नवरात्रि में मंत्र साधना
आषाढ़ व माघ मास के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। यूं तो प्रत्येक मास के किसी भी पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक के समय को नवरात्र कहा जा सकता है परंतु इनमें से चार ही नवरात्रियां श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ इन चार हिन्दू महीनों में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक का समय बड़े महत्व का बताया गया है । इनमें से चैत्र मास की नवरात्रि को वासंतिक नवरात्रि, आश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि और आषाढ़ व माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रियों की संज्ञा दी गयी है। वासंतिक व शारदीय नवरात्रि तो विश्वप्रसिद्ध हैं पर गुप्त नवरात्रि नाम के ही अनुसार गुप्त हैं अर्थात् बहुत कम लोग इनके विषय में जानकारी रखते हैं।आषाढ़ तथा माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक की अवधि को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। गुप्त नवरात्रियों में जानकार साधकजन कई प्रकार की तांत्रिक क्रियाएँ, शाक्त साधनाएँ, शैव साधनाएँ, योगिनी, भैरवी, महाकाल आदि से जुड़ी तंत्र साधनाएं सम्पन्न करते हैं व सफल होने पर गुप्त एवं दुर्लभ सिद्धियाँ पाते हैं।
गुप्त नवरात्रि में मंत्र साधना करने का अधिक महत्व है। सामान्य आराधक नमः श्री दुर्गायै का जप करें और मंत्रज्ञ साधकजन विनियोग, न्यास, ध्यान सहित नवार्ण मंत्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै) जपें जो कि देवी माँ का प्रमुख व प्रभावशाली मन्त्र है। यदि आप देवी(गायत्री आदि) का मंत्र अथवा अन्य कोई मन्त्र भी जपते हों तो (अथवा भगवान के नाम जो कि मंत्र स्वरूप ही हैं, जैसे- राम, कृष्ण, राधा, दुर्गा, उमा आदि) नवरात्रि में उसका कभी भी, किसी भी अवस्था में यथासंभव मन में बारंबार स्मरण करना अति उत्तम है क्योंकि स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में सच्चे मन से किए गए मानसिक जप से वे मंत्र सिद्ध हो जाया करते हैं। गुप्त नवरात्रि पर साधना, सप्तशती का पाठ, पूजन, भजन, भगवन्नाम-स्मरण आदि शुभ कार्य किए जाने चाहिये और अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र, सप्तशती में वर्णित विविध श्लोकों, देवी कवच, सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र, देवी अपराध क्षमापन स्तोत्र, दुर्गा मानस पूजा सहस्रनाम स्तोत्र आदि विभिन्न देवी स्तोत्रों का पाठ किया जाना अति उत्तम है।
श्री दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी ।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी॥
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा ।
दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला॥
दुर्गमादुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ॥
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी॥
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।
दुर्गमांगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ॥
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।
नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानव: ॥
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशय: ॥
इस संकटहारिणी नामावली के पाठ से अनेकानेक लाभ हैं। जो कोई भी माँ दुर्गा की इस नामावली को पढ़ता है वह निःसंदेह सब प्रकार की विपत्तियों और भयों से मुक्त हो जाता है।
इस प्रकार यह 32 नामों वाला माँ दुर्गा का स्तोत्र है। भय की स्थिति कभी उत्पन्न ही न हो, इसके लिए नित्य ही इस नाममाला का यथासंभव श्रद्धापूर्वक पठन किया जाना चाहिए। पाठ करते समय इन नामों के अर्थ के अनुसार माँ भगवती का चिंतन भी होता रहे तो अति उत्तम है। इसके पाठ का एक अन्य प्रकार यह है कि नवरात्रि के पहले दिन एक माला(१०८) जपे, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन, चौथे दिन चार माला, पंचमी को 5, षष्ठी को 6, सप्तमी को 7 माला, अष्टमी को 8 माला जपे। इस तरह से जपते-जपते नवें दिन नौ माला यह स्तोत्र जपने से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है और तत्पश्चात विघ्न के समय पाठ करने से साधक उस विपत्ति से अवश्य मुक्त होता है। अतः यह साधना भी इन गुप्त नवरात्रियों में की जा सकती है। गुप्त नवरात्रि पर माँ भवानी के श्री चरणों में हमारा बारंबार प्रणाम।
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