Saturday, April 29, 2017

जनेऊ क्या है और उपनयन संस्कार जनेऊ यज्ञोपवीत

जनेऊ क्या है और उपनयन संस्कार जनेऊ यज्ञोपवीत

-इसकी क्या महत्वता है?
((भए कुमार जबहिं सब भ्राता।
दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥))
जनेऊ क्या है : 
-आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं।
-इस धागे को जनेऊ कहते हैं।
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है।
-जनेऊ को संस्कृत भाषा में (‘यज्ञोपवीत’) कहा जाता है।
-यह सूत से बना पवित्र धागा होता है,
-जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।
तीन सूत्र क्यों
-जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं।
-यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है।
-यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।
-यह तीन आश्रमों का प्रतीक है।
-संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार
-यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। 
-इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। 
-एक मुख, -दो नासिका, -दो आंख, -दो कान, -मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
 पांच गांठ
-यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है 
-जो ब्रह्म, -धर्म, -अर्थ, -काम और मोक्ष का प्रतीक है।
यह पांच यज्ञों, -पांच ज्ञानेद्रियों -पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।
वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना।
प्रत्येक आर्य को जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।
जनेऊ की लंबाई :-
-यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) की लंबाई 96 अंगुल होती है। 
-इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए।
-चार वेद, -चार उपवेद, -छह अंग, -छह दर्शन, -तीन सूत्रग्रंथ, -नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है।
64 कलाओं में जैसे-
-वास्तु निर्माण, -व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, -दस्तकारी, -भाषा, -यंत्र निर्माण, -सिलाई, -कढ़ाई, -बुनाई, -आभूषण निर्माण, -कृषि ज्ञान आदि।
जनेऊ के नियम :---
1.यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।
2.यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए1
3.खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
4.यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।
 5.मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें।
जनेऊ पहनने का पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।
माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है।
यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है।
जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। 
कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है।

उपनयन संस्कार जनेऊ यज्ञोपवीत 

पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। जनेऊ पहनाने का संस्कार

सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र या जनेऊ यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांति मौजूद है| लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं जबकि सच तो कुछ और ही है| तो आइए जानें कि सच क्या है? जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा मिल जाती है| क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है| दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य छिपा है| दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता| आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का| अब एक एक जनेऊ में 9 - 9 धागे होते हैं| जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9 - 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है| अब इन 9 - 9 धांगों के अंदर से 1 - 1 धागे निकालकर देंखें तो इसमें 27 - 27 धागे होते हैं| अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 - 27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है| अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आता है, जो एक पूर्ण अंक है| अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 2 और जोड़ दें तो 9 + 2 = 11 होगा जो हमें बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो लोगों अर्थात् पति और पत्नी ( 1 और 1 ) के मिलने सेबना है | 1 + 1 = 2 होता है जो अंक विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है और चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है| जब हम अपने दोनो पक्षों का ऋण वहन कर लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है|

यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रमह सूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।

Tuesday, April 25, 2017

BIRTHDAY SPECIAL PUJA PATH VIDHI जन्म दिन मनाने की विधि

BIRTHDAY SPECIAL PUJA PATH VIDHI जन्म दिन मनाने की विधि



भारतीय संस्कृति तुम अपनाओ, जन्मदिवस तुम ऐसा मनाओ । 
'हैप्पी बर्थ-डे' भूल ही जाओ,जन्मदिवस बधाई कहो-कहलवाओ ।।


सुबह ब्राह्ममुहूर्त में जागो, मात-पिता-प्रभु पाँवों लागो ।
सभी बडों के चरण छूना, केक का नाम भूल ही जाना ।।

अपने सोये मन को जगाओ, अपना जीवन उन्नत बनाओ ।
भारतीय संस्कृति तुम अपनाओ, जन्मदिवस तुम ऐसा मनाओ । 

जन्मदिवस को दीये जलाना, नहीं चाहिए ज्योति बुझाना ।
दीपज्योति से जीवन जगमगाना, ना इसको तम में ले जाना ।।

वेदों की ये शिक्षा पा लो, ज्ञान-सुधा से मन महकाओ । 
भारतीय संस्कृति तुम अपनाओ, जन्मदिवस तुम ऐसा मनाओ । 

आज तुम अन्न-प्रसाद बाँटना, दीन-गरीबों में दान भी देना । 
गये साल का हिसाब लगाना, नये साल की उमंगें जगाना ।।

प्रभु कहते सदा खुश रहो, यही आशीष है प्रभु-सुख पाओ । 
भारतीय संस्कृति तुम अपनाओ, जन्मदिवस तुम ऐसा मनाओ । 

हर जातक को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष , छोटा हो या बड़ा अपना जन्मदिवस बहुत ही प्रिय होता है । सभी लोगो को अच्छा लगता है कि लोग उनके जन्मदिन के दिन उन्हें शुभकामनाएँ दें, उन्हें सराहे, परिवार के सदस्य , अभिन्न मित्र उस दिन साथ में समय बिताएं , उनके बारे में अच्छी अच्छी बाते करें। इसीलिए अधिकतर सभी लोग अपना जन्मदिवस बहुत प्रसन्नता से मानते है, लेकिन क्या हमें मालूम है कि इस महत्वपूर्ण दिन में हम क्या करें जिससे ईश्वर की कृपा मिले, जिससे जीवन में सुख-शान्ति, आरोग्य, दीर्घायु, सम्पन्नता, यश और सफलता की प्राप्ति हो । 

वर्तमान युग में अधिकतर लोग पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर अपना जन्म दिन रात में धूम धड़ाका करके मानते है । लोग रात्रि में पहले केक पर मोमबत्ती जलाकर उसे फूंक मार कर बुझा देते है, फिर उस केक को जिस पर उनका नाम लिखा होता है उसे काटकर सब लोगो को खिलाते है , उस रात्रि में लोग मौज-मस्ती करके माँस मदिरा का सेवन करते है जो कि सर्वथा गलत है । 

इस संसार में प्रत्येक जातक का जन्म किसी ना किसी उद्देश्य से ही हुआ है , ईश्वर ने हम सभी पर बहुत बड़ी कृपा की है कि हमें 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि में जन्म दिया है। 
हमें इस बात का अवश्य ही ध्यान देना चाहिए की ईश्वर ने हमें जितनी आयु दे रखी है , उसकी अवधि शने: शने: समाप्त हो रही है, इसलिए इस दिन हम ईश्वर से अपनी सभी पिछली जाने अनजाने में की गयी गलतियों के लिए क्षमा माँगते हुए उन्हें अब तक के जीवन के लिए धन्यवाद दें । उनसे प्रार्थना करें कि हमारा आने वाला जीवन और भी अधिक सार्थक और उद्देश्य पूर्ण साबित हो । 

 हम जन्मदिन दिनांक के आधार पर मानते है लेकिन हमें अपना जन्मदिन तिथि के अनुसार मनाना चाहिए । तिथि नुसार जन्मदिन मनाने से हमें देवताओं का आशीर्वाद मिलता है । हम जिस दिन पैदा हुए थे उस दिन की तिथि, वार, नक्षत्र का स्मरण करते हुए वर्तमान तिथि , वार, नक्षत्र से अपने सफल जीवन के लिए प्रार्थना करें। इससे हमें परम पिता परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है । इसलिए हमें जन्म दिन तिथि के अनुसार ही मनाना चाहिए । 

हमें यदि अपना जन्म दिन याद है तो किसी भी पंडित से मिलकर पंचाग के माध्यम से बहुत आसानी से हम अपनी जन्मतिथि और माह को ज्ञात कर सकते है । 

लोग जन्मदिवस कहते है और इसे रात्रि में मनाते है ऐसा क्यों ? हमें जन्म दिवस मनाना है या जन्म रात्रि ?जन्मदिन को देर रात्रि में नहीं मनाना चाहिए यह जातक के लिए शुभ नहीं होता है। रात्रि का सम्बन्ध अंधेरे से है और दिन का रोशनी से तो आखिर क्यों हम अपना जन्म दिन को रात्रि में मनाकर अपने जीवन में खुद ही अंधेरा करते है, इसलिए जन्मदिन दिन के समय में ही मनाना उचित है । 

जन्मदिवस पर बच्चे बडे-बुजुर्गों को प्रणाम करें, उनका आशीर्वाद पायें । बच्चे संकल्प करें कि आनेवाले वर्षों में पढाई, साधना, सत्कर्म आदि में सच्चाई और ईमानदारी से आगे बढकर अपने माता-पिता व देश का गौरव बढायेंगे ।

जन्म दिन मनाने की भारतीय विधि


अपना जन्म दिन दिनांक के आधार पर न मनाकर भारतीय वैदिक तिथि के अनुसार मनाना श्रेष्ठ माना गया है
यदि हम भगवान् का जन्मदिन जैसे – रामनवमी, जन्माष्टमी आदि तिथि के अनुसार मना सकते है तो अपना जन्मदिन तिथि के अनुसार क्यों नहीं ?

हमारे सब संस्कार, उत्सव, शुभ कार्य दीप प्रज्ज्वलित कर आरंभ होते हैं। जलते दीप को बुझाना तो अति अशुभ कार्य हैं। बच्चे हमारे कुलदीप हैं, उनके यशकीर्ति तथा उज्ज्वल भविष्य की कामना दीपक जला कर करनी चाहिए, मोमबत्तियाँ  बुझाकर तो कभी नहीं। आयु और श्री वृद्घि के लिए प्रति वर्ष जन्म दिन (वर्धापन) मनाने की विधि शास्त्रों में बताई गई है। इस तरह के संस्कारों की जानकारी के अभाव में युवा पीढ़ी पश्चिमी अधकचरे आचरण अपनाए तो दोष किसका?

जन्मदिन के दिन सुबह जल्दी जागना चाहिए। सुबह 4 से 6 के बीच ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय में जागने से आयु में वृद्धि होती है। मन में गणेश जी का ध्यान करें व आंखे खोलें। सबसे पहले अपनी दोनो हथेलियों का दर्शन करें। मन ही मन अपने इष्टदेव तथा गुरु को प्रणाम करे पुनः माता-पिता ( मातृदेवो भव। पितृदेवो भव ) का चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। नए दिन अच्छे से गुजरे। ये प्रार्थना अपने ईष्ट से करें। धरती माता को प्रणाम करें। तिल के उबटन से नहाएं। नहाकर के साफ व स्वच्छ वस्त्र पहनें।

अपने जन्मदिन के शुभावसर पर भगवान के चरणों में दीपक अवश्य जलाना चाहिएं तथा ईश्वर की आराधन पूजा और उनके चरणों में फल फूल, मिठाई, वस्त्र, दक्षिणा अर्पण कर सुख शांति और कष्टों से मुक्ति के लिए आशीर्वाद लेना चाहिए।
जन्मदिन के दिन तिल के तेल का मालिश करके जल में तिल एवं गंगाजल डालकर  — ॐ गंगे च यमुने सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी अस्मिन् जले सन्निधिं कुरु।  इस मन्त्र को बोलकर स्नान करना चाहिए। स्नान केवल ठन्डे पानी से करना चाहिए।
जातक के जितने वर्ष पूर्ण हुए हैं उतने दीप रात्रि में जलाकर घर में सब जगह रखनी चाहिए इससे जातक में बल बुद्धि तथा तेज तत्त्व की वृद्धि होती है।

ईश्वर की पूजन करें। प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश का गंध,पुष्प,अक्षत, धूप, दीप से पूजन करें।  लड्डु और दूर्वा समर्पित करें।

पूर्णिमा को चंद्रमा २७ नक्षत्रों में से जिस नक्षत्र के आसपास आता है उस नक्षत्र के नाम से उस महीने को संबोधित किया जाता है - पहला चित्रा से चैत्र, फिर विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा,श्रवण, पूर्वाभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृर्गशिरा, पुष्य, मघा और अंत में उत्तरा फाल्गुनी से फागुन। सूर्य से प्रकाशित होने के कारण और प्रतिदिन पृथ्वी से दूरी घटनेबढ़ने के कारण चंद्रमा पृथ्वी के हर प्राणी को, जिनमें मनुष्य प्रमुख है, प्रभावित करता है। चंद्रमा मन का द्योतक है। साथ ही, चंद्र नक्षत्रों का भी मनुष्य जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए सही चंद्र कला और चंद्र नक्षत्र के समय उदयतिथि के हिसाब से जन्मदिन मनाना ही शुभ तथा कल्याणकारी हो सकता है, जिसकी शास्त्रोक्त विधि ‘वर्धापन’ कहलाती है।

