साधना और संयम
साधना और संयमएक दूसरे से अभिन्न हैं । मन,बुद्धि,चित्त और अहंकार के सहित स्वयं को साधना ही वास्तविक ‘साधना’ है । सधी हुई वृत्तियों का स्वामी ही सच्चा साधक है । असंयमित और असाध्य चेष्टाओं से जीवन बिखर जाता है, जबकि संयमित साधना से जीवन निखर जाता है ।
तंत्र-शास्त्रों में वर्णित गुह्य (गोपनीय) साधनाएँ साधक के संयम, धैर्य और गुरु-निष्ठा की अग्नि-परीक्षा-सरीखी हैं । तंत्र के अनेकानेक भेद होने के कारण साधकों की चित्तवृत्ति के अनुसार साधना-मार्ग चुनने में गुरु ही सहायक होते हैं । गुरु-निष्ठा के बिना कोई भी तांत्रिक साधना सिद्ध नहीं हो सकती ।
तंत्र-विद्या के गूढ़ रहस्यों को जाने बिना, उनका अनुभव किये बिना इसे पाखण्डियों, ठगों और व्यभिचारियों का मार्ग कहना या समझना न केवल अज्ञानता है, बल्कि सृष्टि के आदिकत्र्ता भगवान् सदाशिव और आदिशक्ति महामाया की अवहेलना करने जैसा है ।
तन्त्र-विद्या में अनेक गोपनीय साधनाओं का भी विधान है । इनमें शव-साधना, योगिनी-साधना,यक्षिणी-साधना आदि अनेक गुप्त साधनाओं का उल्लेख मिलता है । उपासना, साधना की पूर्वभूमिका है । स्तुति, पाठ व मंत्र-जप उपासना के उपादान हैं ।
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