम जीवनम परम। पावनम यज्ञ हेतुश्च पय: स्नानार्थम अर्पितम॥
(गाय के दूध से स्नान करवायें)

दधि स्नान
पयस अस्तु समुद भूतम मधुर अम्लम शशि प्रभम। दध्यानीतम मया देवि! स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(गाय के दही से स्नान करवायें)

घृतस्नान
नवनीत सम उत्पन्नम सर्व संतोष कारकम। घृतम तुभ्यम प्रदस्य अमि स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(गाय के घी से स्नान करवायें)

मधु स्नान
पुष्प रेणु सम उत्पन्नम सु स्वादु मधुरम मधु। तेज: पुष्टि सम आयुक्तम स्नार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शहद से स्नान करवायें)

शर्करा स्नान
इक्षु सार सम अद्भुताम शर्कराम पुष्टिदाम शुभाम।मल अपहारिकाम दिव्याम स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शक्कर से स्नान करवायें)

पंचामृत स्नान
पयो दधि घृत चैव मधु च शर्करान्वितम। पंचामृतम मय आनीतम स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(किसी दूसरे बर्तन में दूध,दही,घी,शहद,शक्कर मिलाकर पंचामृत का निर्माण करें और किसी कांसे या चांदी के पात्र में इसी पंचामृत से स्नान करवायें)

गन्धोदक स्नान
मलयाचल सम्भूतम चन्दन अगरु मिश्रितम। सलिलम देव देवेशि शुद्ध स्नानाय गृह्यताम॥
(सफ़ेद चंदन लकडी वाला घिसकर और अगर को पानी में घिस कर एक बर्तन में मिलाकर स्नान करवायें)

शुद्धोदक स्नान
शुद्धम यत सलिलम दिव्यम गंगाजल समम स्मृतम। समर्पितम मया भक्त्या स्नानार्थम प्रति गृह्यताम॥
(शुद्ध जल से स्नान करवायें,और स्नान करवाने के बाद आचमन के लिये वही कपूर मिला शीतल जल दें)

वस्त्र पहिनाना
पट्ट युगमम मया दत्तम कंचुकेन समन्वितम। परिधेहि कृपाम कृत्वा माता दुर्गति नाशिनि॥
(लाल रंग की कंचुकी पहिनायें,फ़िर लाल रंग की साडी या वेष पहिनायें और ऊपर से चुनरी ओढायें,हाथों में लाल रंग की मौली बांधे,फ़िर आचमन के लिये वही कपूर से युक्त शीतल जल आचमन के लिये दें)

सौभाग्यसूत्र
सौभाग्य सूत्रम वरदे सुवर्ण मणि संयुतम। कण्ठे बघ्नामि देवेशि सौभाग्यम देहि मे सदा॥
(मंगल सूत्र लाल धागे का पीले रंग के मोतियों से युक्त या स्वर्ण से बने मोतियों से युक्त देवी के गले में पहिनायें,माता पुत्र का मानसिक ध्यान करे)

चन्दन
श्रीखण्डम चन्दनम दिव्यम गन्ध आढ्यम सुमनोहरम। विलेपनम सुर श्रेष्ठे चन्दनम प्रति गृह्यताम॥
(लकडी वाला लाल चन्दन शिला पर पानी के साथ घिस कर माता के माथे पर तिलक स्थान पर,दोनो कानों की लौरियों पर दोनो हाथों के बाजुओं पर और दोनो हाथों की हथेलियों पर लगायें)

हरिद्राचूर्ण
हरिद्रा रंचिते देवि ! सुख सौभाग्य दायिनी। तस्मात त्वाम पूज्याम यत्र सुखम शान्तिम प्रयच्छ में॥
(हल्दी को पहले से घिसकर लेप बनाकर सुखा लें,फ़िर उसका चूर्ण पूजा के लिये सावधानी से रख ले,और माता के सभी अंगों पर लगायें,हल्दी को पीस कर या बाजार की हल्दी को पिसी हुयी लाकर कदापि नहीं चढायें)

कुंकुम
कुंकुमम कामदम दिव्यम कामिनी काम सम्भवम। कुंकुमेन अर्चितम देवी कुंकुमम प्रति गृह्यताम॥
(माता के पैरों में कुंकुम लगायें,दोनो हाथों में लगायें)