वर्धापन (संक्षिप्त) विधिः उस दिन, प्रथम उबटन आदि से जातक को स्नान कराएँ। इस अवसर पर नए वस्त्र धारण करें तो पुराने वस्त्र किसी जरूरतमंद को दे देने चाहिए। पूर्व दिशा की  ओर मुँह करके जातक आसन पर या अपने मातापिता के साथ (या एक की गोद) में बैठ कर, जल से भरे एक कलश को चंदन-रोली से स्वस्तिक अंकित कर रंगोली से चित्रित जगह पर स्थापित करें। इस पर एक कटोरी (शिकोरे) में गेहूँ या चावल रखकर उस पर शुद्घ गोघृत का दीपक जलाएँ। उपस्थित लोगों के मस्तक पर कुंकुम से तिलक लगाएँ। पंडित न हो तो परिवार का एक सदस्य ही निम्नानुसार इस कलश का पूजन करा सकता है।

हाथ में जल, चावल, पुष्प, चंदन, द्रव्य (सिक्का) लेकर संकल्प करें। स्थान, तिथि, गोत्र, नाम (जातक का नाम) का उल्लेख कर के कहें –

‘अस्य जातकस्य आयुरारोग्याभिवृद्घेये विष्णु प्रीतये वर्धापन कर्म करिष्ये, तदंगत्वेन च गणेशादि पूजनमहं करिष्ये’।

 कलश पर गणेश, गौरी और अन्य देवों का निम्न मंत्रों से पूजन करें। पूजन में चंदन, अक्षत, पुष्पमाला, धूपदीप, नैवेद्य, दक्षिणा चढ़ावे।

श्री गणेशाय नमः, श्री गणेश पूज्यामि। श्री गौर्य नमः, श्री गौरी पूज्यामि। ... इसी प्रकार वरूणायवरूणं, जन्म नक्षत्राधिपायजन्म नक्षत्राधिपं, पित्रेपितरं, प्रजापत्यैप्रजापति,भानवेभानु, ... श्री मार्कण्डेयाय नमः, मार्कण्डेयाय पूज्यामि।

विद्वान पंडित के परामर्श से इस विधि में सामर्थ्य अनुसार विस्तार या परिवर्तन किया जा सकता है।

इस दिन जन्मनक्षत्र का पूजन किया जाता है। जन्मदिन पर अष्टचिरंजीवी का पूजन व स्मरण करना चाहिए। यह पूजन आयु में वृद्धि करता है।

अष्टचिरंजीवी
अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये आठ चिरंजीवी हैं जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। अष्टचिरंजीवी को प्रणाम करें। इनके लिए तिल से होम करें। कहा जाता है कि इनके नित्य स्मरण मात्र से व्यक्ति निरोगी तथा दीर्घजीवी हो जाता है।

अष्टचिरंजीवी मंत्र
ॐ मार्कण्डेय महाभाग सप्तकरूपान्तजीवन।
चिरंजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने।।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात् अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि को प्रणाम है। इन नामों के स्मरण रोज सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त दूर  होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

ऊँ कुलदेवताभ्यौ नमः मंत्र से कुलदेवता का पूजन करें। अब जन्म नक्षत्र, भगवान गणेश, सूर्यदेव, अष्टचिरंजीवी, षष्ठी देवी की स्थापना चावल की ढेरियों पर करें। नाम मंत्र से पूजन करें। भगवान मार्कण्डेय से दीर्घायु की प्रार्थना करें। तिल और गुड़ के लड्डु तथा दूध अर्पित करें। षष्ठी देवी को दही भात का नैवेद्य अर्पित करें।

जन्मदिवस के शुभ अवसर पर शिव की आराधना करनी चाहिए साथ ही आयु वृद्धि करने वाला

मन्त्र  महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।
‘ॐ त्रयंबकं यजामहे, सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥’

इस मंत्र का जाप जातक के पूर्ण हुए वर्षों की संख्या के बराबर अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में  आने वाली कठिनाइयाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी। यही नहीं यदि किसी अशुभ ग्रह से आप पीड़ित है तो उसमे भी आपको लाभ मिलेगा।

अंत में यह “मंत्र, 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं महामुने। यदर्चितं मया देवाः परिपूर्ण तदस्तु मे॥' 

पढ़कर प्रार्थना करें कि हे प्रजापति  इस जातक को चिरायु (जीवेम् शरद: शतं),आरोग्य, ऐश्वर्य, यश और आनंदमय जीवन प्रदान करें। तत्पश्चात, जातक का रोली से तिलक करें, उसकी अंजलि में मिठाई, फल, आदि रख कर उसे गौदुग्ध में काले तिल और गुड़ डालकर पिलाएँ - सतिलं गुड़ सम्मिश्रं अंजल्यर्धमितं पयः। केक की जगह भी कोई अन्य पौष्टिक व्यंजन बनाया जा सकता हैं, पर केक ही मँगानी हो तो विश्वसनीय शाकाहारी स्थान से केक मँगाने का आग्रह रखना चाहिए।

पूजन के बाद माता-पिता को प्रणाम करें। सभी आदरणीय लोगों को और अपने गुरुजनों को प्रणाम करें। उनसे आर्शीवाद लें। माता-पिता बच्चों को उपहार में सिक्का व रूपया दें।
ब्राह्मण भोजन करवाएं। इस दिन जन्मपत्रिका में एक मोली यानी कि लाल रंग का धागा बांधे। और हर साल एक-एक गांठ बांधते जाएं।

अब स्वयं तिल-गुड़ के लड्डु तथा दूध का सेवन करें।

समारोह को गरिमामय बनाने के लिए सुंदर काण्ड, भगवती जागरण, सत्यनारायण कथा आदि  का आयोजन करना श्रेयस्कर रहेगा। जातक के जितने वर्ष पूर्ण हुए हैं उतने दीप रात्रि में जलाकर घर में सब जगह रखे। इति।

जन्मदिन पर क्या नहीं करना चाहिए |  Should not do on Birthday

जन्मदिन के शुभावसर पर तामसिक भोजन, मदिरा सेवन तथा अनैतिक क्रिया-कलाप करने से परहेज करना चाहिए। जन्मदिन पर नाखून एवं बाल काटना नहीं काटना चाहिए। वाहन चलाना या वाहन से यात्रा नहीं करना चाहिए। घर में कलह अथवा किसी से लड़ाई-झगड़े बचने की हर संभव कोशिश करनी चहिए। मॉस मदिरा के सेवन नहीं करे।

मोमबत्ती जलाकर जन्मदिन मनाने से बचें क्योकि केक के ऊपर मोमबत्ती जलाकर बुझाना अशुभ है परन्तु आजकल इसका ही प्रचलन हो गया है फिर भी आप परिहार स्वरूप  मोमबत्ती जलाए परन्तु मुंह से बुझाए नहीं बल्कि सभी प्रज्ज्वलित मोमबत्तियों को अपने घर के प्रत्येक स्थान पर रख दे इससे आपके और आपके घर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा से भी मुक्ति मिल जायेगा।

जन्मदिन पर क्या करना चाहिए ? What should do on Birthday

जन्मदिवस के दिन बच्चा ‘केक’ पर लगी मोमबत्तियाँ जलाकर फिर फूँक मारकर बुझा देता है । जरा सोचिये, हम कैसी उलटी गंगा बहा रहे हैं ! जहाँ दीये जलने चाहिए वहाँ बुझा रहे हैं ! जहाँ शुद्ध चीज खानी चाहिए वहाँ फूँक मारकर उडे हुए थूक से जूठे, जीवाणुओं से दूषित हुए ‘केक' को बडे चाव से खा-खिला रहे हैं ! हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को उनके जन्मदिवस पर भारतीय संस्कार व पद्धति के अनुसार ही कार्य करना सिखायें ताकि इन मासूमों को हम अंग्रेज न बनाकर सम्माननीय भारतीय नागरिक बनायें । यह शरीर, जिसका जन्मदिवस मनाना है, पंचभूतों से बना है जिनके अलग-अलग रंग हैं । पृथ्वी का पीला, जल का सफेद, अग्नि का लाल, वायु का हरा व आकाश का नीला । थोडे-से चावल हल्दी, कुंकुम आदि उपरोक्त पाँच रंग के द्रव्यों से रँग लें । फिर उनसे स्वस्तिक बनायें और जितने वर्ष पूरे हुए हों, मान लो ४, उतने छोटे दीये स्वस्तिक पर रख दें तथा ५वें वर्ष की शुरुआत के प्रतीक रूप में एक बडा दीया स्वस्तिक के मध्य में रखें । फिर घर के सदस्यों से सब दीये जलवायें तथा बडा दीया कुटुम्ब के श्रेष्ठ, ऊँची समझवाले, भक्तिभाववाले व्यक्ति से जलवायें । इसके बाद जिसका जन्मदिवस है, उसे सभी उपस्थित लोग शुभकामनाएँ दें । फिर आरती व प्रार्थना करें । अभिभावक एवं बच्चे ध्यान दें - * पार्टियों में फालतू का खर्च करने के बजाय बच्चों के हाथों से गरीबों में, अनाथालयों में भोजन, वस्त्र इत्यादि का वितरण करवाकर अपने धन को सत्कर्म में लगाने के सुसंस्कार डालें । * लोगों से चीज-वस्तुएँ (गिफ्ट्स) लेने के बजाय अपने बच्चे को गरीबों को दान करना सिखायें ताकि उसमें लेने की नहीं अपितु देने की सुवृत्ति विकसित हो ।

अपने जन्मदिन के अवसर पर कोई ऐसा काम करने की कोशिश करे जिससे आपको आजीवन प्रेरणा मिलते रहे आप आंवला, पीपल,बरगद इत्यादि  का पेड़ लगा सकते है पेड़ की वृद्धि आपको प्रेरित करते रहेगा।
जन्म कुंडली में जो कोई भी अरिष्ट ग्रह हो अथवा उनकी दशा चल रही हो तो उस दिन विशेष पूजा दान एवं होम द्वारा शांति करवानी चाहिए। यदि आप या आपका बच्चा शारीरिक कष्ट से गुजर रहा है तो अरिष्ट ग्रह का तुला दान कराने से शीघ्र ही रोग से मुक्ति मिलती है।

यदि आपकी साढ़े साती चल रही है या शनि की ढैया चल रही हो तो अपने जन्मदिन के दिन अवश्य ही छायापात्र का दान करना चाहिए तथा संभव हो तो अंध विद्यालय, गोशाला, अस्प्ताल  कुष्ठाश्रम इत्यादि में जाकर अन्न वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी आर्थिक लाभ, आयु, विद्या, यश एवं बल की वृद्धि होगी।

 वर्तमान समय में हम केक पर मोमबत्ती बुझा कर, अपना नाम काट कर अपने लिए जीवन की राह में अंधेरा कर लेते है, खुद ही संकटो को बुलावा देते है, जबकि हमें जीवन में हर्ष और प्रसन्नता चाहिए ना की अँधेरा । इसीलिए जन्मदिवस के दिन हमे भगवान के सम्मुख दीपक अवश्य जलाना चाहिएं। जिससे हमारा आने वाला समय हमारे जीवन में सुख-शान्ति, समृद्धि, सफलता और आरोग्य की रोशनी ले कर आए।

जन्मदिवस में यदि रात्रि को आयोजन करना है तो अवश्य ही करें , लेकिन ध्यान दे कि दिन के प्रकाश में शुभ शक्तियाँ होती है अत: दिन में जो आयोजन होता है उसमें तामसी पदार्थो, माँस , मदिरा आदि का प्रयोग बहुत ही कम होता है लेकिन रात्रि अर्थात अंधकार में असुरी शक्तियाँ विचरण करने लगती है अत: रात्रि के आयोजन में सामान्यता: माँस, मदिरा, आदि का उपयोग अधिक होता है। तब आप ही निर्णय करें कि अपने जन्मदिवस में आप अपनी लम्बी , सफल और समृद्धि से भरी जिंदगी की कामना करते हुए कुछ निर्दोष पशु पक्षियों की जीवन की लौ बुझा देंगे ।

जन्मदिवस में यदि केक काटना है तो काटे लेकिन केक के ऊपर मोमबत्ती को जलाकर क्यों बुझाना है । हिन्दु संस्कृति में ज्योति को मुख से फूँक कर बुझाना बहुत अशुभ माना जाता है। दीपक का बुझना अपशकुन माना जाता है ,शास्त्रो के अनुसार ज्योति प्रकाश का स्वरूप है और उसे बुझा कर हम क्यों जीवन में अन्धकार को आमंत्रण ही देते है । इसलिए केक के ऊपर मोमबत्ती कदापि ना लगाएं ।

