राज योग
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है
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पंचम व नवम स्थान को "लक्ष्मी स्थान" कहते हैं। केन्द्र स्थान यानी लग्न,चतुर्थ, सप्तम, एवम् दशम को "विष्णु स्थान" कहते हैं। इन लक्ष्मी स्थानों के स्वामियों का एवम केन्द्र स्थानों का सम्बन्ध आने पर इस सम्बन्ध को "राजयोग" कहते हैं या केंद्र के स्वामी शुभ होकर त्रिकोण में हो अथवा त्रिकोण के स्वामी केंद्र में हो तो यह योग राज योग होता है।
1 : लग्नेश(लग्न का स्वामी) व पंचम भाव का स्वामी के सम्बन्ध होने पर या लग्नेश व नवम का सम्बन्ध होने पर सुख, सम्पत्ति, संतान, आयु, पति-पत्नि सुख प्राप्त होते हैं।
2 : चतुर्थेश(चौथे भाव का स्वामी) व पंचम भाव या चतुर्थेश व नवम भाव का स्वामी के सम्बन्ध होने पर उच्च शिक्षा, विद्वता, सुख, भूमि, वाहन, मान, सम्मान मिलता हैं।
3 : सप्तम के स्वामी व पंचम भाव या सप्तम व नवम भाव का सम्बन्ध होने पर धनवान, भाग्यवान, ऐश्वर्य, विपुल सुख देने वाली स्ञी मिलती हैं।
4 : दशमेश(दशम भाव का स्वामी) व पंचम भाव का स्वामी या दशमेश व नवम भाव के योग से उच्च पद की प्राप्ति, राज्य, कीर्ति, मान, सम्मान आदि प्राप्त होता हैं।
धनयोग :--
(1)लग्नेश व लाभेश स्वग्रही होने पर, उच्च का होने पर
(2)लग्नेश व लाभेश एक दूसरे के स्थान में होने पर
(3)भाग्येश या पंचमेश धन स्थान में हो या लाभ स्थान में हो तो धनयोग बनता हैं।
पंच महापुरुष योग :--
1 : रुचक योगः--
कुंङली में मंगल स्वराशि में, उच्च राशि गत होकर केन्द्र में बैठा हो तो यह योग बनता हैं। ऐसा जातक साहसी, परिश्रमी, कीर्तिवान, धनी होता हैं।
कुंङली में मंगल स्वराशि में, उच्च राशि गत होकर केन्द्र में बैठा हो तो यह योग बनता हैं। ऐसा जातक साहसी, परिश्रमी, कीर्तिवान, धनी होता हैं।
2 : भद्र योगः--
बुध अपनी उच्च या स्वराशि में केन्द्र में हो तब यह योग बनता हैं। ऐसा जातक सुखी, धनी, सभी भोगों की प्राप्ति होती हैं।
बुध अपनी उच्च या स्वराशि में केन्द्र में हो तब यह योग बनता हैं। ऐसा जातक सुखी, धनी, सभी भोगों की प्राप्ति होती हैं।
3 : हंस योगः--गुरु अपनी स्वराशि, उच्च राशि पर केन्द्र में हो तब यह योग बनता हैं। इसमें जातक भाग्यवान, विद्वान होता हैं।
4 : मालव्य योगः--
शुक्र अपनी स्वराशि, उच्च राशि पर हो तब यह योग बनता हैं। कलात्मक रुचि, सभी ऐश्वर्य, भोग आदि प्राप्त होते हैं।
शुक्र अपनी स्वराशि, उच्च राशि पर हो तब यह योग बनता हैं। कलात्मक रुचि, सभी ऐश्वर्य, भोग आदि प्राप्त होते हैं।
5 : शश योगः-- शनि अपनी स्वराशि, उच्च राशि में केन्द्र में होने पर यह योग बनता हैं।इससे भूमि, मकान, मान, सम्मान प्राप्त होता हैं।
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