शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार
शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार
हम हर काम मुहूर्त देखकर ही क्यों करते हैं? जाहिर है इसलिए कि हमें उस काम में सफलता मिले और वह काम बिना किसी बाधा के संपन्न हो जाए। लेकिन हर दिन के शुभ-अशुभ समय को कैसे जाना जाए? पेश है, मुहूर्त से संबंधित रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी :
सारा संसार ग्रहों की चालों एवं उनकी किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों से आंदोलित रहता है। चाहे वह प्राणी जगत हो या फिर वनस्पति जगत। इसलिए ज्योतिष में उनकी अनुकूलता को मुहूर्त का नाम दिया है। प्रतिदिन अशुभ काल में शुभ कार्य न करें बल्कि शुभ काल में ही अपने कार्यों को करना चाहिए। जैसे- राहू काल में कोई शुभ कार्य व यात्रा तथा कोई व्यापार संबंधी तथा धन का लेन-देन न करें। राहू काल अनिष्टकारी बताया गया है। गुलीक काल में शुभ कार्य करें। राहू काल तथा गुलीक काल का विवरण निम्न प्रकार है-
राहू काल (अशुभ समय)
रविवार - सायं 4.30 से 6 बजे तक
सोमवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक
मंगलवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक
बुधवार- दोपहर 12 से 1.30 बजे तक
गुरुवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक
शनिवार- प्रातः 9 से 10.30 बजे तक
गुलीक काल (शुभ समय)
रविवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक
सोमवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक
मंगलवार - दोपहर 12 से 1.30 बजे तक
बुधवार - प्रातः 10.30 से 12 बजे तक
गुरुवार - प्रातः 9 से 10.30 बजे तक
शुक्रवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक
शनिवार - प्रातः 6 से 7.30 बजे तक
गोधूलि वेला-
विवाह मुहूर्तों में क्रूर ग्रह, युति, वेध, मृत्युवाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर भी यदि विवाह का शुद्ध लग्न न निकलता हो तो गोधूलि लग्न में विवाह संस्कार संपन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है।
जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात् सूर्यास्त होने वाला हो) गाय आदि पशु अपने घरों को लौट रहे हों और उनके खुरों से उड़ी धूल उड़कर आकाश में छा रही हो तो उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है। इसे विवाहादि मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। इस लग्न में लग्न संबंधी दोषों को नष्ट करने की शक्ति है।
आचार्य नारद के अनुसार सूर्योदय से सप्तम लग्न गोधूलि लग्न कहलाती है। पीयूषधारा के अनुसार सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि कहलाता है।
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