 हर व्यक्ति चाहता है कि उसको यश मिले, उसका नाम सब जगह जाना जाय, लोग उसका नाम आदर के साथ लें , और करते हम सब उल्टा ही है । हम केक के ऊपर अपना ( जिसका जन्मदिवस होता है उसका नाम ) लिखवाकर खुद ही उसे चाकू से काटते है फिर उस नाम के टुकड़े टुकड़े करके लोगो में खाने को बाँट देते है , यह हिन्दु धर्म के अनुसार बहुत ही अशुभ माना जाता है अत: पहली बात तो यह है कि केक की जगह कोई अच्छी सी मिठाई / लड्डू आदि हर्ष और प्रसन्नता के लिए बाँटे और यदि केक ही काटना हो तो उस पर अपना नाम लिखवाकर तो उसे कदापि ना काटे और ना ही नाम को खाएं । केक पर नाम इसलिए भी ना लिखवाएं क्योंकि वहाँ पर उपस्थित सभी लोगो को इतना तो पता ही होता है कि जन्मदिवस किसका है ।

 जन्मदिवस पर कोई भी आयोजन दिन में ही करें , केक काटना है तो काटे लेकिन उस पर अपना नाम ना लिखे और मोमबत्तियाँ ना बुझाएं , फिर अगर आपको रात में लोगो को पार्टी देनी है तो रात में पार्टी में दिन के समय काटा गया केक लोगो के मध्य बाँट दें ।

 जन्मदिवस पर आप अनाथ, गरीब और असहायों की अवश्य ही मदद करें, उन्हें फल, खिलौने, कपड़े आदि दें उन्हें मीठा कुछ अच्छा खिलाएं / दान में दे, इससे आपको उनकी दिल से निकली हुई दुआएं मिलती है । याद रखिये हमारे अच्छे कर्मो के कारण मिलने वाली दुआएं आशीर्वाद हमारे लिए एक रक्षा कवच का कार्य करती है । इनसे घोर से घोर कष्ट, संकट भी कट जाते है ।

तो अब जब भी आपका आपके परिवार के सदस्य या किसी परिचित का जन्मदिवस हो तो यहाँ पर बताई गई बातो पर अवश्य ध्यान दें इससे ना केवल आप को पूर्ण आत्म शांति ही मिलेगी वरन आप हर वर्ष नयी ऊँचाइयों को भी छूते रहेंगे ।

क्यों अशुभ है अंग्रेजी तारीख पर जन्मदिन मनाना?
1
जन्मदिन
किसे का बर्थडे हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई और अवसर क्यों ना हो, रात के बारह बजे केक काटना लेटेस्ट फैशन बन गया है। घर के बच्चे हमेशा इस बात को लेकर उत्साहित रहते हैं कि उन्हें अपने माता-पिता के लिए रात को बारह बजे केक काटना है या भाई-बहन का जन्मदिन रात के बारह बजे ही सेलिब्रेट करना है। लेकिन क्या आप जानते हैं अंग्रेजी तिथि अनुसार बर्थडे या एनिवर्सरी मनाना किसी के लिए भी शुभ नहीं है। इसके पीछे कुछ ऐसे कारण है, जिनका सीधा संबंध हमारे शास्त्रों से हैं।

2
मॉडर्न पीढ़ी
पश्चात्य संस्कृति की अत्याधिक लोकप्रियता होने के बाद लोग अपनी मूल संस्कृति को लगभग दरकिनार कर चुके हैं। लेकिन हम चाहे कितने ही मॉडर्न या आधुनिक क्यों ना हो जाएं शास्त्रों के महत्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

3
अंग्रेजी कैलेंडर
अंग्रेजियत के हावी होने की वजह से लोग उसी तिथि को अपना जन्मदिन समझ बैठते हैं जो कि अंग्रेजी कैलेंडर में मौजूद होती है। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह कतई सही नहीं है।

4
धार्मिक कार्य
आजकल के लोग इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते लेकिन धार्मिक कार्यों में जरूरी और निश्चित प्रक्रिया क्या होती है, उन्हें इस बात को दरकिनार नहीं करना चाहिए। हिन्दी कैलेंडर में दर्ज तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाने का अपना एक अलग और अलौकिक महत्व है।

5
जन्म लेने वाली तिथि
दरअसल जिस तिथि पर हम जन्म लेते हैं उस तिथि पर प्रवाहित होने वाली ऊर्जा तरंगें हमारे शरीर में मौजूद तरंगों से सर्वाधिक मेल खाती हैं। इसलिए उस दिन हमें अपने बड़े-बुजुर्गों या परिवार के सदस्यों के द्वारा जो भी आशीर्वाद मिलते हैं वह सर्वाधिक फलित होते हैं।

6
आसमान के नीचे स्नान
शास्त्रों के अनुसार जन्मदिन को सुबह वस्त्र पहनकर खुले आसमान के नीचे ही स्नान करना चाहिए। इतना ही नहीं, स्नान करते समय अपने भीतर कुछ ऐसे भाव रखने चाहिए जैसे कि शुद्ध या निर्मल जल आपकी देह को स्पर्श कर रहा है। आपको ऐसा अनुभव होना चाहिए जैसे आप गंगा के पवित्र पानी में स्नान कर रहे हैं।

7
शरीर की शुद्धि
ऐसे भाव रखने से आपकी देह के चारो ओर अलौकिक प्रभा मंडल बनता है जो आपके शरीर की शुद्धि करता है। स्नान के पश्चात आपको अपने से उम्र में बड़े व्यक्तियों को आदरपूर्वक प्रणाम करना चाहिए। इससे आपके मन की अशुद्धियां नियंत्रित होती हैं।

8
श्रद्धा भाव
ज्येष्ठों का आदर करने के बाद आपको अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए और उसके बाद ईश्वर की आराधना पूरी श्रद्धा भाव के साथ संपन्न करनी चाहिए।

9
आरती उतारना
हमारे शास्त्रों और पौराणिक दस्तावेजों में जिस व्यक्ति का जन्मदिन है उसकी आरती उतारने का भी प्रावधान है। लेकिन आरती उतारने वाले और संबंधित व्यक्ति के भीतर और चेहरे पर उत्पन्न होने वाले भाव भी इसमें अपना अलग महत्व रखते हैं।

10
आशीर्वाद का भाव
शास्त्रों के अनुसार जन्मदिन की सुबह आरती उतारने से संबंधित व्यक्ति के शरीर पर मौजूद सूक्ष्म से सूक्ष्म अशुद्धियां भी दूर होती हैं। साथ ही दोनों के मन में ऐसे भाव होने चाहिए, जैसे ईश्वर प्रत्यक्ष रूप में उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं।

11
सात्विक तरंगें
आरती उतारने की इस पूरी प्रक्रिया से दोनों व्यक्तियों के शरीर से सात्विक तरंगों का प्रक्षेपण होता है। ये तरंगें आसपास के वातावरण और वायुमंडल की अशुद्धियों को दूर करती हैं। जन्मदिन के अवसर पर पधारे अन्य जनों को भी इन तरंगों का लाभ मिलता है।

12
भेंट
जिस व्यक्ति का जन्मदिन है उसे भेंट अवश्य देनी चाहिए। यह आपका उनके लिए आशीर्वाद और प्रेम दर्शाता है। आपको कर्ताभाव से रहित होकर भेंट देनी चाहिए, यह आपके और भेंट लेने वाले, दोनों के लिए ही फायदेमंद है। भेंट स्वीकार करने वाले के भीतर भी किसी प्रकार का लालच नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत उस व्यक्ति को भेंट को कुछ इस तरह स्वीकार करना चाहिए जैसे ईश्वर का प्रसाद हो।

13
नए कपड़े पहनने का महत्व
हालांकि हम सभी अपने जन्मदिन पर नए कपड़े पहनना पसंद करते हैं लेकिन इसका औचित्य भी केवल पसंद तक ही सीमित नहीं है। यह शास्त्रों के अनुसार जरूरी भी है। लेकिन जन्मदिन पर पहनने वाले नए वस्त्रों का दोबारा प्रयोग करने की बजाय उन्हें दान कर देना उत्तम माना गया है।

14
असहाय व्यक्ति की मदद
किसी जरूरतमंद और असहाय व्यक्ति को अपने वस्त्र दान करने से आपको मिलने वाले आशीर्वाद में अत्याधिक वृद्धि होती है। पहले के दौर में सात्विकता का अत्याधिक महत्व था, सात्विक लोगों द्वारा दान की गई वस्तु भी महत्व रखती थी।

15
पवित्रता
लेकिन भौतिकवाद से ग्रस्त आज के युग में मनुष्यों में सात्विकता का अभाव है। जन्मदिन के समय आप पवित्र होते हैं, किसी भी प्रकार की अशुद्धि से दूर होते हैं इसलिए उस दिन दान करना आपके लिए फलदायक है।

16
अशुभ क्रियाएं
जहां एक ओर हमारे शास्त्रों में अपने जन्मदिन पर क्या करना चाहिए, इससे जुड़ी बातें दर्ज हैं वहीं ये बात भी दर्ज है कि जन्मदिन पर क्या करना बिल्कुल भी शुभ नहीं है

17
निषेध
बाल काटना, किसी भी वाहन से यात्रा करना, क्लेश करना, किसी से झगड़ना, स्त्री या पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने जैसे कार्य कदापि नहीं करने चाहिए। साथ ही मांस-मदिरा के सेवन से भी बचना चाहिए।

18
दीपक बुझाना
हिन्दू पुराणों में दीपक की लौ की तुलना मनुष्य के शरीर में मौजूद ऊर्जा से की गई है। प्रज्वलित दीये का बुझना या स्वयं उसे बुझा देना, आकस्मिक मृत्यु या गंभीर संकट की ओर इशारा करता है। इसलिए जन्मदिन के समय कभी भी दीपक को नहीं बुझाना चाहिए।

19
सूर्योदय के बाद ही दें बधाई
जैसा कि पहले ही वार्ता की गई है कि लोग रात के बारह बजे बर्थडे सेलिब्रेट करना पसंद करते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार सूर्योदय होने के बाद ही व्यक्ति को बर्थडे विश करना चाहिए क्योंकि रात के समय वातावरण में रज और तम कणों की मात्रा अत्याधिक होती है और उस समय दी गई बधाई या शुभकामनाएं फलदायी ना होकर प्रतिकूल बन जाती हैं।

20
शुद्ध वातावरण
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ ही होती है और यही समय ऋषि-मुनियों के तप का भी होता है। इसलिए इस कला में वातावरण शुद्ध और नकारात्मकता विहीन होता है।

21
मोमबत्ती को जलाना
पश्चिमी संस्कृति के अनुसार जन्मदिन के अवसर पर केक पर मोमबत्ती लगाने और फिर बुझाने की प्रक्रिया को अपनाया गया है। जबकि हिन्दू संस्कृति में ना तो केक काटना शुभ है और ना ही मोमबत्ती को बुझाना अच्छा माना जाता है।

22
ज्योति का बुझना
हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मोमबत्ती तमो गुण वाली होती है, उसे जलाने से कष्ट प्रदान करने वाली नकारात्मक ऊर्जाएं पैदा होती हैं। जिस प्रकार हिन्दू धर्म में ज्योति का बुझना सही नहीं माना गया वैसे ही मोमबत्ती को बुझाना भी नकारात्मकता का प्रतीक है। इसलिए कभी भी जानबूझकर मोमबत्ती को नहीं बुझाना चाहिए।

23
धर्म के विरुद्ध
इसी तरह शुभ कार्य के लिए रखे गए केक को चाकू से काटना भी अच्छा नहीं कहा जा सकता। गलती तो खैर इंसान से होती ही है लेकिन जानबूझकर धर्म के विरुद्ध कार्य करना ना तो वर्तमान पीढ़ी के लिए सही है और ना ही भावी पीढ़ी के लिए।

