श्राद्ध तर्पण संस्कार
पितरों का आवाहन व आमंत्रित कैसे करें
अमावस्या से पहले एक दिन पितरों को आमंत्रित ऐसे करें
अमावस्या श्राद्ध से पहले एक दिन चौदस को सोने से पहले एक लोटा पानी का गंगा जल डालकर लें
इस पानी भरे लोटे को अपने मुख्यद्वार पर ले जाकर छिड़कें व डालें और अपने पितरों को आमंत्रण दें की वे दूसरे दिन प्रातः आकर अपने स्थान और घर को संभालें
अमावस्या वाले अगले दिन जब आप श्राद्ध तर्पण का कार्य शुरू करने लगें तब पितरों के नाम से जोत जगावें और फिर हाथ में पिली सरसों के दाने लेकर मुख्यद्वार पर जाएँ फिर उस सरसों को मुख्य द्वार से बिखेरते हुए जोत तक लेकर आएं और यह मंत्र का उच्चारण करें ॐ श्री पितरेभ्यो नमः
पिली सरसों उपलब्ध न हो तो आप चावल को हल्दी से रंग लें फिर यह क्रिया करें
गाये के गोबर के उपले कंडे को सुलगा लें व शुद्ध गाये के घी के इस पर छींटे लगाएं और अग्नि प्रज्वलित कर लें
फिर जो भोजन सामग्री बनाई है पितरों के प्रति उसे थोड़ा सा निकल लें और फिर इस अग्नि में पितरों को भोजन सामग्री का भोग लगा दें और दक्षिणा भी रखें दें यह दक्षिणा वर्ष भर की संभाल कर रख लें फिर पुरे वर्ष भर की दक्षिणा से ब्राह्मण या भांजे को भोजन करावें व वस्त्र देकर दक्षिणा समेत संतुष्ट करें अगर ऐसा न कर पाएं तो उस दक्षिणा को पुण्य कार्य में लगावें
इसके बाद शुद्ध गंगा जल से अग्नि पर छींटा दे , जो भोजन सामग्री पितरों के लिए बनाई थी उसे फिर गाय को खिलाएं
श्राद्ध संस्कार में आवाहन, पूजन, नमस्कार के उपरान्त तर्पण किया जाता है। जल में दूध, जौ, चावल, चन्दन डाल कर तर्पण कार्य में प्रयुक्त करते हैं। गंगा जल भी डाल देना चाहिए।
अमावस्या से पहले एक दिन पितरों को आमंत्रित ऐसे करें
अमावस्या श्राद्ध से पहले एक दिन चौदस को सोने से पहले एक लोटा पानी का गंगा जल डालकर लें
इस पानी भरे लोटे को अपने मुख्यद्वार पर ले जाकर छिड़कें व डालें और अपने पितरों को आमंत्रण दें की वे दूसरे दिन प्रातः आकर अपने स्थान और घर को संभालें
अमावस्या वाले अगले दिन जब आप श्राद्ध तर्पण का कार्य शुरू करने लगें तब पितरों के नाम से जोत जगावें और फिर हाथ में पिली सरसों के दाने लेकर मुख्यद्वार पर जाएँ फिर उस सरसों को मुख्य द्वार से बिखेरते हुए जोत तक लेकर आएं और यह मंत्र का उच्चारण करें ॐ श्री पितरेभ्यो नमः
पिली सरसों उपलब्ध न हो तो आप चावल को हल्दी से रंग लें फिर यह क्रिया करें
गाये के गोबर के उपले कंडे को सुलगा लें व शुद्ध गाये के घी के इस पर छींटे लगाएं और अग्नि प्रज्वलित कर लें
फिर जो भोजन सामग्री बनाई है पितरों के प्रति उसे थोड़ा सा निकल लें और फिर इस अग्नि में पितरों को भोजन सामग्री का भोग लगा दें और दक्षिणा भी रखें दें यह दक्षिणा वर्ष भर की संभाल कर रख लें फिर पुरे वर्ष भर की दक्षिणा से ब्राह्मण या भांजे को भोजन करावें व वस्त्र देकर दक्षिणा समेत संतुष्ट करें अगर ऐसा न कर पाएं तो उस दक्षिणा को पुण्य कार्य में लगावें
इसके बाद शुद्ध गंगा जल से अग्नि पर छींटा दे , जो भोजन सामग्री पितरों के लिए बनाई थी उसे फिर गाय को खिलाएं
श्राद्ध संस्कार में आवाहन, पूजन, नमस्कार के उपरान्त तर्पण किया जाता है। जल में दूध, जौ, चावल, चन्दन डाल कर तर्पण कार्य में प्रयुक्त करते हैं। गंगा जल भी डाल देना चाहिए।
तर्पण को छः भागों में विभक्त किया गया है-
देव-तर्पण
ऋषि-तर्पण
दिव्य-मानव-तर्पण
दिव्य-पितृ-तर्पण
यम-तर्पण
मनुष्य-पितृ-तर्पण
देव तपर्णम्
