सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है
सूर्य की प्रतिमा के चरणों के दर्शन न करें,
देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से ही हमारे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अक्ष्य पुण्य प्राप्त होता है। भगवान की प्रतीक प्रतिमाओं के दर्शन से हमारे सभी दुख-दर्द और क्लेश स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। सभी देवी-देवताओं की पूजा के संबंध में अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।
सभी पंचदेवों में प्रमुख देव हैं सूर्य। सूर्य की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है। सूर्य देव की पूजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण नियम है बताया गया है कि भगवान सूर्य के पैरों के दर्शन नहीं करना चाहिए। इस संबंध में शास्त्रों में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं।
देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय बाद जब सूर्य को आभास हुआ कि उनके साथ संज्ञा की छाया रह रही है तब उन्होंने संज्ञा को तुरंत ही बुलवा लिया। इस तरह छोड़कर जाने का कारण पूछने पर संज्ञा ने सूर्य के तेज से हो रही परेशानी बता दी। देवी संज्ञा की बात को समझते हुए उन्होंने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा से निवेदन किया कि वे उनके तेज को किसी भी प्रकार से सामान्य कर दे। विश्वकर्मा ने अपनी शिल्प विद्या से एक चाक बनाया और सूर्य को उस पर चढ़ा दिया। उस चाक के प्रभाव से सूर्य का तेज सामान्य हो गया। विश्वकर्मा ने सूर्य के संपूर्ण शरीर का तेज तो कम दिया परंतु उनके पैरों का तेज कम नहीं कर सके और पैरों का तेज अब भी असहनीय बना हुआ है। इसी वजह सूर्य के चरणों का दर्शन वर्जित कर दिया गया। ऐसा माना जाता है कि
सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है और पाप की वृद्धि होती है पुण्य कम होते हैं।
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