अक्षय तृतीया
 जो कभी नष्ट न हो, यानी जिसका कभी क्षय न हो उसे 'अक्षय' कहते हैं । अंकों में विषम अंकों को (odd numbers) विशेष रूप से '3' को अविभाज्य यानी 'अक्षय' माना जाता है । तिथियों में शुक्ल पक्ष की 'तीज' यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है । लेकिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त तिथियों से इतर विशेष स्थान प्राप्त है । इस तृतीया को शास्त्रों में अक्षय तृतीया कहा गया है क्योंकि इस दिन किये गये शुभ काम का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है । 'अक्षय तृतीया' के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है । पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है । शास्त्रों के अनुसार यह योग अपने नाम के अनुसार ही सौभाग्य प्रदान करने वाला है । यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है । शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को 'दान' इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है । यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है । इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं ।
इन कार्यों के लिए शुभ है अक्षय तृतीया....
अक्षय तृतीय को कई कार्यों के लिए शास्त्रों में शुभ बताया गया है। इनमें गृह प्रवेश, नींव स्थापना, नया व्यवसाय शुरू करना, नया सामान खरीदना, पदभार ग्रहण करना, भगवान की मूर्ति स्थापित करना उत्तम माना गया है। इन कार्यों को करने से प्रगति होती है। अक्षय तृतीया का दिन व्यर्थ ना जाने दें ? अवश्य पुण्य कर्म, दान, तप, वृत आदि करके अपने भाग्य की रेखाओ को बदले l
* इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए।
* प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग, इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
* ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
* इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।
* आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र, आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए।
* नवीन स्थान, संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन भी आज ही करना चाहिए।
शास्त्रों में अक्षय तृतीया....
* इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
* इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।
* नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था।
* श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।
* हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था।
* वृंदावन के श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं।
अक्षय तृतीया का माहात्म्य....
* जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है।
* इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
* शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।
* श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
कैसे करें अक्षय तृतीया व्रत....
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूँकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक माना जाता है। यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।
* व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
* घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
निम्न मंत्र से संकल्प करें :-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं।
नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें।
अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास करें।
व्रत कथा : प्राचीनकाल में सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया। विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान कीं। स्त्री के बार-बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई।
अक्षय तृतीया पर धन वृद्घि के उपाय....
अक्षय तृतीया को सर्वसिद्घ मुहूर्त माना गया है। उस पर कई कई सारे शुभ योगों ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। इस दिन सोना खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने से आर्थिक उन्नति होती है। आर्थिक परेशानियों के कारण जो लोग सोना नहीं खरीद सकते वह अक्षय तृतीय के दिन जौ अथवा गेहूं खरीदकर लाल रंग के कपड़े में बांध कर पूजा स्थान में रख दें और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन से नियमित इस स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए....
शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया विवाह के लिए बहुत ही शुभ मुहूर्त होता है। इसदिन विवाह करने से वैवाहिक जीवन में कम परेशानी आती है। जिनकी कुण्डली में विवाह संबंधी दोष होता है वह भी इस दिन शादी करें तो दोष का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है।
No comments:
Post a Comment