देव शक्तियाँ ईश्वर की वे महान् विभूतियाँ हैं, जो मानव-कल्याण में सदा निःस्वार्थ भाव से प्रयतनरत हैं। जल, वायु, सूर्य, अग्नि, चन्द्र, विद्युत् तथा अवतारी ईश्वर अंगों की मुक्त आत्माएँ एवं विद्या, बुद्धि, शक्ति, प्रतिभा, करुणा, दया, प्रसन्नता, पवित्रता जैसी सत्प्रवृत्तियाँ सभी देव शक्तियों में आती हैं। यद्यपि ये दिखाई नहीं देतीं, तो भी इनके अनन्त उपकार हैं।
यजमान दोनों हाथों की अनामिका अँगुलियों में पवित्री धारण करें।
दो कुशा की पवित्री दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में पहने
तीन कुशा की पवित्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में पहने
ॐ आगच्छन्तु महाभागाः, विश्वेदेवा महाबलाः । ये तपर्णेऽत्र विहिताः, सावधाना भवन्तु ते॥
जल में चावल डालें । कुश-मोटक सीधे ही लें ।। यज्ञोपवीत सव्य (बायें कन्धे पर) सामान्य स्थिति में रखें।
तर्पण के समय अंजलि में जल भरकर सभी अँगुलियों के अग्र भाग के सहारे अपिर्त करें। इसे देवतीर्थ मुद्रा कहते हैं।
प्रत्येक देवशक्ति के लिए एक-एक अंजलि जल डालें। पूवार्भिमुख होकर देते चलें।
ॐ ब्रह्मादयो देवाः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
1 ॐ ब्रह्म तृप्यताम्।
2 ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।
3 ॐ रुद्रस्तृप्यताम्।
4 ॐ प्रजापतितृप्यताम्।
5 ॐ देवास्तृप्यताम्।
6 ॐ छन्दांसि तृप्यन्ताम्।
7 ॐ वेदास्तृप्यन्ताम्।
8 ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम्।
9 ॐ पुराणाचायार्स्तृप्यन्ताम्।
10 ॐ गन्धवार्स्तृप्यन्ताम्।
11 ॐ इतराचायार्स्तृप्यन्ताम्।
12 ॐ संवत्सरः सावयवस्तृप्यन्ताम्।
13 ॐ देव्यस्तृप्यन्ताम्।
14 ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम्।
15 ॐ देवानुगास्तृप्यन्ताम्।
16 ॐ नागास्तृप्यन्ताम्।
17 ॐ सागरास्तृप्यन्ताम्।
18 ॐ पवर्ता स्तृप्यन्ताम्।
19 ॐ सरितस्तृप्यन्ताम्।
20 ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम्।
21 ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम्।
22 ॐ रक्षांसि तृप्यन्ताम्।
23 ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम्।
24 ॐ सुपणार्स्तृप्यन्ताम्।
25 ॐ भूतानि तृप्यन्ताम्।
26 ॐ पशवस्तृप्यन्ताम्।
27 ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्।
28 ॐ ओषधयस्तृप्यन्ताम्।
29 ॐ भूतग्रामः चतुविर्धस्तृप्यन्ताम्।
ऋषि तर्पण
दूसरा तर्पण ऋषियों के लिए है। व्यास, वसिष्ठ, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, नारद, चरक, सुश्रुत, पाणिनी, दधीचि आदि ऋषियों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति ऋषि तर्पण द्वारा की जाती है। ऋषियों को भी देवताओं की तरह देवतीर्थ से एक-एक अंजलि जल दिया जाता है।
ॐ मरीच्यादि दशऋषयः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान्जलाञ्जलीन्।
1 ॐ मरीचिस्तृप्याताम्।
2 ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
3 ॐ अंगिराः तृप्यताम्।
4 ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्।
5 ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम्।
6 ॐ क्रतुस्तृप्यताम्।
7 ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम्।
8 ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्।
9 ॐ भृगुस्तृप्यताम्।
10 ॐ नारदस्तृप्यताम्।
7 दिव्य-मनुष्य तर्पण
दिव्य मनुष्य तर्पण उत्तराभिमुख किया जाता है।
जल में जौ डालें। जनेऊ कण्ठ की माला की तरह रखें। कुश हाथों में आड़े कर लें। कुशों के मध्य भाग से जल दिया जाता है। अंजलि में जल भरकर कनिष्ठा (छोटी उँगली) की जड़ के पास से जल छोड़ें, इसे प्राजापत्य तीर्थ मुद्रा कहते हैं। प्रत्येक सम्बोधन के साथ दो-दो अंजलि जल दें- जल भरकर हथेली खोलकर तर्पण करें |
