Thursday, October 11, 2018

मंत्र साधना

मंत्र साधना

मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है. मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना. मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है. मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है.

मुख्यत: तीन प्रकार के मंत्र होते हैं- 
1. वैदिक मंत्र
2. तांत्रिक मंत्र और
3. शाबर मंत्र.

मंत्र जप के भेद
1. वाचिक जप
2. मानस जप
3. उपाशु जप.

वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
मानस जप का अर्थ है मन ही मन जप करना.
उपांशु जप में जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनायी देती. बिल्कुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है.

मंत्र नियम :
मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण. दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ पहले से लेना चाहिए. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाये. प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है.
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए. इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए.

यंत्र साधना : 
यंत्र साधना सबसे सरल है. बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखने पर अपने आप कार्य सफल होते जायेंगे. यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं. यंत्र को दो प्रकार से बनाया जाता है – अंक द्वारा और मंत्र द्वारा. यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं. श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं.
इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनायी जाती हैं. इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है. इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है.
यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाये जाते हैं.

दिशा: 
प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं. धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं. वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं. इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है.

योग साधना :
सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गयी है योग साधना. यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है. इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं. योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है. योगिश्चत्तवृत्तिनिरोध:
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है. इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है. उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं. योग साधना द्वारा अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है. सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है.

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )