गुप्त रोग और कुंडली
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है
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ऐसा माना जाता है की अच्छे काम संबंधों के लिये आठवां भाव राहु शनि के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए ।
स्त्री की कुंडली मे सप्तम और पुरुष की कुंडली मे अष्ठम भाव को मुख्य भूमिका है । यदि इनमे कोई पाप ग्रह हो या इन भावों को देख रहा हो तो गुप्त रोग की संभावना होती है ।
स्त्री की कुंडली मे सप्तम भाव मे मेष या विरश्चिक राशि हो और शनि उसे देख रहा हो तो स्त्री की योनि मे रोग होते है ।
सप्तम भाव मे मकर या कुम्भ राशि हो और मंगल उसे देख रहा हो तो भी ऐसी जातिका को गुप्त रोग की सम्भावना होती है ।
सप्तम मे शनि को मंगल देख रहा हो य मंगल को शनि देख रहा हो तो भी गुप्त रोग योग बन जाते है ।
सप्तम भाव मे स्त्री की कुंडली मे शुक्र चन्द्र मंगल हो तो स्त्री का आचरण संदेहजनक होता है ।
नीच राशि मे मंगल सप्तम या अष्ठम भाव मे हो तो लड़की को मासिक धर्म सम्बंधित बीमारी देता है ।
यदि लड़की की कुंडली मे सप्तम भाव मे बुद्ध शनि हो तो उसका पति शारीरिक रूप से कमज़ोर होता है ।
पुरुष की कुंडली मे अष्ठम भाव मे शुक्र हो और उसे शनि या मंगल देख रहे हो तो जातक को वीर्य दोष या हस्तमैथुन की गलत आदत होति है
शुक्र मंगल दोनो अष्ठम मे हो और उसे शनि देख रहा हो तो भी ये योग घटित होता है ।
शुक्र शनि या शुक्र राहु को इस भाव अष्ठम मे मंगल देख रहा हो तो भी ये योग बन जाता है ।
सिंह और कन्या लग्न मे अष्ठम भाव और अष्ठमेस पर पाप ग्रह का प्रभाव भी गुप्त रोग देता है ।
अष्ठम भाव मे पाप ग्रह पर पाप ग्रह की नजर भी गुप्त रोग देती है ।
शुक्र मंगल अष्ठम मे और उस पर शनि की दिरस्टि भी गुप्त रोग देती है ।
लग्न मे शनि राहु और शुक्र नीच अस्त या अंशगत हो तो भी गुप्त रोग हो जाता है ।
शुक्र अस्त होकर शनि बुद्ध के साथ हो तो भी ये योग बन जाता है ।
चन्द्र राहु शनि या चन्द्र केतु शनि या चन्द्र मंगल शनि की युति भी गुप्त रोग के योग बनाती है ।
शुक्र चन्द्र शनि या शुक्र चन्द्र राहु या शुक्र चन्द्र केतु की युति भी गुप्त रोग देती है ।
ज्योतिष में बुद्ध शनी को नपुनषक ग्रह माना जाता है ऐसे में ये जब कुंडली में दिशा बली हो या बलवान हो और इनका लग्न और लग्नेश पर प्रभाव हो और लग्नेश कमजोर अवस्था में हो तो भी जातक को शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है \
बलि शुभ ग्रह की दिरस्टि होने से इनमे से कोई भी योग कम या भंग हो सकता है ।
केंद्र मे बलि शुभ ग्रह हो तो भी ये योग के प्रभाव कम हो जाते है ।
नपुंसकता योग के कम या भंग हो रहा हो तो आंशिक नपुंसकता भी हो सकती है ।।
यदि ऊपर लिखीत योगों मे से कोई भी ग्रह सवगरहि हो या अपने घर को देख रहा हो तो भी ये योग भंग हो जाते है । ।
चूंकि आजकल तालाक का मुख्य कारण ये भी होते है इसिलिय संछिप्त मे प्रकाश डालने की कोशिश की है पूर्ण रूप से तो पूरी कुंडली के आधार पर ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है और ये जरूरी नही की ये योग होने से किसी को ये रोग अवश्य ही होंगे इनमे अन्य ग्रहों की सिथति और ग्रहों का बलाबल महत्व रखता है । हां यदि आप शादी करने जा रहे हो तो अपने होने वाले जीवन साथी की कुंडली की जांच द्वारा उनके बारे मे कुछ जान अवश्य सकते हो । पोस्ट को अन्यथा न ले ।