ॐ सनकादयः दिव्यमानवाः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान्जलाञ्जलीन्।
1 ॐ सनकस्तृप्याताम्॥2॥
2 ॐ सनन्दनस्तृप्यताम्॥2॥
3 ॐ सनातनस्तृप्यताम्॥2॥
4 ॐ कपिलस्तृप्यताम्॥2॥
5 ॐ आसुरिस्तृप्यताम्॥2॥
6 ॐ वोढुस्तृप्यताम्॥2॥
7 ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम्॥2॥
दिव्य-पितृ-तर्पण
चौथा तर्पण दिव्य पितरों के लिए है। इसके लिए दक्षिणाभिमुख हों। वामजानु (बायाँ घुटना मोड़कर बैठें) जनेऊ अपसव्य (दाहिने कन्धे पर सामान्य से उल्टी स्थिति में) रखें।
कुशा दुहरे कर लें। जल में तिल डालें। अंजलि में जल लेकर दाहिने हाथ के अँगूठे के सहारे जल गिराएँ। इसे पितृ तीर्थ मुद्रा कहते हैं। प्रत्येक पितृ को तीन-तीन अंजलि जल दें।
ॐ कव्यवाडादयो दिव्यपितरः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलिन्।
1 ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वाधा नमः॥3॥
2 ॐ सोमस्तृप्यताम्, इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वाधा नमः॥3॥
3 ॐ यमस्तृप्यताम्, इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वाधा नमः॥3॥
4 ॐ अयर्मा स्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वाधा नमः॥3॥
5 ॐ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वाधा नमः॥3॥
6 ॐ सोमपाः पितरस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वाधा नमः॥3॥
7 ॐ बहिर्षदः पितरस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वाधा नमः॥3॥
यम तर्पण
दिव्य पितृ तर्पण की तरह पितृतीथर् से तीन-तीन अंजलि जल यमों को भी दिया जाता है। अंजलि में जल लेकर दाहिने हाथ के अँगूठे के सहारे जल गिराएँ।
ॐ यमादिचतुदर्शदेवाः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलिन्।
1 ॐ यमाय नमः॥3॥
2 ॐ धमर्राजाय नमः॥3॥
3 ॐ मृत्यवे नमः॥3॥
4 ॐ अन्तकाय नमः॥3॥
5 ॐ वैवस्वताय ॐ कालाय नमः॥3॥
6 ॐ सवर्भूतक्षयाय नमः॥3॥
7 ॐ औदुम्बराय नमः॥3॥
8 ॐ दध्नाय नमः॥3॥
9 ॐ नीलाय नमः॥3॥
10 ॐ परमेष्ठिने नमः॥3॥
11 ॐ वृकोदराय नमः॥3॥
12 ॐ चित्राय नमः॥3॥
13 ॐ चित्रगुपताय नमः॥3॥
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों से यम देवता को नमस्कार करें-
ॐ यमाय धमर्राजाय, मृत्यवे चान्तकाय च।
वैवस्वताय कालाय, सवर्भूतक्षयाय च॥
औदुम्बराय दध्नाय, नीलाय परमेष्ठिने।
वृकोदराय चित्राय, चित्रगुप्ताय वै नमः॥
मनुष्य-पितृ-तर्पण
इसके बाद अपने परिवार से सम्बन्धित दिवंगत नर-नारियों का क्रम आता है।
पिता, बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी।
नाना, परनाना, बूढ़े नाना, नानी परनानी, बूढ़ीनानी।
पतनी, पुत्र, पुत्री, चाचा, ताऊ, मामा, भाई, बुआ, मौसी, बहिन, सास, ससुर, गुरु, गुरुपतनी, शिष्य, मित्र आदि।
यह तीन वंशावलियाँ तर्पण के लिए है। पहले स्वगोत्र तर्पण किया जाता है-
गोत्रोत्पन्नाः अस्मत् पितरः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
अस्मत्पिता दयाल चंद वशिष्ट गोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्पितामह अनंत राम वशिष्ट गोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्प्रपितामहः लक्ष्मण वशिष्ट गोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्पितामही मनसा देवी दा वशिष्ट सगोत्रा सावित्रीरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्प्रत्पितामही परदादी दा वशिष्ट सगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्सापतनपितामही (OUTTAR DADI) दा वशिष्ट सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अन्य तर्पण
द्वितीय गोत्र तर्पण
इसके बाद द्वितीय गोत्र मातामह आदि का तर्पण करें। यहाँ यह भी पहले की भाँति निम्नलिखित वाक्यों को तीन-तीन बार पढ़कर तिल सहित जल की तीन-तीन अंजलियाँ पितृतीर्थ से दें तथा-
अस्मन्मातामहः (नाना) बलि राम अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्प्रमातामहः (परनाना) अमुकसगोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मद्वृद्धप्रमातामहः (बूढ़े परनाना) अमुकसगोत्रो आदित्यरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मन्मातामही (नानी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्प्रमातामही (परनानी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा रुद्ररूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मद्वृद्धप्रमातामही (बूढ़ी परनानी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा आदित्यारूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
इतर तर्पण
जिनको आवश्यक है, केवल उन्हीं के लिए तर्पण कराया जाए-
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशमार् अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशमार् अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशमार् अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशमार् अमुकसगोत्रो वुसरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्पितृभगिनी (बुआ) सत्य देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मत्पितृभगिनी (बुआ) शांति देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मान्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मान्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अस्मद्गुरु अमुकशमार् अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अस्मद् आचायर्पतनी अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
निम्न मन्त्र से पूवर् विधि से प्राणिमात्र की तुष्टि के लिए जल धार छोड़ें-
ॐ देवासुरास्तथा यक्षा, नागा गन्धवर्राक्षसाः। पिशाचा गुह्यकाः सिद्धाः, कूष्माण्डास्तरवः खगाः॥
जलेचरा भूनिलया, वाय्वाधाराश्च जन्तवः। प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु, मद्दत्तेनाम्बुनाखिलाः॥
नरकेषु समस्तेषु, यातनासुु च ये स्थिताः। तेषामाप्यायनायैतद्, दीयते सलिलं मया॥
ये बान्धवाऽबान्धवा वा, येऽ न्यजन्मनि बान्धवाः। ते सवेर् तृप्तिमायान्तु, ये चास्मत्तोयकांक्षिणः। आब्रह्मस्तम्बपयर्न्तं, देवषिर्पितृमानवाः। तृप्यन्तु पितरः सवेर्, मातृमातामहादयः॥
अतीतकुलकोटीनां, सप्तद्वीपनिवासिनाम्। आब्रह्मभुवनाल्लोकाद्, इदमस्तु तिलोदकम्। ये बान्धवाऽबान्धवा वा, येऽ न्यजन्मनि बान्धवाः। ते सवेर् तृप्तिमायान्तु, मया दत्तेन वारिणा॥
वस्त्र-निष्पीडन
शुद्ध वस्त्र जल में डुबोएँ और बाहर लाकर मन्त्र को पढ़ते हुए अपसव्य भाव से अपने बायें भाग में भूमि पर उस वस्त्र को निचोड़ें।[2]
ॐ ये के चास्मत्कुले जाता, अपुत्रा गोत्रिणो मृताः।
ते गृह्णन्तु मया दत्तं, वस्त्रनिष्पीडनोदकम्॥
भीष्म तर्पण
अन्त में भीष्म तर्पण किया जाता है। ऐसे परमार्थ परायण महामानव, जिन्होंने उच्च उद्देश्यों के लिए अपना वंश चलाने का मोह नहीं किया, भीष्म उनके प्रतिनिधि माने गये हैं, ऐसी सभी श्रेष्ठात्माओं को जलदान दें-
ॐ वैयाघ्रपदगोत्राय, सांकृतिप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येऽहं तिलोदकम्॥
अपुत्राय ददाम्येतत्, सलिलं भीष्मवमर्णे॥
अर्घ्यदान-
