मंत्र पुरश्चरण विधि
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष, तंत्र, मंत्र, यंत्र, टोटका, वास्तु, कुंडली, हस्त रेखा, राशि रत्न,भूत प्रेत, जिन, जिन्नात, बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण, पितृ दोष, कालसर्प दोष, चंडाल दोष, गृह क्लेश, बिजनस, विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है
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_किसी मंत्र का प्रयोग करने से पहले उसका विधिवत सिद्ध होना आवश्यक है।उसके लिये मंत्र का पुरष्चरण किया जाता है।_
*पुरष्चरण का अर्थ है मंत्र की पॉच क्रियाये , जिसे करने से मंत्र जाग्रत होता है और सिद्ध होकर कार्य करता है।*
जिनमे पहली है मंत्र का जाप।
दूसरा है हवन।
तीसरा है अर्पण।
चौथा है तर्पण।
पॉचवा है मार्जन।
अब इनके बारे मे विस्तार से जानते है:-
*1. मंत्र जाप*
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गुरू द्वारा प्राप्त मंत्र का मानसिक उपांशु या वाचिक मुह द्वारा उच्चारण करना मंत्र जाप कहलाता है।अधिकांश मंत्रो का सवा लाख जाप करने पर वह सिद्ध हो जाते है।
*2. हवन*
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हवन कुंड मे हवन सामग्री द्वारा अग्नि प्रज्वलित करके जो आहुति उस अग्नि मे डाली जाती है,
उसे हवन या यज्ञ कहते है।
मंत्र जाप की संख्या का दशांश हवन करना होता है।मंत्र के अंत मे स्वाहा लगाकर हवन करे।दशांश यानि 10% यानि सवा साख मंत्र का 12500 मंत्रो द्वारा हवन करना होगा।
*3. अर्पण*
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दोनो हाथो को मिलाकर अंजुलि बनाकर हाथो मे पानी लेकर उसे
सामने अंगुलियो से गिराना अर्पण कहलाता है। अर्पण देवो के लिये किया जाता है । मंत्र के अंत मे अर्पणमस्तु लगाकर बोले।हवन की संख्या का दशांश अर्पण किया जाता है यानि 12500 का 1250अर्पण होगा।
*4. तर्पण*
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अर्पण का दशांश तर्पण किया जाता है।यानि 1250 का 125 अर्पण करना है।मंत्र के अंत मे तर्पयामि लगाकर तर्पण करें।
तर्पण पितरो के लिये किया जाता है। दाये हाथ को सिकोडकर
पानी लेकर उसे बायी साइड मे गिराना तर्पण कहलाता है।
*5. मार्जन*
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मंत्र के अंत मे मार्जयामि लगाकर डाब लेकर पानी मे डुबा कर अपने पीछे की ओर छिडकना मार्जन कहलाता है।तर्पण का दशांश मार्जन किया जाता है।
_ये पुरष्चरण के पॉच अंग है_
इऩके बाद किसी ब्राहमण को भोजन कराना है।
*मंत्र सिद्धि के बाद उसका प्रयोग करें।आपको अवश्य सफलता मिलेगी।।*
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