जन्मदिन मनानेकी पद्धति

१. जन्मदिनपर अभ्यंगस्नान कर नए वस्त्र पहनें ।
२. माता-पिता तथा बडोंको नमस्कार करें ।
३. कुलदेवताकी मनःपूर्वक पूजा करें एवं संभव हो तो उसका अभिषेक करें ।
४. कुलदेवताका कमसे कम तीन माला नामजप करें ।
५. जिसका जन्मदिन है, उसकी आरती उतारें । (उसकी घीके दीपसे आरती उतारें ।)
६. आरतीके उपरांत कुलदेवता अथवा उपास्यदेवताका स्मरण कर जिसका जन्मदिन है उसके सिरपर तीन बार अक्षत डालें ।
७. जिसका जन्मदिन है उसे मिठाई अथवा कोई मीठा पदार्थ खिलाएं ।
८. जिसका जन्मदिन है उसकी मंगलकामनाके लिए प्रार्थना करें ।
९. उसे कुछ भेंटवस्तु दें; परंतु वह देते समय अपेक्षा अथवा कर्तापन न लें ।
१०. भेंटवस्तु स्वीकारते समय `यह ईश्वरसे मिला हुआ प्रसाद है’, ऐसा भाव रखें ।


विद्वान पंडित के परामर्श से इस विधि में सामर्थ्य अनुसार विस्तार या परिवर्तन किया जा सकता है।



Friday, April 21, 2017

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया


 जो कभी नष्ट न हो, यानी जिसका कभी क्षय न हो उसे 'अक्षय' कहते हैं । अंकों में विषम अंकों को (odd numbers) विशेष रूप से '3' को अविभाज्य यानी 'अक्षय' माना जाता है । तिथियों में शुक्ल पक्ष की 'तीज' यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है । लेकिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त तिथियों से इतर विशेष स्थान प्राप्त है । इस तृतीया को शास्त्रों में अक्षय तृतीया कहा गया है क्योंकि इस दिन किये गये शुभ काम का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है । 'अक्षय तृतीया' के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है । पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है । शास्त्रों के अनुसार यह योग अपने नाम के अनुसार ही सौभाग्य प्रदान करने वाला है । यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है । शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को 'दान' इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है । यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है । इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं ।

इन कार्यों के लिए शुभ है अक्षय तृतीया....
अक्षय तृतीय को कई कार्यों के लिए शास्त्रों में शुभ बताया गया है। इनमें गृह प्रवेश, नींव स्थापना, नया व्यवसाय शुरू करना, नया सामान खरीदना, पदभार ग्रहण करना, भगवान की मूर्ति स्थापित करना उत्तम माना गया है। इन कार्यों को करने से प्रगति होती है। अक्षय तृतीया का दिन व्यर्थ ना जाने दें ? अवश्य पुण्य कर्म, दान, तप, वृत आदि करके अपने भाग्य की रेखाओ को बदले l
* इस दिन समुद्र या गंगा स्नान करना चाहिए।
* प्रातः पंखा, चावल, नमक, घी, शक्कर, साग, इमली, फल तथा वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
* ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
* इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए।
* आज के दिन नवीन वस्त्र, शस्त्र, आभूषणादि बनवाना या धारण करना चाहिए।
* नवीन स्थान, संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन भी आज ही करना चाहिए।

शास्त्रों में अक्षय तृतीया....
* इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
* इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।
* नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था।
* श्री परशुरामजी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।
* हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था।
* वृंदावन के श्री बाँकेबिहारीजी के मंदिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं अन्यथा पूरे वर्ष वस्त्रों से ढँके रहते हैं।

अक्षय तृतीया का माहात्म्य....
* जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है।
* इस दिन परशुरामजी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
* शुभ व पूजनीय कार्य इस दिन होते हैं, जिनसे प्राणियों (मनुष्यों) का जीवन धन्य हो जाता है।
* श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि यह तिथि परम पुण्यमय है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ-तर्पण तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।

कैसे करें अक्षय तृतीया व्रत....
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूँकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक माना जाता है। यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।
* व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
* घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

निम्न मंत्र से संकल्प करें :-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।

संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं।
नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें।
अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास करें।

व्रत कथा : प्राचीनकाल में सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया। विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान कीं। स्त्री के बार-बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई।

अक्षय तृतीया पर धन वृद्घि के उपाय....
अक्षय तृतीया को सर्वसिद्घ मुहूर्त माना गया है। उस पर कई कई सारे शुभ योगों ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। इस दिन सोना खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने से आर्थिक उन्नति होती है। आर्थिक परेशानियों के कारण जो लोग सोना नहीं खरीद सकते वह अक्षय तृतीय के दिन जौ अथवा गेहूं खरीदकर लाल रंग के कपड़े में बांध कर पूजा स्थान में रख दें और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन से नियमित इस स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए....
शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया विवाह के लिए बहुत ही शुभ मुहूर्त होता है। इसदिन विवाह करने से वैवाहिक जीवन में कम परेशानी आती है। जिनकी कुण्डली में विवाह संबंधी दोष होता है वह भी इस दिन शादी करें तो दोष का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है।

ऋण मुक्ति साधना

ऋण मुक्ति साधना

मंत्र: 
ऊँ अैं ह्रीं श्रीं सं सिद्धिदा। साधय साधय स्वाहा।

विधि 
रात्रि 12 बजे के बाद ही धूप दीप जलाकर उपरोक्त मंत्र का 1188 बार जप करें। यह कार्य 21 दिनों तक लगातार करें। 21वें दिन 108 मंत्रों से कमल पुष्प की गोघृत के साथ आहुति दें, तो निश्चय ही इस मंत्र से अनायास धन प्राप्त होगा और धन वृद्धि भी होगी। ग्रहण काल में घृत-दूर्वा-काली मिर्च-जटामांसी स्त्री मिलाकर 108 आहुतियां अवश्य देते रहें व एक माला जप नित्य करें।


Thursday, April 20, 2017

दुःस्वप्न : कारण-प्रभाव-निवारण

दुःस्वप्न : कारण-प्रभाव-निवारण


हम में से हर किसी को कभी न कभी बुरे सपने आते हैं। कारण क्या है? क्या आप जानते हैं कि लगभग ५ प्रतिषत लोगों को ऐसे सपने रोज दिखाई देते हैं? अन्य सपनों की भांति इन बुरे सपनों के कारण अचानक अत्यधिक पसीने का निकलना, गालों का लाल हो जाना, नाड़ी का तेजी से चलने लगना आदि शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं।

यह कहना कठिन है कि बुरे सपने - या फिर सपने - क्यों आते हैं। कारण कई हो सकते हैं। दूसरों के विचारों और मतों के प्रति संवेदनषील लोगों को ऐसे सपने ज्यादा दिखाई देते हैं। यदि कोई उनकी बुराई या आलोचना करे, तो वे विचलित हो उठते हैं और उनका यह विचलित होना बुरे सपने का एक कारण हो सकता है। गहरी नकारात्मक सोच या फिर दिन में मन में उठने वाले तरह-तरह के नकारात्मक विचार बुरे सपनों का कारण हो सकते हैं।

ये बुरे सपने लंबे होते हैं और अक्सर रात के पिछले पहर में दिखाई देते हैं। कोई बुरा सपना देखने पर व्यक्ति को अपनी जान का खतरा सताता है। बुरे सपने ज्यादातर बच्चों को आते हैं, बढ़ती उम्र के साथ इनका आना कम होता जाता है।

बुरे सपनों का ताल्लुक व्यक्ति की संवेगात्मक अवस्था से होता है। किसी व्यक्ति को उसके गंभीर मानसिक अवसाद तथा तनाव के दिनों में या फिर हाल में हुई किसी प्रियजन की मौत पर अक्सर ऐसे सपने दिखाई देते हैं। अगर सपने में आपको परीक्षा में असफलता दिखाई दे या आप स्वयं को किसी ऐसी विकट स्थिति में जकड़ा हुआ पाएं जिससे आप चाहकर भी निकल न पा रहे हों, तो इसका अर्थ है कि आप यथार्थ जीवन में संभवतः अवसाद के षिकार हों। अगर आप बीते दिनों हताशा से गुजरे हों, तो संभव है कि आपकी यह मानसिक अवस्था आपको सपने में दिखाई दे।

भारतीय ज्योतिष में सपनों की विशद व्याख्या की गई है। इस व्याख्या के अनुसार सपनों में विभिन्न वस्तुओं, पशु-पक्षियों आदि के किन अवस्थाओं में दिखाई देने का क्या अशुभ फल हो सकता है इसका संक्षिप्त  विवरण यहां प्रस्तुत है।

प्रार्थना : यदि कोई व्यक्ति स्वप्न में यह देखे कि वह अकेला ही अपने इष्ट देव की प्रार्थना कर रहा है, तो यह समझना चाहिए कि उसकी सहायता के सभी दरवाजे बंद हो गए हैं। यदि कोई प्रार्थना से अलग रहने का स्वप्न देखे, तो उसके परिवार के किसी सदस्य को कष्ट प्राप्त होना संभव है।

चीता : स्वप्न में चीते का दिखाई देना व्यक्ति की सफलता के मार्ग में कठिनाइयों का सूचक होता है। स्वप्न में चीता व्यक्ति पर आक्रमण करता दिखाई दे, तो व्यक्ति की कठिनाइयां शीघ्र ही बढ़ जाती हैं। यदि स्वप्न में चीता किसी दूसरे व्यक्ति पर आक्रमण करता हुआ दिखाई दे, तो किसी गभीर दुर्घटना के कारण, बड़े संकट में पड़ता है।

ढोलक : यदि व्यक्ति किसी उत्सव में स्वयं को ढोल बजाता हुआ देखे, तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

मशीन : यदि किसी व्यापारी को स्वप्न में पंचिंग मशीन को छोड़ कर अन्य मशीनें दिखाई दें, तो व्यवसाय में असफलता मिलती है।

तितली : यदि कोई लड़की स्वप्न में किसी तितली को पकड़े किंतु वह तितली पकड़ से बाहर निकल जाए, तो उस लड़की का विवाह इच्छित लड़के से नहीं होता

दस्तावेज : यदि स्वप्न में कोई दस्तावेज, अथवा बांड पर हस्ताक्षर करे, तो उसे धन की हानि होती है।

आंखें : यदि स्वप्न में व्यक्ति को अपनी आंखें लाल दिखाई दें, तो उसे कोई रोग होता है।

बिल्ली : यदि स्वप्न में बिल्ली दिखाई दे, तो व्यक्ति के आचरण के विषय में खराब खबरें फैलती हैं, लोग उससे घृणा करते हैं। साथ ही उसके घर चोरी आदि होने के कारण उसे आर्थिक हानि भी होती है।

भोजन : यदि व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को भोजन करता हुआ देखे, तो उसे कोई रोग होता है।

छिपकली : यदि व्यक्ति को स्वप्न में अपने शरीर पर छिपकली गिरती दिखाई दे, तो उसे कोई रोग हो सकता है। यदि कोई स्त्री अपने कपड़ों पर छिपकली गिरती हुई देखे, तो किसी कारणवश कुछ दिनों के लिए उसका पति से वियोग हो सकता है। यदि स्वप्न में २ छिपकलियां लड़ती हुई दिखाई दें, तो परिवार पर भारी विपत्ति आ सकती है।

चूहा : स्वप्न में चूहा दिखाई दे, तो  व्यक्ति के अनेकानेक शत्रु हो सकते हैं। स्वप्न में चूहे का फंसना दिखाई देना व्यक्ति के शत्रुओं के षड्यंत्र के शिकार होने का सूचक है। यदि स्वप्न में बहुत से चूहे दिखाई दें, तो व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में असफलता मिलती है।

इस तरह सपने में उक्त वस्तुओं, पशु-पक्षियों आदि का उक्त अवस्थाओं में दिखाई देना अशुभ होता है।

बुरे सपनों से बचाव के लिए क्या करें?