सिन्दूर
सिन्दूरमरुणाभासम जपा कुसुम संनिभम। अर्पितम ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥
(माता के माथे पर सिन्दूर की बिन्दी लगायें,नाक की सीध में बालों के अन्दर सिन्दूर भरें)

काजल
चक्षुर्भ्याम कज्जलम रम्यम सुभगे शान्ति कारकम। कर्पूर्ज्योति समुत्पन्नम गृहाण परमेश्वरि॥
(कपूर को जलाकर उसकी लौ के ऊपर कांसे का बर्तन रखें थोडी सी देर में काले रंग का काजल बर्तन पर आजायेगा,उस काजल को माता की आंखों में नीचे की तरफ़ सावधानी से दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से लगायें)

दूर्वांकुर
तृणकान्त मणि प्रख्य हरित अभि: सुजातिभि:। दूर्वाभिराभिर्भवतीम पूजयामि महेश्वरि॥
(किसी नदी या साफ़ स्थान से हरी और सफ़ेद दूब जिसके अन्दर ऊपर के भाग की तीन पत्तियों के अंकुर हों साफ़ करने के बाद अपने पास रखलें,रोजाना लाना सम्भव नही हो तो पहले लाकर किसी साफ़ सफ़ेद कपडे को गीला करने के बाद उसके अन्दर लपेट कर रख दें,पीली दूब या सूखी दूब कभी नही चढायें,१०८ या कम से कम १८ अंकुर रोजाना जरूर चढायें)

बिल्वपत्र
त्रिदलम त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम। त्रिजन्म पाप संहारम बिल्वपत्रम शिवार्पणम॥
(अर्धनारीश्वर की आभा में देवी का रूप है,शैवमत के अनुसार शिव के बिना शक्ति नही है और शक्ति के बिना शिव नही है,बिल्व पत्र की तीन पत्तियों वाली हरी कोमल शाखायें माता के तीन नेत्रों का प्रति रूप है,ध्यान रखना चाहिये कि यह नौ से अधिक कभी न चढायें,पहली तीन पत्ती की शाखा माता के आंखों के ऊपर लगायें बाद में कान नाक मुंह हाथ नाभि कटि गुहा पैरों लगाना चाहिये)

आभूषण
हार कंकण केयूर मेखला कुण्डलादिभि:। रत्नाढ्यम हीरकोपेतम भूषणम प्रति गृह्यताम॥
(दुर्गापूजा से पहले ही माता के लिये स्वर्ण या रजत से निर्मित हार कंगन बाजूबंद कनकती कुन्डल पाजेब बिछिया जिनके अन्दर विभिन्न रत्न लगे हों बनवाकर रख लेना चाहिये,और पूजा में पहिनाने चाहिये,तथा मूर्ति विसर्जित होने पर उनको किसी कन्या को दान कर देना चाहिये,या मूर्ति के साथ जाने देना चाहिये,भूलकर भी लोभ वश उन्हे अन्य काम के लिये नहीं रखना चाहिये)

पुष्पमाला
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तित:। मय आर्ह्यतानि पुष्पाणि पूजार्थम प्रति गृह्यताम॥
(अपने हाथ से लाल फ़ूलों की माला लाल रंग के धागे में अपने हाथों से पिरोना चाहिये,फ़ूल सौ से अधिक या कम नही हों,एक बार या प्रतिमा के अनुसार दो बार तीन बार माला को घुमाकर दाहिने से पहिनानी चाहिये)

परिमल द्रव्य
अबीरम गुलालम च हरिद्रा आदि समन्वितम। नाना परिमल द्रव्यम गृहाण परमेश्वरि॥
(सफ़ेद रंग की खडिया मिट्टी को पीसकर लाल रंग और सुगन्धित केवडा आदि मिलाकर अबीर तैयार करना चाहिये,हल्दी,चन्दन,छोटी इलायची और तेज पत्ता को पीसकर गुलाल तैयार करना चाहिये,हल्दी का पहले तैयार किया चूर्ण कपूर पीस कर मिलाकर तैयार करना चाहिये,और माता के चारों तरफ़ दाहिने से बायें चढाना चाहिये)