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स्त्री की कुंडली मे सप्तम और पुरुष की कुंडली मे अष्ठम भाव को मुख्य भूमिका है । यदि इनमे कोई पाप ग्रह हो या इन भावों को देख रहा हो तो गुप्त रोग की संभावना होती है ।
स्त्री की कुंडली मे सप्तम भाव मे मेष या विरश्चिक राशि हो और शनि उसे देख रहा हो तो स्त्री की योनि मे रोग होते है ।
सप्तम भाव मे मकर या कुम्भ राशि हो और मंगल उसे देख रहा हो तो भी ऐसी जातिका को गुप्त रोग की सम्भावना होती है ।
सप्तम मे शनि को मंगल देख रहा हो य मंगल को शनि देख रहा हो तो भी गुप्त रोग योग बन जाते है ।
सप्तम भाव मे स्त्री की कुंडली मे शुक्र चन्द्र मंगल हो तो स्त्री का आचरण संदेहजनक होता है ।
नीच राशि मे मंगल सप्तम या अष्ठम भाव मे हो तो लड़की को मासिक धर्म सम्बंधित बीमारी देता है ।
यदि लड़की की कुंडली मे सप्तम भाव मे बुद्ध शनि हो तो उसका पति शारीरिक रूप से कमज़ोर होता है ।
पुरुष की कुंडली मे अष्ठम भाव मे शुक्र हो और उसे शनि या मंगल देख रहे हो तो जातक को वीर्य दोष या हस्तमैथुन की गलत आदत होति है
शुक्र मंगल दोनो अष्ठम मे हो और उसे शनि देख रहा हो तो भी ये योग घटित होता है ।
शुक्र शनि या शुक्र राहु को इस भाव अष्ठम मे मंगल देख रहा हो तो भी ये योग बन जाता है ।
सिंह और कन्या लग्न मे अष्ठम भाव और अष्ठमेस पर पाप ग्रह का प्रभाव भी गुप्त रोग देता है ।
अष्ठम भाव मे पाप ग्रह पर पाप ग्रह की नजर भी गुप्त रोग देती है ।
शुक्र मंगल अष्ठम मे और उस पर शनि की दिरस्टि भी गुप्त रोग देती है ।
लग्न मे शनि राहु और शुक्र नीच अस्त या अंशगत हो तो भी गुप्त रोग हो जाता है ।
शुक्र अस्त होकर शनि बुद्ध के साथ हो तो भी ये योग बन जाता है ।
चन्द्र राहु शनि या चन्द्र केतु शनि या चन्द्र मंगल शनि की युति भी गुप्त रोग के योग बनाती है ।
शुक्र चन्द्र शनि या शुक्र चन्द्र राहु या शुक्र चन्द्र केतु की युति भी गुप्त रोग देती है ।
ज्योतिष में बुद्ध शनी को नपुनषक ग्रह माना जाता है ऐसे में ये जब कुंडली में दिशा बली हो या बलवान हो और इनका लग्न और लग्नेश पर प्रभाव हो और लग्नेश कमजोर अवस्था में हो तो भी जातक को शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है \
बलि शुभ ग्रह की दिरस्टि होने से इनमे से कोई भी योग कम या भंग हो सकता है ।
केंद्र मे बलि शुभ ग्रह हो तो भी ये योग के प्रभाव कम हो जाते है ।
नपुंसकता योग के कम या भंग हो रहा हो तो आंशिक नपुंसकता भी हो सकती है ।।
यदि ऊपर लिखीत योगों मे से कोई भी ग्रह सवगरहि हो या अपने घर को देख रहा हो तो भी ये योग भंग हो जाते है । ।
चूंकि आजकल तालाक का मुख्य कारण ये भी होते है इसिलिय संछिप्त मे प्रकाश डालने की कोशिश की है पूर्ण रूप से तो पूरी कुंडली के आधार पर ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है और ये जरूरी नही की ये योग होने से किसी को ये रोग अवश्य ही होंगे इनमे अन्य ग्रहों की सिथति और ग्रहों का बलाबल महत्व रखता है । हां यदि आप शादी करने जा रहे हो तो अपने होने वाले जीवन साथी की कुंडली की जांच द्वारा उनके बारे मे कुछ जान अवश्य सकते हो । पोस्ट को अन्यथा न ले ।
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