    स्नानादि कर क्क यो मे राजन्‌ मंत्र का जप करते हुए सूर्य भगवान की उपासना करें।

    क्क अधः स्वप्नास्य मंत्र का जप, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र, गजेंद्र मोक्ष  और पुरुष सूक्त का पाठ तथा शिव एवं शक्ति की उपासना नियमित रूप से करें।

    सूर्योदय के पूर्व पूर्वाभिमुखी आसनस्थ होकर गायत्री मंत्र का १०८ बार जप करें।

    शमी का पूजन करें।

उक्त ज्योतिषीय उपायों के अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय भी करें।


जाग्रतावस्था में ज्यादा कल्पनाएं न करें। सोने से पहले समाचार देखने, या सुनने  या फिर अखबार पढ़ने से बचें। उत्तेजक या माड़-धाड़ वाली फिल्मों अथवा हर उस चीज से बचें, जो आपको उत्तेजित करे।

इसके अतिरिक्त मन में सकारात्मक विचार को स्थान दें, नकारात्मक विचार दूर होंगे। सोने से पहले कोई धार्मिक ग्रंथ या सन्मार्ग पर ले जाने वाली कोई पुस्तक पढ़ें या फिर अपने प्रियजन पर ध्यान केंद्रित करें। अपनी महान स्मृतियों का स्मरण करें और कुछ देर के लिए उनमें खो जाएं। ध्यान रखें, सोने से पहले किसी समस्या पर विचार न करें, अन्यथा बुरे सपने आएंगे।

अपषकुन क्या है

अपषकुन क्या है

कुछ लक्षणों को देखते ही व्यक्ति के मन में आषंका उत्पन्न हो जाती है कि उसका कार्य पूर्ण नहीं होगा। कार्य की अपूर्णता को दर्षाने वाले ऐसे ही कुछ लक्षणों को हम अपषकुन मान लेते हैं।

अपशकुनों के बारे में हमारे यहां काफी कुछ लिखा गया है, और उधर पष्चिम में सिग्मंड फ्रॉयड समेत अनेक लेखकों-मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी लिखा है। यहां पाठकों के लाभार्थ घरेलू उपयोग की कुछ वस्तुओं, विभिन्न जीव-जंतुओं, पक्षियों आदि से जुड़े कुछ अपषकुनों का विवरण प्रस्तुत है।

झाड़ू का अपषकुन

नए घर में पुराना झाड़ू ले जाना अषुभ होता है।

उलटा झाडू रखना अपषकुन माना जाता है।

अंधेरा होने के बाद घर में झाड़ू लगाना अषुभ होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है।

झाड़ू पर पैर रखना अपषकुन माना जाता है। इसका अर्थ घर की लक्ष्मी को ठोकर मारना है।

यदि कोई छोटा बच्चा अचानक झाड़ लगाने लगे तो अनचाहे मेहमान घर में आते हैं।

किसी के बाहर जाते ही तुरंत झाड़ू लगाना अषुभ होता है।

दूध का अपषकुन

दूध का बिखर जाना अषुभ होता है।

बच्चों का दूध पीते ही घर से बाहर जाना अपषकुन माना जाता है।

स्वप्न में दूध दिखाई देना अशुभ माना जाता है। इस स्वप्न से स्त्री संतानवती होती है।

पशुओं का अपषकुन

किसी कार्य या यात्रा पर जाते समय कुत्ता बैठा हुआ हो और वह आप को देख कर चौंके, तो विन हो।

किसी कार्य पर जाते समय घर से बाहर कुत्ता शरीर खुजलाता हुआ दिखाई दे तो कार्य में असफलता मिलेगी या बाधा उपस्थित होगी।

यदि आपका पालतू कुत्ता आप के वाहन के भीतर बार-बार भौंके तो कोई अनहोनी घटना अथवा वाहन दुर्घटना हो सकती है।

यदि कीचड़ से सना और कानों को फड़फड़ाता हुआ दिखाई दे तो यह संकट उत्पन्न होने का संकेत है।

आपस में लड़ते हुए कुत्ते दिख जाएं तो व्यक्ति का किसी से झगड़ा हो सकता है।

शाम के समय एक से अधिक कुत्ते पूर्व की ओर अभिमुख होकर क्रंदन करें तो उस नगर या गांव में भयंकर संकट उपस्थित होता है।

कुत्ता मकान की दीवार खोदे तो चोर भय होता है।

यदि कुत्ता घर के व्यक्ति से लिपटे अथवा अकारण भौंके तो बंधन का भय उत्पन्न करता है।

चारपाई के ऊपर चढ़ कर अकारण भौंके तो चारपाई के स्वामी को बाधाओं तथा संकटों का सामना करना पड़ता है।

कुत्ते का जलती हुई लकड़ी लेकर सामने आना मृत्यु भय अथवा भयानक कष्ट का सूचक है।

पषुओं के बांधने के स्थान को खोदे तो पषु चोरी होने का योग बने।

कहीं जाते समय कुत्ता श्मषान में अथवा पत्थर पर पेषाब करता दिखे तो यात्रा कष्टमय हो सकती है, इसलिए यात्रा रद्द कर देनी चाहिए। गृहस्वामी के यात्रा पर जाते समय यदि कुत्ता उससे लाड़ करे तो यात्रा अषुभ हो सकती है।

बिल्ली दूध पी जाए तो अपषकुन होता है।

यदि काली बिल्ली रास्ता काट जाए तो अपषकुन होता है। व्यक्ति का काम नहीं बनता, उसे कुछ कदम पीछे हटकर आगे बढ़ना चाहिए।

यदि सोते समय अचानक बिल्ली शरीर पर गिर पड़े तो अपषकुन होता है।

बिल्ली का रोना, लड़ना व छींकना भी अपषकुन है।

जाते समय बिल्लियां आपस में लड़ाई करती मिलें तथा घुर-घुर शब्द कर रही हों तो यह किसी अपषकुन का संकेत है। जाते समय बिल्ली रास्ता काट दे तो यात्रा पर नहीं जाना चाहिए।

गाएं अभक्ष्य भक्षण करें और अपने बछड़े को भी स्नेह करना बंद कर दें तो ऐसे घर में गर्भक्षय की आषंका रहती है। पैरों से भूमि खोदने वाली और दीन-हीन अथवा भयभीत दिखने वाली गाएं घर में भय की द्योतक होती हैं।

गाय जाते समय पीछे बोलती सुनाई दे तो यात्रा में क्लेषकारी होती है।

घोड़ा दायां पैर पसारता दिखे तो क्लेष होता है।

ऊंट बाईं तरफ बोलता हो तो क्लेषकारी माना जाता है।

हाथी बाएं पैर से धरती खोदता या अकेला खड़ा मिले तो उस तरफ यात्रा नहीं करनी चाहिए। ऐसे में यात्रा करने पर प्राण घातक हमला होने की संभावना रहती है।

प्रातः काल बाईं तरफ यात्रा पर जाते समय कोई हिरण दिखे और वह माथा न हिलाए, मूत्र और मल करे अथवा छींके तो यात्रा नहीं करनी चाहिए।

जाते समय पीठ पीछे या सामने गधा बोले तो बाहर न जाएं।

पक्षियों का अपषकुन

सारस बाईं तरफ मिले तो अषुभ फल की प्राप्ति होती है।

सूखे पेड़ या सूखे पहाड़ पर तोता बोलता नजर आए तो भय तथा सम्मुख बोलता दिखाई दे तो बंधन दोष होता है।

मैना सम्मुख बोले तो कलह और दाईं तरफ बोले तो अषुभ हो।

बत्तख जमीन पर बाईं तरफ बोलती हो तो अषुभ फल मिले।

बगुला भयभीत होकर उड़ता दिखाई दे तो यात्रा में भय उत्पन्न हो।

यात्रा के समय चिड़ियों का झुंड भयभीत होकर उड़ता दिखाई दे तो भय उत्पन्न हो।

घुग्घू बाईं तरफ बोलता हो तो भय उत्पन्न हो। अगर पीठ पीछे या पिछवाड़े बोलता हो तो भय और अधिक बोलता हो तो शत्रु ज्यादा होते हैं। धरती पर बोलता दिखाई दे तो स्त्री की और अगर तीन दिन तक किसी के घर के ऊपर बोलता दिखाई दे तो घर के किसी सदस्य की मृत्यु होती है।

कबूतर दाईं तरफ मिले तो भाई अथवा परिजनों को कष्ट होता है।

लड़ाई करता मोर दाईं तरफ शरीर पर आकर गिरे तो अषुभ माना जाता है।

लड़ाई करता मोर दाईं तरफ शरीर पर आकर गिरे तो अषुभ माना जाता है।

अपषकुनों से मुक्ति तथा बचाव
के उपाय


विभिन्न अपशकुनों से ग्रस्त लोगों को
निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।

यदि काले पक्षी, कौवा, चमगादड़
आदि के अपषकुन से प्रभावित हों तो अपने इष्टदेव का ध्यान करें या अपनी राषि के अधिपति देवता के मंत्र का जप करें तथा धर्मस्थल पर तिल के तेल का दान करें।

अपषकुनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए धर्म स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर बांट दें।

छींक के दुष्प्रभाव से बचने के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करें तथा चुटकी बजाएं।

क्क राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम जपेत्‌ तुल्यम्‌ राम नाम वरानने॥

अषुभ स्वप्न के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए महामद्यमृत्युंजय के निम्नलिखित मंत्र का जप करें।

क्क ह्रौं जूं सः क्क भूर्भुवः स्वः क्क त्रयम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिम्‌ पुच्च्िटवर्(नम्‌ उर्वारूकमिव बन्धनान्‌ मृत्योर्मुक्षीयमाऽमृतात क्क स्वः भुवः भूः क्क सः जूं ह्रौं॥क्क॥

श्री विष्णु सहस्रनाम पाठ भी सभी अपषकुनों के प्रभाव को समाप्त करता है।

सर्प के कारण अषुभ स्थिति पैदा हो तो जय राजा जन्मेजय का जप २१ बार करें।

रात को निम्नोक्त मंत्र का ११ बार जप कर सोएं, सभी अनिष्टों से भुक्ति मिलेगी।

बंदे नव घनष्याम पीत कौषेय वाससम्‌।

सानन्दं सुंदरं शुद्धं श्री कृष्ण प्रकृते परम्‌॥

मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)

मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)


मनोकामना पूर्ति के अचूक गुप्त उपाय(टोने-टोटके)

हर मनुष्य की कुछ मनोकामनाएं होती है। कुछ लोग इन मनोकामनाओं को बता देते हैं तो कुछ नहीं बताते। चाहते सभी हैं कि किसी भी तरह उनकी मनोकामना पूरी हो जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि आप चाहते हैं कि आपकी सोची हर मुराद पूरी हो जाए तो नीचे लिखे प्रयोग करें। इन टोटकों को करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी।

उपाय
- तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल चढ़ाएं तथा गाय के घी का दीपक लगाएं।

- रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत आक की जड़ लाकर उससे श्रीगणेश की प्रतिमा बनाएं फिर उन्हें खीर का भोग लगाएं। लाल कनेर के फूल तथा चंदन आदि के उनकी पूजा करें। तत्पश्चात गणेशजी के बीज मंत्र (ऊँ गं) के अंत में नम: शब्द जोड़कर 108 बार जप करें।

- सुबह गौरी-शंकर रुद्राक्ष शिवजी के मंदिर में चढ़ाएं।

- सुबह बेल पत्र (बिल्ब) पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर मनोरथ बोलकर शिवलिंग पर अर्पित करें।

- बड़ के पत्ते पर मनोकामना लिखकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोरथ पूर्ति होती है। मनोकामना किसी भी भाषा में लिख सकते हैं।

- नए सूती लाल कपड़े में जटावाला नारियल बांधकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

बाधा हो जाएगी दूर

बाधा हो जाएगी दूर

इस टोटके से हर बाधा हो जाएगी दूर


जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब हर काम में बाधा आने लगती है। काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं। जहां से हमें उम्मीद होती है वहीं से निराशा हाथ लगती है। ऐसे समय में अगर यह टोटका किया जाए तो हर काम बनने लगते हैं और बाधाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं।

टोटका

सुबह उठकर नहाकर साफ पीले कपड़े पहनें। इसके बाद आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं और 7 हल्दी की साबूत गांठे, 7 जनेऊ, 7 पूजा की छोटी सुपारी, 7 पीले फूल व 7 छोटी गुड़ की ढेली एक पीले रंग के कपड़े में बांध लें। अब भगवान सूर्य का स्मरण करें और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें। यह पोटली घर में कहीं ऐसी जगह रख दें जहां कोई और उसे हाथ न लगाए। जब आपका कार्य हो जाए तो यह पोटली किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें।



जल्द विवाह के लिए

जल्द विवाह के लिए


यदि पूर्णिमा पर करें यह उपाय तो जल्दी होगी शादी---

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी शादी में काफी मुश्किलें आती हैं। कई बार तो यह लोग काफी निराश हो जाते हैं। लेकिन उन्हें निराश होने की कोई जरुरत नहीं है , पूर्णिमा  के अवसर पर यदि वे नीचे लिखे उपाय विधि-विधान से करेंगे तो न सिर्फ उनका विवाह जल्दी होगा बल्कि उन्हें मनचाहा जीवन साथी भी मिलेगा।