सौभाग्य पेटिका
हरिद्राम कुंकुमम चैव सिन्दूरादि समन्वितम। सौभाग्यपेटिकामेताम गृहाण परमेश्वरि॥
(हल्दी का चूर्ण कुंकुम सिन्दूर हरी चूडियां श्रंगार का अन्य सामान सहित सौभाग्य पेटी (श्रंगारदान) माता को अर्पित करें)

धूप
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तम:। आघ्रेय: सर्वदेवानाम धूपोअयम प्रति गृह्यताम॥
(धूप जो बनी हुई अगर तगर कपूर चन्दन के बुरादे से युक्त माता के सामने धूपें)

दीप
साज्यं च वर्ति संयुक्तम वाहिन्ना योजितम मया। दीपम गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहम॥
(शुद्ध रुई की दोहरी बत्ती बनायें,और आरती वाले पात्र में जिसमे कमसे कम दो अंगुल ऊंचा शुद्ध गाय का घी भरा हो,उसके अन्दर बत्तियों को डुबोकर अगरबत्ती से दीपक को प्रज्वलित करें,दीपक के अन्दर एक चांदी का या सोने का सिक्का डालें और माता को दिखायें,दीपक दिखाकर दीपक को अपने दाहिने रखें और हाथ साफ़ पानी से धो लें)

नैवेद्य
शर्कराखण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च। आहारार्थम भक्ष्य भोज्यम नैवेद्यम प्रति गृह्यताम॥
(शक्कर और दही तथा खीर में घी मिलाकर नैवेद्य माता को आहार के रूप में अर्पित करें,नैवेद्य अर्पित करने के बाद आचमन के लिये कपूर मिला शीतल जल अर्पित करें,उसके बाद सादा पानी हाथ और मुंह धोने के लिये अर्पित करें)

ऋतुफ़ल
इदम फ़लम मया देवि स्थापितम पुरतस्तव। तेन मे सफ़ल अवाप्तिर भवेज जन्मनि जन्मनि॥
(जो भी फ़ल बाजार में आ रहे हों,उन्ही को बिना दाग धब्बे के लेकर आवें,और माता को प्रकार प्रकार के चढावें)

ताम्बूल
पूगीफ़लम महाद्दिव्यम नागवल्ली दलैर्युतम। एलालवंगसंयुक्तम ताम्बूलम प्रतिगृह्यताम॥
(इलायची लौंग सुपाडी और पान माता को अर्पित करें)

दक्षिणा
दक्षिणाम हेमसहिताम यथा शक्ति समर्पिताम। अनन्तफ़लदामेनाम गृहाण परमेश्वरि॥
(मुद्रा में जो वर्तमान में चल रही हो,सिक्कों के रूप में माता को चढायें,भूलकर भी कागज की मुद्रा नही चढायें,अगर नही मिले तो केवल चावल बिना टूटे चढावें)

आरती
कदली गर्भ सम्भूतम कर्पूरम तु प्रदीपितम। आरार्तिकमहम कुर्वे पश्य माम वरदा भव॥
(चलते हुये दीपक से पीतल के बर्तन में कपूर को जला लें और माता की दाहिने बायें सात बार आरती उतारें,और आरती के बाद पानी को तांबे के लोटे में भरकर सात बार पानी से आरती उतारें)

दुर्गा सप्तशती का मन्त्र पाठ
एक सौ आठ बार दुर्गा सप्तशती का मंत्र जाप करें,मंत्र के शुरु में जो "ऊँ" प्रत्यय लगा है उसे कदापि नही बोलें,मन्त्र को शुरु करने के लिये उच्चारण को साफ़ तरीके से करें,मन्त्र है:-

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै,ऊँ ग्लों हूँ क्लीं जूँ स:,ज्वालय ज्वालय,ज्वल जवल,प्रज्वल प्रज्वल,ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै,ज्वल हँ सँ लँ क्षँ फ़ट स्वाहा।

तदुपरान्त दुर्गा सप्तशती के पाठ जो तीन चरित्रों में है उनको क्रम बार करें,चाहें तो तुरत परिणाम के लिये पाठ के पहले रात्रि सूक्त और इक्कीस बार कुंजिका-स्तोत्र फ़िर एक बार रात्रि सूक्त का पाठ करें।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )