Tuesday, September 24, 2019

अजमेर शरीफ का सच

अजमेर शरीफ का सच

क्या आप जानते हैं कि.... भारत भूमि पर आने वाला अधिकांश पाकिस्तानी राजनैतिक अजमेर शरीफ पर क्यों जाना चाहते है???
जी हाँ, यह एक अजीब लेकिन बेहद कठोर सत्य है कि भारत भूमि पर आने वाला अधिकांश पाकिस्तानी राजनैतिक व्यक्ति अजमेर शरीफ जाने की इच्छा जरूर रखता है।
दरअसल,  इसका कारण कोई राजनैतिक नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से धार्मिक है और वे अजमेर शरीफ इसीलिए जाना चाहते हैं कि वो ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती के इस्लाम के प्रति किये गए वफादारी और, हिन्दू को बरगला कर सेकुलर बनाने के लिए वे मोइद्दीन चिश्ती का शुक्रिया अदा कर सकें। इस बात को ठीक से समझने के लिए हमें हिन्दुराष्ट्र भारत और, मोइद्दीन चिश्ती का इतिहास समझना होगा।
हुआ कुछ इस तरह कि सातवीं शताब्दी के मुहम्मद बिन कासिम और उसके बाद महमूद गजनवी तथा मुहम्मद गौरी तक मध्य एशिया के किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी के लाख प्रयासों के बाद भी उनका भारत भू को कब्जाने और इसे मुस्लिम राष्ट्र बनाने का स्वप्न पूरा नही हुआ और अगर हम ख्वाजा मुइउद्दीन चिश्ती के खंड काल पर दृष्टि डालें तथा तथ्यों को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि चिश्ती वह संत था , जो मुहम्मद गौरी के साथ भारत आया था। यहाँ यह बात निर्विवाद सत्य है कि भारत भूमि पर हुए अनेकों आक्रमण और अत्याचारों के बाद भी भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति लोप नही किये जा सके। इसीलिए,  भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए सांस्कृतिक आक्रमण का सहारा लिया गया जैसा कि आज भी लिया जा रहा है (जिसमे मीडिया, चर्च, राजनैतिक पार्टियां, लव जिहाद इत्यादि)।
चिश्ती भारतीय हिन्दू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए चलाये गए सांस्कृतिक आक्रमण का प्रथम उपयोगकर्ता था या फिर यूँ कहें कि चिश्ती भारत के लिए पहला सांस्कृतिक आक्रमणकारी था। हालाँकि मोइद्दीन चिश्ती को एक संत के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है परन्तु मुहम्मद गौरी जैसे एक दुर्दांत व्यक्ति के साथ संत माने जाने वाले व्यक्ति का होना बहुत सी शंकाओं को जन्म देता है।
आखिर एक संत (यदि वह संत है ) एक दुर्दांत रक्त पिपासु के साथ लंबी यात्रा कर के लाहौर से अजमेर तक पहुंचा और रास्ते मे हुए कत्ल-ए-आम से उसका संतत्व उसे जरा भी ना कटोचे, यह कैसे संभव है????
यहाँ में याद दिलाना चाहूँगी कि हम हिन्दू सदा से ही संत व्यक्तियों जो परोपकार हेतु जीते हैं, को सम्मान देता आया है और, उन्हें आस्था और श्रद्धा की दृष्टि से देखते आये हैं। हमारे इसी मानसिकता का लाभ सर्वप्रथम उस चिश्ती ने उठाया, (जैसे कि इस मानसिकता का लाभ ईसाई मिशनरियां आज भी उठा रही हैं, और परोपकार की आड मे धर्म परिवर्तन का कार्य कर रही हैं)। उसी तरह अपने प्रसिद्ध होने और लोगो की आस्था का उपयोग चिश्ती ने भारत मे मुस्लिमों के लिये बेस बनाने के लिये किया। चिश्ती ने अजमेर मे अपना आश्रम खोला जहां प्रत्येक व्यक्ति को भोजन की व्यवस्था की गई। क्योंकि चिश्ती जानता था कि जब तक भारतीय अपनी संस्कृति से जुडे रहेंगे तब तक उन्हे पराजित करना असंभव है। अतः, उसने सर्वप्रथम यह किया कि हिंदू और मुस्लिमों के बीच मे एक कडी के रूप मे जुड गया, और यह तभी संभव था जब वह हिंदुओं के बीच मे मान्यता प्राप्त कर लेता। इसी हेतु उसने अपने को एक चमत्कारी सूफी संत के रूप मे प्रचारित करना आरंभ किया।
यहाँ यह ध्यान रहे कि अजमेर तत्कालीन राजपूतों की राजधानी था और, राजपूत वह जाति थी जो, कभी भी विधर्मियों को स्वीकार नही करती थी। इस प्रकार चिश्ती ने हिंदू समाज में अपनी लोकप्रियता का लाभ मुहम्मद गौरी को उसे जीत दिलाने में दिया। इसके लिए चिश्ती पृथ्वीराज चौहान से तिरस्कृत हो कर कहा कि "मैने अजमेर की चाबी कहीं और सौंप दी है और, यह एक संकेत था जिसे पा कर मुहम्मद गौरी ने पुनः भारत पर आक्रमण किया और, आश्चर्यजनक रूप से उस समय तक जयचंद, गौरी के साथ मिल चुका था। यह भी पूरी तरह संभव है कि इस मिलाप के पीछे चिश्ती का ही हाथ हो क्योंकि, राजपूत एक ऐसी जाति थी जो किसी भी प्रकार से विधर्मियों के साथ गठबंधन नही बनाती थी। गठबंधन बनाने के स्थान पर वह अकेले ही लड कर वीरगति को प्राप्त हो जाना ज्यादा पसंद करते थे। इसीलिए अपनी विजय का श्रेय भी मुहम्मद गौरी ने चिश्ती को ही दिया और, अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को निर्देश दिया कि वहां मंदिरों को तोड कर ढाई दिन मे मस्जिद बनाई जाये जो कि आज भी मौजूद है और वो मस्जिद आज भी अढाई दिन का झोपडा नाम से प्रचलित है।
यहाँ गौर करने लायक बात है कि यदि चिश्ती संत ही था , तो वह यह कैसे बर्दाश्त कर सका कि कोई किसी दूसरे के आस्था के स्थानों को तोड कर वहां अपनी मस्जिदों का निर्माण करे???? इस संतत्व के पीछे किसी सुनियोजित योजना की शंका होती है। क्योंकि यदि हम आज के युग मे भी देखे तो, इसी प्रकार की योजना ईसाई मिशनरी सभी स्थानों पर अपने धर्म के प्रचार के लिये कर रही हैं जो चिश्ती की के उस प्रथम प्रयोग का ही अगला चरण प्रतीत होता है जिसकी नींव कई शताब्दी पहले चिश्ती ने रखी थी।
और, यही कारण है कि प्रत्येक पाकिस्तानी एवं मुस्लिम वहां जाने को अत्यंत उत्सुक रहता है क्योंकि शायद वो ऐसा कर के वह अपने पूर्वजों को भारत मे मुस्लिम संप्रदाय की नींव रखने के लिये धन्यवाद देता है। और, शायद हिन्दू सेकुलर भी खुद को दोगला प्रमाणित करने के लिए वहां जाते रहते हैं।

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