विदेश यात्रा
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विदेश यात्रा में लग्न का विशिष्ट प्रभाव होता है। जो ज्योतिष शास्त्र का एक तथ्य है। प्राचीन काल में यात्रा भूमि मार्ग से होती थी। तब यात्रा कारक ग्रह भूमि पुत्र मंगल था। जब समुंद्र से यात्रा आरंम्भ हुई, तो यात्रा कारक ग्रह सागर पुत्र चंद्र देव हुआ। अब वायु वायु मार्ग से यात्रा करते है, तो अंतरिक्ष के अधिपति सूर्य पुत्र शनि है। वस्तुत: यात्रा कारक ग्रह चंद्र, मंगल एवं शनि ही है। इसके अनुसार लग्न की प्रधानता से अन्य ग्रह कारक हो जाते है। विदेश यात्रा का विशेष विचार लग्न, द्वादश, अष्टम, नवम और दशम भाव से किया जाता है।
मेष लग्न : लग्नेश अगर अष्टम स्थान में हो। दशम भाव में मंगल, शनि की युक्ति हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
वृष लग्न : चंद्रमा व्यय भाव में हो और शनि लग्न एवं नवम भाव में हो।
मिथुन : अष्टम भाव में बुध-शनि की युक्ति हो। लग्न में बुध-शनि की युक्ति हो तो विदेश यात्रा हो सकती।
कर्क लग्न : चंद्रमा लग्न से स्वग्रही हो । शनि उच्चस्थ होकर चतुर्थ भाव में हो।
सिंह लग्न : गुरु और मंगल की युक्ति व्यय भाग में हो। सूर्य भाग्य स्थान में उच्च स्थान हो तो जातक विदेश जाएगा।
कन्या लग्न : भाग्य स्थान में बुध-शुक्र का योग हो। बुध अकेले अष्टम भाव में हो तो विदेश जाने योग बनता है।
तुला लग्न : भाग्य स्थान पर शुक्र बुध की युक्ति हो।
वृश्चिक लग्न : चंद्रमा लग्न या भाग्य भाव में हो। शनि, मंगल की युक्ति व्यय भाव में हो तो जातक विदेश जा सकता है।
धनु लग्न : अष्टम भाव में गुरु, चंद्र का योग है।
मकर लग्न : लग्नेश अपने घर में हो। भाग्येश अपने घर में हो।
कुंभ लग्न : मंगल स्वग्रही दशम भाव में हो ।
मीन लग्न : गुरु लग्न में स्वग्रही हो। अष्टमेश शुक्र लग्न में हो। इसके अतिरिक्त ग्रहों की महादशा व अंर्तदशा का भी ध्यान रखना चाहिए।
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