फिर शुद्ध जल से आचमन करके प्राणायाम करे। तदनन्तर यज्ञोपवीत बायें कंधे पर करके एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसके मध्यभाग में अनामिका से षड्दल कमल बनावे और उसमें श्वेत चन्दन, अक्षत, पुष्प तथा तुलसीदल छोड़ दे। फिर दूसरे पात्र में चन्दन से षड्दल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्घ्य अर्पण करे। अर्घ्यदान के मन्त्र निम्नाङि्कत हैं -
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो ब्वेनऽआवः।
स बुध्न्या ऽउपमा ऽअस्य व्विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च व्विवः॥ (शु. य. 13।3)
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्माणं पूजयामि॥
ऊँ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधा निदधे पदम्।
समूढमस्यपाँ सुरे स्वाहा॥ (शु.य. 5।15)
ऊँ विष्णवे नमः। विष्णुं पूजयामि॥
ऊँ नमस्ते रुद्र मन्यव ऽउतो त ऽइषवे नम :।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥ (शु. य. 16।1)
ऊँ रुद्राय नमः। रुद्र्रं पूजयामि॥
ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥ (शु.य. 36।3)
ऊँ सवित्रो नमः। सवितारं पूजयामि॥
ऊँ मित्रास्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि।ᅠद्युम्नं चित्राश्रवस्तमम्॥ (शु. य. 11।62)
ऊँ मित्रााय नमः। मित्रं पूजयामि॥
ऊँ इमं मे व्वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥ (शु. य. 21।1)
ऊँ वरुणाय नमः। वरुणं पूजयामि॥
सूर्योपस्थान-
इसके बाद निम्नाङि्कत मन्त्र पढ़कर सूर्योपस्थान करे -
ऊँ अदृश्रमस्य केतवो विरश्मयो जनाँ॥ 2॥ अनु। भ्राजन्तो ऽअग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहमनुष्येषु भूयासम्॥ (शु. य. 8।40)
ऊँ हᅠप्र सः श्चिषञ्सुरन्तरिक्षसद्धोता व्वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्द्वरसदृतसद्वयोमसदब्जा गोजा ऽऋतजा ऽअद्रिजा ऽऋतं वृहत्॥ (शु. य. 10।24)
इसके पश्चात् दिग्देवताओं को पूर्वादि क्रम से नमस्कार करे -
ऊँ इन्द्राय नमः' प्राच्यै॥ 'ऊँ अग्नये नमः' आग्नेय्यै॥ 'ऊँ यमाय नमः' दक्षिणायै॥ 'ऊँ निर्ऋतये नमः'
नैर्ऋत्यै॥ 'ऊँ वरुणाय नमः' पश्चिमायै॥ 'ऊँ वायवे नमः' वायव्यै॥ ऊँ सोमाय नमः' उदीच्यै॥
ऊँ ईशानाय नमः' ऐशान्यै॥ 'ऊँ ब्रह्मणे नमः' ऊर्ध्वायै॥ 'ऊँ अनन्ताय नमः' अधरायै॥
इसके बाद जल में नमस्कार करें -
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ऊँ अग्नये नमः। ऊँ पृथिव्यै नमः। ऊँ ओषधिभ्यो नमः। ऊँ वाचे नमः। ऊँ वाचस्पतये नमः। ऊँ महद्भ्यो नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ अद्भ्यो नमः। ऊँ अपाम्पयते नमः। ऊँ वरुणाय नमः॥
मुखमार्जन-
फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर जल से मुंह धो डालें-
ऊँ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन।
त्वष्टा सुदत्रो व्विदधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम्॥ (शु.य. 2।24)
विसर्जन-नीचे लिखे मन्त्र पढ़कर देवताओं का विसर्जन करें-
ऊँ देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित।
मनसस्पत ऽइमं देव यज्ञँ स्वाहा व्वाते धाः॥ (शु. य. 2।21)
समर्पण-निम्नलिखित वाक्य पढ़कर यह तर्पण-कर्म भगवान् को सर्र्मर्पित कर करें-
अनेन यथाशक्तिकृतेन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणाखयेन कर्मणा भगवान् मम समस्तपितृस्वरूपी जनार्दनवासुदेवः प्रीयतां न मम।
ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः।
नव नाग स्तोत्र का जप करें।
स्तोत्र:
अनंत वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबल। शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा। एतानि नवनामानि नागानां च महात्मानां सायंकालेपठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।
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