उपाय

- गरीबों को अपने सामथ्र्य के अनुसार पीले फल जैसे- आम, केला आदि का दान करें।

- इस दिन नया पीला रुमाल अपने साथ में रखें।

- भगवान विष्णु के मंदिर में जाकर बेसन के लड्डू चढ़ाएं। लड्डू के साथ सेहरे की कलगी भी चढ़ाएं। यह शीघ्र विवाह का अचूक उपाय है।

- केल (केले के पेड़) की पूजा करें।

- इस दिन भोजन में केसर का उपयोग करें व केसर का तिलक लगाएं।

- जरुरतमंदों को पीले वस्त्रों का दान करें।

- गुरु बृहस्पति के मंदिर में जाएं। उन्हें पीली मिठाई, फल, फूल व वस्त्र अर्पण करें।

- एक किलो चने की दाल के साथ सोने का कोई आभूषण दान करें। यदि लड़के की शादी नहीं हो रही है तो ब्राह्मण को दान करें और यदि लड़की की शादी नहीं हो रही है तो किसी कन्या को दान करें।

माता बगलामुखी मुखी के मंत्र

माता बगलामुखी मुखी के मंत्र 


गायत्री मंत्र- ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात्।।

अष्टाक्षर गायत्री मंत्र- ऊँ ह्रीं हं स: सोहं स्वाहा। हंसहंसाय विद्महे सोहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।।

अष्टाक्षर मंत्र- ऊँ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा

त्र्यक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं ऊँ

नवाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठ:

एकादशाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि स्वाहा।

ऊँ ह्ल्रीं हूं ह्लूं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्ल: वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ह्ल: ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशाय ह्लूं हूं ह्लीं ऊँ हूं फट्।

षट्त्रिंशदक्षरी मंत्र- ऊँ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।


जहरीले जानवर के काटने का टोटका

जहरीले जानवर के काटने का टोटका



एक टोटका काम आता है,कि दाहिने हाथ के अंगूठे में अगर ततैया ने डंक मार दिया है तो फौरन बायें हाथ के अंगूठे को पानी से धो डालिये,विष का पता ही नही चलेगा कि ततैया या बर्र ने काटा भी है या नहीं, इसी बात के लिये जब तक डाक्टर के पास जाते, बर्र या ततैया के डंक को निकलवाते विष रोधी इन्जेक्सन लगवाते ,तो विष का दुख तो दूर हो जाता, लेकिन उस इन्जेक्सन का कुप्रभाव दिमाग की नशों को प्रभाव हीन भी कर सकता था।

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं


ग्रहण काल, होली, दीपावली, संक्रांति, महाशिवरात्रि आदि पर्व मंत्र-तंत्र और यंत्र साधना सिद्धि के लिए उपयुक्त बताए गए हैं, लेकिन इनमें सबसे उपयुक्त पर्व "गुप्त नवरात्र" है। तांत्रिक सिद्धियां गुप्त नवरात्र में ही सिद्ध की जाती हैं।
साल में चार नवरात्र होते हैं। इनमें दो मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल और अश्विनी शुक्ल में आते हैं और दो गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल और माघ शुक्ल में होते हैं। इनका क्रम इस तरह होता है- पहला मुख्य नवरात्र चैत्र शुक्ल में, फिर गुप्त नवरात्र। दूसरा मुख्य नवरात्र अश्विनी शुक्ल में फिर गुप्त नवरात्र। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो चारों नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। आषाढ़ शुक्ल, 23 जून मंगलवार को गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं।

मंत्र शास्त्र के अनुसार वेद मंत्रों को ब्राहा ने शक्ति प्रदान की। तांत्रिक प्रयोग को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न बनाया है। इसी प्रकार कलियुग में शिव अवतार श्रीशाबर नाथजी ने शाबर मंत्रों को शक्ति प्रदान की। शाबर मंत्र बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है, जो सुनने में अर्थहीन सा प्रतीत होता है।

कोई भी मंत्र-तंत्र-यंत्र को सिद्ध करने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है। बिना गोपनीयता के कोई भी मंत्र-यंत्र सिद्ध नहीं होता। मंत्र सिद्धि के लिए चार चीजें आवश्यक हैं- (1) एकांत (2) परम शांति (3) एकाग्रता (4) दृढ़ निश्चय। इसके साथ-साथ मंत्रदाता गुरू में पूर्ण श्रद्धा, भक्ति तथा भाव आदि का होना जरू री है।
गुप्त नवरात्रा में अधिकतर साधक तंत्र, शाबर मंत्र, योगनी आदि सिद्ध करते हैं, जिन्हें तांत्रिक सिद्धियां कहा जाता है। जो लोग ऎसा करते हैं, उनकी आत्मा शुद्ध नहीं होती है। वे खुद को सिद्ध करने और प्रसिद्धि प्राप्ति की इच्छा से ये सिद्धियां प्राप्त करते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों को ऎसी सिद्धियों से दूर रहना ही हितकर है।

गृहस्थ व्यक्तियों को अपनी कुंडली में स्थित अरिष्ट ग्रहों की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए संबंधित ग्रहों के मंत्रों का जप करना हितकर और उपयोगी रहेगा।
इसके अतिरिक्त गणेशजी कष्ट निवारणकर्ता हैं। सूर्य प्राण रक्षक हैं और लक्ष्मीजी आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करती हैं। इसलिए गृहस्थ अपने कष्ट निवारण के लिए इनके मंत्रों का जप प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक विधिपूर्वक करें, तो लाभकारी रहेगा।

गणेश गायत्री मंत्र- "वक्रदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात।"
सूर्य उपासना मंत्र- "ह्वीं ह्वीं सूर्याय नम:।
 ह्वौं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ।।
लक्ष्मी-गणेश मंत्र- श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

द्वादश राशि मंत्र

द्वादश राशि मंत्र


देश में करोड़ों व्यक्ति ऎसे होंगे, जिनको अपने जन्म दिनांक एवं समय का ज्ञान नहीं है। ऎसे व्यक्ति अपने बोलते नाम से जो राशि बनती है, उस राशि के मंत्र का जप करके लाभांवित हो सकते हैं। राशि अनुसार मंत्र इस प्रकार हैं-

मेष राशि-  ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नम:
वृष राशि-  गोपालाय उत्तर घ्वजाय नम:
मिथुन राशि- क्लीं कृष्णाय नम:
कर्क राशि-  हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरू पिणे नम:
सिंह राशि-  क्लीं ब्राहणे जगदाधाराय नम:
कन्या राशि- नमो प्रीं पीतांबराय नम:
तुला राशि-  तत्व निरंजनाय तारक रामाय नम:
वृश्चिक राशि- नारायणाय सुरसिंहाय नम:
धनु राशि- श्रीं देवकृष्णाय ऊघ्र्वषंताय नम:
मकर राशि- श्रीं वत्सलाय नम:
कुंभ राशि-  श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नम:
मीन राशि-  क्लौं उद्घृताय उद्धारिणे नम:

पवित्र करने वाला मंत्र

पवित्र करने वाला मंत्र

चाहे जिस हालात में हों, यह मंत्र कर देगा पवित्र

देव भक्ति में श्रद्धा और विश्वास होने के साथ-साथ शुद्धता का भी महत्व है। यह केवल धार्मिक नियम नहीं बल्कि इसके पीछे यही विज्ञान है कि पवित्रता, तन और वातावरण में ताजगी और ऊर्जा लाने के साथ ही मन और विचारों को भी भटकाव से बचाती है।

यही कारण है कि शास्त्रों में देव उपासना या कर्म के दौरान पवित्रता के लिए अनेक धार्मिक उपाय बताए गए हैं। किंतु अनेक लोगों को पवित्रता के विधि-विधान की जानकारी नहीं होती। धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाले अनेक लोग व्यस्त जीवन से समय निकालकर घर से बाहर या कार्यालय में किसी स्थान पर मंत्र या देव नाम लेना चाहते हैं, किंतु जगह या वातावरण की शुद्धता को लेकर मन में संशय की स्थिति में रहते हैं।

ऐसे ही लोगों की दुविधा को दूर करता है, शास्त्रों में बताया गया एक मंत्र जिसका स्मरण मात्र ही व्यक्ति को हर स्थिति में पवित्र करने वाला माना गया है।

 इस मंत्र में पुण्डरीकाक्ष के रूप में ब्रह्मशक्ति का ही ध्यान किया गया है। यह मंत्र बोल अपने ऊपर जल छिड़कें। 

मंत्र है -

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। 
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।

इस मंत्र का सरल अर्थ है - 

कोई पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।

राशि के अनुसार सफलता के धार्मिक उपाय

राशि के अनुसार सफलता के धार्मिक उपाय


राशि के अनुसार सफलता के धार्मिक उपाय
जीवन में सुख के साथ ही कभी-कभी दुःख के क्षणों का भी सभी को सामना करना पड़ता है। दुःख के क्षणों में यदि संबल बनाए रखा जाए तो उस पर पार पाया जा सकता है इसके अलावा कुछ ऐसी आध्यात्मिक क्रियाएं भी हैं जिनसे संकटों से निजात पाई जा सकती है। यह क्रियाएं विभिन्न राशियों पर अलग-अलग प्रकार से लागू होती हैं। यदि याचक अपनी राशि के अनुसार दिये गये सुझावों का पालन करें तो लाभ संभव है।

मेष राशि- 
मेष राशि के लोगों के आराध्य देव गणेश जी हैं। उन्हें उनका पूजन तो करना ही चाहिए साथ ही हर मंगलवार को हनुमान जी का प्रसाद चढ़ाएं और पूरा प्रसाद मंदिर में ही बांट दें। पहले हनुमान जी के पैर देखें फिर चेहरा। इसके अलावा वह बरकत के लिए मछलियों और पक्षियों को दाना दें तथा घर के सदस्यों से तनाव हो तो छेद वाले तीन तांबे के सिक्के बहते जल में प्रवाहित कर दें। उच्च शिक्षा के लिए लाल फूल का पौधा लगाएं। लाल रोली डाल कर सूर्य को जल चढ़ाएं। कोर्ट केस जीतने के लिए हरे रंग के कपड़े दान दें। इसके अलावा केसर वाला मीठा चावल कन्याओं को खिलाएं इससे तनाव दूर होगा।

वृषभ राशि- 
इस राशि के लोगों को चाहिए कि संपत्ति के विवाद को सुलझाने के लिए गणपति का पूजन करें। पढ़ाई में परेशानी आ रही हो तो गाय को हरा चारा खिलाएं। मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में शुद्ध घी का दोमुखी दीया जलाएं और लाल चंदन की माला चढ़ाएं इससे दांपत्य की परेशानी दूर होगी। काम शुरू हो कर बीच में अधूरा रह जाता हो तो 21 गुरुवार को गरीब ब्राम्हण को भोजन कराएं। दफ्तर में तनाव हो तो पीपल को जल चढ़ाएं और कौए को मीठी रोटी खिलाएं। अपाहिज व्यक्ति को दान दें। आमदनी में दिक्कत हो तो केसर का टीका माथे पर लगाएं।

मिथुन राशि- 
इस राशि के लोग हरे रंग का रुमाल हमेशा अपने पास रखें। संपत्ति विवाद के हल के लिए बुजुर्गों को रात में दूध पीने के लिए दें। घर में कलह होती हो तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को एक कन्या को भोजन कराएं और नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। बीमारी में पैसा खर्च हो रहा हो या दफ्तर में परेशानी आ रही हो तो किसी को मीठा व नमकीन दोनों खिलाएं। दफ्तर की परेशानियों से बचने के लिए 1 हल्दी की गांठ पानी में बहा दें और दूसरी दफ्तर में रख लें। गरीब व्यक्ति को काला कंबल दान दें, काम सुचारू चलेगा। शोहरत पाने के लिए पानी में फिटकरी डाल कर स्नान करें।

कर्क राशि- 
इस राशि के लोगों को चाहिए कि यदि उनकी किसी से भी बहस हो जाती हो, तो शिव मंदिर में लाल चंदन दान दें। बचत न होती हो तो मां की सेवा करें। सफलता के लिए रोज पूजा के बाद चंदन का टीका लगाएं। बुजुर्गों का कहा मानें और उनका सम्मान करें, स्वास्थ्य की परेशानियां कम होंगी। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी की राय जरूर लें। इससे नुकसान की संभावनाएं कम हो जाती हैं। नए काम से पहले पितरों को याद करें। धन की इच्छा हो तो घर में लाल फूल की बेल लगाएं।

