पंचम तथा दशम भाव में शुभ ग्रह हों तो संतान होने में विलंब होता है
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बहुत से लोगों के विवाह के कई वर्षों बाद संतान सुख प्राप्त होता है। संतान सुख के लिए लोग तरह- तरह के उपाय भी करते हैं। जानते हैं कि किन कारणों से मिलता है देरी से संतान सुख। जब कुंडली में राहु एकादश भाव में हो तो संतान अधिक आयु में होती है। चंद्र कर्क राशि में पाप युत या पाप दृष्ट हो तथा सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो अधिक आयु में संतान की प्राप्ति होती है।
लग्नेश, पंचमेश और नवमेश शुभ ग्रहों से युत होकर त्रिक भावों में हों तो संतान विलंब से होती है। पंचम भाव में पाप ग्रह तथा दशम भाव में शुभ ग्रह हों तो संतान होने में विलंब होता है। पंचम में गुरु हो तथा पंचमेश शुक्र के साथ हो तो 32 वर्ष के आयु के पश्चात् संतान होती है। पंचम में केवल गुरु हो, अष्टम में चंद्र हो, चतुर्थ या पंचम में पाप ग्रह हो तो 30 वर्ष की आयु के पश्चात् संतान होती है। नवम भाव में गुरु हो तथा गुरु से नवम में शुक्र लग्नेश से युत हो तो 40 वर्ष की आयु में संतान होती है। केंद्र में गुरु तथा पंचमेश हो तो 36 वर्ष की आयु में संतान लाभ होता है। लग्न में मंगल, पंचम में सूर्य तथा अष्टम में शनि हो तो संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है।
अगर इन स्थानों पर पुरुष ग्रहों का प्रभाव होगा तो संतान पुत्र जबकि स्त्री ग्रह के अधिकतम प्रभाव में पुत्री का जन्म होगा। यहां स्पष्ट करते चलें कि अगर सिंह राशि या सूर्य पर स्त्री ग्रहों का प्रभाव होगा तो अंततः इनके प्रभाव के बावजूद बालिका का जन्म होगा। . इसी तरह पंचम भाव, गुरु, सूर्य ( कर्क आदि लग्नों में तो निश्चित रूप से दूसरे स्थान) या अन्य पुरुष ग्रहों पर स्त्री ग्रहों का प्रभाव होगा तो बालिका के जन्म की ही भविष्यवाणी करनी चाहिए।
अशुभ ग्रह यथा मंगल और शनि भी संतान दे सकते हैं अगर वे मजबूत स्थिति में हो. मसलन मंगल अपने घरों या उच्च स्थिति में हो. इसी तरह अकेले शनि अगर मकर, कुंभ या तुला में उत्तम स्थिति में हो तो एक संतान निश्चित देता है। अगर मंगल, शनि पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो खासकर गुरु की पंचम-नवम दृष्टि हो और यह किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि में न हो तो एक से अधिक संतान होता है. हालांकि अधिकांश ज्योतिष ग्रंथ त्रिक भाव यानि छठे, आठवें व बारहवें में पंचमेश के होने पर संतान नहीं होने की बात करते हैं पर व्यवहार में ऐसा नहीं है। हमें इनके बलाबल के आधार पर इस बारे में निर्णय करना चाहिए।
इसके बाद हमें दसवें भाव पर दृष्टिपात करना चाहिए क्योंकि यहां बैठा अशुभ ग्रह न केवल संतान के स्वभाव खासकर पुत्र से सुख को खत्म करता है बल्कि दो-तीन अशुभ ग्रहों के प्रभाव से संतान हीनता की स्थिति भी उत्पन्न कर सकता है। मूलतः दसवें भाव में बैठे क्रूर व अशुभ ग्रह का सीधा असर लग्न पर होता है जिसके कारण जातक अपने जीवन में अनेक ऐसे बुरे कर्म करता है जिससे उसके संतान-सुख में कमी आती है, इसलिए इसकी जांच भी जरूरी है। इसके बाद हमें संतान के लिए देखी जाने वाली सप्तांश कुंडली की भी जांच करनी चाहिए। अगर उपरोक्त ग्रह की स्थिति यहां भी बेहतर हो तो संतान की गारंटी की मुहर लग जाती है।
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