गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं
साल में चार नवरात्र होते हैं। इनमें दो मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल और अश्विनी शुक्ल में आते हैं और दो गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल और माघ शुक्ल में होते हैं। इनका क्रम इस तरह होता है- पहला मुख्य नवरात्र चैत्र शुक्ल में, फिर गुप्त नवरात्र। दूसरा मुख्य नवरात्र अश्विनी शुक्ल में फिर गुप्त नवरात्र। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो चारों नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। आषाढ़ शुक्ल, 23 जून मंगलवार को गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं।
मंत्र शास्त्र के अनुसार वेद मंत्रों को ब्राहा ने शक्ति प्रदान की। तांत्रिक प्रयोग को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न बनाया है। इसी प्रकार कलियुग में शिव अवतार श्रीशाबर नाथजी ने शाबर मंत्रों को शक्ति प्रदान की। शाबर मंत्र बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है, जो सुनने में अर्थहीन सा प्रतीत होता है।
कोई भी मंत्र-तंत्र-यंत्र को सिद्ध करने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है। बिना गोपनीयता के कोई भी मंत्र-यंत्र सिद्ध नहीं होता। मंत्र सिद्धि के लिए चार चीजें आवश्यक हैं- (1) एकांत (2) परम शांति (3) एकाग्रता (4) दृढ़ निश्चय। इसके साथ-साथ मंत्रदाता गुरू में पूर्ण श्रद्धा, भक्ति तथा भाव आदि का होना जरू री है।
गुप्त नवरात्रा में अधिकतर साधक तंत्र, शाबर मंत्र, योगनी आदि सिद्ध करते हैं, जिन्हें तांत्रिक सिद्धियां कहा जाता है। जो लोग ऎसा करते हैं, उनकी आत्मा शुद्ध नहीं होती है। वे खुद को सिद्ध करने और प्रसिद्धि प्राप्ति की इच्छा से ये सिद्धियां प्राप्त करते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों को ऎसी सिद्धियों से दूर रहना ही हितकर है।
गृहस्थ व्यक्तियों को अपनी कुंडली में स्थित अरिष्ट ग्रहों की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए संबंधित ग्रहों के मंत्रों का जप करना हितकर और उपयोगी रहेगा।
इसके अतिरिक्त गणेशजी कष्ट निवारणकर्ता हैं। सूर्य प्राण रक्षक हैं और लक्ष्मीजी आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करती हैं। इसलिए गृहस्थ अपने कष्ट निवारण के लिए इनके मंत्रों का जप प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक विधिपूर्वक करें, तो लाभकारी रहेगा।
गणेश गायत्री मंत्र- "वक्रदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात।"
सूर्य उपासना मंत्र- "ह्वीं ह्वीं सूर्याय नम:।
ह्वौं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ।।
लक्ष्मी-गणेश मंत्र- श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
No comments:
Post a Comment