सिंह राशि- 
इस राशि के जातक नियमित सूर्य को अध्र्य दें और लाल चंदन का टीका लगाएं। सौहार्द्र के लिए हर बुधवार को गणेश जी को किशमिश चढ़ाएं। शुक्रवार को इत्र लगाएं इससे काम आसानी से बनेंगे। सात शुक्रवार कुएं में फिटकरी का टुकड़ा डालें इससे काम बन जाएगा। उच्च शिक्षा के लिए कुत्ते को रोटी खिलाएं और झूठ न बोलें। बहते पानी में सात बादाम और एक नारियल शुक्रवार के दिन प्रवाहित करें इससे बीमारी से छुटकारा मिलेगा। घर में तुलसी का पौधा लगाएं और रोज पानी डालें। सुबह बड़ों के पैर छुएं। मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं। लाल रंग का रुमाल अपने पास रखें इससे भाग्योदय होगा।

कन्या राशि- 
धन की हानि से बचने के लिए गले में दोमुखी रुद्राक्ष पहनें। सुख-शांति के लिए हर शनिवार को पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं। परेशानी से बचने के लिए घर में कुत्ता न पालें। उच्च शिक्षा के लिए 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें। काम आसानी से होते रहें, इसके लिए घर में गंगाजल रखें। किसी से बेकार बहस हो जाती हो तो खाने के बाद सौंफ खाएं। छोटी उंगली में सोने में पन्ना पहनें। शिव पूजा करें इससे आर्थिक लाभ होगा। प्रतिष्ठा के लिए हरे रंग के कपड़े ज्यादा से ज्यादा पहनें। स्थायी सफलता के लिए तुलसी की माला पहनें।

तुला राशि- 
इस राशि के लोग बड़ों का सम्मान करें और 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें। 200 ग्राम गुड़ की रेवड़ी और 200 ग्राम बताशे 21 मंगलवार तक बहते पानी में प्रवाहित करें इससे धन की समस्या दूर होगी। मंगलवार को हुनमान चालीसा का पाठ करें। काम में बार-बार दिक्कतें आ रही हों तो नियमित किसी मंदिर में भगवान के दर्शन करें। छोटे भाई-बहनों की मदद करें।

वृश्चिक राशि- 
इस राशि के लोग रदुव्र्यसन से जितना दूर रहेंगे उतनी ही तरक्की करेंगे। उच्च शिक्षा के लिए केले के पेड़ की पूजा करें और जल चढ़ाएं। अनिश्चितता की स्थिति हो तो हाथी को गन्ना खिलाएं।

धनु राशि- 
स्नान के बाद माथे पर लाल चंदन या रोली का टीका लगाएं। उच्च शिक्षा के लिए तांबे के बरतन में पानी भर कर अपने कमरे में रखें और सुबह उसे पौधों में डाल दें। परिवार में प्रेम के लिए नीम और अशोक के पेड़ लगवाएं। सुखमय दांपत्य जीवन के लिए तुलसी में जल डालें। दफ्तर में परेशानी आ रही हो तो महिलाएं बाएं हाथ और पुरुष दाएं हाथ में चांदी का कड़ा पहनें। बहस या विवाद से बचने के लिए चांदी के बरतन में रात में पानी भरें और सुबह उसे पी लें। शांति और समृद्धि के लिए घर में कचरा या गंदगी ना रहने दें।

मकर राशि- 
आर्थिक परेशानियों से बचने के लिए शुक्रवार को सफेद गाय को चावल में घी और चीनी डाल कर खिलाएं। परेशानी से बचने के लिए लाल सांड को मीठी रोटी खिलाएं। गुरुवार को विष्णु मंदिर में पीले फूल चढ़ाएं।

कुंभ राशि- 
ध्यान रखें कि आपके यहां से कोई भूखा न जाए। उच्च शिक्षा के लिए तुलसी के पत्ते खाएं। गणपति व हनुमान जी की पूजा करें। रविवार का व्रत रखें और बिना नमक का भोजन करें इससे दांपत्य सुख मिलेगा।

मीन राशि- 
उन्नति के लिए माथे पर चंदन लगाएं, बुजुर्गों को सम्मान करें। बीमारियों में पैसा खर्च हो हो तो गले में तांबे का सूय्र पहनें। मंदिर या प्याऊ बनाने के लिए पैसा दान करें। दांपत्य जीवन में तनाव चल रहा हो तो महिलाओं से न झगड़ें न ही उन्हें अपमानित करें। कभी भी सट्टे और लाटरी में पैसा न लगाएं। नौकरी में परेशानी आ रही हो तो पीपल के पेड़ की जड़ में पानी डालें और कभी भी झूठ न बोलें। आर्थिक परेशानी हो तो तेल में अपना चेहरा देख कर उस तेल को दान कर दें। दोमुखी या 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें।

शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार

शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार


शुभ-अशुभ मुहूर्त दिन के अनुसार

हम हर काम मुहूर्त देखकर ही क्यों करते हैं? जाहिर है इसलिए कि हमें उस काम में सफलता मिले और वह काम बिना किस‍ी बाधा के संपन्न हो जाए। लेकिन हर दिन के शुभ-अशुभ समय को कैसे जाना जाए? पेश है, मुहूर्त से संबंधित रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी :

सारा संसार ग्रहों की चालों एवं उनकी किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों से आंदोलित रहता है। चाहे वह प्राणी जगत हो या फिर वनस्पति जगत। इसलिए ज्योतिष में उनकी अनुकूलता को मुहूर्त का नाम दिया है। प्रतिदिन अशुभ काल में शुभ कार्य न करें बल्कि शुभ काल में ही अपने कार्यों को करना चाहिए। जैसे- राहू काल में कोई शुभ कार्य व यात्रा तथा कोई व्यापार संबंधी तथा धन का लेन-देन न करें। राहू काल अनिष्टकारी बताया गया है। गुलीक काल में शुभ कार्य करें। राहू काल तथा गुलीक काल का विवरण निम्न प्रकार है-

राहू काल (अशुभ समय)

रविवार - सायं 4.30 से 6 बजे तक

सोमवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक

मंगलवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक

बुधवार- दोपहर 12 से 1.30 बजे तक

गुरुवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक

शनिवार- प्रातः 9 से 10.30 बजे तक

गुलीक काल (शुभ समय)

रविवार- अपराह्न- 3 से 4.30 बजे तक

सोमवार- दोपहर 1.30 से 3 बजे तक

मंगलवार - दोपहर 12 से 1.30 बजे तक

बुधवार - प्रातः 10.30 से 12 बजे तक

गुरुवार - प्रातः 9 से 10.30 बजे तक

शुक्रवार - प्रातः 7.30 से 9 बजे तक

शनिवार - प्रातः 6 से 7.30 बजे तक

गोधूलि वेला- 

विवाह मुहूर्तों में क्रूर ग्रह, युति, वेध, मृत्युवाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर भी यदि विवाह का शुद्ध लग्न न निकलता हो तो गोधूलि लग्न में विवाह संस्कार संपन्न करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है।

जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात्‌ सूर्यास्त होने वाला हो) गाय आदि पशु अपने घरों को लौट रहे हों और उनके खुरों से उड़ी धूल उड़कर आकाश में छा रही हो तो उस समय को मुहूर्तकारों ने गोधूलि काल कहा है। इसे विवाहादि मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। इस लग्न में लग्न संबंधी दोषों को नष्ट करने की शक्ति है।

आचार्य नारद के अनुसार सूर्योदय से सप्तम लग्न गोधूलि लग्न कहलाती है। पीयूषधारा के अनुसार सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि कहलाता है।

राशि के अनुसार मुहूर्त

राशि के अनुसार मुहूर्त


जन्म के समय जिस नक्षत्र का जो चरण होता है उसके अनुसार रखे जाने वाले नाम से जो राशि बनती है उसे जन्म राशि कहते हैं। स्वेच्छा से लोकव्यवहार के लिए जो नाम रखा जाता है उस अक्षर के नक्षत्र और चरण के अनुसार जो राशि बनती है उसे नाम राशि कहा जाता है।

जन्म राशि- 
विवाह, संपूर्ण मांगलिक कार्य, यात्रा और ग्रहों की स्थिति आदि में जन्म राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए।

नाम राशि- 
देश, ग्राम गृह संबंधी कार्यों में, युद्ध में नौकरी और व्यापार में नाम राशि की प्रधानता होती है। इन कार्यों में जन्म राशि का विचार न करें। जन्म राशि के होने पर विवाहादि कार्य लग्न और ग्रहों के बल का विचार करके नाम राशि से ही कर लेना चाहिए।

घर में हो कोई भी परेशानी तो अपनाएं वास्तु टोटके

घर में हो कोई भी परेशानी तो अपनाएं वास्तु टोटके

वर्तमान समय में सुविधा जुटाना आसान है। परंतु शांति इतनी सहजता से नहीं प्राप्त होती। हमारे घर में सभी सुख-सुविधा का सामान है, परंतु शांति पाने के लिए हम तरस जाते हैं। वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर समस्याओं को दूर कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।


- घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर पत्थर या धातु का एक-एक हाथी रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- भवन में आपके नाम की प्लेट को बड़ी एवं चमकती हुई रखने से यश की वृद्धि होती है।
- स्वर्गीय परिजनों के चित्र दक्षिणी दीवार पर लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता रहता है।
- विवाह योग्य कन्या को उत्तर-पश्चिम के कमरे में सुलाने से विवाह शीघ्र होता है।
-किसी भी दुकान या कार्यालय के सामने वाले द्वार पर एक काले कपडे में फिटकरी बांधकर लटकाने से बरकत होती है। धंधा अच्छा चलता है।
- दुकान के मुख्य द्वार के बीचों बीच नीबूं व हरी मिर्च लटकाने से नजर नहीं लगती है।
- घर में स्वस्तिक का निशान बनाने से निगेटिव ऊर्जा का क्षय होता है
- किसी भी भवन में प्रात: एवं सायंकाल को शंख बजाने से ऋणायनों में कमी होती है।
- घर के उत्तर पूर्व में गंगा जल रखने से घर में सुख सम्पन्नता आती है।
- पीपल की पूजा करने से श्री तथा यश की वृद्धि होती है। इसका स्पर्श मात्रा से शरीर में रोग प्रतिरोधक तत्वों की वृद्धि होती है।
- घर में नित्य गोमूत्र का छिडकाव करने से सभी प्रकार के वास्तु दोषों से छुटकारा मिल जाता है।
- मुख्य द्वार में आम, पीपल, अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाने से वंशवृद्धि होती है।

सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है

सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है 

सूर्य की प्रतिमा के चरणों के दर्शन न करें,

देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से ही हमारे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अक्ष्य पुण्य प्राप्त होता है। भगवान की प्रतीक प्रतिमाओं के दर्शन से हमारे सभी दुख-दर्द और क्लेश स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। सभी देवी-देवताओं की पूजा के संबंध में अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।

सभी पंचदेवों में प्रमुख देव हैं सूर्य। सूर्य की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है। सूर्य देव की पूजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण नियम है बताया गया है कि भगवान सूर्य के पैरों के दर्शन नहीं करना चाहिए। इस संबंध में शास्त्रों में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं।

देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय बाद जब सूर्य को आभास हुआ कि उनके साथ संज्ञा की छाया रह रही है तब उन्होंने संज्ञा को तुरंत ही बुलवा लिया। इस तरह छोड़कर जाने का कारण पूछने पर संज्ञा ने सूर्य के तेज से हो रही परेशानी बता दी। देवी संज्ञा की बात को समझते हुए उन्होंने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा से निवेदन किया कि वे उनके तेज को किसी भी प्रकार से सामान्य कर दे। विश्वकर्मा ने अपनी शिल्प विद्या से एक चाक बनाया और सूर्य को उस पर चढ़ा दिया। उस चाक के प्रभाव से सूर्य का तेज सामान्य हो गया। विश्वकर्मा ने सूर्य के संपूर्ण शरीर का तेज तो कम दिया परंतु उनके पैरों का तेज कम नहीं कर सके और पैरों का तेज अब भी असहनीय बना हुआ है। इसी वजह सूर्य के चरणों का दर्शन वर्जित कर दिया गया। ऐसा माना जाता है कि

सूर्य के चरणों के दर्शन से दरिद्रता प्राप्त होती है और पाप की वृद्धि होती है पुण्य कम होते हैं।

पूर्वजन्मकृ्त किसी श्रापादि जन्य दुष्प्रभाव से मुक्ति का सहज उपाय

पूर्वजन्मकृ्त किसी श्रापादि जन्य दुष्प्रभाव से मुक्ति का सहज उपाय


प्रत्येक महीने में कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि, जिसे कि मास-शिवरात्रि भी कहा जाता है.
वर्षप्रयन्त यदि उस दिन उपवास रख, शिवलिंग पर चन्दन, जल, दूध, शहद,व बेलफल अर्पित करने तथा स्व इच्छित संख्या में " ॐ ह्रीं नम: शिवाय ह्रीं ॐ " का जाप किया जाए. तत्पश्चात त्रिधातु (सोना, चाँदी, ताँबा मिश्रित) का छल्ला अनामिका अंगुली में धारण करें एवं रात्रि समय सोने से पूर्व कुछ समय जाने अनजाने में किए गए किन्ही अपराधों की क्षमाप्रार्थना कर श्री महामृ्त्युंजय मन्त्र का जाप किया जाए तो पूर्वजन्मकृ्त कईं प्रकार के दोषों से सहज ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है.

Friday, April 14, 2017

भगवती स्वाहा (स्वाहा देवी) का उपाख्यान BHAGWATI SWAHA DEVI UPAKHYAN

भगवती स्वाहा (स्वाहा देवी) का उपाख्यान BHAGWATI SWAHA DEVI UPAKHYAN

 श्रीब्रह्मवैवर्त्त-पुराण के प्रकृति-खण्ड के 40 वें अध्याय में भगवती ‘स्वाहा’ का सुन्दर उपाख्यान वर्णित है । 

नारदजी के पुछे जाने पर भगवान् नारायण कहते है – 


मुने ! सृष्टि के प्रारम्भिक समय की बात है – देवता भोजन की व्यवस्था के लिये ब्रह्मलोक की मनोहारिणी सभा में गये । मुने ! वहाँ जाकर उन्होंने अपने आहार के लिये ब्रह्माजी से प्रार्थना की । उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी ने उन्हें भोजन देने की प्रतिज्ञा करके श्रीहरि के चरणों की आराधना की । तब भगवान् श्रीहरि अपनी कला से ‘यज्ञ’-रुप में प्रकट हुए । उस यज्ञ में जिस-जिस हविष्य की आहुति दी गयी, वह सब ब्रह्माजी ने देवताओं को दिया; किन्तु ब्राह्मण और क्षत्रिय आदि वर्ण भक्तिपूर्वक जो हवन करते थे, वह देवताओं को उपलब्ध नहीं होता था । इसीसे वे सब उदास होकर ब्रह्मसभा में गये थे और वहाँ जाकर उन्होंने आहार न मिलने की बात बतलायी । ब्रह्माजी ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर ध्यान के द्वारा ‘भगवान् श्रीकृष्ण’ की शरण ली । फिर भगवान् की आज्ञा से उन्होंने ध्यान के द्वारा ही ‘मूल-प्रकृति’ की पूजा की । तब सर्व-शक्ति-स्वरुपिणी भगवती प्रकृति अपनी कला द्वारा अग्नि की दाहिका-शक्ति ‘स्वाहा’ के रुप में प्रकट हुई । उन परम सुन्दरी देवी के विग्रह की सुन्दर श्याम कान्ति थी । वे मनोहारिणी देवी मुस्कुरा रही थी । भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये व्यग्र-चित्त वाली उन भगवती स्वाहा ने ब्रह्माजी के सम्मुख उपस्थित होकर उनसे कहा – ‘पद्मयोने ! तुम वर माँगो !’ तदनन्तर ब्रह्माजी ने भगवती का वचन सुनकर सम्भ्रम-पूर्वक कहा । ब्रह्माजी बोले – तुम अग्नि की दाहिका-शक्ति तथा उनकी परम सुन्दरी पत्नी होने की कृपा करो । तुम्हारे बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ है । जो मानव मन्त्र के अन्त में तुम्हारे नाम का उच्चारण करके देवताओं के लिये हवनीय पदार्थ अर्पण करें, उनका वह हविष्य देवताओं को सहज ही उपलब्ध हो जाय । अम्बिके ! तुम अग्निदेव की सर्वसम्पत्-स्वरुपा एवं श्रीरुपिणी गृह-स्वामिनी बनो । देवता और मनुष्य सदा तुम्हारी पूजा करेंगे । ब्रह्माजी की बात सुनकर भगवती स्वाहा देवी उदास हो गयी । उन्होंने स्वयं ब्रह्माजी से अपना अभिप्राय इस प्रकार व्यक्त किया । स्वाहा बोली – ब्रह्मन् ! मैं दीर्घ-काल तक तपस्या करके भगवान् श्रीकृष्ण की सेवा का सौभाग्य प्राप्त करुँगी । उन परब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण के अतिरिक्त जो कुछ भी है सब स्वप्न के समान भ्रम-मात्र है । तुम जो जगत् की सृष्टि करते हो, भगवान् शंकर ने जो मृत्यु पर विजय प्राप्त की है, शेषनाग जो अखिल विश्व को धारण करते हैं, धर्म जो समस्त देहधारियों के साक्षी हैं, गणेशजी जो सम्पूर्ण देव-समाज में सर्व-प्रथम पूजा प्राप्त करते हैं तथा जगदम्बा प्रकृति देवी जो सर्व-पूज्या हुई है – यह सब उन भगवान् श्रीकृष्ण के कृपा-प्रसाद का ही फल है । भगवान् श्रीकृष्ण के सेवक होने से ही ऋषियों और मुनियों का सर्वत्र सम्मान है । अतः पद्मज ! मैं भी एकमात्र उन्हीं परम प्रभु श्रीकृष्ण के चरण-कमलों का सानुराग चिन्तन करती हूँ । ब्रह्माजी से इस प्रकार कहकर वे कमलमुखी देवी स्वाहा निरामय भगवान् श्रीकृष्ण के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये चल दी । फिर एक पैर से खड़ी होकर उन्होंने श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए बहुत वर्षों तक तप किया । तब प्रकृति से परे निर्गुण परब्रह्म श्रीकृष्ण के दर्शन उन्हें प्राप्त हुए । भगवान् के परम कमनीय सौन्दर्य को देखकर सुरुपिणी देवी स्वाहा मूर्छित-सी हो गयी; क्योंकि वे उन कामेश्वर प्रभु को कान्ता-भाव से चाहने लगी थी । चिरकाल तक तपस्या करने के कारण क्षीण शरीर वाली देवी स्वाहा के अभिप्राय को वे सर्वज्ञ प्रभु समझ गये । उन्होंने उन्हें उठाकर अपने अंक में बैठा लिया और कहा । भगवान् श्रीकृष्ण बोले – कान्ते ! तुम वाराह-कल्प में अपने अंश से मेरी प्रिया बनोगी । तुम्हारा नाम ‘नाग्नजिती’ होगा । राजा ‘नग्नजित्’ तुम्हारे पिता होंगे । इस समय तुम दाहिका-शक्ति के रुप में अग्नि की प्रिय पत्नी बनो । मेरे प्रसाद से तुम मन्त्रों की अंगभूता एवं परम पवित्र होओगी । अग्निदेव तुम्हें अपनी गृहस्वामिनी बनाकर भक्ति-भाव के साथ तुम्हारी पूजा करेंगे । तुम परम रमणीया देवी के साथ सानन्द विहार करेंगे । नारद ! देवी स्वाहा से इस प्रकार सम्भाषण करके उन्हें आश्वासन दे भगवान् श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गये । फिर ब्रह्माजी की आज्ञा के अनुसार डरते हुए अग्निदेव वहाँ आये और ‘सामवेद’ में कही हुई विधि से जगज्जननी भगवती का ध्यान करके उन्होंने देवी भली-भाँति पूजा और स्तुति की । तत्पश्चात् अग्निदेव ने मन्त्रोच्चारणपूर्वक स्वाहा देवी का पाणिग्रहण किया । देवताओं के वर्ष से सौ वर्ष तक वे उनके साथ आनन्द करते रहे । परम सुखप्रद निर्जन देश में रहते समय देवी स्वाहा अग्निदेव के तेज से गर्भवती हो गयी । बारह दिव्य वर्षों तक वे उस गर्भ को धारण किये रही, तत्पश्चात् ‘दक्षिणाग्नि’, ‘गार्हपत्याग्नि’ और ‘आहवनीयाग्नि’ के क्रम से उनके मन को मुग्ध करने वाले परम सुन्दर तीन पुत्र उनसे उत्पन्न हुए । तब ऋषि, मुनि, ब्राह्मण तथा क्षत्रिय आदि सभी श्रेष्ठ वर्ण ‘स्वाहान्त’ मन्त्रों का उच्चारण करके अग्नि में हवन करने लगे और देवताओं को वह आहार-रुप से प्राप्त होने लगा । जो पुरुष स्वाहायुक्त प्रशस्त मन्त्र का उच्चारण करता है, उसे केवल मन्त्र पढ़ने-मात्र से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है । जिस प्रकार विषहीन सर्प, वेदहीन ब्राह्मण, पतिसरवा-विहीन स्त्री, विद्याहीन पुरुष तथा फल एवं शाखाहीन वृक्ष निन्दा के पात्र हैं, वैसे ही स्वाहा-हीन मन्त्र भी निन्द्य है । ऐसे मन्त्र से किया हुआ हवन शीघ्र फल नहीं देता । फिर तो सभी ब्राह्मण संतुष्ट हो गये । देवताओं को आहुतियाँ मिलने लगी । स्वाहान्त मन्त्र से ही उनके सारे कर्म सफल होने लगे । भगवान् नारायण भगवती स्वाहा के ध्यान, स्तोत्र और पूजा के विधान के विषय में कहते हैं – …….पुरुष को चाहिये कि फल प्राप्त करने के लिये सम्पूर्ण यज्ञों के आरम्भ में शालग्राम की प्रतिमा अथवा कलश पर यत्न-पूर्वक भगवती स्वाहा का पूजन करके यज्ञ आरम्भ करे । ध्यान इस प्रकार करना चाहिये – ‘देवी स्वाहा मन्त्रों की अंगभूता होने से पवित्र है । ये मन्त्र-सिद्धि-स्वरुपिणी हैं । सिद्ध एवं सिद्धिदायिनी हैं तथा मनुष्यों को उनके सम्पूर्ण कर्मों का फल देने वाली हैं । मैं उनका भजन करता हूँ ।’ मुने ! इस प्रकार ध्यान करके मूलमन्त्र से पाद्य आदि अर्पण करने के पश्चात् स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को सम्पूर्ण सिद्धियाँ सुलभ हो जाती है । मूल-मन्त्र इस प्रकार है – “ॐ ह्रीं श्रीं वह्निजायायै देव्यै स्वाहा” इस मन्त्र से भक्ति-पूर्वक जो भगवती स्वाहा की पूजा करता है, उसके सारे मनोरथ अवश्य पूर्ण हो जाते हैं । ।।वह्निरुवाच।। स्वाहाद्या प्रकृतेरंशा मन्त्र-तन्त्रांङ्ग-रुपिणी । मन्त्राणां-फलदात्री च धात्री च जगतां सती ।। सिद्धि-स्वरुपा सिद्धा च सिद्धिदा सर्वदा नृणाम् । हुताशदाहिकाशक्तिस्तत्प्राणाधिक-रुपिणीं ।। संसार-सार-रुपा च घोर-संसार-तारिणी । देवजीवन-रुपा च देवपोषण-कारिणी ।। षोडशैतानि नामानि यः पठेद्-भक्ति-संयुतः । सर्वसिद्धिर्भवेत्तस्य इहलोके परत्र च ।। (प्रकृति-खण्ड 40 / 51-54) अग्निदेव बोले – स्वाहा, आद्या, प्रकृत्यंशा, मन्त्र-तन्त्रांङ्ग-रुपिणी, मन्त्र-फलदात्री, जगद्धात्री, सती, सिद्धि-स्वरुपा, सिद्धा, सदानृणांसिद्धिदा, हुताशदाहिकाशक्ति, हुताशप्राणाधिक-रुपिणी, संसार-सार-रुपा, घोर-संसार-तारिणी, देवजीवन-रुपा और देवपोषण-कारिणी – ये सोलह नाम भगवती स्वाहा के हैं । जो भक्ति-पूर्वक इनका पाठ करता है, उसे इस लोक और परलोक में भी सम्पूर्ण सिद्धयों की प्राप्ति होती है । उसका कोई भी कर्म अंगहीन नहीं होता । उसे सब कर्मों में शुभ फल की प्राप्ति होती है । इन सोलह नामों के प्रभाव से पुत्रहीन को पुत्र तथा भार्याहीन को प्रिय भार्या प्राप्त हो जाती है ।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )